जोड़ों का दर्द

                                                          जोड़ों का दर्द 



जोड़ों का दर्द आमवात, वात, गठिया, रूमेटाइटिस, आर्थराइटिस, संधिवात कई नामा से पुकारा जाता है। यह प्रायः सर्दियों में बढ़ जाता है। एडी, अंगुलियों, भुजाओं, घुटनों, १ टखनों में दर्द आज की तेजी से बढ़ती बीमारी । है। वृद्धावस्था में इसका असर अधिक देखा जा . रहा है। लक्षण :- 1. चौकडी मारकर नीचे फर्श पर नहीं बैठा जाता। 2. घुटने का दर्द अत्यन्त कष्ट देता है। 3. जोड़ों में गांठ बन जाती है इसलिए इसे गठिया कहते हैं। 4. अंग टेढ़े हो जाते हैं। 5. अम्लता बढ़ जाती है। 6. तरूणावस्था में ज्वर व दर्द रहता है। 7. पैरों में अधिक दर्द बना रहता है। 8. दुर्गन्ध युक्त पसीना आता है। 9. प्यास व सिरदर्द रहता है। 10. स्वाद नष्ट होना। 1011. कमर, गर्दन, हाथ-पैर का जकड़ना। पट्टी 12. पक्षाघात होना। 13. सवेरे उठते ही हाथों व अंगुलियों में । जकड़न होती है। कारण :- दाँत गन्दे रहना, चिंता, अशांति, भय, शोक, मन पसन्द काम का न होना, पानी में भीगना, ठण्ड लगना, सुजाक, अति स्त्री प्रसंग, ठण्डी व रूखी चीजों का अतिसेवन, रात्रि जागरण, मल-मूत्र का रोकना, अधिक खून बहना, मोटापा, शरीर में विजातीय द्रव्यों का इकट्ठा होना, शुद्ध व प्राकृतिक वातावरण का न मिलना, ए.सी. कमरों में रहना, गरिष्ठ भोजन खाना, तली चीजें ज्यादा खाना, जरूरत से ज्यादा भोजन करना, व्यायाम/श्रम की कमी, ज्यादा मिर्च-मसाले खाना तथा अत्यधिक योगाचार्य स्टार्च व सफेद चीजों का प्रयोग करना।



दर्द प्राकृतिक उपचार :- 1. प्रतिदिन गुनगुने पानी का नीमा लेना। 2. सप्ताह में दो दिन परे शरीर की तेल से मालिश करने के बाद मिट्टी से रगड़ कर . नहाना तथा रोज कुछ समय धूप स्नान करना। तथा 3. सप्ताह में दो दिन सारे शरीर की गीली प्राणायाम चादर लपेट करना। 4. सप्ताह में दो दिन भाप स्नान करना। 5. सप्ताह में दो दिन मिट्टी में गड़ना। पानी6. रोज दोनों समय पेट और पेडू पर मिट्टी की 2पट्टी रखना। 7. रोज एक बार ठण्डा कटि स्नान करना। मौसम 8. सप्ताह में एक दिन सादे पानी से कजल करना। पर 9. रोज एक बार दर्द वाले स्थान पर भाप देकर सूती कपड़े की ठण्डी लपेट दर्द वाले स्थान पर लपेटना। 10. अत्यधिक सजन में बर्फ के ठण्डे पानी की दिन पट्टी लगाना। । 11. रात को सोते समय बर्फ के ठण्डे पानी से दर्द की जगह ठण्डी पट्टी बांधना।। योगाभ्यास :- सूक्ष्म व्यायाम, वज्रासन, शशांकासन, मण्डूकासन, उत्तानपादासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, धनुरासन, पश्चिमोतानासन, जानुशिरासन, कटिचक्रासन तथा अनुलोम-विलोम सूर्य भेदी व भस्त्रिका प्राणायाम करना। भोजन तालिका :- 1. सबसे पहले नींबू+पानी+शहद पर एक सप्ताह तक उपवास करें। जिन्हें नींबू ठीक न बैठे वे केवल पानी+शहद लें। 2. एक सप्ताह रसाहार लें। इसमें ग्रीन जूस, मौसमी जूस, नारियल पानी, खरबूजा जूस या मौसम के अन्य फलों का रस, दिन में 4-6 बार लेकर उपवास करें। सप्ताह में एक दिन पानी पर रहे। 3. तीसरे सप्ताह में दिन में चार बार फल, सलाद या हरे पत्ते खाएं व अंकुरित अन्न लें। 4. चौथे सप्ताह में 3 दिन, दिन में 4 बार सलाद व फल के साथ सूप भी लें एवं इसके बाद 3 दिन सूप के बदले उबली सब्जी+रोटी+चावल+हल्का नमक के साथ सलाद व अंकुरित अन्न लें। 5. इसके बाद सामान्य भोजन पर आजाएं। 6. जोड़ों के दर्द में टमाटर, गाजर, आलू, प्याज, लहसुन, मेथी, अदरक, शहद तथा तुलसी पत्ते+काली मिर्च+गाय का घी मिलाकर लें। 7. रात को भीगी 4 चाय के चम्मच मेथी को अंकुरित करके खाएं। परहेज :- चाय, चीनी, अण्डा, मछली, दालें, तलाभुना भोजन, वासी भोजन, धूम्रपान, पान तम्बाकू का सेवन न करें।