भारतीय ज्योतिष अनिष्ट ग्रहों का तुलनात्मक विवेचन

               भारतीय ज्योतिष अनिष्ट ग्रहों का तुलनात्मक विवेचन



ग्रहों का प्रभाव मानव जीवन पर पड़ता है। यह कल्पना प्रत्यक्ष सत्य है। समुद्र में ज्वार-भाटे का कारण चन्द्रमा ही माना जाता है। चन्द्रमा के ही प्रभाव से समुद्र में ज्वार भाटा आता है। इस तथ्य को सभी वैज्ञानिक स्वीकार कर चुके हैं। मनुष्य के शरीर में 80 प्रतिशत जल हैं अतः चन्द्रमा का 'प्रभाव मनुष्य के कार्यकलापों पर होना निश्चित है।अमावस्या एवं पूर्णिमा को फाइलेरियाकी वृद्धि से। ज्ञात होता है कि इस रोग में भी प्रधान कारण चन्द्रमा है। अमेरिका में हुए सर्वेक्षण के अनुसार |अधिकांश हत्याकाण्ड एवं अपराध अमावस्या और 'पूर्णिमा को ही होते हैं। डॉ. जोशी के अनुसार '५ मनुष्यों में कामुकता, पागलपन एवं मिरगी का दौरा उन्हीं दिनों के आसपास चलता रहता है। सूर्य का प्रभाव भी स्पष्ट है। सूर्य की गति के अनुसार रज मुखी नामक पुष्प में परिवर्तन आता है। वह सूर्य है सूर्य की ओर घूम जाता है। रूस के वैज्ञानिकों ने खोज खाज की है कि जब आकाश में सूर्यग्रहण होता है तो पक्षी जंगल में 24 घण्टे पूर्व कलरव करना बंद कर कर देते हैं। जंगल के सभी जानवर किसी अज्ञात भय से ग्रसित होकर भयभीत हो जाते हैं। कुमुदिनी नामक पुष्प केवल चन्द्र किरणों से ही खिलता है। 'इस पुण्य का रात्रि में खाना एक वर्ष अ५ रखता है। इसी प्रकार कमल दिन में खिलता है और रात में सम्पुटित हो जाता है। सूर्य एवं चन्द्रग्रहण के विषय में गणना कई वर्ष पूर्व कर ली जाती है। अतः सिद्ध हो जाता है कि ग्रहों का प्रभाव मनुष्य, पशु-पक्षी, सतावर और जंगम सभी पर पड़ता है। क्ष है। इसके गवाह सूर्य और चन्द्र सर्वदा घूम-घूम कर लोगों को साक्षी देते हैं। ‘प्रत्यक्ष ज्योतिष शास्त्रं चन्द्राको यस्य साक्षिणौ।'ज्योतिष शास्त्र प्राचीनकाल से चला आ रहा है। 'एक ज्योतिषी के लिए उसके लिए जन्मकुण्डली ही व्यक्ति के स्वरूप का उद्घाटन कर सकती है। स्वरूप का उद्घाटन कर सकती है। इस प्रकार रोग निदान में भी ज्योतिष शास्त्र का महत्वपूर्ण योगदान है। प्रायः भविष्यवाणियां गलत होने पर ज्योतिष शास्त्रों का दोष दिया जाता है। परन्तु गलत भविष्यवाणियों के कारण इस प्रकार है- जन्म समय का सही ज्ञान नहीं होगा, गणित की अशुद्धि ज्योतिर्विद् की अल्पज्ञान, राष्ट्रकवि हिम मैथिलीशरण गुप्त ने अपनी पुस्तक भारत-भारती में ठीक ही कहा है :- । विज्ञान के लिये उन सिद्ध है। यद्यपि अविज्ञों से हुआ वह निन्द्य न और निषिद्य है। । |।। प्राचीन काल से ही भारतीय वैदिक ज्योतिष शास्त्र द्वारा अनिष्ट ग्रहों की शान्ति के लिए ज्योतिष एज्योतिष ! |शास्त्र मुख्य रूप से यत्रतत्र, मत्र, यज्ञ, अनुष्ठान, जप-तप, रत्न, शंख, आदि कई प्रकार से अनिष्ट स आनष्ट ग्रहों के प्रभाव को निष्क्रिय या कम करने का । का प्रयास करता है। इनमें से अनिष्ट ग्रहों की शान्ति हो " या स्वास्थ्य संरक्षण के लिए किये गए वैदिक दिको उपाय, हर प्रणाली पूर्णतः वैज्ञानिक है और उसके । सका अपने सुनिश्चित परिणाम हैं। भारतीय वैदिक ज्योतिष विज्ञान जातक के जीवन में आने वाले या । । वर्तमान में चल रहे अनिष्ट ग्रहों के प्रकोप को |शान्त करने के लिए वैदिक मंत्रो अर्थात् जप, तप, पूजा-पाठ आदि का आश्रय लेना सर्वोपरि व । । अचूक माना गया है। वर्तमान समय काल परिस्थितियों में परिवर्तन आ चका है परन्तु आज भी वैदिक आधार पर किए गए उपायों से अनिष्ट आज ग्रहों के प्रकोप को पूर्णतः सटीक शत्-प्रतिशत शान्त कर सकते हैं। आज़ भी उन वैदिक मंत्रों में इतना आश्चर्यजनक चमत्कार व प्रभाव है जिसके कारण व्यक्ति विशेष के घर-परिवार, स्वास्थ्य, व्यवसाय, उद्योग स्थल, मौकरी या अन्य किसी भी प्रकार के अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से पर्णतः मक्ति मिल सकती है। मेरे विचार में आपके मन में यह प्रश्न घर कर रहा होगा कि मंत्रों के प्रभाव में अपने जीवन पर चल रहे अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव से मुक्ति । मिल पाना संभव है क्या? और यदि हम मान भी लें कि वैदिक मंत्रों के उच्चारण से अनिष्ट ग्रहों के का प्रभाव से मुक्ति या कमी आती है तो वास्तव में इन प्रभाव से मुक्ति या कमाता है तो वास्तव में ३" वैदिक मंत्रों में क्या है या इसके पीछे क्या वैदिक मंत्रों में क्या है या इसके पीछे क्या लोजिक या वैज्ञानिक आधार छुपा हुआ है? अति उत्तम प्रश्न है और आज का वर्तमान समय वैज्ञानिक युग है और जब तक वाद-विवाद-संवाद व विषय वस्तु पर शोध, अनुसंधान नहीं होगा तो •डिॉ. हिम किसी भी वस्तु विशेष के तल तक नहीं पहुंचा सकते हैं और जब तक हम उस विषय वस्तु को नहीं समझ पायेंगे तब तक उसके वैज्ञानिक, विश्लेषण को नहीं प्राप्त कर सकते हैं। इन सब 'बाता बातों के लिए निश्चित समय, एकान्त एवं ज्ञान-विज्ञान से जुड़ी आदि कई बातों की अति आवश्यकता होती है। तब जाकर हम इन तथ्यों, । सिद्धान्तों, नियमों को समझ पाएंगे। परन्तु । वास्तविकता यह है कि इस भौतिकवादी अर्थ प्रधान वैज्ञानिक मोड ने युग में लोगों के पास पैसा है परन्तु समय नहीं है। वह अपना समय इस धर्म, । संस्कृति, वैदिक संस्कारों में व्यर्थ खर्च नहीं करते । हैं क्योकि वह इन सब तथ्यों को व्यर्थ व फिजूल । मानते हैं। वास्तविकता भी है कि उन्होंने इस विषय-वस्तु, तथ्यों, सिद्धान्तों, नियमों, शास्त्रों, आदि को समझे ही नहीं या जाना ही नहीं या कभी जानने की जिज्ञासा ही नहीं रखी? । यदि यदि कोई व्यक्ति विशेष आपके लिए लाखों करोड़ों का व्यवसाय में उन्नति करा सकता है, आपके व्यवसाय में पैसों का इन्वेस्टमेन्ट दे सकता , । है परन्तु आप उस व्यक्ति को जानते ही नहीं हो तो वैदिक मंत्र विज्ञान अपने आप में एक पूर्णत: समर्थ वह व्यक्ति आपके लिए न के बराबर है। भारतीय व सक्षम सम्पर्ण महाविज्ञान है। मंत्र का आधार शब्द है। शब्द नाद को उत्पन्न करता है और हमारा दर्शन सुष्टि का प्रादुर्भाव भी नाद द्वारा मानता है। आधुनिक विज्ञान भी सृष्टि निर्माण प्रक्रिया का मूल कारण 'वाइब्रेशन्स' अर्थात् तरंगों, ध्वनि तरंगों, को मानता है। ध्वनि तरंगों की शक्ति ही सूक्ष्म रूप से मंत्र विज्ञान की आधारशिला है। स्थूल रूप से शब्द व की अर्थ शक्ति, व्यंजना-शक्ति, व लक्षणा शक्ति । भी प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। इसके लिए में आपको एक आम जन (साधारण) । द्वारा प्रायोगिक उदाहरण देकर स्पष्ट करना चाहता हूं कि अंग्रेजी भाषा विज्ञान के केवल एक शब्द सॉरी' शब्द ही गुस्से में झगड़ने के लिए आए। । व्यक्ति के मस्तिष्क तथा मनोभावों व विचारों में, रक्त प्रवाह में व अपर्णा मानव शरीर के अन्टा . रहे आवेग, गुस्से, में शान्तिपूर्ण शीघ्रगामी परिवर्तन उत्पन्न कर देता है जबकि एक भद्दी सी गाली से शान्त बैठे व्यक्ति के मनोभावों को तुरन्त उलट देता। है, यह भी दीघ्रगामी परिवर्तन है। यह उदाहरण शब्द मात्र की अर्थ शक्ति का है। शब्द की तरंग शक्ति का सामर्थ्य तो इतना व्यापक, विराट भेदक, प्रभाव पूर्ण व शक्ति सम्पन्न है कि सामान्य बुद्धि उसकी कल्पना भी नहीं कर सकती है। संगीत साधना चूंकि शब्द ब्रह्म की साधना है। अतः विधिवत किए जाने पर मोक्षदायिनी कही गई है। दीपक राग द्वारा अग्नि का प्रज्वलित हो जाना, मेघ मल्हार राग द्वारा बादलों का एकत्रित होकर वर्षा कर देना आदि अनेक ऐसे उदाहरण हैं। प्राचीन संगीत सम्राट तानसेन, बैजू बावरा आदि के द्वारा राग मालकोस द्वारा पत्थर को पिघलाना और मृगों व पशुओं के झुंड को सम्मोहित कर लेना आदि चमत्कार शब्द तरंग शक्ति की स्पष्ट घोषणा है। किसी भी कार्य विशेष को सम्पन्न करने के लिए किसी घटक या अस्तित्व के निर्माण के लिए किसी भाव या सत्ता की उत्पति के लिए महाशक्ति के आह्मन के लिए कितने स्तर पर वेलोसिटी, कितनी तीव्र, कितने समय तक, किस स्वर की, किस मंत्र की कितनी मात्रा में, किस प्रकार तथा किस समय आवश्यकता होगी इन सब तथ्यों को किया जानता है, वह अवश्य ही सृष्टि में कोई भी चमत्कारी मंत्रों के माध्यम से कर सकता है क्योंकि वह कार्य इन नियमों, सिद्धान्तों व वैज्ञानिक आधार के अनुसार एक सहज प्रक्रिया होती है। मंत्र विज्ञान शब्द ब्रह्म व अक्षर ब्रह्म का सम्पूर्ण एक महाविज्ञान है तथा सर्वव्यापक व प्रथम महाभूत आकाश से सम्बद्ध होने के कारण न केवल मात्र शीघ्र प्रभावी है अपितु इसके सूक्ष्म प्रयोगों में दूरी भले कि.मी. में हो या प्रकाश वर्षों में हो कोई महत्व नहीं रखती है। आकाश सर्वत्र विद्यमान है और जहां-जहां आकाश है वहां-वहां शब्द अर्थात् मंत्र विज्ञान की गति एवं है प्रभाव की पूर्णता है। अतः भारतीय वैदिक ज्योतिष पशुपति महाविज्ञान में मंत्र का आश्रय न केवल मात्र आत्म-साक्षात्कार का मार्ग उद्घाटित करता है, दूरी अपितु संसार की उत्पति व विस्तार का कारक होने के कारण सम्प्रेषणीय शक्ति अत्यन्त सशक्त रूप पृथकमें विद्यमान होते हैं। इनकी गति व आह्मन होने से मंत्रो को उच्चारित करने से निकलने वाली पोजिटिव अर्थात् सकारात्मक ‘वाइब्रेशन्स' से निर्धारण मानव जीवन में समस्त गतिरोधों को दूर कर अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को निष्क्रिय या कम किया जा सकता है। आयुर्वेद विज्ञान में नीला थोथा, संखिया, पारा, हरताल आदि कई प्रकार के महाघातक विषों को विधिभी उपायों द्वारा शास्त्र सम्मत विधि, प्रयोग व गाणा उनकी मात्रा निश्चित करके विभिन्न रोगों में उन्हें । वाला जीवनदायिनी रसायनों में परिवर्तित कर लिया जाता है। ठीक उसी प्रकार भारतीय वैदिक ज्योतिष विज्ञान जातक के जीवन में ग्रहों के भी अनिष्ट प्रभावों को भी मंत्र शक्ति द्वारा पोजिटिव अर्थात् त्रुटि सकारात्मक ‘वाइब्रेशन्स' ऊर्जा मनुष्य की समस्त रखने बाधाओं व गतिरोधों को दूर कर लेता है। हमारे मनन प्राचीन भारतीय मुनि, ऋषि महर्षि, आचार्यों ने होता वेदों, धर्म शास्त्रों, पुराणों, उपनिषदों, शास्त्रों का गहन अध्ययन, चिन्तन, मनन, वैज्ञानिक शोध, अनुसंधान, विश्लेषण कर वैदिक पद्धति द्वारा । मानव जीवन में आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए। शंखविभिन्न कार्यों के लिए विभिन्न मंत्रों का निर्माण । किया है तथा विभिन्न सिदियों के लिए उन मंत्रों वैज्ञानिक की जप संख्या व विधि-विधान, नियम, सिद्धान्त उपाय भी निर्धारित है। वास्तव में बन्धन व मोक्ष का कारण मन ही है। विपरीत परिस्थितियों व अनुकूल अवस्थाओं का विपरीत व अनुकूल होना भी मन ही के कारण है। मन ही इन अवस्थाओं में सुख-दु:ख व हर्ष-विषाद का भोक्ता है। उस पर भी मन अश्व या पारे की भांति चंचल और अनियंत्रित है तथा जन्म जन्मान्तरों के संस्कारों से आवेशित है। मंत्र का आश्रय मन को नियंत्रित व सबल बनाकर उसके समस्त मलों को धो डालता है तब मनुष्य स्वयं में ही परमात्मा अथवा अपने पशुपति रूप का बोध करता है। मंत्र की बारम्बार आवृति जप कही जाती है। किसी ग्रह से पृथ्वी की दूरी उस ग्रह के स्वभाव व सामर्थ्य के अनुसार ज्योतिष शास्त्र में विभिन्न ग्रहों के मंत्रों के जप की पृथक-पृथक संख्यायें निर्धारित है। संख्याओं से कम किया गया जप अल्प प्रभावी या निरर्थक अथवा नष्ट प्रायः होता है क्योंकि मंत्र संख्या का निर्धारण एक पूर्णतः वैज्ञानिक तथ्यों व सिद्धान्तों पर आधारित है। अतः वैदिक विधि-विधान से तातयं न केवल जप संख्या का अपितु मंत्र जाप की समुचित विधि का पालन किया जाना भी अति परमावश्यक है। विधि-विधानपर्वक निश्चित जप संख्या में किया गाणा के रूप फल देने वाला होता है वरना मंत्र जप निरर्थक व कभी-कभी विपरीत प्रभाव भी दे सकता है क्योंकि यह एक सूक्ष्म विज्ञान है। अतः इसमें जरा सी भी त्रुटि फल को प्रभावित कर देती है। यह एक ध्यान रखने योग्य सिद्धान्त है। जप द्वारा बारम्बार मंत्र का मनन व चिन्तन एवं मंथन होने से ज्ञानलोक उत्पन्न होता है तथा मंत्र का अर्थ साक्षात्कार होता है। मंत्रों के अलावा भी अनिष्ट ग्रहों के प्रभाव को शान्त करने के लिए भारतीय ज्योतिष विज्ञान यंत्र, तंत्र, शंख, रत्न आदि अन्य कई उपायों को अपनाने की राय देते हैं। यह सभी उपाय पूर्णतः सत्य व सटीक वैज्ञानिक व निश्चित सफलता प्रदान करने वाले उपाय किन्तु मंत्र प्रयोग वादक आधार हान क कारण त्वरित व निश्चित व अचूक उपाय है। क्योंकि वह सर्वांगीण सिद्धिदायक तथा जातक के संस्कारगत मलों का भी परिशोधन करता है।