आनन्दमय और दीर्घजीवन दाता है वायु तत्व

                     आनन्दमय और दीर्घजीवन दाता है वायु तत्व 


 


शरीर रूपी नगर में वायु राजा के समान है। शरीर के भीतर गई वायु प्राणों का संचार करती है। वायु तत्व ही जीवन है। यह तत्व उनाहत चक्र में स्थित है। यह तत्व मह:लोक का प्रतिनिधि है। इसका गुण स्पर्श है। त्वचा इसकी ज्ञानेन्द्रिय है तथा हाथ इसकी कर्मेन्द्रिय है। इसकी आकृति गोल या षट्कोण है। इसका रंग हरा या बादल जैसा है। स्वाद खट्टा होता है। नासा छिद्र में तिरछा बहता है। इसका प्रवाह समय 8 मिनट है और चंचलता प्रधान है। उत्तर । दिशा में वायु तत्व की प्रधानता होती है। यह विज्ञानमय कोश का प्रतिनिधित्व करता है। यह उदान प्राण से सम्बन्धित है। वायु तत्व हमारे दैनिक जीवन में स्वास्थ्य के मामले में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आयर्वेद ने इसे बहुत महत्व दिया है। इसकी प्रकृति रजोगुणी है। इसका स्वभाव उड़ाने वाला है। वायु तत्व की विशेषता है धारण करना, चलना, फेंकना, सिकोड़ना, फैलाना, घर/परिवेश को गर्म/ठण्डा रखना। वात व्याधि, दमा आदि रोग इसकी कमी अधिकता से होते हैं। वायु तत्व के चलते समय निम्नलिखित 7 नक्षत्र में अपना प्रभाव छोड़ते हैं जैसे- विशाखा, उत्तरा फाल्गुणी, हस्त्र, चित्रा, पुनर्वसु, अश्विनी तथा मृगशिर। इस तत्व के बारे में कहा है- पवन भई आकाश सों, अग्नि वायु सों होय। पावक वक से पानी भयो-पानी सों धरती होय॥ चरण दास का मत हैहरो रंग है वायु को, तिरछी चालै सोय। आठ अंगुल श्वास में, रणजीत कर जोय॥ वायु प्रधान व्यक्ति की विशेषताएं :- 1. वायु प्रधान व्यक्ति में चंचलता अधिक आंधक होती है, वह एक जगह ज्यादा देर टिक कर देर टिक कर नहीं बैठता। वह घूमने वाला होता है। 2. वह दुबला-पतला, लम्बे कद का होता है। वह हरा रंग पसन्द करता है। 3 इस तत्व में जन्म लेने वाला दष्ट चित्त, दंगा फसादी, मिथ्यावादीविश्वासघाती, कर्कश वाणी बोलने वाला होता है। यह ज्यादा बोलता है। 4. वह फुर्तीला, कर्मठ, कुछ न कुछ छेड़छाड़ 6व उलट-पुलट करने वाला होता है। 5. उसके मन में खलबली मची रहती है। वह हम काम में उतावलापन दिखाता है। उसमें उद्वेग, अशान्ति, उच्चाटन व अस्थिरता होती श्वास दिखाई हा 6. बेपैंदी के लोटे की तरह लुढ़कता बदलता दिखे वायु रहता है। उसका निर्णय पक्का नहीं होता। (7. उसकी रुचि क्रर कार्य करने में होती है। 8, वायु तत्व में पैदा होने वाला बच्चा पीला, कमजोर व झूठ बोलने वाला होता है। वाय तत्व की पहचान :- 1. गति से :- ‘2यदि नासा छिद्र से श्वास तिरछा । वायु के चले तो वह वायु तत्व है। उसका आठ अंगुल तक प्रवाह होता है। गर्म 2. स्वाद से :- वायु तत्व के चलते समय वाय स्वाद खट्टा होता है। 3. आकार से :- किसी साफ दर्पण/सलेट को लेकर उस पर जोर से श्वास छोड़े। आकार वायु 1गोल या षट्कोण जैसा बनेगा तो समझें कि अब वायु तत्व चल रहा है। कभी-कभी लम्बी और गोल आकति भी बनती है, वह भी वाय 3तत्व है। 4 काँच की गोली से :- काँच की गोली पर ) h हरी, नीली, पीली, सफेद, लाल रंग की th a पनियां लपे। उन्हें जेल में रखें। तत्व का पता पन्नियां लपेटें। उन्हें जेब में रखें। तत्व का पता करने के लिए मन को शान्त करें और सोचें कौन-सी गोली निकालनी है। वही गोली हाथ में आएगी जो तत्व चल रहा है। अर्थात् हरे रंग की गोली हाथ लगेगी। 5. मित्र से पछकर :- अपने आप पता न लगे तो मित्र से पूछे कि आपके मन में किस रंग का फूल आ रहा है या पत्ते का रंग आ रहा है। 6. षण्मुखीमुद्रा से :- हाथों के अंगूठों से कान के छेद बन्द करें। तर्जनियों से आँखें, मध्यमा से नाक बन्द करें, अनामिका ऊपर के होंठ पर, छोटी अंगुली निचले होंठ पर रखें। श्वास भरकर अपने भीतर देखें कौन-सा रंग दिखाई दे रहा है। यदि हरा का काला-सा रंग दिखे तो समझे कि वायु-तत्व चल रहा है। वायु तत्व का फल :- 1. कोई भी स्वर (चन्द/सूर्य) चले और वायु तत्व बह रहा हो तो उस समय गमन करने वाला विजय प्राप्त करता है। ‘ज्ञान स्वरोदय में चरणदास जी कहते हैं2. वायु तत्व में गर्भ रहे तो लड़की होगी। वायु तत्व स्वर दाहिने, करै पुरुष जब भोग। गर्म रहे जो ता समय, देही आवै रोग॥ वाय तत्त्व चालै स्वर संगा। जग भयमान होय कुछ दंगा॥ अर्धकाल थोड़ा-सा बरसै। वायु तत्व जो स्वर में दरसै॥ 1. भय-क्लेश होय देश में, विग्रह फैले अंत। 2. पड़े काल परजा दुःखी, चले वायु का तत्त। 3. वायु तत्व चलने पर जाँघ की चोट लगने की सम्भावना है। 4. दाएं स्वर में वायु तत्व चले तो उसे राहु ग्रह मानें। बाएं स्वर में वायु तत्व चले तो बृहस्पति मानें। बाएं स्वर में वाय तत्व च जाने। 5, वायु तत्व में चर कार्य (अस्थायी. गतिशील) सिद्ध होते हैं। 6. मारण, उच्चाटन के कार्य इसी तत्व में घटित होते हैं। 7. इस तत्व में कार्य की सिद्धि नहीं होती, मौखिक आश्वासन से बात टल जाती है। वाय वास्तु को उड़ा देती है वैसे ही कार्य फल को यह तत्व उड़ा देता है। 8. लम्बे समय तक बीमार रहने वाले व्यक्ति के बारे में यदि प्रश्न पूछा जाए और उस समय । वायु तत्व चले तो उसका उत्तर यह होगा कि वह रोगी दु:ख भोगकर मर जाएगा। 9. प्रदेश में गया व्यक्ति जहां भी दु:खी वह जहां गया था अब वहां नहीं है। 10. चोरी के बारे में पूछा गया तो माल मिलेगा। केवल बात सुनने में आएगी कि चोरी किसने की। 11. बाजार के बारे में प्रश्न होगा तो मन्दी में बाजार जाएगा, नुकसान होगा। 12. इस तत्व के चलते किसी को ऋण दिया जाएगा तो पूरा नहीं लौटेगा। 13. अपराध करके जो भागेगा वह पकड़ा नहीं जाएगा। 14. इस तत्व के चलते कहीं जाने की इच्छा मन में उठती है। वायु तत्व की साधना :- वायु मुद्रा - तर्जनी को मोड़कर अंगठे के नीचे की गददी पर लगा दें और अंगूठे से दबा दें। इसका अभ्यास 48 मिनट तक दोनों हाथों से लगायें तभी इसका पूर्ण प्रभाव आएगा। 51 तरह की वाय पर नियंत्रण होगा। प्लाविनी :- प्राणायाम - पद्मासन लगा कर बैठे। हाथ घुटनों पर रखें। मुंह से सांस भरकर कर घंट-घूट निगलें। ऐसा तब तक करें जब तक पेट भर न जाए। फिर आगे झुककर जीभ बाहर निकाल कर बाहर फेकें। इससे भोजन की आवश्यकता नहीं रहेगी। गहरी सांस व अन्य प्राणायामों से इस तत्व को बढ़ाया जा सकता है। प्राण की कमी व उससे सम्बन्धी रोगों को दूर किया जा सकता है। वायु तत्व की धारणा :- वायु (प्राण) की कमी से अनेक रोग बढ़ते हैं। जैसे- पेट में गैस, उदरशूल, अपच, कब्ज, अरुचि, शरीर में अकड़न, गठिया, पक्षाघात आदि। इसकी कार नष्ट होते हैं। अनात ? धारणा सिद्धि से सभी वात विकार नष्ट होते हैं। अनाहत चक्र में छह कोण वाले धुएं जैसे रंग षट्कोण में ‘यं] बीज मंत्र को अंकित करके। ईश्वर का ध्यान करें। इसकी सिद्धि से शरीर हल्का होता है और अंग संचालन की क्रिया नियमित होती है। साधक के पांवों में इतनी शक्ति भर जाती है कि वह बहुत तेजी से चलता हुआ भी थकेगा नहीं। वायु तत्व का ध्यान :- विधि - वज्रासन में बैठे। हथेलियों का पृष्ठ भाग जंघाओं पर रखें। नेत्र बन्द या बीज वाले गोल/षट्कोण वाले एवं हरी आभा वाले वायु तत्व का हृदय में ध्यान करें। इससे आकाश गमन तथा पक्षियों, की तरह उड़ने की क्षमता आती है। ऐसा तभी होगा जब वायु तत्व सिद्ध होगा। वायु तत्व पर त्राटक :वायु के प्रतीक इस षट्कोण को जो हरी आभा वाला/मेघ (बादल) वर्ण का है, आठ अंगुल दूरी पर रखें। येIX बीज मंत्र का जप करते रहें। 2 घण्टे 24 मिनट तक त्राटक सिद्ध होगा। वायु मण्डल का चिन्तन :- हृदय से लेकर नासिका तक वायु तत्व का स्थान है। वायु मण्डल का चिन्तन करते हुए हृदय में एकाग्र हो। दो घंटे तक चिन्तन करें, 'मैं वायु तत्व हो। मेरे भीतर प्राण शक्ति विचरण कर रही है। मैं विश्व प्राण से जुड़ा हूं। मेरा शुभ चिन्तन समूचे विश्व को प्रभावित कर रहा है। शीतल, मन्द पवन मेरे अन्दर स्फूर्ति व उत्साह को भर रही है। प्राण प्रवाहित हो रहा है। सूर्य से मुझे प्राण , की प्राप्ति हो रही है। उसी की शक्ति से मेरे तन-मन के कार्यकलाप संचालित होते हैं। उसी के सहारे मैं दीर्घजीवी होता है। प्रसन्नचित्त रहता हूं।'