डाउन सिन्ड्रोम

 


                                       डाउन सिन्ड्रोम


 


डाउन सिन्ड्रोम के साथ जी रहे बच्चे अपनी शारीरिक व मानसिक समस्याओं से राहत पाकर सामान्य जीवन बिता सकते हैं। डाउन सिन्ड्रोम बच्चों में एक ऐसी स्थिति है, जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास सामान्य बच्चों की तरह नहीं हो पाता और दिमाग भी सामान्य बच्चों की तरह काम नहीं उटी करता। कई बार उनके व्यक्तित्व में कछ • असहजताएं दिखाई देती हैं, लेकिन प्यार और । अच्छी देखभाल से ऐसे बच्चे सामान्य जीवन जी सकते हैं। जीन संबंधी विकार किसी भी उम्र में किसी । भी व्यक्ति के लिए समस्या उत्पन्न कर सकते हैं लेकिन बच्चों में जीन विकृति की वजह से सबसे ज्यादा होने वाले रोगों में मुख्यतः डाउन सिन्ड्रोम को माना जाता है, जो यह विभिन्न रोगी जैसे सेरेब्रल पेल्सी (बच्चों में ऑक्सीजन की कमी से शरीर में मानसिक व शारीरिक कमजोरी का होना), डवलपमेंटल डिले (बच्चे के शारीरिक व मानसिक विकास का धीमा होना), ऑटिज्म बोलने व समझने की क्षमता की कमी और ऑस्टियोजेनेसिस इम्परफैक्टा जीन विकृति की वजह से हड्डियों में आई कमजोरी और मस्कुलर डिस्टॉफी मांसपेशियों के क्षीण होने की बीमारी में से किसी एक का कारण जरूर देखा गया है। विश्व में लगभग हर 800 बच्चों में से एक बच्चा इस रोग का शिकार होता है। अब दुनियाभर में इस रोग से ग्रस्त 60 लाख रोगी हैं। देश में भी इस रोग से पीडित बच्चों की तादाद काफी है। उम्मीद की किरण चूंकि इस प्रकार के बच्चों में चेहरे में रौनक के अलावा शारीरिक व मानसिक विकास की गति भी काफी धीमी हो जाती है। इसलिए माता-पिता के लिए यह विषय चिंताजनक बन जाता है कि उनका बच्चा कभी आत्मनिर्भर बन सकेगा या नहीं। बहरहाल, दुविधा की इस स्थिति से उबारने में डॉहिल्ट्रोन आर.टि.एम.एस. (दोहरावदार ट्रांसक्रानियल मैगनेटिक उसकाव) के नाम से जाना जाता है। मस्तिष्क के कपाल जैसे मोटे हड्डियों में घुसकर बिना किसी तकलीफ या क्षति पहुंचाए, बिना किसी चीड़-फाड़ कर जीव कोषों तक संदेश एवं ऑक्सीजन जैसे ऊजी सिर्फ चुकी ऊर्जा सिर्फ चुबंकीय क्षेत्र द्वारा ही पहुंचाकर मस्तिष्क को संचालित करने में सफलता पायी गयी है और इस थेरेपी ने महत्वपूर्ण भूमिका । निभाई है। हाल में ही बच्चों में हिल्ट्रोन आर.टि.एम. _ ९ एस थेरेपी के प्रयोग के बाद यह बात दर्ज की। गई कि इलाज शुरू होने के बाद छह माह के * अंदर उनमें काफी सुधार हुआ है। सुधार की इस प्रक्रिया को बढ़ी हुई लबाई, संतलित । वजन, अतीत की तुलना में अच्छी भूख लगना और बौद्धिक मानसिक क्षमताओं में वदि के रूप में दर्ज की गयी। डाउन सिंड्रोम का प्रमुख कारण क्रोमोसोम्स । है। इसका मूल कारण कोशिकाओं सेल्स का असामान्य विभाजन है, जो भ्रण के शुरुआती विकास के दौरान होता है। सामान्यतः शिशु अपने माता-पिता से 46 क्रोमोसोम्स प्राप्त करता है, जिसमें 23 पिता से और 23 माता से प्रत्येक क्रोमोसोम डी.एन.ए उत्पन्न करता है. जिसे जीन कहते हैं। जीन यह निर्धारिक करता है कि भावी शिशु के शरीर और मस्तिष्क का विकास कैसा होगा, लेकिन डाउन सिन्डोम सिन्ड्रोम वाले भ्रूण में एक अतिरिक्त या एबनॉर्मल क्रोमोसोम होता है। यह अतिरिक्त जेनेटिक मैटीरियल शारीरिक और मानसिक विकास को बदल देता है। लक्षण :- डाउन सिंड्रोम के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि अतिरिक्त या एनॉर्मल क्रोमोसोम्स के सेल्स कितने हैं। डाउन सिंड्रोम के अंतर्गत बच्चे में विभिन्न प्रकार के लक्षण नजर आते हैं। जैसे बच्चे के चेहरे की बनावट, जिसके अंतर्गत उसका चेहरा सपाट दिखता है। कानों का छोटा होना, आंखों में और जीभ में भी असामान्यता नजर आती है।



1. चेहरे पर भावों को न ला पाना। 2. आंखें तिरछी होना और आंखों का ऊपर की ओर खिंचा रहना। 3. मानसिक और शारीरिक विकास की कमी। । । । 5, हृदय व पाचन तंत्र से संबंधित रोग। । 6. जोड़ों और मांसपेशियों में शिथिलता। कैसे कार्य करती है यह थेरेपी :- 1. और अन्य ग्रंथियों का कार्य बेहतर करना। मानसिक विकास में गति लाना। 2. थॉयराइड । 3. रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना। 4. रोगी के पुनर्वास में मदद करना। । ध्यान दें :- बढ़ती उम्र में महिलाओं द्वारा । गर्भधारण करने से डाउन सिंड्रोम होने की आशंका कहीं अधिक बढ़ जाती है। । डायग्नोसिस गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड और ब्लड टेस्ट कराए जाते हैं। इसके अलावा । जेनेटिक टेस्ट कैरियोटाइपिंग-कराया जाता है। अभिभावक क्या करें :- 1. अपराधबोध या दोष भाव महसूस न करें। बच्चे की इस अवस्था को लेकर मन में अपराध की भावना असे न पनपने दे। 2. चमत्कारी इलाज के दावों के झासे में न आएं। 3. महिलाएं अगली गर्भावस्था के शुरुआती महीने में ही यह पता कर सकती हैं कि आने वाले बच्चे को डाउन सिन्ड्रोम तो नहीं है। 4. गर्भधारण के दौरान 11 से 13 हफ्ते के मध्य शिशु के पानी की जेनेटिक जांच (कैरियोटाइपिंग) कराएं। होम्योपैथिक चिकित्सा :- होम्योपैथिक में ढेर सारी औषधियां हैं, जो आप आर.टि.एम. एस के साथ व्यवहार कर सकते हैं, जैसे बैराइटा कार्ब, सायलिसिया, कल्केरिया फास, जो आप निकटतम चिकित्सक की सलाह पर व्यवहार कर सकते हैं।