आयुर्वेद में आहार की भूमिका

_ _ ।। • डॉ. गिरधारी लाल मिश्र -_ विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यू.एच.ओ.) द्वारा जीवन की सभी आवश्यक क्रियाओं में शरीर के अर्थात् अन्न (आहार) ही प्राणी मात्र का प्राण विश्व की 120 चिकित्सा पद्धतियां मान्यता प्राप्त जीव कोष हमेशा टूटते रहते हैं, जिससे शक्ति का है। जीवन की गाड़ी को चलाने वाला पेट्रोल हैं, जिनमें से शायद ही किसी अन्य पद्धति में यह क्षय होता रहता है। आहार जीवकोषों का निर्माण आहार ही हैतीव्र भूख लगने पर आहार की अध्याय हो, जो विश्व की चिकित्सा पद्धतियों करता है, प्राणरसिक एवं शक्तिदायक है तथा महत्ता स्पष्ट रूप से समझ में आती है। भूख जहां की जनक-मातृ पद्धति प्राचीनतम, निर्दोषतम् बल, वर्ण एवं योग का। सूत्रधार हैजिस प्रकार बेचैनी पैदा करती है, वहीं भोजन के बाद इससे चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में आचार्य चरक का वायु और जल जीवन के लिए आवश्यक है, एक तुष्टिदायक तृप्ति मिलती है। भरपेट भोजन चातुर्य एवं गौरव हैंआहार भी उसी प्रकार उतना ही आवश्यक है। करने पर शरीर में उत्साह और स्फूर्ति उत्पन्न होने त्रय उपस्तंभ इति आहार स्वप्नो 'आयुर्वेद के महर्षियों' ने पदार्थ विज्ञान पर लगती है। इस प्रकार आहार के 3 कार्य होते हैंतहाचर्यमिति (चस 11/१६) । अनुसंधान करके पदार्थ के 3 बुनियादी तत्वों की 1. तृप्ति, 2. शरीर की क्षीणता की पूर्ति और, - खोजकर के सिद्धान्त प्रचलित किए, जिन 3 3. शारीरिक संवर्धन। आहार, स्वप्न (निद्रा) और ब्रह्मचर्य ये शरीर के खि 5 तत्वों पृथ्वी, जल और वायु पर शरीर निर्भर रहता, आहार शद्धि सत्व शद्धि' :- आहार यदि 3 उपस्तंभ (शरीर को धारण करने वाले) कहें । गए हैं। इन्हें उपस्तंभ इसलिए कहा गया है कि - है। आहार पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है। शुद्ध पवित्र होगा, तो हमारा मन भी पवित्र होगा। शरीर का प्रथम धारक तो प्रारब्ध (पर्वजन्मकत हमारे जीवन की गाड़ी का पेट्रोल किस प्रकार एक कहावत है- ‘जैसा खाए अन्न, वैसा रहे कर्म) है। मनुष्य का जन्म-मरण उसके हाथों में का हो ताकि यह जीवन गाड़ी अबाधगति से मन।' हम जैसा आहार ग्रहण करेंगे, वैसा ही नहीं। कब, कहां, कैसे, किस मनुष्य का जन्म या गतिशील रहे उसका प्रथम आधार आहार ही है। हमारा आचरण-व्यवहार होगाग्रहण किया हुआ मृत्यु हो, यह प्रारब्ध का विषय है। । पर यदि हम विचार करें तो विगत दो दशकों के आहार 3 भागों में विभक्त हैं- 1. स्थूल आहार हानि लाभु जीवनु मरन् जस अपजस विधि लाइफस्टाइल में भारी बदलाव आया है। खाने की अंश से मल बनता है, 2. मध्यम अंश से चीज, खाने का ढंग, खाने का समय सब कुछ र हानि :- ये 6 विधि (विधाता-कर्म फलानुसार) 1 एस-रक्तादि धातुएं बनती हैं, जो देह को धारण के हाथ में हैं। हम जिस लोक में रहते हैं उसका 'बदल गया है, उस बदली लाइफस्टाइल ने हमारे किरती हैं तथा 3. सूक्ष्म अंश से मन की पुष्टि में होती है। जिस प्रकार दही को मथने पर उसका नाम मृत्युलोक है, अतः यहां सबके लिए मृत्यु स्वास्थ्य का इतने खतर में डाल दिया है कि अवश्यभावी है। चिकित्सक के प्रयत्न करने से चिकित्सा जगत के विचारशील, चिन्तन सूक्ष्म अश घृत के रूप में ऊपर आ जाता है, उसी प्रकार अन्न के सूक्ष्म अंश से मन बनता है। अत: असाध्य रोगी भी गतायषु न होने पर स्वास्थ्य चिकित्सक चिन्तित है कि लाइफ स्टाइल को लाभ प्राप्त करते हैं, अन्यथा ‘अपि धन्वन्तरि कैसे रोक जाए। आज प्रत्येक व्यक्ति कम्पनी वैद्यः किं करोति गतायषुः' वैद्य धन्वन्तरि भी क्वालिटी ब्राण्ड से अवगत है तथा कपड़े, जूते गतायषु (जिसकी आयु शेष नहीं रह गई है) को मोबाइल, टी.वी., फ्रिज आदि कुछ भी खरीदते आयु प्रदान नहीं कर सकतेजैसे दीपक में तेल हुए इसका ध्यान रखती है पर जब आहार की समाप्त होने पर वह बुझ जाता है। बात आती है तो फास्ट फूड, जंक फूड के रूप शरीर का अर्थ है ‘शीर्यते इति शरीरम' अर्थात में कुछ भी चलता है। ब्रेड, अण्डा, बिस्कुट, जो नाश को प्राप्त होता है वह शरीर है, अतः 'सेण्डवीच, पिज्जा, बर्गर, पकोड़ा, समोसा, शरीर को धारण करने में शरीर को स्वस्थ बनाये चाऊमीन, मसालदार चटपटी चीजें आदि गरिष्ठ रखने में आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य ये 3 ही भोजन है जो देर से पचते हैं जिन्हें आयुर्वेद को ब्रह्मचर्य (उष्ण स्तम्भ) हैं जो शरीर को स्वस्थ, अनुसार कुभोजन कहा है जो शरीर को ऊर्जा नहीं निरोग और हृष्ट-पुष्ट रखकर दीर्घायु प्रदान करते रोग के आगमन की खुलन-खुली छूट देता हैशरीर के साथ मन भी अन्नमय-आहारमय हैं। आचार्य चरक के शब्दों में आयुर्वेद को और यह हैरान करने की बात है कि आयुर्वद् के आहार से शरीर के साथ मन भी सबल होता है, सर्वोपरि प्राचीनतम अनुसंधान है। देश में स्वास्थ्य की अनदेखी फैशन का रूप ले मन की शक्ति बढ़ने लगती है। शरीर के तीन उपस्तम्भ - 1. आहार, 24 रहा है। । |यहां उल्लेखनीय है कि खाद्य-अखाद्य को निद्रा, 3. ब्रह्मचर्य।। आयुर्वेद चरक के शब्दों में-देहो आहार लेकर पश्चिमी देशों में जिस प्रणाली से विचार 1. आहार :- आहार ही शरीर का संचालन सम्भव' अर्थात् शरीर आहार से ही संभव है। किया गया है, वह सर्वांगपर्ण नहीं हैउन्होंने किरता है, सम्पूर्ण शरीर को विकसित करता है।