ऋतुचर्या का अर्थ है ऋतु के अनुसार ही पथ्यापथ्य पित्त दोष :- पित्त दोष वर्षा ऋतु में एकत्रित हो का सेवन करना अथवा ऋतु के अनुसार ही चेष्टा जाता है तथा शरत ऋतु के अम्लीय वातावरण में और जीवनचर्या का पालन करना। पूर्ण वर्ष को इसका प्रकोप पाचन क्रिया में आई कमजोरी के आयुर्वेद में दो काल में विभक्त किया गया रूप में सामने आता है। यह वर्षा ऋतु के बाद गर्मी है-आदान काल और विसर्ग काल। आदान काल में के पुनः प्रकट होने पर शरीर में बढ़ कर विकृति पृथ्वी का उत्तरी छोर सूर्य की तरु झुक जाता है। वैटा करता है। पृथ्वी की इस क्रिया के कारण धरती पर सूर्य की गति उत्तर की ओर होती है। इस कारण इसे कफ दोष :- शीत ऋतु में शरीर में एकत्रित होती तो है जब ठंडक और नमी दोनों वातावरण में पवन, उत्तरायण (आयन अर्थात् गति) भी कहा जाता है। मेघ एवं वर्षा के कारण अधिक मात्रा में हो जाते आदान का अर्थ है ‘ले लेना'। यह वह काल है६ हैं। यह शरीर में ग्रीष्म ऋतु में बढ़ जाता है जब जिसमें सूर्य एवं वायु अपने चरम पर आते हैं। इस गर्मी के कारण यह पिघलने लगता है। काल में सूर्य पृथ्वी की सब ऊर्जा और ठंडक ले लेता है अतः इस समय में शरीर में कमजोरी आने छह ऋतुएं और उनमें पथ्यापथ्य व जीवनचर्या लगती है। दूसरा काल है विसर्ग काल, जिसमें पथ्यापथ्य :- मीठे, खट्टे और लवन युक्त पदार्थ पृथ्वी का दक्षिण छोर सूर्य की ओर मुखरित होता लेना इस ऋतु में हितकर है। हेमंत ऋतु में पाचन है। सूर्य की गति दक्षिण की ओर होती है इसलिए क्रिया प्रखर हो जाती है। बढ़ा हुआ वात ठंड के यह दक्षिणायन भी कहा जाता है। इसे विसर्ग काल कारण अवरोधित हो जाता है और यह शरीर में • कहा जाता है जिसका अर्थ है ‘प्रदान करना'। इस धातुओं का नाश कर सकता है। अधिक मीठे, ' १ सूर्य धरता का ऊजा प्रदान करता हैअम्लीय और तिक्त पदार्थों का सेवन हितकर है। विसर्ग काल में चंद्र प्रधान होता है। ऐसा प्रतीत गेह, बेसन, दूध से बने पदार्थ, गन्ने के रस से बने होता है मानो यह संपूर्ण धरा पर नियंत्रण किए हुए पदार्थ, मकाई, खाद्य तेल का सेवन इस ऋतु में हैं। सब वनस्पति और प्राणियों को चंद्र पोषण प्रदान हितकर है। करता हैधरती का मघ, वर्षा और पवन के कारण जीवनचर्या :- तेल द्वारा की गयी मालिश, केसर, ठंडक मिलती है। एक वर्ष में दो आयन होते कमकम अथवा बेसन से बना उब्वर्तन का प्रयोग हैं-उत्तरायण और दक्षिणायन एवं इनके कारण वर्ष करना, नियमित हल्का व्यायाम, नित्यप्रति धूप का में छह ऋतुएं होती हैं और हर काल में तीन ऋतुएं सेवन हितकारी है। चर्म, रेशम और ऊन से बने होती हैं। आदान काल में- शिशिर, वसंत और कपड़ों को पहनना इस ऋतु में उचित है। ग्रीष्म जबकि विसर्ग काल में वर्षा, शरत और वसंत ऋतु :- इस ऋतु में सूर्य की तीक्ष्णता बढ़ने हेमंत। हर ऋतु दो माह की अवधि लिए हुए है। से कफ पिघलने लगता है जिस कारण शरीर की ऋतु और तीन दोष अग्नि खास तौर पर जठराग्नि मंद पड़ जाती है। वात दोष :- ग्रीष्म ऋतु में एकत्रित होता है जब पथ्यापथ्य :- जौ, शहद, आम का रस लेना इस शोषण करने वाली गर्मी में पाई जाती है और वर्षा ऋतु में हितकर हैकिण्वित आसव, अरिस्ट ऋतु के काल में यह पाचन क्रिया को कमजोर कर अथवा काढा या फिर गन्ने का रस लेना इस ऋतु देती है। वातावरण में भी अम्लीय और वातज में लाभकारी है। मुश्किल से पचने वाले ठोस, ठंडे, प्रकोप देखने को मिलता है जब सूखी धरती पर मीठे, अम्लीय, वसायुक्त, पदार्थ नहीं लेने चाहिए। बारिश पड़ने से फंसी हुई वायु धरती से निकलती तो जीवनचर्या :- व्यायाम, सुखी घर्षण वाली है तथा धरती की सतह को अम्लीय बना देती है। मालिश, नास्य, मालिश के बाद कपूर, चंदन और कुमकुम युक्त पानी से स्नान, इस ऋतु में करने योग्य हैइस ऋतु में दिन में अतिरिक्त स्नान नहीं करना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु :- इस ऋतु में सूर्य की किरणों की तीक्ष्णता दिन-प्रतिदिन बढ़ती जाती है। कफ में कमी आ जाती है तथा वात लगातार बढ़ता है। पथ्यापथ्य :- मीठे, हल्के और तरल पदार्थ लेना हितकर है। ठंडे पानी का सेवन गर्मी के समय हितकारी है। ठंडाई और पानक पंचकर जो पांच प्रकार के मधुर पदार्थों से बना है, इनका सेवन हो करना चाहिए। शराब का सेवन इस ऋतु में निषिद्ध में । है क्योंकि इससे शरीर में कमजोरी और जलन के उत्पन्न होती है। गर्मी विकृति जीवनचर्या - शरीर को चंदन का लेप लगाकर स्नान करने से इस ऋतु में लाभ मिलता है। ठंडी जगह पर वास करना उचित है तथा हल्के वस्त्र होती तो धारण करना उपयुक्त रहता है। पवन, जाते वर्षा ऋतु :- इस ऋतु में पाचन शक्ति और भी जब क्षीण हो जाती है। सब दोषों की विकृति के कारण पाचन क्रिया की कमजोरी अधिक बढ़ जाती है। इसलिए जठराग्नि को प्रदीप्त करना तथा दोषों का शमन करना आयुर्वेद में सर्वथा महत्वपूर्ण है। पदार्थ पथ्यापथ्य :- जठराग्नि को प्रदीप्त करने के लिए पाचन के आसानी से पचने वाले आहार का सेवन करना में • चाहिए। दालें, सब्जियों का सूप, पुराना अन्न, मीठे, ' पतला दही इस ऋतु में लिया जा सकता है। । जीवनचयो :- पंचकर्म की शुद्धि क्रियाएं. बने सुगंधियों का प्रयोग भी इस ऋतु में करने योग्य है। में दिन में सोना, अत्यधिक थकान और धूप में घूमना इस ऋतु में वर्जित कार्य हैं। केसर, शरद ऋतु :- वर्षा ऋतु में पित्त का संचय शरीर में प्रयोग होता है। भोजन में तिक्त, मधर, कशाय पदारतों का का सेवन करना हितकर हबने पथ्यापथ्य :- आसानी से पचने वाले भोजन जैसे चावल, हरा चना, आमला, शहद, शर्करा का सेवन बढ़ने हितकर है। भारी, गरिष्ट भोजन का सेवन, दही, की तेल और शराब का सेवन इस ऋतु में वर्जित है। जीवनचर्या :- चंदन के साथ उद्वर्तन, गर्म पानी से इस स्नान और मोती से बनी आभूषण प्रयोग करना इस अरिस्ट ऋतु में सार्थक है। ऋतु पाचन तंत्र में किसी गड़बड़ी के कारण भोजन ठंडे, न पचने को अजीर्ण या अपच कहते हैं। कई बार । समय-असमय भोजन करने से, कभी-भी, वाली कहीं भी, कुछ भी खाने-पीने तथा बार-बार खाते रहने से पहले खाया हुआ भोजन ठीक से पच नहीं पाता है और दूसरा भोजन पेट में पहुंच जाता है। गोभी, गाजर, प्याज, लौकी, तुरई, मटर, हरी तवर, 12, भोजन रुचिपूर्वक, प्रसन्न मन से मौन, शांत व ऐसे में पाचनतंत्र भोजन को पूर्ण रूप से नहीं पचा चोला फली, मूली मोगरी, हरी हल्दी, ग्वारपाठा निश्चिंत होकर प्रभु का प्रसाद समझकर करना पाता जो अजीर्ण का मुख्य कारण है। अधिक आदि को हल्के गरम पानी में धोकर काम में लें। चाहिए जिससे बल व शक्ति की वृद्धि हो। भोजन तला-भुना या मिर्च मसाले युक्त भोजन के सेवन सब्जियों को ज्यादा देर तक पानी में न रखें। में त्रुटियां, निकालकर, क्षोभ, क्रोध व दु:खी मन से से भी अजीर्ण या अपच हो जाता है। इस रोग में 3. वेजीटेबल सैंडविच :- पत्ता गोभी के पान में अनादरपूर्वक किया हुआ भोजन उल्टा प्रभाव रोगी को भूख नहीं लगती, खट्टी डकारे आती है, उपर्युक्त सब्जियों के पत्ते तथा कच्ची सब्जियों के डालता है। मनोभावों व विचारों का पाचन शक्ति छाती में तेज जलन होती है, पेट में भारीपन महसूस टकडे आदि भरकर सैंडविच की तरह गोल बनाएं। पर प्रभाव पड़ता है। होता है तथा बचना-सा होता रहता हैरागा को किसी भी प्रकार के मसाले व ब्रेड का उपयोग न 13. भोजन के साथ या भोजन के बाद एक घंटे पसीना अधिक आता है, नींद भी नहीं आती और तक पानी न पिएंभोजन में किसी भी प्रकार की कभी-कभी अतिसार-दस्त भी होता है। 4. भुनी हुई सब्जी :- सूरण (जिमीकंद) कद्दू, खटाई या मीठा न लें। भोजन में हल्दी, धनिया, आहार-चर्या :- हेमंत ऋतु में अग्नि की प्रबलता प्याज, कोई भी एक आखी दाल (मुंग, अरहर जीरा, राई, मेथी, सौंफ, मीठा नीम के अलावा कोई रहती है अतः स्निग्धा पदार्थ, अम्ल रस, दूधा, , आदि), गाजर या शक्करकंद सप्रमाण लेकर पानी मसाला न लेवें। यदि नहीं चल सकता हो तो गन्ना, गरम बचावल का भात, गरम जल का सेवन वन के साथ स्टील के बर्तन में पकाएं। यह सूखी भाजी मामूली नमक मिला लें। भोजन के बाद 30-60 । करना चाहिए। इन दिनों पालक मेथी, गाजर, 5 जर की तरह होनी चाहिए। तेल का बघार न दें। गरम मिनट आराम जरूर करेंटमाटर का सूप, अदरक लहसुन, गुड़ और राजगीर सब्जी में एक या दो चम्मच कच्चा तेल डालें। 14, मैदा से बने पदार्थ, तले हुए पदार्थों, शक्कर, तिली के लड्डू, खजूर, ड्राई फ्रट्स, गेहूं और चना , हल्दी, सूखा धनिया व अच्छा लगे तो नमक डालें नमक, डबल पॉलिश वाले चावल, मैदा, सोडा, के मिश्रण के रोटी खाना फायदेमंद होता है। किन्तु अन्य मसाले कदापि नहीं। रिफाइन्ड तेल और पाश्चराइज्ड दूध का उपयोग न विहार-चर्या :- इन दिनों तेल मालिश, उबटन, उबटन, 5. विशिष्ट सब्जी :- सूरण (जिमीकंद), कद्दू, करें। शक्कर के स्थान पर बूरा, गुड़, शहद, गन्ने सिर पर तेल लगाना, धूप सेवन करना, उष्ण गर्भ प्याज, हरी साबुत दाल, कड़क पक्के केले के का रस प्रयोग करें। गृह में रहना, वाहन शयन और आसन के कपड़े छिलके (खास लेना) गाजर और शक्करकंद की 15. ताजा आंवले न मिलें तो सूखे आंवले का घर ढंक कर रखना, ऊनी और रुई के बने कपड़ों का ॥ उपयुक्त विधिनुसार सब्जी बनावें। आलू और तेल पर बनाया हुआ पाउडर का एक चम्मच रात को प्रयोग करना, शरीर पर भरी और गरम कपड़े धारण न डालें। आधे कप पानी में भिगो कर सुबह पियें।करना, हेमंत ऋतु में वाट का कोप रहता है तथा 6. चटनी :- पत्ता गोभी, ककड़ी, प्याज, हरा 16. युवा रहने के लिए ताजा फलों एवं सब्जियों वातावरण शीतल होने से बचने का प्रयास करना करना धनिया, खोपरा, गाजर, पोदीना, मेथी की भाजी, का प्रयोग अधिकाधिक प्राकृतिक रूप में करना ही चाहिए। इस ऋतु में हमें पूरे साल की शक्ति संचित नाचत मीठे नीम आदि की बनावें। जो वस्तु न मिले या न उचित है। बासी फल, सब्जी, बेमौसम के फलों का करने का अवसर मिलता है और इन दिनों हृदय, जाने नो ने उपयोग कभी न करें। श्वास, कफ प्रवृत्ति के लोगों को बचाव करना 7. सूप :- लौकी, पालक, तुरई, टमाटर आदि को 17. सदा निरोग रहने के लिए मन की विशुद्धता चाहिए। जैसे सुबह सात ता आठ के बाद या अपनी सह करके, टुकड़े कर उबाल लें और उसी पानी में भी एक उत्तम औषधि है। मन की पवित्रता के लिए सुगमता से बाहर घूमने जाना चाहिए। गरम पानी से मसल कर, कचरा निकाल कर थोड़ी काली मिर्च अन्न की पवित्रता आवश्यक हैजैसा खाये अन्न स्नान करना चाहिए। नहाने के पहले तेल मालिश का पाउडर व नमक बिना गरम-गरम पियें। वैसा बने मन'। पवित्र अन्न उसे कहते हैं जो लाभप्रद होता है। इस दौरान मौसमी फल, साग 8, अंकुरित अनाज, दालों, मूंग मोठ आदि को ईमानदारी से उपार्जन किया गया हो।सब्जी के साथ खजूर, रात में गर्म दूध में हल्दी का भोजन में अवश्य स्थान देना चाहिए। भोजन जितना 18. किसी भी कार्य, आहार-विहार, पाउडर डाल कर दूध पीना चाहिए। इसके अलावा प्राकृतिक एवं अंकुरित होगा उतना ही अधिक आचार-विचार में अति न करें। ‘अति सर्वत्र अपनी शारीरिक क्षमता को दृष्टिगत रखकर बचाव १ पौष्टिकता प्रदान करने वाला होगा। वर्जयेत' न ज्यादा खायें, न ज्यादा पियें और न ही के साथ शीत ऋतु का आनंद लेना चाहिए। यह 9. गाजर हरे धनिये का रस :- गाजर धोकर ज्यादा परिश्रम करें। एक ऐसी ऋतु है जिसमें मंगल ही मंगल है। इस साफ करें। बीच का पित्त निकाले बगैर रस 19. तमाम व्यसनों को त्याग दें, मांसाहार, अंडा, ऋतु में इतनी शक्ति संचित करके वर्ष भर स्वस्थ्य निकालें। उसमें हरे धनिये की चटनी रुचि के चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बीड़ी, सिगरेट, तंबाक, रहे गरम पानी, ठण्ड से बचाव पौष्टिक आहार ही अनुसार मिलावें। गुटका, शराब व कोल्ड ड्रिंक आदि को त्याग देंइस ऋतु का धेय है। रोगी हृदय, श्वास, हड्डी 10. खजूर का शर्बत :- 8-10 खजूर लेकर संक्षेप में मांसाहार मनुष्य के नैतिक व आध्यात्मिक और जोड़ों के दर्द वाले सावधान रहें। धोएं। साफ करके उसके बीज निकाल कर 5-7 १ - पतन के साथ-साथ अनेक घातक रोगों का दैनिक आहार संबंधी आवश्यक बातें :घंटे साफ पानी में भिगो कर उसी पानी सहित जन्मदाता व तामसी वृत्ति की वृद्धि कर आयु को 1. कच्ची भाजी :- मूली के पत्ते, गाजर के पत्ते, मिक्सी में ग्राइंड कर लें। स्वाद के अनुसार पानी क्षीण करता है, अतः सदैव शाकाहारी रहेंपालक, तेंदूल की भाजी, पोई, डोडी, मेथी आदि । प्राकृतिक वातावरण में ही निवास करें६ की मात्रा मिलाकर सेवन करें। के अच्छे पत्ते-चुनकर हल्के गरम पानी में अच्छी वातानुकूलित यंत्रों का प्रयोग नहीं करेंखान-पान 11. रोटी :- बिना–छने मोटे आटे की थोड़ी मोटी में अधिक पाकतिक वस्तओं का सेवन करेंअपनी तरह धोकर कच्ची 50-75 ग्राम खानी चाहिए। रोटी बनावें। आटा दो घंटे पूर्व बिना नमक व तेल दिनचर्या को नियमित रखें तो आप भी शतायु तक 2. कच्ची सब्जियां (सलाद) :- ककड़ी, पत्ता स्वस्थ रह सकते हैं। पाता है और दूसरा भोजन पेट में पहुंच जाता है। गोभी, गाजर, प्याज, लौकी, तुरई, मटर, हरी तवर, 12, भोजन रुचिपूर्वक, प्रसन्न मन से मौन, शांत व ऐसे में पाचनतंत्र भोजन को पूर्ण रूप से नहीं पचा चोला फली, मूली मोगरी, हरी हल्दी, ग्वारपाठा निश्चिंत होकर प्रभु का प्रसाद समझकर करना पाता जो अजीर्ण का मुख्य कारण है। अधिक आदि को हल्के गरम पानी में धोकर काम में लें। चाहिए जिससे बल व शक्ति की वृद्धि हो। भोजन तला-भुना या मिर्च मसाले युक्त भोजन के सेवन सब्जियों को ज्यादा देर तक पानी में न रखें। में त्रुटियां, निकालकर, क्षोभ, क्रोध व दु:खी मन से से भी अजीर्ण या अपच हो जाता है। इस रोग में 3. वेजीटेबल सैंडविच :- पत्ता गोभी के पान में अनादरपूर्वक किया हुआ भोजन उल्टा प्रभाव रोगी को भूख नहीं लगती, खट्टी डकारे आती है, उपर्युक्त सब्जियों के पत्ते तथा कच्ची सब्जियों के डालता है। मनोभावों व विचारों का पाचन शक्ति छाती में तेज जलन होती है, पेट में भारीपन महसूस टकडे आदि भरकर सैंडविच की तरह गोल बनाएं। पर प्रभाव पड़ता है। होता है तथा बचना-सा होता रहता हैरागा को किसी भी प्रकार के मसाले व ब्रेड का उपयोग न 13. भोजन के साथ या भोजन के बाद एक घंटे पसीना अधिक आता है, नींद भी नहीं आती और तक पानी न पिएंभोजन में किसी भी प्रकार की कभी-कभी अतिसार-दस्त भी होता है। 4. भुनी हुई सब्जी :- सूरण (जिमीकंद) कद्दू, खटाई या मीठा न लें। भोजन में हल्दी, धनिया, आहार-चर्या :- हेमंत ऋतु में अग्नि की प्रबलता प्याज, कोई भी एक आखी दाल (मुंग, अरहर जीरा, राई, मेथी, सौंफ, मीठा नीम के अलावा कोई रहती है अतः स्निग्धा पदार्थ, अम्ल रस, दूधा, , आदि), गाजर या शक्करकंद सप्रमाण लेकर पानी मसाला न लेवें। यदि नहीं चल सकता हो तो गन्ना, गरम बचावल का भात, गरम जल का सेवन वन के साथ स्टील के बर्तन में पकाएं। यह सूखी भाजी मामूली नमक मिला लें। भोजन के बाद 30-60 । करना चाहिए। इन दिनों पालक मेथी, गाजर, 5 जर की तरह होनी चाहिए। तेल का बघार न दें। गरम मिनट आराम जरूर करेंटमाटर का सूप, अदरक लहसुन, गुड़ और राजगीर सब्जी में एक या दो चम्मच कच्चा तेल डालें। 14, मैदा से बने पदार्थ, तले हुए पदार्थों, शक्कर, तिली के लड्डू, खजूर, ड्राई फ्रट्स, गेहूं और चना , हल्दी, सूखा धनिया व अच्छा लगे तो नमक डालें नमक, डबल पॉलिश वाले चावल, मैदा, सोडा, के मिश्रण के रोटी खाना फायदेमंद होता है। किन्तु अन्य मसाले कदापि नहीं। रिफाइन्ड तेल और पाश्चराइज्ड दूध का उपयोग न विहार-चर्या :- इन दिनों तेल मालिश, उबटन, उबटन, 5. विशिष्ट सब्जी :- सूरण (जिमीकंद), कद्दू, करें। शक्कर के स्थान पर बूरा, गुड़, शहद, गन्ने सिर पर तेल लगाना, धूप सेवन करना, उष्ण गर्भ प्याज, हरी साबुत दाल, कड़क पक्के केले के का रस प्रयोग करें। गृह में रहना, वाहन शयन और आसन के कपड़े छिलके (खास लेना) गाजर और शक्करकंद की 15. ताजा आंवले न मिलें तो सूखे आंवले का घर ढंक कर रखना, ऊनी और रुई के बने कपड़ों का ॥ उपयुक्त विधिनुसार सब्जी बनावें। आलू और तेल पर बनाया हुआ पाउडर का एक चम्मच रात को प्रयोग करना, शरीर पर भरी और गरम कपड़े धारण न डालें। आधे कप पानी में भिगो कर सुबह पियें।करना, हेमंत ऋतु में वाट का कोप रहता है तथा 6. चटनी :- पत्ता गोभी, ककड़ी, प्याज, हरा 16. युवा रहने के लिए ताजा फलों एवं सब्जियों वातावरण शीतल होने से बचने का प्रयास करना करना धनिया, खोपरा, गाजर, पोदीना, मेथी की भाजी, का प्रयोग अधिकाधिक प्राकृतिक रूप में करना ही चाहिए। इस ऋतु में हमें पूरे साल की शक्ति संचित नाचत मीठे नीम आदि की बनावें। जो वस्तु न मिले या न उचित है। बासी फल, सब्जी, बेमौसम के फलों का करने का अवसर मिलता है और इन दिनों हृदय, जाने नो ने उपयोग कभी न करें। श्वास, कफ प्रवृत्ति के लोगों को बचाव करना 7. सूप :- लौकी, पालक, तुरई, टमाटर आदि को 17. सदा निरोग रहने के लिए मन की विशुद्धता चाहिए। जैसे सुबह सात ता आठ के बाद या अपनी सह करके, टुकड़े कर उबाल लें और उसी पानी में भी एक उत्तम औषधि है। मन की पवित्रता के लिए सुगमता से बाहर घूमने जाना चाहिए। गरम पानी से मसल कर, कचरा निकाल कर थोड़ी काली मिर्च अन्न की पवित्रता आवश्यक हैजैसा खाये अन्न स्नान करना चाहिए। नहाने के पहले तेल मालिश का पाउडर व नमक बिना गरम-गरम पियें। वैसा बने मन'। पवित्र अन्न उसे कहते हैं जो लाभप्रद होता है। इस दौरान मौसमी फल, साग 8, अंकुरित अनाज, दालों, मूंग मोठ आदि को ईमानदारी से उपार्जन किया गया हो।सब्जी के साथ खजूर, रात में गर्म दूध में हल्दी का भोजन में अवश्य स्थान देना चाहिए। भोजन जितना 18. किसी भी कार्य, आहार-विहार, पाउडर डाल कर दूध पीना चाहिए। इसके अलावा प्राकृतिक एवं अंकुरित होगा उतना ही अधिक आचार-विचार में अति न करें। ‘अति सर्वत्र अपनी शारीरिक क्षमता को दृष्टिगत रखकर बचाव १ पौष्टिकता प्रदान करने वाला होगा। वर्जयेत' न ज्यादा खायें, न ज्यादा पियें और न ही के साथ शीत ऋतु का आनंद लेना चाहिए। यह 9. गाजर हरे धनिये का रस :- गाजर धोकर ज्यादा परिश्रम करें। एक ऐसी ऋतु है जिसमें मंगल ही मंगल है। इस साफ करें। बीच का पित्त निकाले बगैर रस 19. तमाम व्यसनों को त्याग दें, मांसाहार, अंडा, ऋतु में इतनी शक्ति संचित करके वर्ष भर स्वस्थ्य निकालें। उसमें हरे धनिये की चटनी रुचि के चाय, कॉफी, आइसक्रीम, बीड़ी, सिगरेट, तंबाक, रहे गरम पानी, ठण्ड से बचाव पौष्टिक आहार ही अनुसार मिलावें। गुटका, शराब व कोल्ड ड्रिंक आदि को त्याग देंइस ऋतु का धेय है। रोगी हृदय, श्वास, हड्डी 10. खजूर का शर्बत :- 8-10 खजूर लेकर संक्षेप में मांसाहार मनुष्य के नैतिक व आध्यात्मिक और जोड़ों के दर्द वाले सावधान रहें। धोएं। साफ करके उसके बीज निकाल कर 5-7 १ - पतन के साथ-साथ अनेक घातक रोगों का दैनिक आहार संबंधी आवश्यक बातें :घंटे साफ पानी में भिगो कर उसी पानी सहित जन्मदाता व तामसी वृत्ति की वृद्धि कर आयु को 1. कच्ची भाजी :- मूली के पत्ते, गाजर के पत्ते, मिक्सी में ग्राइंड कर लें। स्वाद के अनुसार पानी क्षीण करता है, अतः सदैव शाकाहारी रहेंपालक, तेंदूल की भाजी, पोई, डोडी, मेथी आदि । प्राकृतिक वातावरण में ही निवास करें६ की मात्रा मिलाकर सेवन करें। के अच्छे पत्ते-चुनकर हल्के गरम पानी में अच्छी वातानुकूलित यंत्रों का प्रयोग नहीं करेंखान-पान 11. रोटी :- बिना–छने मोटे आटे की थोड़ी मोटी में अधिक पाकतिक वस्तओं का सेवन करेंअपनी तरह धोकर कच्ची 50-75 ग्राम खानी चाहिए। रोटी बनावें। आटा दो घंटे पूर्व बिना नमक व तेल दिनचर्या को नियमित रखें तो आप भी शतायु तक 2. कच्ची सब्जियां (सलाद) :- ककड़ी, पत्ता स्वस्थ रह सकते हैं।
आयुर्वेद में ऋतुचर्या