Aahar or arogya

                                                 आहार-विहार 


आहार की सीधा अर्थ है भीतर लेना। हम अपनी पांचों इन्द्रियों के द्वारा जो कुछ भी अपने शरीर में प्रवेश कराते हैं, वही हमारे शरीर के लिए आहार होता है। मुंह से खाना-पीना, नाक से श्वास लेना, कानों से सुनना, आंख से देखना तथा शरीर से वायु-धूप आदि का सेवन करना यह सब हमारे शरीर के लिए आहार ही है। इन सभी आहारों का सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक स्वास्थ्य से होता है। जीव के गर्भ में आते ही आहार ग्रहण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, जो उसके मृत्युपर्यन्त चलती रहती है। शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी हमारे आहार पर ही निर्भर होता है। शारीरिक स्वास्थ्य का आहार होता है, ‘संतुलित भोजन'। पीछे शरीर की क्रिया संचालन के लिए जो तत्व चाहिए होते हैं, उन सबका हमारे भोजन में होना आवश्यक है। यही संतुलित भोजन है। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, खनिज, विटामिन, क्षार, लोह आदि उचित मात्रा में लेने से शरीर स्वस्थ और क्रिया करने में सक्षम रहता है। इसमें से किसी की भी मात्रा की कमी या अधिकता सीधा हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। आहार का हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा असर होता है। कहावत भी है- ‘जैसा खाये अन्न, वैसा हो जाए मन।। आहार का हमारे जीवन में इसीलिए सर्वाधिक महत्व है क्योंकि यह हमारी शारीरिक और मानसिक शक्ति को सीधे-सीधे प्रभावित करता है। शारीरिक स्वास्थ्य की विकृतियों के साथ-साथ मानसिक विकति को भी हमारा भोजन उत्पन्न करता है। हमें वह भोजन ग्रहण एक करना चाहिये जो जीवनधारण के लिए अनिवार्य है। स्वाद व मजे के लिए ग्रहण किया हुआ आहार अंततः दुख ही प्रदान करता है। जैसे मादक द्रव्य जहां हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का बिगाड करते हैं, वहीं हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। आहार का प्रभाव हमारी आन्तरिक वृत्तियों पर और सूक्ष्म शरीर पर भी पड़ता है। वायु, धूप, प्रकाश, विचार आदि सभी हमारे लिए आहार ही हैं। हमें भरसक प्रयत्न करना चाहिए कि हम ऐसे स्थान पर रहें जहां हमें शुद्ध वायु आदि प्राकृतिक वस्तुएं पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो सकें। हमारा भोजन हितकर एवं स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होना चाहिए। देश, काल, ऋतु के अनुकूल होना चाहिए। भोजन ताजा ही हो, यही लाभकारी है। बासी भोजन तामसी हो जाता है। भोजन की मात्रा उचित होनी चाहिए। न अधिक न कम। न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा हो। जब पूरी भूख लगे तभी भोजन ग्रहण करना चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि भोग के पीछे रोग व रोग के पीछे भोग। दरअसल आहार-विहार का सीधा सम्बन्ध हमारे स्वास्थ्य के साथ होता है। शाकाहार एवं मांसाहार :- आध्यात्मिक, नैतिक, आर्थिक, अहिंसा, प्रकृति, योग एवं पर्यावरण की दृष्टि से यह निर्विवाद है कि शाकाहार ही उत्तम आहार है। स्वास्थ्य की सुरक्षा शाकाहार से ही अधिक होती है। प्रोटीन आदि की दृष्टि से उत्तम आहार शाकाहार ही है। साथ ही यह सत्य है कि कोई भी मनुष्य लगातार एक माह तक शाकाहार पर तो स्वस्थ रह सकता है, परन्तु मांसाहार पर लगातार एक माह तक रहना अर्थात् अपने स्वास्थ्य को चौपट करना ही है। यदि हमें अपना शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना है तो हमें अपने आहार-विहार का ध्यान रखना ही होगा। इसी क्रम में आयुर्वेद व अध्यात्म ने हमें एक और भेंट दी है ‘उपवास'।



उपवास :- उपवासादि से सभी प्रकार के हुआ पाप-ताप का शमन होता है। उपवास के दिन सात्विक एवं स्वल्प आहार का विधान किया गया है। केवल खान-पान ही नहीं बल्कि हमें अपने आचार-विचार भी शुद्ध रखने चाहिए। इससे हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य का भी विकास होता है। इससे आदि न केवल शरीर स्वस्थ होता है, अपितु मन भी भरसक दुर्विचार से अलग होने लगता है। उपवास के द्वारा अनेक रोगों के उपशमन, निदान एवं वस्तुएं चिकित्सा में सहयोग प्राप्त होता है। आयुर्वेद में पंचकर्म चिकित्सा के अन्र्तगत एक कर्म उपवास लिए का भी होता है। शरीर को स्वस्थ रखने तथा रोगों का शमन करते हेतु उपवास का बहुत अधिक यही महत्व होता है। उपवास पाचन तंत्र को बल प्रदान । करता है। पाचन तंत्र की स्वस्थता ही आरोग्य की अधिक पहली शर्त है। । शरीर एक यंत्र की तरह अनवरत कार्य करता करना रहता है। हमारा शरीर आहार को पचा कर मल भाग को बाहर निकालना तथा सार-भाग से दरअसल प्रत्येक अंग का पोषण करना ही इसका प्रमुख स्वास्थ्य कार्य है। उपवास करने से पाचन क्रिया में भाग लेने वाले अवयवों- अमाशय, आहार नली, , पित्ताशय, यकृत तथा आंतों को विश्राम मिलता एवं है। उपवास करने से पूरे शरीर को विश्राम मिलता है। रोगों का शमन होने लगता है। सभी रोगों की सुरक्षा प्राथमिक चिकित्सा उपवास ही मानी गई है। उपवास के प्रमुखता से तीन उद्देश्य माने गए आहार हैं- शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक। कोई उपवास से दमा, मोटापा, कब्ज, बवासीर, पर एपेंडिसाइटिस, संग्रहणी, गठिया व यकृत के पर रोगों में बहुत लाभ होता हुआ देखा गया है। अपने महर्षि चरक के अनुसार उल्टी, अतिसार, अपना अरुचि, अफारा आदि रोगों में उपवास प्रमुख रखना औषधि है। उपवास से शरीर के अवयव तरोताजा रखना हो जाते हैं। इससे नवीनता, स्फूर्ति एवं हमें आत्मोन्नति होती है। मांसाहारी को लंबा व शाकाहारी को छोटा उपवास करने की सलाह दी जाती है। स्वस्थ व्यक्ति को जीवन शक्ति बढ़ाने दिन एवं स्वास्थ्य रक्षा हेतु सप्ताह में एक दिन किया उपवास करने की सलाह दी जाती है। आयर्वेद हमें में जगह-जगह वर्णित है कि हमारे । आहार-विहार का सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक साथ व मानसिक स्वास्थ्य से होता है।