असाध्य रोगों के जन्मदाता पर्यावरण प्रदूषण एवं खाद्यानों में रसायन डॉ. अनिल

       असाध्य रोगों के जन्मदाता पर्यावरण प्रदूषण


                     एवं खाद्यानों में रसायन 


प्रकृति अनादिकाल से ही मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति करती आ रही है, परन्तु आज विश्व की विशेषकर भारत एवं चीन जैसे विशाल जनसंख्या वाले देशों की अवधि गति से बढ़ती जनसंख्या एवं भौतिकवादी प्रवृति के कारण तथा प्रकृति द्वारा प्रदत्त सन्तुलन व्यवस्था में अवांछित वनों के विदोहन के फलस्वरूप पर्यावरण प्रदूषण विश्वव्यापी समस्या बन गई है। पारिभाषिक रूप में पर्यावरण से अभिप्रायः जीवों एवं मानव प्रदत्त वस्तुओं की अनुक्रियाओं को प्रभावित करने वाले समस्त भौतिक रासायनिक तथा जैविक परिस्थितियों का योग है। यह पर्यावरण दो कारणों से मिलकर बना है। जैविक कारण 1. पेड-पौधे, 2. जीव-जन्त 3. मनुष्य अजैविक कारण : 1. वायु 2. जल 3. मिट्टी । जब उपरोक्त दोनों कारणों में सन्तुलन बना रहता है तो पर्यावरण प्रदूषण रहित एवं नियन्त्रित रहता है, परन्तु उपरोक्त कारणों के असन्तुलन होने के कारण प्रदूषण हो जाता है। * इसके परिणाम स्वरूप दिनों-दिन प्रदूषण बढ़ता चला जा रहा है। प्राय: ऐसा देखा गया है। कि जब कोई भी कारण इन सीमाओं का अतिक्रमण कर जाता है तो जनपदोध्वंस (महामारी) का खतरा उत्पन्न हो जाता है। वर्तमान में पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण मानव का प्रज्ञापराध है। प्रज्ञापराध के कारण :- 1. जलप्रदूषण 2. वायुप्रदूषण 3. भूमिप्रदूषण 4. ध्वनि प्रदूषण 5. ताप प्रदूषण की जटिल समस्या भारत में बढ़ती जा रही है। उपरोक्त अजैविक कारणों वायु, जल, भूमि, ताप आदि में असन्तुलन होने से क्रमशः ऋतु-विपरीत, वायु चलने के कारण अतिकर्कश, अतिशीत, अतिउष्ण, अतिरुक्ष, अतिष्यानी, अतिशब्द करने वाली हवा आपस में टक्कर खाती हुई, विकृतवायु दुर्गन्धयुक्त हो जाती है। वायुमण्डल में पाई जाने वाली समस्त गैसें :-कार्बनडाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, ऑक्सीजन इत्यादि में लवण एक निश्चित अनुपात में होते हैं। उपरोक्त अजैविक कारणों से इनके अनुपात में असन्तुलन आ जाता है, जिसके फलस्वरूप वायु, भूमि एवं जल के प्रदूषण के कारण खाद्यानों एवं जीवधारियों के लिए प्रदूषित वायु घातक एवं हानिकारक है। हवा को प्रदूषित करने वाले पदार्थ कार्बन, विषैली गैसें एवं खनिज लवण आदि हैं। कतिपय किस्मों के औद्योगिक कारखानों से निकलने वाला धुंआ, जिसमें सल्फरडाइऑक्साइड, ओजोन आदि मुख्य विषैली गैसे हैं एवं खनिज लवण मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं। दूषित वायु एवं जीवनाशी रासायनिक घोलों का भूमि में प्रयोग करने से दमा, खांसी, फेफड़ों के रोग एवं त्वचा (चमड़ी) के रोगों । की संख्या बढ़ती जा रही है। दिन-प्रतिदिन वातावरण में कार्बन-डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है, जिसके फलस्वरूप प्रकति का औसतन तापमान भी बढ़ता जा रहा है। जल प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए समान रूप से घातक है। आज 80 प्रतिशत इन पवित्र नदियों, झरनों, तालाबों एवं कुओं का पानी प्रतिदिन विकत हो रहा है। दषित जल के कारण पेचिस, हैजा, अतिसार, कोलाइटिस, आन्त्रशोथ, गैस्टाईटिस, मलेरिया, प्लेग, डेंगु, फीवर, मोतीझरा, वृक्क गुर्दो के रोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। जल में कई प्रकार की अशुद्धियां सोडियम, पोटाशियम, कैल्शियम, मैगनेशियम, कार्बोनेट, सल्फेट आदि लवण पाए जाते हैं। कभी-कभी जीवधारियों का मल-मूत्र, शवदाह से प्रदूषित जल, नगरों, शहरों के गन्दे नालों द्वारा प्रदूषित जल एवं कचरा नदियों में बहाने से जल दूषित डॉ. अनिल जैन हो जाता है। इस प्रकार वायु जल प्रदूषण के कारण अम्लीय वर्षा का भय रहता है। इसमें सल्फाइड ऑक्साइड, नाइट्रोजन पर ऑक्साइड, कार्बन - डाइऑक्साइड बढ़ जाती है। प्रतिदिन भारत में जल प्रदूषण के कारण तथा जीवनाशी रसायनों का कृषि उपज में अत्यधिक उपयोग के कारण भयावह स्थिति पैदा होती जा रही है। इस परिस्थिति के निराकरण हेतु धरती की कृषि भूमि (मिट्टी) और जल को प्रदूषण से बचाना होगा। इसके लिए वनों का संरक्षण, सम्वर्द्धन एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी होगी। इसके लिए वनों का संरक्षण, सम्वर्द्धन एवं वृक्षारोपण कार्यक्रम को प्राथमिकता देनी होगी। पर्वतीय भू-भाग के प्राकृतिक जलस्त्रोतों की सुरक्षा पर विशेष ध्यान देना होगा। हमें आज मानव स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु पर्यावरण संरक्षण पर विशेष ध्यान आकृष्ट करने के साथ जैविक कृषि (वैदिक कृषि) पर विशेष ध्यान देना होगा। फसलों व सब्जियों में अधिक उपज देने वाली प्रजातियों एवं सघन खेती के विस्तार से यद्यपि उपज में वृद्धि हुई है। किसान इन फसलों में लगने वाली बीमारियों एवं फफंदों के लिए जीवनाशी रसायनों (पेस्टीसाइड) एवं कैमिकल खादों का प्रयोग करता है जो कि मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। आधुनिक अनुसाधानों से यह प्रमाणित हो चुका है कि खाद्य पदार्थों (शाक-सब्जी), गेहूं, चावल, चना आदि में। रह जाने वाले कीटनाशकों के रसायनतत्व भोजन के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर जाते हैं, जिसके कारण यकृत के रोग, हेपेटाइटिस, कैंसर, मधुमेह, हृदयरोग, वृक्करोग (किडनी के रोग), दमा (श्वास) पेप्टिक अल्सर, अन्धता, आन्त्रशोथ, कोलाइटिस, रुधिर में श्वेत-रक्तकणों की कमी, पुरुषत्व की कमी, चेहरे पर काले धब्बे आदि बीमारियां पैदा हो जाती हैं। इन जीवनाशी कीटों के प्रयोग से मिट्टी में रहने वाले प्राकृतिक मित्र कीटों का भी विनाश हो जाता है। कीटनाशकों के दुष्परिणाम से पूरे विश्व में लगभग 10 से 20 लाख मनुष्य इन कीटनाशक खाद्यानों के प्रयोग से रोगग्रस्त हैं। इस समय भारत में प्रतिवर्ष 10 मिलियन टन से भी अधिक कीटनाशक रसायनों का प्रयोग किया जा रहा है जो कि एक सोचनीय कर्म है। देश में होने वाले 250 कैंसर के मामलों में जो रोगी पाए गए उनका मुख्य कारण कीटनाशकों वाले खाद्यानों के प्रयोग करने का है। संयुक्तराष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम के तत्वाधान में किए सर्वेक्षण के आधार पर यह देखा गया है कि बच्चों को दध पिलाने वाली माताओं के अनुसार यह पाया गया कि खेतों में कीटनाशकों का छिड़काव करने वाले 300 से अधिक किसान पेट व आंत की बीमारियों से पीड़ित हैं।