Tulsi ke mahima

 



तुलसी के पौधों से प्रायः सभी भारतीय परिचित हैं। हिन्दू घरों में तुलसी के पौधों को बड़ी आस्था, श्रद्धा, विश्वास तथा आदर के साथ लगाया जाता है। कारण यह है कि यह पर्यावरण को शुद्ध करने वाला, औषधीय गणों से परिपूर्ण और धार्मिक आस्था का प्रतीक पौधा है। तुलसी हिन्दुओं के अलावा बौद्ध, जैन, सिख वर्ग में भी समान रूप से सम्माननीय वनस्पति है। प्राचीन संत साहित्य, भक्ति-साहित्य, पौराणिक कथाओं और नीति संबंधी लोकोक्तियों में तुलसी का वर्णन पर्याप्त मात्रा में मिलता है। तुलसी केवल भारत में ही नहीं, अपितु श्रीलंका, वर्मा, चीन, , वमा, चान, मलेशिया, अफ्रीका एवं ब्राजील आदि देशों में विपल मात्रा में पाई जाती है। आस्ट्रेलिया में भी घरेलू दवा के रूप में तुलसी का प्रयोग होता है। तुलसी का दूसरा स्वरूप है औषधि चरक, धन्वन्तरि, सुश्रुत आदि वैद्यशास्त्रियों और समस्त चिकित्साशास्त्रों ने तुलसी को औषधि के रूप में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। यूनानी, तिब्बीती, होम्योपैथी, आयर्वेद सहित अब एलोपैथी में भी तुलसी के औषधीय गुणों को स्थान दिया जा रहा है। पुराणों में तुलसी को भगवान श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी कहा गया है। हर कियायज्ञ, हवन, उपासना और पूजा में तुलसी पत्र की जरूरत रहती है। मंदिरों में भगवान के चरणामृत, पंचामृत और प्रसाद सामग्री एवं भोग में भी तुलसी पत्र की जरूरत रहती है। 1. तुलसी जन्म की पौराणिक कथा . तुलसी के जन्म के विषय में एक पौराणिक भारतीय कथा है कि जालन्धर नामक एक दैत्य की पतिव्रता, सर्व गुण सम्पन्न पत्नी थी। महासती ता वृन्दा के पतिव्रता होने के प्रभाव के जालन्धर नामक दैत्य अजेय, अमर एवं अत्यधिक त्यधिक शक्तिशाली हो गया था। उसने सभी देवताओं को पराजित कर स्वर्ग पर भी अपना शासन हिन्दुओं स्थापित कर लिया था। इससे दु:खी होकर जगतपिता ब्रह्मा ने देवों को परामर्श दिया कि के जब तक रानी वृन्दा का पतिव्रत अखंड रहेगा, जालन्धर को पराजित करना या उसका वध करना असंभव है। इस पर भगवान विष्णु ने वृन्दा के पतिव्रत धर्म करने का बीड़ा उठाया। * सभी देवता दैत्यराज जालन्धर को चुनौती देने के लिए सेना सजाकर उसकी राजधानी गए के लिए सेना सजाकर उसकी राजधानी गाण और उस पर आक्रमण शुरू कर दिया। । जालन्धर अपनी सेना के साथ शस्त्र-सज्जित हो युद्ध के लिए नगर से बाहर निकला सभी देवता योजनापूर्वक युद्ध करते हुए काफी दूर तक पीछे हटते गए। इधर इस षड्यंत्र से अपरिचित । जालन्धर उनको खदेड़ते हुए राजधानी से काफी लाउन दूर निकल गया। पीछे से विष्णु ने जालन्धर का म छद्म रूप बनाया और वृन्दा के महल में जाक पहुंचे। भोली एवं पतिव्रता वृन्दा इस छल से । गुणों अपरिचित थी। उसने विष्णु को ही अपना पति समझकर उनकी इच्छा के अनुसार आचरण * किया। इससे देवताओं ने जालन्धर का वध कर में दिया, तो विष्णु ने स्वयं को प्रकट करते हुए सारी घटना वृन्दा को सुनाई। कुपित एवं क्षुब्ध वृन्दा ने इस कृत्य के लिए विष्ण की घोर भर्त्सना की और उन्हें पत्थर हो जाने का शाप दिया। इस पर विष्णु ने शाप स्वीकार करते हुए वृन्दा को वृक्ष बन जाने एवं स्वयं सदा उसकी छाया में रहने की बात कही। वही वृन्दा तुलसी है और विष्णु का पत्थर रूप शालिग्राम बना। इसी कारण विष्णु की पूजा के केवल तुलसी ही विष्णु के शीश पर अर्पित की जाती है, जबकि अन्य कोई पुष्प, पत्र एवं फल सभी उनके चरणों में समर्पित नहीं किए जाते हैं। इस कथा की की वैज्ञानिक व्याख्या इस प्रकार भी की जा याया सकती है। रोग पैदा करने वाले कीटाण दैत्य हैं। और उनको तुलसी प्राप्ति के बिना नष्ट नहीं का शेतीदिन लोगों को जा (चिकित्सा किया जा सकता। अतः तत्कालीन देवों ने वैज्ञानिक) के परामर्श से तुलसी के प्रयोग से मुक्ति दिलाई।। -: 2. तुलसी पूजा की प्राचीन विधि :- हिन्दू धर्म में तुलसी का आचन्त्य, दावक रूप का सर्वोच्च स्थान प्राप्त है। औषधीय गुणों से में परिपूर्ण इस वनस्पति का महत्व धार्मिक रूप से थे जुड़ जान पर और अधिक बढ़ गया है। तलसी पूजन पूजन का महत्व समाज में अपना विशेष स्थान अब भी बनाए हुए है। आदि काल स तुलसा की की महता अपने आप में विशेष रही है। एक । कथा के रूप में यह प्रचलित है। राजा भृगु से नार५ नारद ने कहा- 'हे राजन! तुलसी की जड़ को पूजन पूजना भगवान विष्णु की पूजा के समान है। पुल तुलसी का मूल प्रदेश भगवान विष्णु को प्रसन्न करने वाला है। हे राजन! तुलसी का पौधा जिस जाक घर में वर्तमान है, वह घर तीर्थ स्वरूप है और उस घर में यम के दूत कभी नहीं आते। यह सब पापों का नाश करने वाला, अभीष्ट फल को देने वाला है। जो मनुष्य तुलसी का पौधा लगाता है, वह यमराज को नहीं देखता। भगवती नर्मदा ९ का दर्शन, गंगा स्नान एवं तुलसी के पौधों का हैं साहचर्य यह तीनों समान रूप से पुण्यप्रद होते है। तुलसी का पौधा लगाने से, सींचने से, दर्शन स आर छूने से कायिक, वाचिक, मानसिक आदि सभी पाप नष्ट हो जाते हैं। जो प्राणी तुलसी के दल से भगवान शंकर का पूजन करते हैं, वह पुनः गर्भ में नहीं जाते नि:संदेह वे जीवनमुक्त हो जाते हैं। तुलसी के दल में पुष्कर आदि समस्त तीर्थ, गंगा आदि सम्पूर्ण नादियां और विष्णु प्रभृति सब देवता निवास करते हैं। तुलसी के साथ यानी तुलसी के पास जो अपना प्राण विसर्जन करता है, वह चाहे कितना बड़ा पापी क्यों न हो, उसको यमराज नही देख सकते। हे राजन! जहां तुलसी के वन की छाया हो, वहां पर पितरों के निमित्त दिया हुआ दान सर्वदा अक्षय होता है। आंवले के फल और तुलसी के दलों को पानी में मिलाकर जो प्राणी स्नान करते हैं, उनको गंगा स्नान का फल मिलता है। जो मनुष्य द्वादशी तिथि को तुलसी का दल तोडता है, वह रौरव नरक में वास करता है। 3. तुलसी की महिमा :- 'तुलसी' शब्द का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि जिस कसा से तुलना न की जा सक, वह तलसी ही है। तुलसी को हिन्दू धर्म में जगत जननी का पद प्राप्त है। इसे 'वृन्दा' भी कहा जाता है। तुलसी के महातम्यों एवं शक्ति के सूक्ष्म प्रभावों से पुराण भरे पड़े हैं। सर्वरोग नाशक पूजनीय तथा शक्ति संवर्द्धक इस औषधि को संभवतः प्रत्यक्ष देव माना जाना इसी तथ्य पर आधारित है, यह सस्ती, सुन्दर और उपयोगी वनस्पति संभवत मनुष्य के लिए वरदान है। 4. आध्यात्मिक रूप में क्या है तुलसी? :- तुलसी को संस्कृत में हरिप्रिया कहा हैं इसलिए हिमालय पर बद्रीनाथ पर केवल तुलसी पत्र ही चढ़ता है। इस औषधि की उत्पति से भगवान विष्णु का मनः सन्ताप दर हुआ इसी कारण यह हरिप्रिया है। ऐसा विश्वास है कि तुलसी की जड़ में सभी तीर्थ, मध्य में सभी देव-देवियां और ऊपरी शाखाओं में सभी वेद स्थित हैं। इस पौधों की पूजा विशेषकर स्त्रियां करती हैं। वैसे वर्ष भर तुलसी के थांवले का पूजन होता है परन्तु विशेष रूप से कार्तिक मास में इसे पूजते हैं। ऐसा कहा जाता है, जिसके मृत शरीर का दहन तुलसी की लकड़ी की अग्नि से किया जाता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है। उनका पुनर्जन्म नहीं होता। पद्म पुराण के अनुसार जहां तुलसी का एक पौधा होता है, वहां ब्रह्मा, विष्णु, महेश सभी देव निवास करते दवानवास करत हैं। आगे कहा गया है कि तुलसी की सेवा है। करने से महापातक भी उसी प्रकार नष्ट हो एवं जाते हैं जैसे सूर्य के उदय होने से अधंकार नष्ट ताजी नादियां हो जाता है। कहते हैं कि जिस प्रसाद में तुलसी । नहीं होती, उसे भगवान स्वीकार नहीं करते हैं। 7 अपना इस वनस्पति को प्रत्यक्ष देव मानने और खुले घर-घर में उसे लगाने, पूजा करने के पीछे देख संभवत यही कारण है कि यह सर्वदोष निवारण जगत छाया औषधि तथा सर्वसुलभ सर्वोपयोगी है। दक्षिण वातावरण में पवित्रता, प्रदूषण का शमन, श्रेष्ठ और घर-परिवार में आरोग्य की जड़ें मजबूत करने, किरणें प्राणी श्रद्धा तत्व को जीवित करने जैसे अनेक लाभ पौधों फल इसके हैं। तुलसी की सूक्ष्म एवं कारण शक्ति दष्टि अद्वितीय हैं। यह आत्मोन्नति का मार्ग दिखाती पजन है तथा गुणों की दृष्टि से अमूल्य संजीवनी बूटी में मिट्टी 5. तुलसी का वास्तविक परिचय एवं मिट्टी प्रकार :- तुलसी का पौधा सदैव हरा रहता है। 8, साधारण रूप से माच स जून तक इस रापित गुणों करते है। सितम्बर और अक्टूबर में यह फूलता तलसी है। सारा पौधा सुगंधित मंजरियों से लद जाता है। सर्दी के दिनों में इसके बीज पकते हैं। यह बारह मास किसी न किसी रूप में प्राप्त किया जा सकता है। तुलसी की सामान्यः निम्न , 1प्रजातियां पाई जाती हैं। करती सुन्दर 1. आसीमम अमरीकन (काली तुलसी), शोथगामरी 2. आसीमम बेसिकम (मरूआ करते तुलसी), मुन्जारिकी या सुरसा 3. आसीमम 2बेसिलिकम मिनियम 4. आसीमम ग्रेत्किम - * इसे इसलिए (राम तुलसी, वन तुलसी) आसीमम ' होता किलिमण्डचेरिकम (कर्पूर तुलसी)। 6. आसीमम सेक्टम 7. आसीमम विरिडी इन सभी प्रकारों में ऑसीमम सेक्टम प्रधान या तुलसी पवित्र तुलसी मानी जाता है। इसकी भी दो शूल प्रधान जातियां होती हैं- श्री तुलसी, जिसकी, 4वेद पत्तियां हरी होती है तथा कृष्णा तुलसी जिसकी लाभ पत्तियां नीलाभ-बैगनी रंग की होती है। श्री विकार तुलसी के पत्र तथा शाखाएं श्वेताभ होती हैं, मांसपेशियों जबकि कृष्णा तुलसी के पत्रदि कृष्ण रंग के यह , होते हैं। गुणधर्म की दृष्टि से काली तुलसी को उपयोगी लकड़ी श्रेष्ठ माना गया हैं। मूत्रदाह 6 तलसी का संग्रह .- आयर्वेद के मत में पुराण कब, कैसे तलसी पत्र, मल बीज इसके करता , उपयोगी अंग है। इन्हें सखाकर मखबंद पात्र में यह सखे शीतल सूखे शीतल स्थान पर रखा जाता है। इन्हें एक प्रकार सेवा वर्ष तक प्रयोग में लाया जा सकता है। सर्वत्र राजयक्षमा वैकल्पिक चिकित्सा विशेषांक एवं सर्वदा सुलभ होने से पत्रों का व्यवहार नष्ट ताजी अवस्था में किया जाना ही श्रेष्ठ है, ऐसा तुलसी आयुर्वेद का मत है। । 7 वास्तु के अनसार तलसी पौधा लगाना :खुले स्थान पर जहां आसानी से किसी व्यक्ति पीछे की उपस्थिति अनावश्यक रूप से न हो पवित्र निवारण जगत पर मंदिर या मकान के पर्व के एवं । दक्षिण दिशा के किनारे के कोने पर लगान , श्रेष्ठ होता है। जहां पूर्व दिशा से सर्य की , किरणें तलसी पर आती हैं। गमले में या 4-5 लाभ पौधों के झुण्ड में उगाना श्रेष्ठ है। पवित्रता की शक्ति दष्टि से मंदिर में दक्षिण दिशा की ओर तलसी दिखाती पजन का स्थल श्रेष्ठ है। मंदिर के पश्चिम भाग बूटी में उगाना निन्दनीय माना है। ज्यादा गीली मिट्टी में उगाना अहितकर माना है। पीली बाल एवं मिट्टी में इसे रोपना चाहिए। । औषधि की खान है तुलसी :- औषधीय रापित गुणों से सभी प्रकार के रोगों की नाशक शक्ति फूलता तलसी में पाई जाती है। इस मय उत्तं व जाता औषधि का रोगों पर विजय प्राप्त करना यह आश्चर्य की बात नहीं आयर्वेद के अनसार किया औषधीय गण निम्न प्रकार वर्णित है। निम्न , 1. प्राकृतिक रूप से यह कफ वातविकार नष्ट करती है, इसके स्थानीक लेपक रूप में व्रण, , शोथ, संधि, पीडा, मोच आदि में इसका लेप मरूआ करते है। आसीमम 2. अवसाद एवं लो ब्लड प्रेशर की स्थिति में ग्रेत्किम - * इसे त्वचा पर मलने से तुरन्त प्रभावी उपचार आसीमम ' होता है। शरीर के कृमियों में इसके लेप से । आराम मिलता है। इन 3. चरक के अनुसार यह अग्निमंदता, उदर शूल एवं आंत्रकृमियों में उपयोगी है। , 4. प्रवाहिका (डायरिया) में इसके बीज देने से जिसकी लाभ मिलता है। यह हृदयोतेजक है तथा रक्त विकार दूर करती है। खांसी, दमा तथा , मांसपेशियों एवं रीढ़ की हड्डी में जकड़न को यह शीघ्र दूर करती है। इसमें स्वरस बहुत उपयोगी है। स्वामी सच्चिदानन्द के अनुसार मूत्रदाह एवं विसर्जन में कठिनाई तथा ब्लेडर की सूजन एवं पथरी में बीज चूर्ण तुरन्त लाभ इसके करता हैं। कुष्ठ की यह सर्वश्रेष्ठ औषधि हैं। यह विषम ज्वर को मिटाती है। किसी भी प्रकार के ज्वर के चक्र को यह तुरन्त तोड़ती है। सर्वत्र राजयक्षमा (टी.बी.) में भी इसके प्रयोग सफल