Aahar vihar or vastu

 


‘जब छाए मेरा जादू कोई बच न पाए।' career जी हां। जब भी आप किसी व्यक्ति को स्वस्थ उत्तर और तंदुरूस्त देखें और आपके दिमाग में उपरोक्त पंक्तियां गुंजने लगे, तो लगेगा जाद है। ऊपर यह जादू सिर चढ़ कर बोलेगा यदि जिसे हम अवगत अवगत देख रहे हैं वह उम्र में हम से बड़ा हो। हमारा मन प्रक्रिया प्रक्रिया निश्चित तौर पर प्रश्न करने में पीछे नहीं रहेगा. प्रतिरोधक मैं ऐसा क्यों नहीं? दरअसल यह निश्चित ही रहने जाद नहीं है। यह परिणाम है उचित आपके आहार-विहार और वान का जो आपको वध खुली रहने में और अच्छा स्वास्थ्य पाने में मदद करता को है। आइये आज इसी पर चर्चा करते हैं। आगे आपका आहार, आपका विहार तय करता है है। और आपका विहार, आहार के साथ संयुक्त होकर आपको स्वस्थ रहने में मदद करता है और उपस्थिति नानाला पटान ना ३ जागरूक जिसमें यह भाव, विचार और कार्य सम्पन्न हो। को स्वस्थ रहने की पहली शर्त है निश्चित दिनचर्या। धमनियों आपकी दिनचर्या ही आपका आहार तय करती इस घाटा तय करती इस है। प्रातः की मधुर वेला आपको खुली हवा में लगते सांस लेते हुए ताजगी का अहसास कराती है। आपको अपने घर की दिशाओं पर जरा दष्टि डालिये। का उत्तर :- वास्तु शास्त्र के अनसार यही वह स्थान तत्व है जहां सर्य की किरणें बहत दर से और बहुत से मनभावन होकर पहंचती हैं। यहां का निर्माण पूर्व न्मा और चार्ट बटन कम होने के पर्जन्य कारण वायु का Energy level आपमें नई उनकी ताजगी और स्फर्ति भरने में सक्षम है। यहां की जानकारी ढलान आपको विनम्र बनाती है। यहां वास्तु करते मण्डल के देव भल्लाट और सोम आपको अपने खान-पान और स्वास्थ्य के बारे में खलेपन से चलती सोचने और उस पर अमल करने की शक्ति एकप्रदान करते हैं। बुध ग्रह की उपस्थिति आपको मात्रा बद्धि प्रदान करती है। आप अपने आहार को लेकर सतर्क हो जाते हैं। क्या खाना है और क्या हम नहीं, यह सब आप बड़ी आसानी से तय कर जबरदस्त लेते हैं। वास्तु पुरुष के कंधे, यहां आपके कंधे शरीर मजबूत करते प्रतीत होते हैं। आपकी निश्चित ‘दिनचर्या आपको एक अच्छा और बेहतरीन मण्डल career चुनने में मदद करती है। उपस्थिति उत्तर पूर्व :- यहां वास्तु मंडल के देव भुजंग के और देव आदिति आपको धरती में और धरती के करती ऊपर स्वास्थ्यवर्धक वनस्पतियों से आपको यहां अवगत कराके आपको स्वयं से जोड़ने की। अवगत कराके आपको स्वयं से जोड़ने की रूप प्रक्रिया का अंजाम देते हैं। ये आपको रोग । प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। ये आपकी रोग पूर्व प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर आपको स्वस्थ रहने में मदद करते हैं। इस स्थान का खुलापन प्रश्न आपके स्वस्थ रहने का परिणाम बन जाता है। खुली हवा में सांस लेते हुए आप स्वतः ही स्वप्न को सच करते प्रतीत होते हैं। एक कदम और आगे बढ़ाते ही हम उत्तर पूर्व दिशा में पहुंच जाते विसर्जन है। सिद्धांत वास्तु मण्डल के देव दिति और शिखी की दक्षिण उपस्थिति आपको अपने स्वास्थ्य के प्रति और दिनचर्या जागरूक बना देती है। आपकी जठराग्नि भोजन वास्तु को पचाकर शरीर के लिए उपयोगी रस तत्त्व को धमनियों में प्रवाह के लिए सज्ज करती है। आप गुरुत्वाकर्षण इस विषय पर स्वयं अपने आप से संवाद करने इस विषय पर स्वयं अपने आप से संवाद करने अपद्रव्य लगते हैं। देव गुरु बृहस्पति की उपस्थिति यहां हैं आपको सही निर्णय लेने में मदद करती है। यहां करते का जल तत्व आपके शरीर में विद्यमान जल वाली तत्व के साथ संवाद स्थापित कर आपको रोगों से बचाता है। अगला कदम आपको पूर्व उत्तर न पूर्व में ले आता है। यहां वास्तु मंडल के देव से पर्जन्य और जयंत आपको उनके द्वारा और दक्षिण उनकी सहायता से उत्पन्न वनस्पतियों के बारे में पोषक जानकारी प्रदान करके आपकी जीत निश्चित करते हैं। शरीर को स्वस्थ होना, स्वस्थ सांसों से और जल की निश्चित मात्रा से तय होता है। चलती हवा में जल और जल में हवा की मात्रा मंडलानुसार एक-दूसरे में समाई रहती है। यह सब यहां प्रचुर बल मात्रा में उपलब्ध है। सूर्य ही पृथ्वी पर जीवन का कारण है। जी हां, कभीहम पूर्व दिशा में आ गए हैं। सूर्य की किरणों में बन जबरदस्त रोग प्रतिरोधक शक्तियां निहित हैं। शरीर की सभी क्रियाएं सूर्य द्वारा प्रदत्त विटामिन मंडलानुसार ‘डी’ की बदौलत ही संचालित होती हैं। वास्तु उपस्थिति मण्डल के देव महेन्द और सूर्य की यहां • डॉ. पूर्णिमा उपस्थिति ही आपको शरीर संगठन और अज्ञान के अंधेरों का नाश करके स्वस्थ रहने में मदद करती है। ये पांचों इन्द्रियों को प्रभावित करते हैं। यहां व्याप्त वायु तत्व, जीवनदाई प्राणवाय के । रूप में प्रवाह होता है। । पूर्व दक्षिण पूर्व :- यही वह दिशा क्षेत्र है जो आपके स्वास्थ्य को आपके लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बना देती है। वास्तु मण्डल के देव सत्य और शृंश कि उपस्थिति गुरुत्वाकर्षण के सिद्धांत को बल देती प्रतीत होती है। शरीर में जहां रस की आवश्यकता है वहीं अपद्रव्य का सही विसर्जन भी आवश्यक है, यही गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत लागू होना आवश्यक है।



दक्षिण पर्व :- स्वास्थ्य तभी साथ देता है जब दिनचर्या को निभाने की भावना भी प्रबल हो। वास्तु मंडलानुसार इस दिशा में विद्यमान देव आकाश और अनिल न केवल देव भंश की गुरुत्वाकर्षण की शक्ति को बल प्रदान करके अपद्रव्य विसर्जन की क्रिया को बल प्रदान करते हैं बल्कि प्रक्रिया को घटित होने में सहायता भी करते हैं। यह क्रोध की भांति बलपूर्वक होने वाली व्यवस्था अवश्य है परंत यह लाभदायक । भी है बशर्ते कोध जैसी था न होने दें अपितु उसमें निहित बल का सदबद्धि से उपयोग करें और लाभान्वित हों। दक्षिण दक्षिण पर्व :- सपाच्य और उचित पोषक पदार्थों से युक्त भोजन ही अच्छे स्वास्थ्य की रचना में सहायक होता है। अग्नि ही पाचक की भूमिका निभाने में सक्षम है। शरीर में पाचन की क्रिया जठराग्नि के माध्यम से और वास्तु मंडलानुसार देव पृषा और देव वितथः भोजन में बल और शक्ति के माध्यम से अच्छे स्वास्थ्य की रचना कर शरीर में बल उत्पन्न करते हैं। कभी-कभी किया गया दिखावा भी प्रेरणा स्रोत बन जाता है और हम एक स्वस्थ जीवनशैली की ओर कदम बढ़ा लेते हैं। दक्षिण दिशा में वास्तु मंडलानुसार देव गृह क्षतः और देव यम की उपस्थिति हमें शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए अपनी जिहवा पर संयम और नियमों का पथ दिखाती है। दिशा में उपस्थित अग्नि तत्व भी इसी ओर इंगित करता है। अग्नि तत्व का संयमपूर्वक उपयोग ही लाभदायक है। संयम फिर चाहे वह स्वस्थ रहने की प्रक्रिया हो या जीवन में आगे बढ़ने की ललक।। दक्षिण दक्षिण पश्चिम :- वास्तु मंडलानुसार देव गंधर्व और देव शृंगराज हमें स्वास्थ्य के लिए क्या संजोना चाहिए और किस द्रव्य को विसर्जन के लिए छोड़ देना चाहिए कि नसीहत देते हैं। शरीर विज्ञानुसार शरीर में द्रव्य को लेकर सजने वजन का क्रिया लगातार चलती रहती है। दिशाओं पर आधारित विज्ञान वास्तु भी इससे अनभिज्ञ नहीं है। इस दिशा में व्याप्त पृथ्वी तत्व न केवल शरीर की पांचों इन्द्रियों बल्कि शरीर के माध्यम से five senses को भी प्रभावित करता है। पृथ्वी तत्व के यही गुण दिशाओं में व्याप्त व्याप्त देवों की गुणवत्ता के साथ मिलकर स्वस्थ शरीर का निर्माण करके उसे सतत कार्य करने का करन का अभ्यास कराते हैं। दक्षिण पश्चिम :- यदि शरीर स्वस्थ है तो इसका अर्थ है कि उसके पैर मजबूत है। भवन । वहीं सुदृढ होता है जिसकी नींव मजबूत होती है। दक्षिण पश्चिम दिशा वास्तु पुरुष के पैर है। सम्पूर्ण शरीर का भार इन्हीं पर टिका है। वास्तु मंडलानुसार देव मृग और देव पितृ आहार-विहार के संदर्भ में इससे जड़े सम्पूर्ण ज्ञान के लिए जिज्ञासा और फिर उस पर अमल करके उसमे पारंगत होने की प्रक्रिया को आकाश में स्थित पूर्वजों की ऊर्जा के आशीर्वाद से ग्रहण करने की अवस्था को अंजाम देते हैं। पृथ्वी तत्व की यहां उपस्थिति और गण ग्रहण करने की क्षमता पर भला किसे संदेह होगा। पश्चिम दक्षिण पश्चिम :- आकाश ही वह तत्व है जो न केवल वनस्पतियों की उत्पत्ति में बल्कि जो पशु, पक्षी उन वनस्पतियों या अन्य भोजन योग्य द्रव्यों, अपद्रव्यों का इस्तेमाल करते हैं और फिर कभी-कभी या प्रायः स्वयं भोजन बन जाते हैं, को भी Space प्रदान करता है। वास्तु मंडलानुसार देव दौओवारीक और देव सुग्रीव आपके sub_conscience mind में आहार और विहार के बारे में शास्त्र क्या कहते है। कैसे आप उन पर अमल करके स्वस्थ रह सकते हैं। आपकी ग्रहण करने की क्षमता को कैसे बढ़ाया जा सकता है। इन सबसे आपको रूबरू करते हैं। पश्चिम :- अच्छा आहार-विहार ही फलने-फूलने यानी स्वस्थ रहने की प्रक्रिया को ।जन्म देता है। स्वस्थ शरीर ही सच्चा धन है। आपको वह सब प्रदान करते हैं, जिनकी वास्तव ||में आपको आवश्यकता है। एक पर्यवेक्षक की भांति आपकी सभी गतिविधियों पर निगाह रखते हैं ताकि आपका अच्छा स्वास्थ्य लगातार बना रहे। पश्चिम उत्तर पश्चिम :- आपका आहार आपका व्यवहार बनाता। वास्तु मंडलानुसार देव (असुर और देव आपके भोजन के अनुसार आपकी प्रकति की संरचना करते हैं। भोजन के द्वारा ही आपकी आध्यात्मिकता और विषयों की गदगई पहचानी जाती है जो बेकार है उसे विभिन्न त्यागने की शक्ति, शरीर में डिटॉक्सीफिकेशन के दाग व के द्वारा स्वास्थ्य लाभ, यह सब इसी दिशा । सिद्धान्तों उत्तर पश्चिम :- किसी भी विषय के प्रति लत और recovery इसी दिशा में विराजमान वास्तु मंडलानुसार देव पापयक्षमा व देव रोग द्वारा ही सम्भव है। ऋतु प्रतिकूल भोजन करके अस्वस्थ पास होने के पश्चात् अपराध बोध और फिर पुनः वस्था का अंग बनाना इनकी विशेषता है। पृथ्वी तत्व के प्रभाव से ओत-प्रोत यह दिशा, वायु के विशेष प्रभाव के साथ आपके स्वास्थ्य को तब भी संभाल पाने में सक्षम है जब आप इसका आवश्यकता सबसे ज्यादा महसूस करत है। पर उत्तर पश्चिम - आकषण एक एसा |शब्द है जो आपके आहार-विहार के साथ हमेशा से जुड़ा हुआ है। भावनात्मक भोग की अभिव्यक्ति और एक गाइड की भूमिका यहां वास्तु मंडलानुसार देव नाग और देव मख्य निभाते हैं। यहां न केवल आप अपने लिए क्या जरूरी और क्या अच्छा है ये समझने लगते हैं। चिकित्सा बल्कि उन सब के लिए वैसी व्यवस्था की तरफ भी आकर्षित होने लगते हैं। कैसे आपका आहार-विहार स्वास्थ्य और वास्तु आपके लिए आपस में सामंजस्य बैठाते हैं। आवश्यकता है तो बस थोडी सी सूझ-बूझ की। फिर आपको ‘जब दिया छाए मेरा जाद' यह गनगुनाने में जो मजा आने वाला है उसका अनुभव हमारे साथ शेयर करना भलियेगा नहीं।