दवा भी है

             


संतरे का नामकरण :- संतरे का नाम संतरा कैसे पड़ा? आओ इसेजाने। इसका इतिहास मुगल बादशाहल से जुड़ा है। कहते है कि बादशाह अकबर को सोने जैसे रंग वाली नारंगी बहुत पंसद थी और बादशाह अकबर ने उसका नाम ‘सोरन्तरा, रख दिया अर्थात् सोने के जैसे रंग वाला फल। कालान्तर में इसका छोटा नाम सोरन्तरा से अपभ्रंश' होकर ‘संतरा, बन गया और नारंगी से संतरा नाम ज्यादा प्रचलित और होकर प्रसिद्ध हो गया। इसका वर्णन 'आइने अकबरी' नामक ग्रंथ में प्राप्त होता है। अत: इसका मूल नाम नारंगी ही है और समाज में बहुप्रचलित। संतरा उपनाम है। इसका व्यापार प्रायः उत्तरी भारत के महानगरों में दिया बहतायत में होता है अब तो यह कस्बों तक पहुँच गया है। संतरा मात्र स्वादिष्ट फल ही नहीं है इसमें जीवनीय तत्व (विटामिन्स) भी बहुतायत में प्राप्त होते हैं। इसके रस में विटामिन ‘ए’ ‘बी' और ‘सी’ बहुत मात्रा में पाया जाता है। इसलिए इसका सेवन रोग प्रतिर रोग प्रतिरोधक शक्ति को बढ़ाता है। यह बाहरी, दूषित और रोगोत्पादक प्रभाव को समाप्त कर शारीरिक धातुओं की पूर्ति करके घातुओं का संरक्षण भी। करता है। यह हड्डियों को मजबूत करता है। लौह तत्व की मात्रा अधिक होने के कारण यह रक्त के लाल कणों को बढ़ाता है। चेहरे पर निखार लाकर सुन्दरता को बढ़ाता है। जिसके * यह स्वादिष्ट खट्टा मीठा फल है। निर्बल एवं थके हुए लोगों को ' शरीर में नई शक्ति स्फूर्ति का संचार कर उन्हें शक्तिशाली और नीरोग। बनाता है। यह लीवर के लिए भी बहुत लाभकारी है। मिलाकर * संतरे में लगभग 40 प्रतिशत विटामिन्स होते हैं। यह गैस अफारा से पीड़ित या जिन्हें अपच की शिकायत हो उनके लिए अत्यंत लाभकारी। फल है। संधिवात (जोड़ो के दर्द) में तो यह रामबाण दवा है।



 


 


* संतरे का रस तृषा, दाह, अम्ल पित्त और अरुचि को दूर करता है। इससे रक्त शुद्धि होती है। क्षुधा वृद्धि होकर पाचन क्रिया सुदृढ़ होती है। यह पाचक रस को उत्पन्न करता है। * संतरा बुखार में अत्यंत लाभकारी है। बुखार में प्रतिदिन 10-12 संतरे तक खाने से कोई हानि नहीं, बल्कि लाभ ही पहुँचता है। प्रवेश * यह उच्च रक्तचाप, को भी कम करता है। यदि उच्च रक्तचाप वाले । रोगी को 2-3 दिन उपवास पर रखकर उसमें केवल संतरे का ही प्रयोग कराएं तो उदर शोधन होकर रक्तचाप में बहुत लाभ होता है। । * गरिष्ठ भोजन अधिक कर लेने पर पाचन क्रिया खराब हो जाती है। और कुछ खाया-पिया पचता नहीं है। ऐसी स्थिति में 2-3 बार संतरे का नियमित सेवन करने से जठराग्नि तीव्र हो जाती है और आंतें अपना कार्य सुचारु रूप से करने लगती हैं।


आचार्य ४ सुबह-शाम भोजन के बाद एक-एक संतरे के सेवन से सूखी, खुरदरी, और कालिमा युक्त त्वचा में चमक और चेतना आ जाती है। उसकी कोमलता बढ़कर वह मुलायम और सुखद स्पर्श वाली बन जाती है। ' * रात को सोते समय एक दो संतरे खा लेने से सुबह पाखाना साफ होकर कब्ज मिट जाती है। पेट की गैस का भी शमन हो जाता है। यह पाचक और पौष्टिक है। उदरकृमि, उदरशूल और मन्दाग्नि नाशक है। । * संतरे का छिलका कमि, अग्निमांद्य, अपच और विषम ज्वर में भी दिया जाता है। इसके छिलके का तेल विशेषकर स्वाद रहित औषधियों में स्वाद लाने के लिए मिलाया जाता है। * बच्चों की औषधियों में तो इसका प्रयोग कुछ ज्यादा ही किया जाता है ताकि वे इसे आराम से सेवन कर सकें। संतरे के तेल से सुंगन्धित बहुत से भोज्य पदार्थ, पेय आदि बनाए जाते हैं। इसके छिलकों का प्रयोग औषधि के रूप में भी त्वचा दोष, खाज, खुजली, फोड़े-फुन्सी । में भी किया जाता है। खासतौर से सौंदर्यवर्धक प्रसाधनों में इसका प्रयोग बहतायत में किया जाता है। कछ चिकित्सक तो इसकी मधर गंध और स्वाद के कारण इसका प्रयोग अपने औषधि सम्मिश्रण में भी करते हैं। जिसके लिए इसकी तेल की कुछ बूंदे ही पर्याप्त है। ' ३ कब्ज दर करने के लिए 5 ग्राम संतरे का छिलका, नींब का रस 5 । बंद, लौंग का चर्ण 1 ग्राम और 50 ग्राम गर्म पानी, इन सब को मिलाकर 15 मिनट तक ढक कर रखें। फिर जुलाब के साथ अनुपान रूप में सेवन करने से छुटकारा मिलता है। । * चेहरे पर मुंहासे होने पर संतरे का छिलके को कुछ दिन रगड़ने से मुंहासों से मुक्ति मिल जाती है। संतरे के फूल का अर्क पीने से स्नायु की दुर्बलता के विकार दूर होते हैं। संतरों के पत्तों का काढ़ा बनाकर पीने से ज्वर से राहत मिलती है। जो लोग अधिक दुर्बल हैं उन्हें सुबह एवं दोपहर में संतरे का रस पीना चाहिए। यह शारीरिक शक्ति को बढ़ाता है, जिससे शरीर में कोई रोग प्रवेश नहीं कर पाता।। । ३ जिन बच्चों का पालन-पोषण बोतल के दूध से होता है वे कई रोगों के शिकार हो जाते हैं। ऐसे बच्चों को यदि हर रोज संतरे का थोड़ा-सा । रस पिलाया जाए तो संभावित रोगों से उन्हें बचाया जा सकता है। । जिन बच्चों में कैल्शियम की कमी हो, दूध न पचता हो, दस्त लग जाते हों, उन्हें दूध के साथ संतरे का रस पीना चाहिए, संतरे का रस देने से शिशु के दस्त बंद हो जाते हैं, दूध पचने लगता है। * बच्चों के शारीरिक गठन व शक्ति स्फूर्ति के लिए संतरे का जूस माँ के दूध तूल्य है। * संतरों के छिलके का बारीक चूर्ण बनाकर उसे गुलाब जल में लेप बनाकर लगाने से त्वचा के दाग धब्बे कुछ ही दिनों में गायब हो जाते हैं। * टाइफाइड की शुरुआत होते ही प्रतिदिन संतरे का जूस देने से जहाँ टाइफाइड के दुष्प्रभाव से बचाव होता है, वहीं टाइफाइड शीघ्र ही ठीक लिवर हो जाता है। * संतरे के रस में थोड़ा-सा कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर लेने से सर्दी, जुकाम व खांसी से बचाव होता है। लिपोप्रोटीन* 25 ग्राम संतरे के जूस में 1/2 ग्राम भूनी हुई हींग मिलाकर पीने सेलो उदर शूल में तत्काल आराम मिलता है। * संतरे के रस में थोड़ा-सा कालीमिर्च चूर्ण मिलाकर कुछ समय तक नियमित सेवन करने से नेत्र ज्योति बढ़ती है। रतौन्धी (रात में न दिखाना) रोग में भी आराम मिलता है। |* 30 ग्राम सन्तरे के रस में 10 ग्राम चिरायते का अर्क मिलाकर कुछ जिम्मेदार दिन प्रयोग करने से मलेरिया ज्वर की शिकायत दूर हो जाती है। * संतरे के रस का नियमित सेवन करने के साथ-साथ संतरों के छिलकों को पानी में पीसकर शरीर पर मलने से खाज-खुजली भी दर|होती है। संतरे का एक नाम ‘त्वक सुगंध' भी है। अतः अपने नाम के किस्म अनुरूप यह त्वचा की गंध को सुंगधमय करके उसमें चमक पैदा करता|किसी संतरे के प्रयोग में सावधानी :- शीत एवं वात प्रकृति के लोगों को संतरे का सेवन कम मात्रा में करना चाहिए अन्यथा हानि भी हो सकती संतरे के अर्जीर्ण से हानि :- यदि संतरे का अधिक सेवन कर लिया हो और उससे किसी भी प्रकार की परेशानी हो रही हो तो शहद, नमक और कालीमिर्च के चूर्ण का प्रयोग करना चाहिए। इन तीनों को थोड़ा-थोड़ापर एक साथ या तीनों में से किसी एक का भी प्रयोग करने से संतरा जन्य अर्जीण या संतरे के सेवन से संभावित किसी भी प्रकार की हानि से बचा जा सकता है।