असाध्य रोग और आयुर्वेद

                                                   असाध्य रोग और आयुर्वेद 


 


 वास्तव में असाध्य रोग है क्या? पहले पीली इस पर बेच कर ला असाध्य अथात जो साध्य ना हो, अ ति जिस रोग के ठीक होने की संभावना ना हो। वास्तव में संसार में ऐसा कोई रोग नहीं है, जिसकी विज्ञान चिकित्सा संभव ना हो, परन्तु कभी-कभी पूर्ण ऐसा हो जाता है कि किसी रोगी में । विज्ञान लक्षण पाए जाते हैं, जो किसी भी चाकसा पनत में किसी भी रोग में वर्णित नहीं होते, ऐसे समय में सामान्यतः चिकित्सक समझ लत है कि यह तो कई नया ही रोग उत्पन्न हो गया है, जो साध्य नहीं है, असाध्य है। जब कि वस्तुतः ऐसा : नहीं है, भले ही वे लक्षण किसी भी रो वर्णित नहीं हैं, परन्तु लक्षणों के आधार पर तो चिकित्सा की ही जा सकती है और कुशल वैद्य का कर्त्तव्य भी यही हैदवा आयर्वेद के महान ज्ञाता महर्षि चरक ने भी अपने एक सूत्र में कहा हैरसविकारनामाकशलो न जिहीयात कदाचन। न हि सर्वकिकाराणां नामतोऽस्ति धवा स्थितिः॥ (चरक, सू, 18/44) रोगी में प्राप्त लक्षण यदि किसी रोग के अन्तर्गत नहीं आते, तो वैद्य को निराश नहीं ११ प्रकार होना चाहिए, अपितु लक्षणों के आधार पर चिकित्सा करनी चाहिए। यही कुशल । में चिकित्सक का कर्तव्य है। इसी आधार पर आज भी दुनिया में असाध्य माने गए कुछ रोगों की चिकित्सा सफल रही पीला है। इसी आधार पर एक उक्ति कही गई है। जहा ऐलोपैथी समाप्त होती है, वहाँ से आयुर्वेद शुरू होता है। इनमें से कुछ रोगों के छ रोगों के विषय में संक्षेप में हम यहां दे रहे हैं। प्रकार 1. स्क्ले रोडर्मा (Scleroderma) :- जिसे आयुर्वेद के अनुसार प्रकृति, वात, पित्त, कफ नहीं और उपसर्ग के द्वारा सभी रोगों को समझा जा विज्ञान कभी पूर्ण निरोगता सकता है। आज के चिकित्सा विज्ञान ने इस कोई रोग के विषय में जानकारी प्राप्त कर ली है। विज्ञान के अनुसार इस रोग में छोटी रक्तवाहिकाओं का भीतरी भाग (स्तर) मोटा रोगों हो जाता है। यह रोग प्रायः 30 से 60 वर्ष की हैअवस्था में पाया जाता है। कम रक्त प्रवाह के अन्य कारण अंगुलियाँ पीली पड़ जाती हैं, धीरे-धीरे प्रवाल मर्दा-सी हो जाती है। अंगुलियों का सड़ना, पथ्यमुदा-सा हो जाता। घुमाने में कठिनाई होना, त्वचा की ऊपरी सतह पहले पीली हो जाना, अस्थियों पर पाई जाने वाली सतह इस जो त्वचा में कसाव होना इस गा * जा 3ठीक हैं। इस रोग के निदान में आधुनिक विज्ञान ने । हैं। इस रोग के निदान में आधनिक विज्ञान संस्थान संसार सफलता प्राप्त कर ली है, परन्तु अभी तक । पथरी जिसकी विज्ञान के लिए यह रोग असाध्य है क्योंकि । । जिसे कभी पूर्ण निरोगता के लिए, इस रोग के सम्बन्ध में । * सकता विज्ञान के पास अभी तक कोई दवा नहीं है। प । पथरी भी Prednisolone नामक दवा के । । सकता में combination से आशिक लाभ पटाया भस्मसामान्यतः जाता है। उचित कई वरूण आयुर्वेद इस रोग को साध्य मानता है। साध्य आयुर्वेद इस रोग को साध्य मानता है। आयुर्वछ में 'रसराज' नाम की एक औषधि है, के ऐसा : उसका काम है रक्तवाहिनियों का प्रसारण करना। इस औषधि से रक्त वाहिनियों में जितने पर भी विकार होते हैं, सबका सफाया हो जाता है। 4उचित स्थानों पर रक्त संचार शुरू हो जाता है। केवल दवा के संयोजन के लिए रसराज रस, स्वर्ण ग्रन्थि भी भस्म, प्रवाल पंचामृत, चन्द्रप्रभा, कृमिमुदगर . विज्ञान रस, सितोपलादि, मोती पिष्टी आदि का बाद । सम्मिश्रण बता कर दिया जाता है। धवा पथ्य-अपथ्य का ध्यान रखना पड़ता है। धैर्य लिए चन्द्रप्रभापूर्वक चिकित्सा से यह रोग पूर्णतः साध्य है। भस्म 3 हिपेटाइटिस-बी (पीलिया) :- एक गोखरव के 2. नहीं ११ प्रकार का वायरस खान-पान के द्वारा मुख मार्ग कई पर से प्रविष्ट होकर यकृत (लीवर) में अड्डा हैं कुशल । में जमा लेते हैं। पूर्ण रूप से जमने के पश्चात् यकृत की पित्तस्राव क्रिया में अवरोध उत्पन्न सूर्य । सूर्यावर्त हो जाता है। यकृत फूल कर पेट में फैल जाता गर्भाशय असाध्य है। असहनीय पीडा प्रारम्भ हो जाती है, रंग ब्लाक रही पीला हो जाता है, हाथ पैर ठंडे हो जाते हैं और । कछ समय बाद रोगी का प्राणान्त हो जाता है। । साथ से हम का निदान आज के निशान के नोट के पास खन की जांच के द्वारा मौजूद है। एक में के पास वन की ज्ञान = राग ज ल भस्मों प्रकार का टीका भी विज्ञान ने खोज लिया है, * प्रकार - जिसे समय-समय पर लगवाते रहने से यह रोग । प्रयोग कफ नहीं हो पाता किंतु इस रोग के हो जाने पर दवा जा विज्ञान के पास इस रोग को समाप्त करने का असाध्य रोग विशेषांक कोई विकल्प नहीं है, और अंत में विज्ञान । ऑपरेशन की सलाह ही देता नजर आता है। छोटी आयर्वेद प्राचीनकाल से यकत सम्बन्धी सभी रोगों की सफल चिकित्सा करता चला आ रहा है। इस रोग में ‘पुनर्नवा' का बड़ा महत्व है। अन्य सहायक औषधियां हैं- पुनर्नवा मण्डर, प्रवाल पंचामृत, रस सिन्दूर, सितोपलादि आदि। , पथ्य-अपथ्य का ख्याल रखते हुए आयुर्वेद से सतह वाली इस रोग का समूल उपचार संभव है। कायम 3. पथरी :- पथरा सामान्यतया मत्रवह । संस्थान या वृक्क में पाई जाती है। विज्ञान में पथरी को आज भी असाध्य कहा जाता है, । जिसे केवल ऑपरेशन से ही निकाला जा । सकता है। आयुर्वेद के अनुसार दोनों जगहों की । प पथरी को दवा से ही निकाला या गलाया जा । सकता है। दवा के रूप में- हजरूल यहूद पटाया भस्म, श्वत पपटा, पाषाण भद्, चन्द्रप्रभा क उचित भाग में सम्मिश्रण एवं क्वाथ- कुलथी, वरूण छाल, पुनर्नवा, गोखरू, भिंडी का बीज । आदि आदि का प्रयोग किया जाता है। पथ्य-अपथ्य , के साथ दवा करने से रोग समूल नष्ट होता है। प्रसारण और शो होने की संभावना जितने 4. प्रोस्टेट ग्लैंड (पौरुष ग्रन्थि ):- यह रोग केवल पुरुषों में पाया जाता है, क्योंकि यह स्वर्ण ग्रन्थि केवल पुरुषों में पाई जाती है। आधुनिक . विज्ञान में यह रोग बार-बार ऑपरेशन करने के बाद भी समूल ठीक नहीं होता, जबकि । आयुवेद के सवन से यह रोग समूल हमेशा के लिए ठीक होता है। दवा- काचनार गग्गल, चन्द्रप्रभा, चतुर्मुख रस, प्रबााल पंचामृत, ताम्र भस्म आदि, क्वाथ- वरुण छाल, पुनर्नवा, गोखरव पंचतणमल, सहजन छाल। और भी मार्ग कई रोग हैं, जो विज्ञान के लिए अभी असाध्य हैं पनायवेट के लिए वे साध्य हैं जैसेसूर्य सूर्यावर्त (माइग्रेन), वात गुल्म, रक्त गुल्म, जाता गर्भाशय की ट्यूब ब्लाक होना, हृदय की ट्यूब रंग ब्लाक होना, परिणाम शूल आदि-आदि, बस आवश्यकता है तो धैर्य पूर्वक, पथ्य-अपथ्य के साथ चिकित्सा की। सा नोट :- कृपया पाठक वृन्द उपरोक्त वर्णित में भस्मों के सम्मिश्रण या कहीं से भी किसी भी , प्रकार के भस्मों के मिश्रण को स्वयं बनाकर । प्रयोग ना करें, किसी वैद्य की सलाह से ही पर पाक दवा का प्रयोग करें।