पेट दर्द और अल्सर

                                                       पेट दर्द और अल्सर 


 


 बेशक मानव देह का प्रत्येक अंग महत्वपूर्ण है। और किसी भी अंग में दर्द या परेशानी दिनचर्या में रूकावट बनती है परन्तु पेट शरीर का ऐसा अंग है जिससे शरीर के बहुत से भाग प्रभावित होते हैं। हो भी क्यों नहीं? क्योंकि जो भी खाओ-पीओ या कोई भी औषधि लो तो जाएगी पेट से ही होकर। यदि पेट खराब हो या उसमें कोई रोग समाया हो तो व्यक्ति का जीवन परेशान हो जाता है। पेट को शरीर का मेन पावर हॉर्स या छिपा । कहा जाए तो अतिश्योक्ति न होगी। पेट रूठा तो समझो जग रूठा। खाने और जीने का स्वाद किरकिरा हो जाता है। पेट दर्द हो तो हल्के में मत लें। कभी अतिसार, कभी कब्ज, कभी मरोड़ एवं संग्रहणी, कभी पेट और एवं संग्रहणी, कभी पेट और अंतरियों में कीड़े किसी भी कारण से पेट दर्द हो सकता है। योग्य एवं अनुभवी चिकित्सक को पेट दर्द के सौ से भी अधिक कारण ध्यान में आते हैं। हालांकि पेट दर्द के साथ दस्त हो रहे हों तो आंतों में सूजन बताते हैं और नाभि के नीचे दायीं ओर दर्द हो तो एपेंडिक्स में सजन यानि एपेंडिसाइटिस समझते हैं। पेट दर्द के साथ आंखों में पीलापन हो तो जिगर में सजन या हेपेटाइटिस का इशारा होता है और यदि पेट दर्द के साथ पेशाब करते समय मूत्राशय में जलन हो तो सिस्टाइटिस रोग की आशंका होती है। यदि किसी व्यक्ति के गुर्दे या पित्त की पथरी हो तो भी भयंकर पेट दर्द होता है और स्त्रियों में बच्चेदानी में या उसके आसपास सूजन या निदान इंफेक्शन हो तो भी पेट दर्द होता है। ऐसी कछ मुख्य अवस्थाएं हैं जिन कारण पेट दर्द की शिकायत रह सकती है। हालांकि इनके अलावा भूखे बहुत दूसरे कारण भी हो सकते हैं। पेट दर्द के तेजाबी मामले में लापरवाही ठीक नहीं। अनुभवी एवं योग्य चिकित्सक अपने अनुभवानुसार रोग का सही निदान करके आवश्यक औषधि देते हैं। उपरोक्त अवस्थाओं के अतिरिक्त रंज, शोक, र य कारण बनते हैं। वरन् क्या कारण है कि डर मस्तिष्क में उपजा और पाखाना निकल गया। यानि पेट और मस्तिष्क का आपस में सीधा संबंध है। आजकल चिढ़तेकी भागदौड़ जीवन पद्धति ने इंसान को चिंताओं में डाल रखा है। फिर ईष्र्या, द्वेष, बैर, क्रोध, ऐसा स्पर्धा इन सबसे मस्तिष्क पर दबाव यानि पेट पर दबाव। ऊपर से जीवन पद्धति ऐसी बन गयी कि समय-असमय खाना और गरिष्ठ भोजन ने सब चौपट कर दिया। डिब्बाबंद खाने, फास्ट फड, चटक मसाले मिले खाद्य पदार्थ यानि अजिनोमोटो का खुला इस्तेमाल, इन सब ने पेट को परेशानी और उलझन में डाल दिया। चिप्स इस और मेदे-मावे के बेशुमार खाद्य पदार्थ तथा कृत्रिम गंधों एवं इत्रों ने भोजन के असली रूप छिपा दिए, जैसे सजा-सजाया रोगी व्यक्ति देखने खन म अच्छा, वास्तव में नका वही हाल है आज के खानों का कि खूब सजे-सजाए, स्वाद एवं खुशबू से भरे परन्तु स्वस्थता से परे। यह पता ही न चले कि वे रोगयुक्त यानि पुराने-बासी एवं पेट के बैरी हैं जिनसे झट से पेट में इंफेक्शन हो क बरा है जिनस झट से पट में इफक्शन हा जाएगी और यदि पेट बिगड़ा तो उच्च रक्तचाप तथा शर्करा जैसे आधुनिक रोग भी बड़ी शान से चले आते हैं। क्रोध, ईष्र्या, द्वेष, बैर, भय ने आधुनिक सुखी एवं सम्पन्न व्यक्तियों को चिंता एवं मानसिक दबावयुक्त कर दिया। पेट में इन बातों का बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। पाचन क्रिया की कार्य प्रणाली प्रभावित होती है और अधिक अम्ल की Secretion होती है। जब पेट में अम्ल की अधिकता होगी तो डकार आने से भोजन फूड पिपो से बाहर आता है Regurgitation और छाती में जलन, खट्टे डकार एवं उल्टी की शिकायत भी हो सकती है। र यही अम्ल यदि पेट में कुछ देर पडा रहे, उसका * निदान न हो पेट के अंदर अति सक्ष्म और ५) संवेदनशील Lining membrane पर जख्म हो है जाते हैं जिन्हें हम Stomach ulcers कहते हैं। भूखे रहने या किसी चिंता या क्रोध के कारण ये तेजाबी रस पेट की अंदरूनी पर्त पर या ड्यूडीनम में घाव पैदा कर देते हैं। महत्वाकांक्षी व्यक्ति जो उन्नति के लिए अधिक चिंतातर रहते हैं, अति संवेदनशील व्यक्ति जो छोटी-छोटी बात छोटी बात पर चिंतित या भावुक हो जाए, अति व्यस्त एवं लापरवाह व्यक्ति जो कमाई में या भौतिक प्राप्तियों में ऐसे खाते हैं कि खाने-पीने या जीवन पद्धति का ध्यान ही नहीं रहता या ऐसे चरित्र जो चिढ़ते, उबलते, खीझते, लड़ते और क्रोध करते रहें, इन वर्ग के लोगों में यह रोग अधिक होता है। ऐसा भी कहते हैं कि स्त्रियों में Estrogenic hormones बनने वाले कोषों की संख्या कम होने के कारण उनमें पुरुषों की अपेक्षा कम मात्रा में अम्ल बनता है। जिन व्यक्तियों में अमाशय की आंतरिक पर्त की रक्षा करने वाले रसायनों की कमी रहती है उनमें यह रोग आम होता है। ऐसा कहा जाता है कि 'ओ' रक्त ग्रुप के व्यक्ति इस रोग से अधिक प्रभावित देखे गए हैं। आज की रीस और आगे निकल जाने, दूसरे को नीचा । दिखलाने और भ्रमित आधुनिकता की लत के कारण सिगरेट, शराब, देर रात की पार्टियां, " "" " पीटी, गयी है। उधर self medication नीम-हकीमी। और तातऔर तुरत-फरत आराम की चाह ने हर जेब, विशेषकर स्त्रियों के पर्स में दर्द की गोलियां डलवा दी जिनका बिना चिकित्सीय सलाह के इस्तेमाल बड़ा खतरनाक साबित होता है और गंभीर संकट पैदा हो सकता है। ऐसा देखा जाता है कि पुरुषों में Duodenaluder बजाय गैस्टिक अल्सर अधिक पाया जाता है। प्रायः यह अमाशय के निचले आधे भाग में होता है। एक हल्की-सी काटने वाली जलन और नाभि के पास दर्द जो रात में भयंकर हो उठता है, गैस्टिक की विशेषता है और कछ खा लेने से आराम मिलता है और अगर खाने के बाद भी दर्द बढ़ता जाए तो उसे गैस्टिक अल्सर समझना चाहिए। अल्सर के रोगियों को दिन में 6 बार कम मात्रा में अल्सर ज्यादा प्रोटीन वाले खाद्य पदार्थ और चिकनाई रहित दूध का सेवन करना चाहिए। चाय, कॉफी । तथा शीतल पेय में विद्यमान कैफीन तत्व अम्ल रस को बढ़ता है। इसी प्रकार सिगरेट और शराब का सेवन भी एकदम बंद कर देना चाहिए। चिंता, मसालेदार भोजन, व्यग्रता तीनों इस रोग की वैसी अवस्थाओं का रूकना रोग निवारण में आवश्यक है। होम्योपैथिक औषधियां व्यक्ति का - स्वभाव एवं रोगावस्था देखकर निर्धारित हैं। अलग-अलग व्यक्तियों के लिए अलग-अलग औषधियां हैं। यदि दर्द और जलन खाना खाने के 2-3 घंटे बाद हो और जब पेट खाली हो, खाने से आराम मिले। दर्द के साथ पराने हो चुके Penric vlcer cares में Lvcopodium 200 जब रोगी नीचे-ऊपर से हवा खारिज करे, खाने की नली में जलन, आधा डकार जो गले तक जलन पैदा करे। रात को खाने-पीने के बाद पेट और Epigasfrium में जलन होने पर ARS. ACB का निर्देश है और भारी-भारी डकार भी आए तो साथ में Argentum Nit दिया जाती है। इस प्रकार बहुत-सी औषधियां हैं जिनमें से अनुभवी चिकित्सक अल्सर रोग का बेहतरीन होम्योपैथिक इलाज कर सकते हैं।