एक बहु उपयोगी फूल : सूरजमुखी

                                   एक बहु उपयोगी फूल : सूरजमुखी 


एक बहु उपयोगी फूल : सूट सूरजमुखी का फूल देखने में बड़ा अच्छा लगता है, क्योंकि लम्बी-लम्बी पीली पत्तियों वाले बड़े से फूल के बीच में काली गद्दी सी बनी होती है। सूरजमुखी के पौधे में एक विशेष बात होती है। वह सूरज उगने से लेकर उसके छिप जाने तक सूरज की ओर ही अपना मुंह किए रहता है। सूरजमुखी एक बहु उपयोगी फूल है। यही वजह है कि इसकी खेती अब हमारे देश में बड़े पैमाने पर की जाने ०००० लगी है और इसके उत्पादन का ग्राफ बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। •०००


आज हमारे देश में तिलहन का उत्पादन बढ़ा है। इसी कारण खाद्य तेलों के मामलों में हमारी आत्मनिर्भरता का सपना सच हो गया है, लेकिन कैसी बिडम्बना है कि असीम संभावनाएं होते हुए भी अधिक संख्या में घरों में आयातित खाद्य तेलों का इस्तेमाल होता है। इसका बड़ा कारण यह है कि सूर्यमुखी, सोयाबीन और मक्का आदि अधिकांश कषक वही परानी, प्रमख और नकदी फसलें ही उगाते हैं तथा तिलहन के नाम पर उन्हें सिर्फ सरसों, अलसी और। लायी जैसे नाम ही याद रहते हैं, जबकि सूरजमुखी का तेल खाने के लिए बहुत ही । उत्तम माना जाता है, क्योंकि इससे कोलेस्ट्रॉल नहीं बढ़ता। अतः दिल के मरीज भी इसे पसंद करते हैं। इसके तेल में किसी प्रकार की दुर्गन्ध पैदा न होने के कारण इसे । लम्बे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इसका पौधा ज्यादा नाजुक नहीं होता और । सर्दी, पाले तथा गर्मी के थपेड़े इसे प्रभावित नहीं कर पाते, लेकिन तेज हवा के झोंकों से इन्हें बचाना पड़ता है, ताकि पौधे न गिरें। सूरजमुखी के बीजों में पोषक तत्वों की भरपर मात्र पायी जाती है। प्रोटीन, वसा, नमी, खनिज, रेशे, कार्बोहाइड्रेट्स, आयरन, नियासिन, फास्फोरस, विटामिन बी और सी तत्व इनमें खूब पाये जाते हैं। 1988 में देश के दस राज्यों में सूरजमुखी की खेती को बढ़ावा देने के सघन प्रयास शुरू किए गए थे, जिनके अन्तर्गत 25 जनपदों को चुना गया और करीब 10 हजार हेक्टे. भूमि में इस फसल का प्रदर्शन किया गया था क्योंकि आमतौर पर किसान गन्ना, गेहूं, चावल और सरसों के दलहनी फसलों में बहुत कम रुचि लेते हैं, लेकिन सोयाबीन, सूरजमुखी आदि फसलें लेने में वे संकोच करते हैं, जबकि अनुभवों से यह बात सिद्ध हो चुकी है कि इस प्रकार की नयी फसलों से कहीं अधिक आमदनी होती है। नया कदम उठाने का जोखिम हर आम हर आम कृषक नहीं उठाना चाहता, क्योंकि उसके पास पूरी जानकारी नहीं होती। पशुओं को सूरजमुखी की खली देने से उत्पादन बढ़ जाता है। मधुमक्खी (मौन) पालन उद्योग में सूरजमुखी के फूलों से बेहतर पराग मिलता है। फलस्वरूप अधिक और अच्छे मोम तथा शहद का उत्पादन होता है। गुणकारी सूरजमुखी में बीजों से प्रोटीनयुक्त, पौष्टिक आहार तैयार किया जा सकता है। हमारे देश में सूरजमुखी का उत्पादन वर्ष 1980-81 में मात्र 66 हजार टन था, जो बढ़कर 1895-86 में 2.8 लाख टन और 1988 में 6.1 लाख टन तक पहुंच गया। अन्य तिलहनी फसलों की तुलना में प्रति हेक्टे, करीब दो हजार रुपये का अतिरिक्त लाभ सूरजमुखी उगाने से होता है। सामान्यतः इसकी उपज मूंगफली से दोगुनी होती है और लगभग तीन माह में इसकी फसल पककर तैयार हो जाती है। अत: साल में तीन बार फसल पक कर इसी पैदावार हो सकती है। कुछ अन्य फसलों के साथ इसकी मिश्रित खेती करना भी सम्भव है। सूरजमुखी के बीजों को चूहे बड़े ही शौक से खाते हैं अतः इसको बचाने का उपाय अवश्य ही करना चाहिए। इसकी पैदावार औसतन बढ़ाने के लिए कृषि वैज्ञानिकों ने जो उन्नत किस्में विकसित की हैं उनमें से प्रमुख हैंजवाहर, विनिमक, पेरेडिविक, आर्मी विसिकर्ज, आर्मी विर्स सनराईज। अभी हमारे देश में 6 लाख हेक्टेयर भमि में डॉ. अनामिका प्रकाश श्रीवास्तव सूरजमुखी की खेती की जाती है। मुख्य रूप से उ.प्र., गुजरात, कर्नाटक, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, उड़ीसा, बिहार और पश्चिमी बंगाल आदि राज्यों में इसकी खेती की जाती है। इसकी प्रति एकड़ औसत उपज बढाने के लिए नयी किस्मों का विकास भी किया गया हैं स्थापित तिलहन तकनीकी मिशन द्वारा सूरजमुखी को बढ़ावा देने की दिशा में विशेष प्रयास किया गया, क्योंकि हमें दूसरे देशों से अपने लिए खाद्य तेल का आयात करना पड़ा है। इस स्थिति से निपटने के लिए गत वर्षों में खाद्य तेलों को उत्पादन शुल्क से पूर्णतः मुक्त रखा गया। खाद्य तेलों के गहराते संकट के कारण हमारे देश में औसतन प्रति व्यक्ति को केवल 15-20 ग्राम वसा ही उपलब्धा होती है, जबकि इसकी मात्र कम से कम 35 ग्राम अवश्य ही होनी चाहिए। विकसित राष्ट्रों में तो 120 ग्राम तक, दैनिक भोजन में वसा का स्थान होता है। खाने के अलावा साबुन, डिटरजेन्ट, रबर, ग्रीस, प्लास्टिक तथा सौन्दर्य प्रसाधान सामग्री आदि में भी तेलों का प्रयोग होता है। अतः इसकी बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए निश्चय ही गैर परम्परागत स्रोत तलाश करने होंगे।