स्वास्थ्य व आरोग्य जीवन

 


                                             स्वास्थ्य व आरोग्य जीवन 


 


स्वास्थ्य व आरोग्य जीवन को चाहने वाले । व्यक्ति में आयुर्वेद के अनुसार आहार, दिनचर्या, ऋतुचर्या, प्रतिरोधक क्षमता शक्ति उत्पन्न हो सकती है, जिससे मानव शरीर में रोगों की उत्पत्ति कम होगी। हमारे शरीर के तीन उपस्तम्भ माने जाते हैं जिस पर हमारे शरीर का स्वास्थ्य निर्धारित होता है (1) आहार (3) निदा और (3) बिस्तर ब्रहमचर्य। आधुनिक युग में भौतिक संसाधनों का इत्यादि नई तकनीकी का प्रचलन बहत तेजी से हो रहा सिरदर्द क्षत्रिी थे में नये-नये साधन व सिरदर्द दवाओं का आविष्कार हो रहा है और कशल वैद्यों की संख्या भी बढ़ रही है। सभी सविधा होने के पश्चात् भी रोगियों की संख्या बढ़ रही है। इसका मूल कारण विकृत जीवनशैली ही है। अनियमित जीवनशैली से ही शारीरिक एवं मानसिक रोगों का जन्म होता है। आज का मानव भौतिकवादी, औद्योगिक दुषित वातावरण, अशान्ति में मशीन की तरह जीवन यापन कर रहा है। अपने जीवन को उन्नत करने के लिए आधनिक सख-सविधा का भोग कर रहा है। आज के मनुष्य के पास भोजन के लिए समय का अभाव है। जीवन की भाग-दौड़ में फास्टफूड का बढ़ता हुआ प्रचलन, अधिक मिर्च मसालों का प्रयोग, कोल्ड ड्रिंक, पिज्जा, बर्गर इत्यादि भोजन शिरोरोग का उपयोग बढ़ रहा है। इन सभी खाद्य पदार्थों का उपयोग नियमित मात्रा या कभी-कभी खाया जाए व पौष्टिक खाने का सेवन किया जाए तो हानिकारक नहीं होता परन्तु Frequently (लगातार) ये चीजें सेवन करें तो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक सिद्ध होती हैं और जीवन-शैली से संबंधति रोगों को उत्पन्न करती हैं। रोग दो प्रकार के होते हैं (1). साध्य रोग (2). असाध्य रोग। होता (1). साध्य रोग :- वह हैं, जिनकी चिकित्सा । लेने से पूर्ण रूपेण ठीक हो जाते हैं। सुगमतारुपेण । ठीक हो जाते हैं व बार-बार उत्पन्न नहीं होते हैं। बासी (2). असाध्य रोग :- साध्य व्याधियों के विपरीत होते हैं। हितकर आहार-विहार के सेवन से तथा औषधि सेवन से रोग कुछ समय के लिए शांत हो जाता है लेकिन थोडा भी अपथ्य करने से रोगोत्पत्ति हो जाती है और रोग अधिक कष्टदायक भी होता है। इसके रोगी आहार-विहार के सेवन से जीवित रहता है। जिस प्रकार गिरता हुआ मकान किसी खम्भे (स्तम्भ) चिड़चिड़ापन के सहारे से कुछ समय के लिए रोक दिया जाता है ऐसे रोग उपेक्षा के योग्य ही होते हैं। इसमें चित्त का अस्थिर होना, मोह, बैचेनी तथा इन्द्रियां का व क्षीण होना पाया जाता है। मनुष्य समय पर आहार, पेय पदार्थों का सेवन व दिनचर्या का ठीक से पालन नहीं करता है तब मनुष्य के शरीर में कई रोगों की उत्पत्ति व लक्षण उत्पन्न हो जाते हैं, जैसे समय पर खाना न खाना या कम खाना, पानी का कम मात्रा में सेवन करना तथा उचित नींद न लेना या आरामदायक बिस्तर पर न लेटना, अधिक ऊँचा तकिया लगाना इत्यादि कई कारणों से मनुष्य को सर्वप्रथम सिरदर्द की शिकायत होती है। हम यहाँ पर सिरदर्द के बारे में बताएंगे। शिरोरोग आयुर्वेद के अनुसार चरकसंहिता में पांच शिरोरोग बताए गए हैं। शिरोरोग की उत्पत्ति वेगों को रोकने से, दिन में सोने से, रात्रि में अधिक देर तक जागने से, अधिक देर तक लगातार वार्तालाप करने से आधक देर तक लगातार वातालाप करने स, रखने अधिक उच्च स्वर में बोलने से, अधिक देर तक धूप में घूमने से, अधिक सर्दी में रहने से. तीव्र । गंध सूघने से, धूल, मिट्टी, धुंए में अधिक देर । तक रहने से, अधिक गुरू पदार्थों व तले हुए पदार्थों का सेवन करने से, अपने शरीर की सामर्थ्य से अधिक कार्य करने से, बार-बार रोगों से पीड़ित होने से खासतौर पर नासागत रोग होना लगातार व बार-बार कर्ण रोग का होना, मुखगत रोगों का होना, प्रतिश्याय, नेत्र रोग होने से शिरोरोग (आधासीसी, आधे सिर में दर्द) या जिसके सम्पूर्ण सिर में दर्द होना पाया जाता है। दन्त रोगहोने पर भी सिर दर्द हो सकता है। वातादि दोषों । । के असंतुलन से ही रोगों की उत्पत्ति होती है। यहाँ । पर हम अर्धाविभेदक शिरशूल (आधा सीसी, ग मीमी आधे सिर में दर्द) के बारे में जानकारी शास्त्रानुसार उसके कारण, उपाय व चिकित्सा बताते हैं। इसको माइग्रेन (आधा सीसी) भी कहते है। माइग्रेन में आधा सिर में भंयकर दर्द होता है जो कि असहनीय होता है। इसके मुख्य कारण हैं:। । कारण :- पित्तवर्धक पदार्थों का लगातार सेवन, बासी भोजन करना, रूखे पदार्थ व पित्तवर्धक भोजन का निरन्तर सेवन करना, बार-बार प्रतिश्याय का होना, हार्मोन का असंतुलित होना, लगातार तनावपूर्ण वातावरण में रहना इत्यादि कारण हैं। लक्षण :- यह रोग अधिकतर लक्षणों के आधार असाध्य रोग विशेषांक पर ही पहचाना जाता है। सर्वप्रथम रोगी को अहसास होने लगता है कि सिर में भारीपन है। चिड़चिड़ापन आने लगता है। रोगी की आंखों के आगे अंधेरा या चमकीले बिन्दु दिखाई देने लगते हैं। रोशनी में अच्छा नहीं लगता है। अंधेरे में रहना पसन्द करता है। ऊँची आवाज बर्दास्त नहीं होती है। रोशनी व शोर से सिरदर्द भंयकर होता है। कभी-कभी सिरदर्द के कारण वमन (उल्टी) भी होने लगती है। वमन करने के पश्चात्, सिरदर्द कम हो जाता है। कभी-कभी सिरदर्द के कारण रोगी को चक्कर भी महसूस होते हैं। शरीर में थकावट महसूस होती है। रोगी को कभी-कभी घबराहट भी महसूस होती है। आयुर्वेदिक उपचार :- शिरशूल वज्र रस, स्वर्ण शेखर रस, गोदन्ती भस्म, पथ्यादि क्वाथ अणतेलादि का प्रयोग कशल चिकित्सक की देख-रेख में ही सेवन करें। इसमें शिरोधारा का उपयोग से भी अधिक लाभ होता है। चिकित्सक का परामर्श अवश्य लें। घरेलु उपचार :- (1), ठण्डे पानी की पट्टियां रखने से भी सिरदर्द में आराम मिलता है। (2). घिया, खीरा, के छिलकों को पीसकर माथे पर लेप करने से भी लाभ मिलता है। । (3). सादे पानी की भाप लें या पानी में अजवायन डाल उसकी भाप दिन में 2-3 बार लें। (4), वमन महसस होने पर पुदीने का अर्क लें या छोटी इलायची के दाने मिश्री के साथ चबाने से भी राहत महसूस होती है। इसके सेवन से पित्त का शामन होता है अर्थात् एसिड कम बनती है, जिसके कारण सिरदर्द में आराम होता है। , (5), देशी घी (गाय) नस्य या अणु तेल का । प्रयोग भी लाभप्रद होता है। । (6). नारियल का सेवन या नारियल पानी, मुरब्बा, गुलकन्द, गुलाब अक, आवला मुरब्बा सिर (7). मिर्च मसालों का प्रयोग न करें तला हुआ भोजन का परित्याग करें। सावधानियां :- 1. प्रात:कालीन सैर व प्राणायाम करें। खासतौर से तनावमुक्ति के लिए प्राणायाम व ध्यान करें। (2), आहार समय पर, सुपाच्य, संतुलित आहार का सेवन करें। (3), पित्त वर्धक आहार का त्याग करें, जैसेचाय, कॉफी, खट्टे फल, पनीर, मिर्च मसाले का परित्याग करें। हरी सब्जियों सलाद का अधिक सेवन करें। पेट को साफ रखे।