विश्व की लगभग दस प्रतिशत स्त्रियां योनिद्वार में होने वाली खाज से पीड़ित हैं। वास्तव में यह कोई रोग नहीं है अपितु लक्षण है। प्रारंभिक स्थिति में इस खाज से खुजला कर राहत पाई जा सकती है, किंत बाद में इसके कारण योनिद्वार में जलन की शिकायत होती है। यह जलन इस हद तक बढ़ जाती है कि ग्रस्त स्त्री चौबीसों घंटे घर में ही रहना चाहती हैं। वह बाहर नहीं निकलती हैं। रात्रि में यह समस्या उसे अधिक बेचैन करती है। सोते समय वह खाज महसूस होने पर खुजला सकती है जिस कारण सुबह उठने पर वहां खून खून के धब्बे जमे दिखलायी देते हैं। कारण :- योनिद्वार में होने वाली खाज के मुख्य से निकलने वाले वजह से योनिद्वार क्षेत्र में घर्षण होता है। जिससे वहां घाव-सा बन जाता है और सूजन आ जाती वहां दर्द होता है। लगभग 80 % स्त्रियों में इसी कारण योनिद्वार में खाज होती है। 20% स्त्रियां ऐसी भी हैं, जिनमें योनि संक्रमण नहीं होता, बल्कि अन्य कारणों से यह रोग होता है। कुछ दशाओं में योनिद्वार में होने वाली खाज त्वचा रोग के कारण हो सकती है, जिसका योनिद्वार से संबंध नहीं होता है। ये त्वचा रोग हैं-छाल रोग (सोरायसिस), सेबोरिक डर्मिटिटिस और खुजली आदि। पशु, प्राणी तथा वनस्पति परजीवियों के संक्रमण के कारण भी खाज होती है। लेकिन ये योनिद्वार के बजाय जघनों में खाज उत्पन्न करती हैं। मूत्र नली की स्थितियों में जैसे मूत्र और पायूरिया (योनिद्वार से निकलने वाला त्याज्य पदार्थ) का असंयत होना तथा अत्यधिक अम्लीय मूत्र कभी-कभी खारेपन के कारण भी योनिद्वार में खाज की स्थिति उत्पन्न करती है। योनिद्वार में खाज की स्थिति त्वचा के फिनॉल और क्रॉसोल युक्त एंटीसेप्टिक, दुर्गधनाशक पदार्थों और साबुन के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होने से भी होती है। इस तरह की एलर्जी नायलान या चुस्त कपड़े पहनने के कारण भी हो सकती है। कभी-कभी यह स्थिति पीलिया, यूरेमिया तथा अन्य विषाक्त स्थिति के कारण भी होती है। बहुत सी मानसिक समस्याएं यौन क्रिया कलापों को प्रभावित करती हैं और परिणामतः मनस्ताप की स्थिति पैदा होती है। योनिद्वार का क्षेत्र मनस्ताप नाड़ी के थकान तथा खुरदुरे थक्के बनने का स्थान भी हो सकता है। यौन खिन्नता तथा अपराध बोध के कारण भी योनिद्वार में खाज हो सकती है। उपचार :- बार-बार खाज उत्पन्न होने के कछ न यात लाज उपज होने के कलन कुछ अंदरूनी कारण होते हैं, किंतु जल्दी ही बजलाना शुरू कर देने से वहां की त्वचा पर कुप्रभाव पड़ता है। इसके कारण ही दसरे परिवर्तन होते हैं जो प्राथमिक कारणों को अस्पष्ट कर सकते हैं। इसके अतिरिक्त त्वचा कुछ स्थानीय इस्तेमाल हैं। इसके अतिरिक्त त्वचा कछ स्थानीय इस्तेमाल होने वाली दवाइयों के प्रति संवेदनशील हो सकती है। बाज की स्थिति ज्यादा दिन तक चलने पर अगर एक से अधिक कारक पथित हैं तो की जांच कान टोली ३ ना लंबी अवधि तक चलने वाले जलन के कारण का भी जांच द्वारा पता लगाना कठिन हो जाता है। सफल उपचार दो मुख्य सिद्धांतों पर आधारित है। रांतों पर आधारित है। प्रथम सिद्धांत के अंतर्गत अंदरूनी कारणों को दूर करना है तथा द्वितीय कारण के अनुसार खुजलाने या अन्य मलहम वगैरह से होने वाली त्वचा क्षति को रोकना है। कवक (फंगस) या परजीवी द्वारा फैले। संक्रमण से हुए योनिद्वार में खाज को दूर करने का सर्वोत्तम उपचार उस अंग की भली प्रकार सफाई करना है। चाहे एनिमा की मदद लें अथवा प्राकृतिक । आहार की, पेट को हमेशा साफ रखना चाहिए। इसके लिए आवश्यक है कि रोगिणी सदैव स्वच्छ कपड़े पहने। मूत्र करने के बाद योनि को सामान्य ठंडे पानी से भली प्रकार धोयें। अगर खाज की स्थिति ज्यादा गंभीर है तो स्त्री को चाहिए कि वह नीम की पत्तियों के साथ उबले पानी से योनि को । अच्छी तरह साफ करे तथा नारियल का तेल चर्म रोग एवं डेंगू-चिकनगुनिया विशेषांक लगायें। नीम के पानी से योनि की सफाई करने से जीवाणु व कवक नष्ट हो जाते हैं। इस प्रभावित क्षेत्र को हरे रंग की प्रकाश में या सूर्य की रोशनी में हरे रंग के सीसे के पीछे 25 से 30 मिनट तक रखना चाहिए। इससे संक्रमण में कमी आ जाती है। मूत्राशय, ग्रीवा या योनि से निकलने वाले त्याज्य से होने वाली खाज के कारण जलन होती है। इसे उदर के निचले भाग में नियमित मिट्टी का ‘पैक' दिन में दो या तीन बार लगाने से कम किया जा सकता है। गरम या ठंडे पानी से नितंब स्नान करने से निश्चित ही जलन कम होती है। मध में ह (डायबिटीज ये लिटस), ग्लाइकोसूरिया, यूरेमिया, पीलिया तथा अन्य विषाक्त परिस्थितियों तथा विशिष्ट आहार के कारण होने वाली खाज के उपचार के लिए पहले इन शिकायतों को दूर करने का प्रयत्न करना चाहिए। एक बार जब ये समस्याएं दूर हो जाती हैं। तो खाज को दूर किया जा सकता है। त्वचा रोग जैसे छाल रोग, खुजली, कवक संक्रमण का उपचार विभिन्न प्राकृतिक ढंग से करना चाहिए। इन रोगियों को वाष्प स्नान, मिट्टी लेप का स्नान, पानी में डूब कर स्नान, धूप स्नान, रीढ़ स्नान तथा क्रोमेटोथेरेपी करनी चाहिए। योनिद्वार में होने वाली खाज को दूर करने में आहार महत्वपूर्ण भूमिका न निभाती है। इन लक्षण से प्रभावित स्त्रियों को कुछ दिन उपवास रखना चाहिए। इसमें वह फल एवं सब्जियों का रस आधी-आधी मात्रा में ले सकती हैं। पेट को स्वच्छ रखने के लिए उपवास के दिनों में प्रतिदिन गरम पानी का एनिमा लगाना चाहिए। उपवास रखने से केवल प्रभावित अंग को हो । ही विषाक्तता दूर नहीं होती, अपितु संपूर्ण शरीर की विषाक्तता दूर हो जाती है। इससे जलन दूर हो जात जाती है। रस उपवास की अवधि समाप्त हो जाने के जाने के पश्चात् मौसमी फल, सलाद, अंकुरित अन्न, सब्जियों के सूप या छाछ लेनी चाहिए। पके खाने का उपयोग कुछ दिनों के बाद शुरू । करना चाहिए। रोगिणी को सभी प्रकार का संरक्षित आहार (प्रोसेस्ड फूड), रिफाइंड और अस्वाभाविक तथा श्वेत शर्करा, मैदा एवं चाय, अंडा, मांस, मसाला तथा तैलीय वस्तुएं नहीं खानी चाहिए। शराब के सेवन तथा धूम्रपान पर तो पूर्णरूपेण रोक लगा देनी चाहिए। प्राकृतिक उपचार करने पर लंबी अवधि तक योनिद्वार में । होने वाली खुजली से बचा जा सकता है। । इससे लंबी अवधि तक स्वास्थ्य ठीक रहता है।