गर्भवथा में विविध उपचार

नारी की प्रशंसा शास्त्रकारों ने कलम तोडकर की हैं। सचमुच ही नारी जाति पूज्य है। ‘‘यत्र नार्व्यस्त पज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता'' अर्थात् जहां नारी जाति की पजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। धर्म ग्रन्थों के अनसार नारी ला कि की पारलौकिक, धार्मिक कृत्य की सहचरी अर्धागिणी है, कोई भी धार्मिक कर्म नारी के बिना पूर्ण नहीं होता। कहां तक कहा जाय सृष्टि के आदि कारणों में नारी प्रधान है। अतः कहा गया है कि नामूलम् अपत्यानाम्'' अर्थात् प्राणिमात्र का उत्पादन, वंश वृद्धि नारी जाति के द्वारा ही होती है। स्त्रियों में पुरुष से अधिक अंग होते हैं। इसके अन्तर्गत गर्भाशय नामक एक अंग विशेष होता है। प्रति माह स्त्री के बीजाशय से उत्पन्न होकर स्त्री बीज नलिका में आता है। जब स्त्री पुरुष समागम करते हैं, तब पुरुष को बीज (शक्र बीज) योनि द्वारा गर्भाशय में स्थित बीज नलिका में स्थित स्त्री बीज के साथ मिलन करता है, उसी क्षण गर्भ की स्थापना हो जाती है और उस क्षण से ही गर्भाशय में नए जीव की उत्पत्ति हो जाती है। यह प्राकृतिक अद्भुत कर्म है। पुरुष एवं स्त्री बीज स्वस्थ होते हैं, तब ही गर्भ स्थापना होती है। एक या दोनों अस्वस्थ होंगे तो गर्भ स्थापना असंभावित है। गर्भ स्थापना होने के बाद उस स्त्री को सगर्भा से ।जानी जाती है। कहा गया है सगर्भा होते ही स्त्री के शरीर में भगवान निवास करते हैं और उससे माता और गर्भ स्थित जीव का पालन-पोषण | वैद्य अशोक । । होता है। अतः सगर्भा स्त्री का ख्याल रखना प्रथम कर्तव्य माना गया है। आयुर्वेद के 'अनुसार नव-दस माह के दौरान गर्भचर्या का महत्व दर्शाया गया है। उसको मासानुमासिक ।चिकित्सा से जाना गया है। गर्भ ठहरते ही प्रथम मास से लेकर प्रसव तक सगर्भा स्त्री के लिए भिन्न-भिन्न चिकित्सा का विधान है। इससे माता, गर्भाशय और गर्भ (भ्रूण) ये 'सम्पूर्णतः स्वस्थ रहते हैं, बालक मेघायुदीर्घायु होता है। माता भी नीरोगी रहती है और भी नोरोगी रहती है और सुखपूर्वक प्रसव होता है। यहां हम सगर्भावस्था के दौरान होते कुछ रोग और उनकी चिकित्सा के बारे में विवेचन करते हैं। '. वमन उल्टी :- सामान्यतया गर्भावस्था के 1 से 3 माह में सगर्भा स्त्री को प्रातः कालके बिना कारण उल्टी होती है। यदि वमना 1(उल्टी) के साथ कब्ज़ भी हो, सिर में दर्द होजीभ मैली हो तो एक हल्का सा जुलाब '(दस्त) लेना चाहिए।' "1• इसके लिए आवश्यकतानुसार त्रिफला चूर्ण या मनक्का, गलाब के फल, सौंठ और बडी हरड़ का बक्कल अवस्थानुसार प्रमाण में हर का बक्कल अवधानमा उमाण में लेकर जल में उबालकर पिलावें। इससे कब्जा दूर होकर वमन में भी अंतर आ जाता है और यदि कब्ज न हो केवल वमन ही होता हो तो 'निम्नांकित नुस्खे में से एक का व्यवहार करनालाभदायक होता हैं। ।। • मुनक्का बीज रहित 10 ग्राम, छोटी इलायची के दाने 10 ग्राम और बादामगिरी 10 ग्राम इन सबको कूट पीसकर झड़बेरी के समान गोलिया बनाकर रख लें। मात्रा :- एक गोली मुख में रखकर चूसने से 'गर्भावस्था के वमन में आश्चर्यजनक फायदा करता है। यह योग सैकड़ों बार अनुभूत है। ' ।। ।3. यदि गर्भा के दिन हो तो नींबू शर्बत या । अनार या संतरा का रस पिलावें। प्रायः इसी से वमन दूर हो जाती है। फिर भी आवश्यकता प्रतीत पडे तो औषधि का सेवन कराना चाहिए। 4. यदि छठे अथवा सातवें मास में वमन प्रारम्भ हो तो प्रवाल पिष्टि 2 रत्ती लेकर सोंफ 'के अर्क के साथ दिन में दो तीन बार देने से विमन नष्ट होती है। भोजन हल्का एवं सुपाच्य दें। 5, चावल के धोवन में जायफल घिसकर इसमें नींबू का रस और मिश्री मिलाकर पीने से गर्भिणी का जी मिचलाना अथवा वमन होना, बन्द हो जाता है। यह योग हानिकारक नहीं है। अतः जब आवश्यकता प्रतीत हो तब प्रयोग कर न. सकते हैं। क्त औषधियों के अलावा कई दवाएं यथा सितोपलादि चूर्ण, तालीसादि चूर्ण, । आशगणकारी है। अविपत्तिकर चूर्ण, कपुरकचरी चूर्ण वमन में ।। । • अनिद्रा :- यदि सगर्भा स्त्री अनिद्रा से पीडित हो तब निम्नांकित प्रयोग करें। . भांग को बकरी के दूध में पीसकर पावों पर लेप करने से गर्भिणी को निद्रा आती है। । • सिर और पैरों में गाय का दूध मलने से । अथवा गर्म पानी में थोड़ी देर तक पांव रखने ।सभा निद्रा आता है। • दो माशे पीपलामूल का चूर्ण गुड़ में मिलाकर खाने से भी अनिद्रा नष्ट हो जाती है। ' काकजंघा (मसी) की जड़ सिर पर धारण करने से भी गर्भिणी की अनिद्रा नष्ट होती है।। । भुनी हुई भांग के चूर्ण को शहद में। मिलाकर रात्रि में लेने से भी लाभ होता है।। • मकोई की जड़ सूत में बांधकर निरन्तर मस्तक पर धारण करने से अनिद्रा नष्ट होती है। 3 योनि में खुजली :- इसे योनि कण्डू नाम से जाना जाता है। यह योनि सम्बन्धित कई रोगों का लक्षण है। गर्भिणी स्त्री की योनि में खुजली आती है। इसको Pruritus Vulvae of the |Pregnant कहते हैं। इस रोग में योनि को चारों और तक ही खुजली सीमित नहीं रहती है, बल्कि योनि ओष्ठों से लेकर गर्भाशय ग्रीवा,