केला उपचार का अनोख संगम

उपासना और केला { और उपचार का अनोख T अनोखा संगम


 


नस्पति जगत में केले का वृक्ष अत्यंत प्राचीन है। केले के विषय में वैसे तो अधिकांश लोग परिचित हैं किन्तु इसका उपासना और उपचार में विभिन्न प्रकार से प्रयोग और उससे होने वाले लाभ के विषय में आम जनता को बहुत कम जानकारी है कारण, कि इसका उल्लेख किसी ग्रंथ में स्वतंत्र रूप से नहीं प्राप्त मः- संस्कत :- भानुफल, कदली, रम्भा, राजेष्टा, सुफल, वनलक्ष्मी। हिन्दी :- केला, बंगाली-केलि, महाराष्ट्र-क्रेला, दक्षिण भारत-केल, गुजराती-केला, तमिल-बालें, अरंबई। तेलुगु- अनंति, कदली। लेटिन- Musa Saphiaentum (मूसा सेपिएँटम)। केले की अद्भुत संरचना :- केले का वृक्ष चना, केले का वध लगभग 5 से 10 तक की वाई वाला होता है। इस पेड़ में कोई शाखा (डाली) नहीं होती है। इसके तने की संरचना पत्तों से ही होती है। एक-एक करके जैसे पत्ते निकलते जाते हैं, वैसे तने की रचना होती रहती है। किसी कवि ने कहा भी है- 'ज्यों केले के पात में पात-पात में पात' केले के पत्ते की लंबाई लगभग 5-6 फट और चौड़ाई लगभग 2 फुट तक की होती है। इसके पुष्प बड़े सुन्दर लंबवत् लालिमा युक्त होते हैं और फल से ही एक डंठल निकलता है। जिसमें एक साथ दर्जनों केले के फल लगते हैं। यह डाल में ही पक जाने पर अत्यंत स्वादिष्ट और लाभकारी होते हैं। प्रायः व्यापारी वर्ग इसे पहले ही तोड़कर और उसमें रसायन (कैमिकल) डालकर तत्काल पका देते है। बाजार में बिकने वाले सभी केले के फल इसी रसायन से पके हुए मिलते हैं, जो स्वास्थ के लिए हानिप्रद होते हैं। कम मात्रा में प्रयोग किया गया रसायन कम हानिप्रद होता है। इसकी पहचान यह है कि जिस केले पर जितने ज्यादा काले रंग के गहरे निशान होंगे, उसमें उतना ज्यादा कैमिकल का प्रयोग किया गया है ऐसा समझना चाहिए। इसके कच्चे फलों का प्रयोग सब्जी के रूप में भी किया जाता है और कुछ लोग इसके फूलों की भी सब्जी बनाते हैं। केले की प्रदेश और जलवाय के अनसार अनेक प्रजातियां पाई जाती हैं। किसी-किसी क्षेत्र का केला आकार में बहुत बड़ा, बहुत ही छोटा या मध्यम श्रेणी का होता है। इसकी खेती दक्षिण भारत, महाराष्ट्र में प्रचुर रूप से की जाती है। वैसे तो संपूर्ण भारत में ऐसा कोई बगीचा नहीं, ऐसा कोई गांव नहीं और तो और ऐसा कोई मंदिर नहीं जहां केले का वृक्ष न हो। पहले समय में प्रायः लोग केले के पत्ते पर ही भोजन करते थे। आज भी दक्षिण भारत में यह परंपरा है। धन वैभव संपन्न व्यक्ति भी केले के पत्ते पर रखकर भोजन करने पर आनन्दानुभूति करता है। भोजन करने पर आनन्दानुभूति करता है। कहते हैं जो फल स्वर्णपात्र में भोजन करने से प्राप्त होता है वही फल केले के पत्ते पर भोजन करने से प्राप्त होता है। भारतीय सनातन परंपरा में जब मृतात्मा की शांति हेतु उसे पिण्ड दान किया जाता है तब भी केला या ढाक के पत्ते पर ही पिण्ड दान दिया जाता है, ऐसी परम्परा और मान्यता है। केले में धार्मिक आस्था और उपयोग :- धार्मिक दृष्टिकोण से केले का उपयोग नारियल और आम्रपत्र के बाद सामान्यतया से आता है। अतिथि या किसी विशेष व्यक्ति के आगमन पर हरे-भरे केले के वृक्षों से प्रवेश द्वार बनाया जाता है। कहते हैं कि भगवान की कथा बिना कदली पत्र के नहीं होती है। केले का सुन्दर मण्डप बनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि केले के प्रवेश द्वार से ही लक्ष्मी और नारायण पधारते हैं. इसलिए मण्डप सदैव केले के पत्तों का ही बनाया जाता है। यथा- कर्तव्यो मण्डपः प्रोच्चैः कदलीखण्ड मण्डितः ॥ श्रीमद्भागवत, मा0 6/14 क केले के वृक्ष में भगवान विष्णु और बृहस्पति दव का वास माना गया है। इसलिए इसका पूजा हेतु एक स्वतंत्र वार बृहस्पतिवार निश्चित है। आस्थालु व्यक्ति घर में सुख-शांति दाम्पत्य जीवन में परस्पर प्रेम, छात्रों को शिक्षा में सफलता, संतान प्रा अपन पूजा बहुत हल्दी का तिलक करे। चने की दाल और उसमें गुड़ रखकर हाथ जोड़कर विष्णु स्वरूप केले को अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु प्रार्थना करे। फिर वह दाल गाय को खिला दें। ब्राह्मण को कुछ दक्षिणा दें, आप देखेंगे कुछ दिनों में चमत्कार की तरह सुधार नजर आएगा और आपकी आस्था प्रबल हो जाएगी। ज्योतिषीय दृष्टिकोण :- जन्म कुण्डली में जिनका बृहस्पति कमजोर है या जिन्हें पुखराज रत्न धारण करने के लिए ज्योतिषी लोग परामर्श देते हैं और आर्थिक कमी के कारण पुखराज धारण नहीं कर सकते हैं तो केले के समीप जायें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें और फिर आवश्यकतानुसार जड़ लें आये लेकिन यह कार्य यदि गुरु-पुष्य योग में करें तो ज्यादा अच्छा रहेगा। जड़ को घर लाकर गंगाजल और दूध से धो लें। फिर एक कांसे के या पीपल की थाली में उसे रखें और “ॐ वृ वृहस्पतये नमः' मंत्र का 108 बार जप (अभिमंत्रित) करके हल्दी चंदन अक्षत का तिलक करें और किसी ताबीज में भरकर धारण कर लें। यह कार्य सुबह निहार मुंह गुरु पुष्य योग में करे तो जो लाभ 50 हजार के पुखराज से प्राप्त होगा, वही फल केले की जड़ से प्राप्त होगा ‘‘विश्वासं फलं दायकम्।' केले का तंत्र में प्रयोग :- केले का तंत्र साधना में विविध रूपों में प्रयोग किया जाता है। इसके पंचांग (जड़, तना, पत्ता, पुष्प और फल) का प्रयोग होता है। बगलामुखी, हनुमान जी और वारुणी साधना में प्रायः केले का प्रयोग होता है। बगलामुखी और वरुण साधना केले के समीप अर्धरात्रि में करने का विधान है। बगलामुखी और हुनमान जी के भोग में कदलीफल का प्रयोग