आयुर्वेद के प्रवृत्तेक धन्वन्तरि

वैद्य मुरलीधर उपाध्याय प्राचीन मनीषियों एवं धर्माचार्यों ने जिस पर्व एवं त्योहारो की कल्पना की है, उनमें से एक त्योहर है धनतेरस, इसी को धन्वन्तरि त्रयोदशी भी कहते हैं। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन यह त्योहार मनाया जाता है। समुद्रमंथन के बाद इसी दिन क्षीर सागर से अमृत कलश के साथ भगवान धन्वन्तरि अवतरित हुए थे। धन्वन्तरि आरोग्य संपत्ति के दाता है, इसीलिए धनतेरस के दिन इनकी आराधना-उपासना की जाती है। प्राचीन समय में 'धन्वन्तरि त्रयोदशी' के रूप में मनाया जाने वाला यह त्योहर आगे चलकर समाज में धनतेरस के रूप में मनाया जाने लगा। इस दिन आयुर्वेद के प्रवर्तक आदि देववैद्य धन्वन्तरि की पूजा की जाती है, क्योंकि धन्वन्तरि ही एक ऐसे देव हुए हैं, जिनक लोकोपकारी कार्य आज भी वैद्य समाज के लिए लिए दिशा निर्देशक बने हुए हैं। भगवान धन्वन्तरि का अवतरण :- पौराणिक ग्रन्थों के अनुसार, भगवान धन्वन्तरि की उत्पत्ति समुद्र मंथन से हुई है। जिस समय देव-असुर संग्राम चल रहा था, उस समय देवताओं का एक ऐसे कुशल और शल्य-क्रिया में निपुण वैद्य की जरूरत थी, जो घायल देवताओं को चिकित्सा कर सके। इसलिए देवो की इच्छा को चरितार्थ करने के लिए लोकोपकारी भगवान धन्वन्तरि समुद्र-मंथनोपरांत अमृत से भरा कलश धारण किए हुए निकले। इन्हीं धन्वन्तरि ने देवासुर युद्ध में घायल देवों की चिकित्सा की थी और युद्ध के बाद भी देवों के वैद्य बनकर चिकित्सा द्वारा उन्हें निरोग और स्वस्थ करते रहे। अग्नि पुराण के अनुसार, भगवान धन्वन्तरि विश्व के आरोग्य और कल्याण के लिए इस पृथ्वी पर बार-बार जन्म लत रह हैकाशी के चन्द्रवंशी कुल में धन्व नामक एक राजा हुए थे, इन्ही के एक पुत्र थे धन्वन्तरि, जो एक कुशल वैटा के नाम से जाने जाते थे। वास्तव में जिस धन्वन्तरि का वैद्यक शास्त्र से प्रत्यक्ष सम्बन्ध रहा है, इन्हीं धन्वन्तरि के पुत्र और धन्व के प्रपौत्र दिवोदास धन्वन्तरि हैं, सुश्रुत संहिता में उल्लेख किया गया है। “अहम् हि धन्वन्तरि आदि देवो जरायुजः शल्यांगम् अगैरपरैरूपेतं प्राप्तेऽभि गो भूय सम्बन्ध मृत्युछ रोड मराणाम्। है। इस सम्बन्ध में इहो पदेष्टुम्॥' ** भारत के प्राणाचार्यइससे यह निष्कर्ष निकलता है कि दिवोदास । दास ग्रंथ में लिखा धन्वन्तरि ही आदि देव भगवान धन्वन्तरि है। पूर्व आया है कि जन्म में देवताओं की रोग चिकित्सा कर उन्हें प्राचीन काल आरोग्य प्रदान करते थे। वह मानव जाति के । कल्याण एवं आरोग्य के लिए इस पृथ्वी पर । अवतरित हुए हैं। आचार्य सुश्रुत भी इन्हीं ॥1॥ दिवोदास धन्वन्तरि के परम मेधावी शिष्य थे। अष्टांग आ के ज्ञाता :- दिवोदास उनको यज्ञ धन्वन्तरि अष्टांग आयुर्वेद के विद्वान एवं महान भाग प्रदान ओजस्वी चिकित्सक थे। उन्होंने आयुर्वेद को किया जाता आठ वर्गों में विभक्त करके इसकी रचना की। था। यज्ञ भाग प्रदान करने की विधि यह थी कि शल्यतंत्र, शालाक्यतंत्र, कायचिकित्सा, उस महापुरुष के नाम से यज्ञ आहुति डाली जाती कौमारभृत्य, भूतविद्या, अगंदतंत्र, रसायन तंत्र थी। धन्वन्तरि को भी यह महान गौरव प्राप्त हुआ और वाजीकरण तंत्र के रूप में विभाजित कर था। 'काश्यप संहिता' में भी धन्वन्तरि को इसे सरल और जनोपयोगी बनाया। इसके आहुति देने का लिए “धन्वन्तरये स्वाहा'' कहा अतिरिक्त इन्होंने पशु-पक्षियो और वृक्षों पर गया है और इसी मंत्र द्वारा धनतेरस के दिन आधारित आयर्वेद के अंगों की रचना कीभगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। शालिदोम संहिता में पशुओं की चिकित्सा का धनतेरस के साथ आयुर्वेद का सामंजस्य कई वर्णन मिलता है, तो वृक्षायुर्वेद में वृक्षों की नया प्रकार से किया जा सकता हैआरोग्य का संदेश उत्पत्ति, सुरक्षा और उनकी देखभाल का वर्णन देना दोनों का उद्देश्य है। शारीरिक दृष्टि से भी स्वास्थ्य चाहिए और आर्थिक दृष्टि से भी दिवोदास धन्वन्तरि की विद्वता का आभास तो भगवान धन्वन्तरि आयुर्वेद के माध्यम से इसी से मिलता है कि महान ऋषि विश्वामित्र ने शारीरिक, मानसिक विकार रूपी अंधकार को अपने पत्र सश्रत की वाराणसी जाकर दिवोदास दर कर जीवन में स्वास्थ्य का प्रकाश फैलाते हैं। धन्वन्तरि से आयुर्वेद की शिक्षा ग्रहण करने को और निरोग शरीर से ही हम धनोपार्जन कर कहा। इससे यह भी निष्कर्ष निकलता है कि सकते हैं। दिवोदास धन्वन्तरि विद्या पीठ का संचालन भी औषधिदान का महत्व :- धनतेरस के दिन करते थेइन्हान हा शल्य प्रधान आयुवद परपरा आयुर्वेद जगत में देववैद्य भगवान धन्वन्तरि का प्रचलित की, जिसे धन्वन्तरि संप्रदाय कहा जाता हैजन्मोत्सव मनाया जाता है। इस दिन चिकित्सा शैल में औषधिदान का विशेष महत्व है। यही ९ लोकहित की भावना :- ‘विष्णुसहस्त्रनाम' कारण है कि आज के दिन रोगियों की में उल्लेख मिलता है कि ब्रह्मा ने सबसे पहले चिकित्सा, विशेषकर दीन-दुखियों की निशुल्क आयुर्वेद की रचना की और सूर्य को आयुर्वेद का सेवा की जाती है। हालांकि इस परंपरा का ज्ञान प्रदान किया। सूर्य ने अपने शिष्य धन्वन्तरि निर्वाह आज कुछ लोग ही करते हैं। आचार्य को इसका ज्ञान दिया। महाभारत के अनुसार चरक ने भी धनतेरस के दिन धन्वन्तरि इन्हीं धन्वन्तरि ने दिवोदास के रूप में जन्म जन्मोत्सव पर औषधिरान करने के महत्व का लेकर वाराणसी की स्थापना इन्द्र की आज्ञा से उल्लेख किया है। की थी। खैर, जो भी हो, दिवोदास धन्वन्तरि चाहे देवता रहे हों अथवा वैज्ञानिक या कृपावतार भगवान धन्वन्तरि की अंनत महिमा उडने आरोग्य शास्त्र का प्रवर्तन कर जीवों आलौकिक मानव, किन्त इतना तो निश्चित है का प्रदान कल्याण कियाइनकी सबसे बड़ी कि उन्होंने लोक कल्याण की भाना और विशेषता यह है कि श्रद्धा-भक्ति पर्वक इनका जीवनयात्रा के लिा गगमति का अधतपर्व या स्मरण करने मात्र से सभी प्रकार के रोग, शोक, साधन क्रमबद्ध कर एक आदर्श प्रस्तुत किया है। जानि तुत किया हैआधि-व्याधि दूर हो जाते हैं-