स्त्री महिला रोग और योग

  महिला रोग और योग


 


योग आज विश्वव्यापी स्थान पा चुका है। उसका सदुपयोग आध्यामिक आनन्द के अतिरिक्त रोगों के निवारण हेतु भी होने लगा है। इस लेख में कई महिला रोगों के उपचार की दृष्टि से विचार किया जाएगा। यथा- 1. फिबरॉयड्स (Fibroids) :- महिलाओं के गर्भाशय की दीवारों पर यमर जैसे आकार के दाने मांसपेशियों से बन जाते हैं। ये कैंसर नहीं होते, सभी गर्भवती महिलाओं की यह आम समस्या है। ये फिबरॉयड्स गर्भाशय में बन जाते हैं, और अपने आप समाप्त भी हो जाते हैं। ये धीरे-धीरे बड़े हो जाते हैं, अनेक महिलाओं को इनका पता तक नहीं चलता। इनका आकार व संख्या बढ़ जाने से महिलाओं में कष्टदायक लक्षण दिखाई देने लग जाते हैं। यह रोग स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रहा है। रजोनिवृत्ति के समय ये छोटे होकर नष्ट हो जाते हैं। फिबरॉयड्स को चार भागों में बांटा जा सकता है। गर्भाशय की बाहरी व भीतरी दीवार पर होना, फेलोपियन ट्यूब की शाखाओं पर होना तथा कोटर पेशियों के नीचे अन्दर की ओर होना। लक्षण :- मासिक धर्म में ज्यादा खून आना, लम्बे समय तक रक्तस्त्राव का बहना, खून की कमी का होना, सहवास के समय दर्द का होना, "गर्भ न ठहरना या गिर जाना, फेलोपियन ट्यूब म का मुँह रुक जाना, बांझपन का कारण बनना, श्रोणी भाग, कमर व पेट में लगातार दर्द बने रहना। फिबरॉयड्स के कारण ही गर्भाशय को निकालने तक की नौबत आ जाती है, जिससे को नौबत आ जाती है, जिससे हार्मोन असन्तुलन पैदा हो जाते है। कारण :- फिबरॉयड्स के बनने का बनने का हा चला है। फिर भी कुछ कारण हैं, जैसे- मासिक धर्म का छोटी आयु में जल्दी शुरू होना, तनाव, ज्यादा तला-भुना, गरिष्ठ व चिकनाई युक्त भोजन खाते रहना, लिवर में चर्बी का बढ़ना, गर्भाशय में संक्रमण होना, मण होना, मेरी तुलसी योगाचार्य वजन का बढ़ना, चयापचय का कमजोर होना, नाडियों से विषाक्त पदार्थों का विकास धीमा पड़ना, रग्स्ट्रोजन हार्मोन का बढ़ना। योगोपचार :- इस समस्या का हल आसन एवं प्राणायाम से हो सकता है। त्रिकोणासन, अर्धमत्स्येन्द्रासन, योगमुद्रासन, मण्डूकासन, सुप्त वज्रासन, पादोत्तानासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन का अभ्यास लाभदायक है। त्रिबंध, अग्रिसार क्रिया, भ्रामरी व उज्जायी प्राणायाम भी प्रतिदिन करना चाहिए। • आहार प्रबंधन भी बहुत उपयोगी है। रेशायुक्त (अंकरित) अनाज, फल, सब्जी तथा पत्तेदार हरी सब्जियां, कम से कम चिकनाई का सेवन, कम मिर्च मसाले, मैदा व शक्कर का कम प्रयोग, खूब पानी पीना चाहिए। • जिनके पेड़ में दर्द रहता हो वे आधा लीटर पानी में अदरक के टुकड़े काटकर उबालें। बाद में दो चम्मच अरण्डी (कॉलेस्ट्रोल) का तेल डालें। एक तौलिया इसमें डुबोकर पेड़ की सिकाई करें। गर्म पानी की बोतल से भी नाभि के नीचे के भाग की सिकाई की जा सकती है। " • बाई या दाई करवट लेटकर घुटने मोड़कर छाती से लगाए रखें। '' . पीठ के बल लेटकर पैरों को थोड़ा ऊपर उठ उठाने से भी आराम मिलेगा। • भोजन में लौह तत्व की मात्रा बढ़ाएं। • एक दम डॉक्टर के पास न भागें। योगाभ्यास धैर्यपर्वक करें। 2. प्रदर (ल्यूकोरिया) :- महिलाओं में सफेद पानी आने की शिकायत आम है। हर आय २ आयु की महिलाएं इससे ग्रस्त पाई जाती हैं। कई बार अविवाहित यवतियां भी संकोचवश इसका इलाज नहीं कराती और रोग बढ़ता जाता है। डॉ. सुनीता नन्दा कहती हैं, “दरअसल ल्यकोरिया स्वयं में एक रोग कम है, कुछ रोगों का लक्षण या परिणाम अधिक।'' पकार प्रकार :- प्रदर आयुर्वेद में 4 प्रकार का बताया गया है। वातज, पित्तज व कफज तथा सन्निपातज। एलोपैथिक दृष्टि से-मोनिलिया, ट्राइकोमोनस, तथा सुनाक से सम्बधी। मोटे तौर पर श्वेत प्रदर व रक्त प्रदर दो तरह का माना जाता है। लक्षण :- पानी सफेद, दही की तरह गाढा फुटकीदार, योनि में खुजली, कभी पानी पतला, पीले रंग का तो कभी लाल रंग का निकलता है। कभी मवाद वाला व बदबूदार निकलता है। पेशाब में जलन भी होती है। पीठ दर्द, दुर्बलता, मुख सूखा, मुंह से बदब आना, इन्द्रियां शिथिल, गोंद जैसा चिपचिपा स्राव, सुस्ती, स्मरण शक्ति का कमजोर होना, भूख न लगना, अधिक नींद आना तथा हमेशा बुखार-सा महसूस होना आदि।। कारण :- पोषण की कमी, इन्फेक्शन, शक्ति । से अधिक काम करना, मानसिक उथल-पुथल, मधुमेह, खांसी, क्रोध, बार-बार । गर्भपात, अनियमित मासिक धर्म, कब्ज, । उत्तेजक पदार्थों का सेवन, अति सम्भोग, ज्यादा आराम तलवी, मेहनत की कमी, अबोर्शन का बार-बार होना, दवाइयों का ज्यादा प्रयोग, विटामिन 'बी' की कमी, देर रात में सोना, गैस आदि प्रदर के कारण है। उपचार :- 1. सप्ताह में एक बार कुंजल क्रिया, तीन महीने में एक बार शंख प्रक्षालन तथा रोजाना जलनेति करनी चाहिए। 2. योगासन :- योगमुद्रा, पवनमुक्तासन, वज्रासन, भुजंगासन, मकरासन, धनुरासन, उष्ट्रासन, पादोत्तानासन, शलभासन, तु सुप्तवज्रासन, विपरीतकरणी, हलासन तथा शवासन। सूर्यनमस्कार भी कर सकती हैं। 3. प्राणायाम :- नाड़ी शोधन, कपालभांति, त्रिबंध, अश्विनी मुद्रा करें। 4. आहार :- हरी सब्जियाँ, सोयाबीन, शलगम, गोभी, मटर, गाजर, फल, भिंडी, सरसों का साग, पनीर, नींब, टोण्ड दध आदि का सेवन करें। 5. प्रात: सैर करना, निश्चित रहना, योनि को साफ व सूखा रखना, नाय-लोन व रेशमी जांघिया न पहनना, घरेलू काम करना, धूप स्नान करना, कटि स्नान करना, जांघिया जल्दी-जल्दी बदलना, रोग को छिपाएं नहीं रहता 6. वंशलोचन, सुगन्ध वाला नागकेशर, दोनों महसूस समान मात्रा में मिलाकर चर्ण बना लें। चावल के माण्ड के साथ प्रातः- सायं छह-छह ग्राम तनाव लें। अशोकारिष्ट का सेवन भोजन के बाद 2 चम्मच+थोडा पानी मिलाकर लें। स्वभाव 3. पेशाब न रोक पाना :- महिलाओं में पेशाब का अनिच्छा से निकल जाना एक आम समस्या है। 60 साल के बाद यह समस्या ज्यादा बढ़ जाती है। हमारी मूत्र प्रणाली की नस नाडियां जब कमजोर या ढीली पड़ जाती हैं, तब उनका ताल-मेल बिगड़ जाता है। स्नाय तंत्र स्पष्ट संकेत मस्तिष्क को नहीं पंहचा पाता। मांसपेशियां मूत्र मार्ग को पूरी तरह से बंद नहीं कर पाती। तब बिना चाहे पेशाब बाहर निकल जाता है। कारण, मूत्राशय पर मस्तिष्क का व्यवस्थानियन्त्रण न रहने से ऐसा होता है। उपाय :- 1. अश्विनी मुद्रा का अभ्यास करें अर्थात् योनि व गुदा को भीतर की ओर बार-बार खीचें व छोडे। मूलबंध का अभ्यास करें अर्थात् निष्कासन अंगों को भीतर की ओर रक्तचापखींचकर कछ देर रोके जैसे पेशाब को रोकते हैं। इसका खूब अभ्यास करें। 2. मूत्राशय पर नियन्त्रण बढ़ाने के लिए मूत्र त्याग का समय तय करें। मूत्र त्याग का अन्तराल सप्ताह में 5 मिनट बढाएं। रुक-रुक शिथिलासनकर पेशाब करें। । 23. सूर्य नमस्कार की पांचवी स्थिति बनाएं। मूल बंध लगाएं, पुनः दोहराएं। 4. अपना वजन घटाएं क्योंकि पेट की चर्बी 3मूत्राशय पर दबाव डालती है। 45. मैगनीशियम युक्त भोजन करें। यह आलु, 5जर शकरकटी येव खजूर, अखरोट तथा कन्दमूल में होता है। निष्काम 6. पानी पीने से पेशाब आएगा ऐसा न सोचें। 7कम पीने से कब्ज होगा तथा मूत्र प्रणाली पर विचारों तनाव बढ़ेगा। 87. पेट या पीठ पर तिल या सरसों के तेल की 9मालिश करें और धूप में बैठे। 104. तनाव :- महिलाओं में तनाव अधिक तने को मिलता है। उनकी जिम्मेदारी अधिक होती है। घर-बाहर दोनों जगह की चिंताए उन्हें 12सताती हैं। तनाव मन की वह स्थिति है। जब 5. महिलाएं विशेष प्रकार का बोझ अपने मन पर कमी जांघिया समझती हैं। एक अन्तर्द्वन्द्व उसके भीतर चलता से रहता है। छोटे-छोटे कामों में भी वह खिंचाव लक्षण महसूस करती हैं। हर काम में जल्दबाजी करती थकावट हैं। व्यर्थ में परेशान रहती हैं। • तनाव के कुछ लक्षण :- हर बात में • भड़कना, थकावट महसूस करना, चिड़चिड़ा • स्वभाव होना, चेहरे की मुस्कराहट गायब होना, चेहरे की कांति नदारद होना, बेचैनी महसूस सिरदर्द आम करना तथा भविष्य में होने वाली हानि से भयभीत रहना। • तनाव के कारण :- दिनचर्या ठीक न होना, • अचानक काम में रुकावट आना, काम की •रोग अधिकता, समय पर न पंहुचना, आगे बढ़ने की • होड़, निराशा, अधिकारी द्वारा शोषण व कारण अन्याय, व्यवसाय या दैनिक कार्य से जुड़ी बह निकल समस्याएं, टूटता परिवार, समाज की दूषित • व्यवस्था, भ्रष्टाचार, नैतिकता की कमी, धर्म जानाका अभाव, गृहस्था जीवन की समस्याएं, शादी • में दिखावा, दहेज, बच्चों का सफल न होना एसिड तथा आज्ञा न मानना आदि। • तनाव से उत्पन्न रोग :- अनिद्रा, उच्च • रक्तचाप, हृदय रोग, स्नायु तंत्र का कमजोर • होना, चयापचय का बिगड़ना, थकावट होना, निकलनाअवसाद होना, कब्ज व गैस का बनना तथा • कोलेस्ट्रॉल का बढ़ना आदि। • उपचार :- 1. ताड़ासन, शशांकासन, • शिथिलासन, शवासन आदि आसनों को करें। •थैलेसीमिया 2. गहरे लम्बे श्वास, शीतली प्राणायाम, • लिवरअनुलोम-विलोम व कपालभाति, उज्जाई तथा से भ्रामरी प्राणायाम करना। जांच 3. प्रातः सायं 30-30 मिनट ध्यान करना। वयस्क 4. योग निद्रा लेना। वह 5. सुपाच्य भोजन करना। आहार 6. रात को सोने से पहले आत्मचिंतन करना, सब्जियांनिष्काम सेवा करना। पुदीना । 7. सकारात्मक विचार रखना, नकारात्मक 2. विचारों से बचना।। या 8. जो परिस्थिति है उसे स्वीकार करना। 3. 9. जो भाग्य में है वह अवश्य मिलेगा। 4. खाएं10. हर घटना के पीछे भगवान का हाथ है। 5. समझकर समभाव अपनाना। 6. 11. ओम् का गुंजन करना। स्त्री-पुरुष रोग विशेषांक 12. सबके प्रति प्रेम, सद्व्यवहार अपनाना। 5. खून की कमी :- प्रायः महिलाएं खून की कमी से ग्रस्त हो जाती हैं और जल्दी ही जीवन से हाथ धो बैठती हैं। लक्षण :- जरा-सी मेहनत करने या चलने से थकावट महसूस होना। • दिन भर लेटे रहने की इच्छा करना। • तेज आवाज सुनते ही दिल का घबराना। • भोजन के प्रति अरुचि होना। नींद न आना। सिरदर्द बना रहना। त्वचा का रंग पीला पड़ना। • नीचे से ऊपर उठने पर चक्कर आना। • आँखों के आगे अंधेरा-सा छा जाना। •रोग बढने पर टखनों में सजन होना। • जीना चढ़ने, चलने से सांस फूलना। कारण :- मासिक धर्म के समय अधिक रक्त बह जाना।। • दुर्घटना के समय खून का अधिक निकल जाना। • शरीर में पोषक तत्व आयरन, फोलिक एसिड तथा प्रोटीन की कमी होना। • पाचन क्रिया ठीक न होना। • खुनी बवासीर होना।। • आँतों में छाले होने पर दस्त के साथ खून निकलना। • प्रसव के समय अधिक रक्त स्राव होना। • पेट में हुकवर्म व मलेरिया के कीटाणु होना। • गुर्द खराब होना। •थैलेसीमिया के कारण खून बनना बंद होना। • लिवर, अस्थि मज्जा के कार्यों में बाधा पड़ने से खून का बनना बंद होना। जांच कराएं :- हीमोग्लोबिन की जांच कराएं। वयस्क महिला में 12 या उससे अधिक है तो वह स्वस्थ है। कम या अधिक है तो अस्वस्थ है। आहार द्वारा उपचार :- 1. हरी पत्तेदार सब्जियां, मेथी, चौलाई, मूली व उसके पत्ते, पुदीना का सेवन करें। 2. अंकुरित अनाज 60 ग्राम प्रतिदिन नाश्ते में या भोजन में लें। 3. खाने के बाद गुड़ खाएं। 4. रात में भीगी हुई अंजीर या किशमिश प्रातः खाएं। 5. नींबू, आंवला, सन्तरे का प्रयोग करें। 6. लोहे की कढ़ाई में सब्जी पकाकर खाएं। 7. सर्दियों के दिनों में तिल व तिल से बनी हुई चीजें खाने से लाभ मिलेगा। परहेज :- चाय बंद करें। आयरन के कैप्सूल कम ही लें। खटाई में टमाटर, अमचूर न लें। तले-भूने व गरिष्ठ भोजन न खाएं। यौगिक उपचार :- 1. योगासन :- योगमुद्रा, पश्चिमोतान, अर्धमत्स्येन्द्रासन, भुजंगासन, ‘शलभासन, पवनमुक्तासन, नौकासन, धनुरासन, शवासन, प्राणायाम-अग्निसार क्रिया, उड्डियान बंध, गहरे लम्बे सांस, वरुण व • पृथ्वी मुद्रा का अभ्यास। तक 2. प्रातः भ्रमण करें। 5 बादाम, 4 मुनक्काएं, नारियल तथा काजू खाएं, गाजर का रस पिएं। भोजन से पूर्व सेब का रस लें।। प्रकोप6. माइग्रेन (आधा सीसी, सिर का दर्द ) :- रोकनामाइग्रेन को आधे सिर का दर्द, आधा सीसी, अर्धकपाली तथा शिरशूल भी कहा जाता है। क्रोध सूर्य के उदय होने पर दर्द शुरू होता है। कुछ ईष्र्या को चन्द्रमा निकलने पर दर्द शुरू होता है। यह रोग वंश परम्परा से भी आता है। लक्षण :- सिददर्द का दौरा पड़ता है। 15 मिनट बाद पूरी तीव्रता से दर्द बढ़ता है। उल्टी होने को रबरनेति होती है। • तेज रोशनी या भीड़ वाले स्थान पर दर्द होना • महिलाओं में मासिक धर्म के पूर्व तनाव होने योगासन पर माइग्रेन के झटके आते हैं। मासिक धर्म की कोणासनअवस्था में दर्द बढ़ता है। पवनमुक्तासन• आंखों में फड़कन होती है। ध्वनि के प्रति संवेदनशीलता होती है। 3• चेहरे के दोनों ओर, मुँह के चारों ओर सुन्नता या झुरझुरी महसूस होती है। • निर्णय लेने व बोलने की शक्ति में कमी हो जाती है व असहज महसूस करते है। ठीक • चक्कर आते हैं तथा चाल में लडखडाहट होती है, शरीर में कपन सा महसूस होता है। 5• सप्ताह में ऐसा दर्द दो बार से ज्यादा भी होने लगता है। 6• जो महिलाएं जिद्दी और महत्वाकांक्षी होती हरी हैं, उनमें यह रोग अधिक पाया जाता है। कारण :- शरीर में पित्त की प्रधानता। ज्यादा • शराब व पुराने पनीर का सेवन। परहेज • मानसिक तनाव की लम्बी अवधि के बाद शिथिलता होना। भोजन• मसिक धर्म शुरू होने के ठीक पहले महिला मसाला के खून में सेक्स हार्मोनों का बढ़ना। हुई • गर्भ निरोधक गोलियां खाना। • भूखे रहना। प्रकृति कैप्सूल • ज्यादा व्रत करना, ज्यादा चिकनाई वाले पदार्थ लें। खाना, चॉकलेट, प्याज, खट्टे फल व समुदी पौधों से बने पदार्थ खाना, कमरे या मौसम के योगमुद्रा, तापमान में एकदम बदलाव आना, विटामिन भुजंगासन, ‘ए’ का ज्यादा प्रयोग करना, ठण्डे पेय पदार्थां, धनुरासन, कैफीन का ज्यादा सेवन, कब्ज रहना, एलर्जी क्रिया, करने वाले पदार्थ खाना आदि। जिसके व • तीखी गंध सूंघना, तेज धूप में घूमना, देर रात लिए तक काम करना, नींद पूरी न होना, खून की मुनक्काएं, कमी, गुर्दे का विकार, ब्रेन ट्यूमर, कंठ व सिर पिएं। की धमनियों में रुकावट, बुखार का तीव्र प्रकोप, रक्त चाप का बढ़ना, मल-मूत्र को - रोकना, नेत्र गोलकों पर दबाव का बढ़ना, ।। सीसी, बार-बार साइनस की तकलीफ होना, अधिक रह है। क्रोध करना, मन अशांत रहना, ऊँचा बोलना, क्रोध करना, मन अशांत रहना, ऊचा बालना, कुछ ईष्र्या करना, धैर्य की कमी होना तथा अहंकार यह की अधिकता होना, मस्तिष्क की नाड़ियों में सूजन होना आदि। मिनट यौगिक उपचार :- 1. शद्धि क्रियाएं :- |को रबरनेति व जल नेति करना बाद में कपालभांति करना। कुंजल क्रिया सप्ताह में दो बार करना, |बाद में सप्ताह में एक बार करना। होने योगासन :- ताड़ासन, नावासन, जानुशिरासन, की कोणासन, भुजंगासन, धनुरासन, मकरासन, पवनमुक्तासन, सर्वांगासन तथा मत्स्यासन प्रति करना। 3. प्राणायाम :- अनुलोम-विलोम, धीरे-धीरे सुन्नता कपालभांति 15 से 100 तक बढ़ाना, भस्त्रिका व भ्रामरी प्राणायाम करना पूर्ण रहने हो 4. योग निद्रा :- शरीर शिथिल करके ‘माइग्रेन किया ठीक हो रहा है। की भावना 20 मिनट तक लडखडाहट करना। निरोगी 5. ध्यान :- 15-20 मिनट ओम् की लम्बी होने ध्वनि करके देर तक ध्यान करना। 6. आहार-सुपाच्य हो, नारियल पानी, सिघाड़ा, होती हरी सब्जी, दलिया, परवल, रसीले फल, पेठे का रस, गर्मी में ठण्डा दूध, जौ का सत्तू लें तथा ज्यादा देर भूखे न रहें। परहेज :- उड़द की दाल, चना, राजमा, पनीर, उपलब्धियां बाद कटहल, गोभी, मांस, तली चीजें, मसालेदार ऐसा चिकित्सा भोजन, चाय, कॉफी, शराब, तम्बाकू, पान प्रणायाममहिला मसाला आदि।