शंरव प्रक्षालन द्वारा शुद्धिकरण

                                  शंरव प्रक्षालन द्वारा शुद्धिकरण 


शंख प्रक्षालन एक महत्वपूर्ण शुद्धि क्रिया है, जो पूरी आहार नली को कंठ से लेकर गुदा तक निर्मल बनाती है। आंतों के मल की तह जमी होती है, तौंद बढ़ जाती है। साल में कम से कम दो बार इसे किया जाता है। इसी का हल्का रूप लघु शंख प्रक्षालन कहलाता है। शंख का अर्थ यहां पेट से है।



खिचड़ीशंख प्रक्षालन के लाभ :- 1. आंतों व आहार नली में जमा सभी विषैले तत्व बाहर निकलते हैं। 2. पेट, फेफड़े, वात-पित्त-कफ, सर्दी-गर्मी व नेत्र संबंधी रोग दूर होते हैं। 3. धुम्रपान व नशीले पदार्थों के सेवन की आदत छूटती है। 4. मोटापा घटता है। शरीर हल्का बनता है। स्फूर्ति आती है। 5. कब्ज दूर होता है। शंख प्रक्षालन की विधि :- पानी को अच्छी तरह उबाल कर ठंडा कर लें। उसमें थोड़ा-सा नमक मिला दें। उकडू बैठकर एक गिलास या दो गिलास पानी पीकर पांच आसन करें। इसी तरह पांच बार एक-एक गिलास पानी पीकर हर बार पांचों आसन पांच बार करें। छठी बार एक गिलास पानी पीकर और आसन करके शौच के लिए जाएं। मल निकले या न निकले थोड़ी देर में ही लौट आएं। इस प्रकार 15-16 गिलास पानी पीकर आसन करके शौच के लिए जाएं। पहले ठोस मल आएगा। फिर पतला मल फिर गंदा व बदबूदार पानी आएगा। फिर मल के साथ मल के टुकड़े आएंगे। फिर साफ पानी आए तो समझ लें शंख प्रक्षालन की क्रिया पूर्ण हुई। आवश्यक निर्देश :- 1. शंख प्रक्षालन के बाद कंजुल करें। 2. 30 मिनट तक श्वासन करें। 3. चावल-मूंग की दाल की खिचड़ी खाएं। बिछा उसमें कम से कम 100 ग्राम घी पड़ा हो। इससे पित्त-आंतों को कष्ट नहीं देगा। 4. खिचड़ी में नमक ज्यादा न हो। 5. खिचड़ी न लेने से पित्त बढेगा और बुखार की • योगाचार्य कृष्ण दिल संभावना रहती है। के 6. उस दिन शाम में भोजन में घी सहित खिचड़ी को लें। धड़ 7. पूर्व रात्रि में भोजन हल्का ही लें।। पांच 8. शंख प्रक्षालन की सामग्री-गुनगुना पानी, नोट नमक, गिलास, बिछाने के लिए आसन, भी खिचड़ी, घी, बर्तन, साबुन आदि पास में रहे। यथा कपड़े ढीले हों।। पवनमुक्तासन 9. शंख प्रक्षालन के तुरन्त बाद श्रम न करें। हो अंतिम सके तो पूरा दिन विश्राम करें। 10. जिनकी आंतें कमजोर हों या उनमें सूजन हो, वे शंख प्रक्षालन न करें। शंख प्रक्षालन के आसन : 1. ताड़ासन विधि :- एडी-पंजों को मिलाकर दिल खड़े हों। दोनों हाथों की अंगुलियों को आपस में कम फंसाकर सिर की ओर तानें। हथेलियों का रुख जुड़े आसमसन की ओर रहे। एड़ियां भी सांस भर कर दिल उठा लें। इसे पांच बार दोहराएं। हाथ नीचे लाकर नाड़ी सांस सामान्य करें। त्रिकोणासन2. शीर्षक ताड़ासन विधि :- दोनों पैरों में धनुरासन थोड़ा-सा फासला रखें। हाथों की हथेलियों को लेकिन फंसाकर सिर से ऊपर ले जाएं। हथेलियों का सबसे रुख आसमान की ओर हो। सांस भरते हुए देखरेख दाएं-बाएं झुकें। पांच बार दोहराएं। ध्यान रहे कि होते बगल से झुकें। |लिए 3, कटि चक्रासन विधि :- दोनों पैरों के बीच रक्तचाप फासला हो। हाथ सामने कंधे की सीध में रखें। योगासन सांस भरकर धड़ सहित दोनों हाथों को दाएं-बाएं शरीर घुमाएं। पैर न हिले। दाएं-बाएं दोनों ओर 5 बार मेटाबॉलिक दोहराएं। बीच में साइड बदलते समय सांस भर है। लें।। में 4. तिर्यक भुजंगासन विधि :- आसन पर पेट कोलेस्ट्रॉल के बल लेटें। हथेलियां कंधों के पास रखें। पंजे शरीर बिछा लें। सांस भरें। कोहनियां सीधी करें। धड़ के ऊपर उठा लें। गर्दन घुमाकर दायीं एड़ी को देखें। लगानी इसे भी पांच बार करें। लिए 5. उदराकर्षणासन विधि :- उकडू बैठे। दोनों एरोबिक्स हाथ घुटनों पर रखें। अब दाएं घुटने को बाएं पैर सुधार TT त के अंगूठे के पास आसन पर लगा दें। बाएं घुटने को पेट की ओर दबाते हुए गर्दन बायीं ओर मोड़ें। धड़ भी मोड़े। यही क्रिया दूसरी ओर भी करें। पांच बार इस आसन को दोहराएं। , नोट :- कब्ज को तोड़ने के लिए अन्य योगासन , भी कर सकते हैं। । यथा :- भुजंगासन, सर्पासन, पादोत्तासन, पवनमुक्तासन तथा मकरासन। रीढ़ बल लेटकर अंतिम तीनों आसन किए जाते हैं।