प्रदूषित हवा गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ शिशुओं के लिए खतरनाक

                   प्रदूषित हवा गर्भवती महिलाओं


          और गर्भस्थ शिशुओं के लिए खतरनाक 


दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़ता जा रहा है। कई एजेंसियों ने मिलकर हाल ही में एक अध्ययन किया जिससे यह साबित हुआ है कि प्रदूषित हवा का असर गर्भ में पल रहे बच्चे के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है इससे भ्रूण का विकास बाधित होता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन और कुछ दूसरी संस्थाओं द्वारा कराए गए विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि भारत, पाकिस्तान और चीन के कुछ शहरों में प्रदूषण का स्तर इतना अधिक है कि वह खतरा बन चुका है और इसकी स्थिति समय के साथ और खतरनाक होती जा रही है। आपको जानकर शायद आश्चर्य हो लेकिन यह - सच है कि भारत में होने वाली मौतों की एक बहुत बड़ी वजह प्रदूषित हवा है। इससे विभिन्न प्रकार रहने की सांस से जुड़ी समस्याएं हो जाती हैं। सांस की तकलीफ के चलते पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा मौतें भारत में ही होती हैं। प्रदूषित हवा का असर मानसिक स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इसके अलावा प्रदूषित हवा में सांस लेने से हाई ब्लड प्रेशर होने की भी समस्या हो जाती है।। डॉक्टर अनुभा सिंह का कहना है :- हवा में मौजूद खतरनाक रासायनिक तत्व जैसे कार्बन मोनो-ऑक्साइड, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड के दिल्ली चलते गर्भ में पल रहे बच्चे के विकास पर असर मांओं पड़ता है और कई बार तो प्रीमैच्योर बेबी के होने की आशंका बढ़ जाती है। प्रदूषित हवा के चलते । नवजात बच्चे के वजन पर असर पड़ता है। शहर में रह बढ़ रहा प्रदूषण गर्भवती महिलाओं और गर्भस्थ । शिशुओं के लिए भी खतरा बना हुआ है। चिकित्सकों के मुताबिक गर्भपात के विभिन्न चिह्नित कारणों में वायु प्रदूषण भी एक है। वाहनों के धुएं से होने वाला प्रदूषण महिलाओं में गर्भपात या गर्भ में पल रहे शिशु की आने वाली जिंदगी में में कई बीमारियों का कारण बन सकता है। इस सम्बन्ध में हुए दर्जनों अध्ययनों में यह बात सामने आई है। राजधानी के महिला और जनाना अस्पताल में आ रहे मामलों पर नजर डालने पर दिखने सामने आया कि दोनों अस्पतालों में रोजाना इमरजेंसी और ओपीडी में मिलाकर ऐसे करीब 25-25 मामले आ रहे हैं। हालांकि, करीब 60 से मेरी तुलसी शिशुओं के लिए खतरनाक लगातार 70 फीसदी मामलों में गर्भवती महिला और उसके हाल परिजन यह बता पाने की स्थिति में नहीं होते कि हुआ इसका कारण यह रहा। रोजाना बच्चे 25 फीसदी तक गर्भपात :- चौंकाने वाला विकास आंकड़ा यह भी है कि आज की जीवनशैली और कुछ वातावरण के कारण कुल चिह्नित गर्भवती अध्ययनों महिलाओं में से करीब 25 फीसदी को मिसकरेज होने (गर्भपात) हो रहा है जबकि यह आंकड़ा 15 साल पहले तक 10 प्रतिशत के आस-पास था। इसके समय बढ़ने के मुख्य कारणों में बदलती जीवनशैली और अनचाहे गर्भ के साथ-साथ प्रदूषण भी शामिल है। यह प्रदूष प्रदूषण में लंबे समय तक रहने से स्पर्म काउंट तो कम होते हैं, वहीं महिलाओं को पॉल्यूशन में ना बहुत रहने से कंसीव करने में अधिक दिक्कतें आती हैं वही प्रदूषण में आंधक रहने वाला माहलाओं को इसके गर्भपात होने का खतरा भी अधिक रहता है। इतना ज्यादा ही नहीं, समय से पहले डिलीवरी भी इसका बड़ा असर कारण है। अलावा होने हवा में मौजूद कई तरह के विषाक्त पदार्थों से जहां लगभग हर वर्ग की रोग प्रतिरोधक क्षमता पर असर या पड़ रहा है वहीं हाल में हुआ प्रदूषण का स्तर लगातार बढ़त और नई चेतावनी लेकर आया है कि * गर्भपात दिल्ली की प्रदूषित हवा का असर यहां की गर्भवती । मांओं के गर्भ में पल रहे बच्चों पर भी पड़ रहा है। होने चलते यदि कोई महिला लगातार प्रदूषित वातावरण में रह रहती है तो उसमें चिड़चिड़ापन, मानसिक असंतुलन, हीमोग्लोबिन की कमी जैसे विकार बढ़ गर्भस्थ । जाते हैं। चूंकि गर्भावस्था में इन सभी चीजों का । संतुलन आवश्यक होता है, ऐसे में उनमें गर्भपात । विभिन्न की आशंका बढ़ जाती है। जीवनशैली, पर्यावरण । शिशु वाहनों और अनचाहे गर्भ के कारण गर्भपात के मामले बढ़ । । स्थिति गर्भपात रहे हैं। अस्पताल में रोजाना इसके कई मामले । । सामने आते हैं। प्रदूषण के लगातार संपर्क में रहने । से भी गर्भवती के स्वास्थ्य पर कई तरह के प्रभाव पड़ते हैं, जिससे उसके शिशु पर भी असर पड़ता इसकी जनाना है। यूं तो वायु प्रदूषण का इफेक्ट तुरंत ही शरीर पर दिखने लगता है। सांस लेने में दिक्कत होना, रोजाना एलर्जी होना या अस्थमा हो सकता है लेकिन बहुत करीब लंबे समय तक प्रदूषण में रहने से फेफड़ों का कैंसर, प्रजनन संबंधी समस्याएं और ब्लड कैंसर  जैसी समस्याएं होने लगती हैं। कई रिसर्च भी ये साबित कर चकी है कि रोजाना देर तक ट्रैफिक में रहने से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड शरीर के अंदर जाती है जिससे प्रतिरोधक क्षमता कम होती है। लंबे समय तक ऐसा होने से फेफड़ों के कैंसर और ब्लड कैंसर होने की आशंका और अधिक हो जाती है। यदि आप स्मोकिंग करते हैं तो कैंसर का खतरा कहीं अधिक बढ़ जाता है। रिसर्च बताती है कि पॉल्यूशन में रहने से दिल संबंधी बीमारियां तो होती ही हैं साथ ही डेढ़ से तीन साल जीने की उम्र भी घट जाती है। सांस के मरीजों को तो सबसे अधिक सावधानी उतने और पटपणा ये बचने की आवश्यकता है। इसके लिए यह जरूरी है कि चेहरे पर मास्क लगाकर बाहर निकलें। बच्चों को भी इसकी आदत डलवाएं। प्रदषण से बचाव के लिए शरीर को पोषण युक्त करना चाहिए, जिसके लिए प्रचुर मात्रा में हरी सब्जियां और फलों का सेवन करना चाहिए। चाहिए। गर्भवती महिलाओं को भी इससे परेशानी हो सकता है। प्रदूषित वातावरण में सास लेने पर गर्भ में पल रहे बच्चे को दिक्कत होती है। उनका गर्भपात भी हो सकता है। त्वचा की एलर्जी की भी । आशंका रहती है। यूं पहचानें गर्भपात को :- रक्त स्राव शुरू होना इसका प्राथमिक लक्षण माना जा सकता है। अत्यधिक रक्त स्राव होने का सामान्य तौर पर मतलब है कि गर्भपात हो चुका है, तरंत डॉक्टर को शिशु को ये खतरे :- इससे शिशु की मानसिक । स्थिति पर असर पड़ता है। शारीरिक विकास । अवरुद्ध होना। जन्मजात विकृतियों का शिकार हो । फैक्ट फाइल :- गर्भपात का सर्वाधिक खतरा इसकी शुरू अवस्था में होता है। अधिकांश महिलाओं को इस समय पता भी नहीं होता कि वह गर्भवती है। 50 फीसदी से भी ज्यादा गर्भपात गर्भावस्था के 16 सप्ताह में हो जाते हैं। 80 प्रतिशत गर्भपात असामान्य क्रोमोसोम के कारण होते हैं।