अस्थमा कारण और निवारण

ore अस्थमा श्वसन प्रणाली एक जटिल समस्या है। अत्यधिक म्यूकस का स्राव हमारी श्वास के क्रम को बाधित करता है। दम फूलना, श्वास लेने में निकलनातिकलीफ होना और अत्यधिक श्लेष्मा का गाढ़। रूप में खासी के साथ बाहर निकलना इसक सामान्य लक्षण हैंकभी-कभी तो श्वास ही भी-कभी तो श्वास हा अवरूद्ध होता जान पड़ता है। इसकी मुख्य वजह मुख्य वजह तो बाहरी एलर्जी ही है। मनोवैज्ञानिक व । । 'अनुवांशिक कारण भी महत्वपूर्ण है। इससे किसी ।भी उम्र के लोग प्रभावित हो सकते हैं। मुख्य रूप से इन रोगियों के अन्दर श्वास लेने में दिक्कत होती है जो शरीर को प्राण ऊर्जा को कम करती ।में है और व्यक्ति दुर्बल होता जाता है। योगाभ्यास उनमें प्राण ऊर्जा का संचार तथा अत्यधिक प्रलेष्मा को बाहर निकालने के लिए कार्य 'करता है। योगिक अभ्यास : आसन :- 1. ताड़ासन, 2. तिर्यकता डासन, 3. कटिचक्रासन (5-5 चक्र), 4. शशंकासन, दूध5. भुजंगासन (क्षमतानुसार), 6. शवासन '(5 मिनट), 7. सूर्य नमस्कार ( धीरे-धीरे 1 से 5 मिठाई चक्र), 8, धनुरासन, 9. गोमुखासन, 10] अर्धमत्येन्द्रासन, 11. शलभासन। । प्राणायाम :- 1. नाड़ी शोधन, 2. भस्त्रिका, 3. कपालभाति, 4. अनुलोम-विलोम, 5. ''भ्रामरी-उद्गीथ।। क्रियाएं :- 1. कुजल (सप्ताह में तीन बार), जिाएगा12. जलनेति, सूत्रनेति (सप्ताह में दो बार)। । चिंता इस रोग के प्रमुख कारण होते हैं । उनमें आनवांशिकता (वंशानगत), दीवारों के पेंट चुना, चूने के कण, जानवरों के रोएं, सेंट, हेयर स्प्रेि, ध, धल के कण, सौंदर्य प्रसाधन, पालत जानवरों के बाल, पंख, बीड़ी-सिगरेट, तम्बाक का धुआं, खाने की चीजों आदि से एलर्जी अधिक चिंता, क्रोध, उत्तेजना, मानसिक तनाव, सर्दी-जुकाम, खांसी, सीलन युक्त स्थान, तले 'गरिष्ठ पदार्थो अधिक मात्रा में खाना आदि । सम्मिलित हैं। इस रोग में लक्षणों के रूप में घर-घर की -आवाज़ के साथ कष्टप्रद श्वास-प्रवास, कुंठ में अवरोध-सा महसूस होना, कफ का अत्यंत गाढ़ा, चिपचिपा होना तथा इसका आसानी से न निकलना, वर्षा-शीत ऋतु, ठंडी हवाओं और ऋत परिवर्तन में कष्ट बढ़ना, हृदय की धडकन तेज होना, ललाट पर पसीना आना, हाथ-पैर ठंडे होना, मानसिक घबराहट आदि देखने को मिलते हैं। आहार में चोकर सहित आटे की रोटी, जई के । 'आटे की रोटी, डबल रोटी, केक-बिस्कुट, ।। दलिया, मूंग की दाल का सेवन करें। सब्जियां :- पालक, शिलजम, करेला, मेथी, ।याज, प्याज, धनिया, पुदीना, चौलाई, सहिजन, नियमित अदरक, लहसुन, आलू, परवल आदि का सेवन करे''फल :- पपीता, चीकू, अनार, सेब, खजूर, 'अंगूर, अंजीर, शहतूत खाएं। रात्रि का भोजन कम मात्रा में सोने के 2 घंटे पहले लें। परहेज :- वासी भोजन, चावल, दही, अंडा, दूध, छाछ, अमचूर, इमली न खाएं। 'मांस :- मछली, मुर्गों की गोश्त, गुड़, चना, मिठाई से परहेज करें। ठंडे, शीतल पेय, बर्फ, आइसक्रिम न खाएं। केला, तरबूज, उड़द की। दाल, बादाम, नारियल, छोटी मटर तथा दूध से बनी चीजों का सेवन न करें। एलर्जी का पता, 'करके उससे सदा बचें। प्राणायाम करें जिससे मिलता श्वास नली और फेफड़ों में जमा कफ निकल 'जिाएगा। दौरा पड़ने पर पैर को गर्म पानी में रखें चिंता का समाधान निकालकर सदा प्रसन्न रहने का प्रयास करें। एक कली लहसुन पीसकर एक चम्मच सरसों के तेल में मिला लें और चुटकी भर सेंधा नमक डालकर हल्का गर्म करके सीने 'और पीठ पर मालिश कर दें। ऊपर से गर्म कपडा लपेट दें। अपनी कार्यक्षमता से अधिक परिश्रम का कार्य न करें। भोजन करके तुरंत न सोयें। बरसात में भीगने से बचें। एस्प्रिन का सेवन 'न करें। । अस्थमा में श्वास नली सिकुड़ जाती है जिसके कारण मरीज सांस ठीक से नहीं ले पाता है। सर्दी के दिनों में जुकाम, गले में खरास होने वाली वायरस की मात्रा तेजी से बढ़ती है जिसके कारण दमा मरीज को ठंड के मौसम में काफी परेशानी होती है। ब्रोकियल अस्थमा वाले मरीज को सर्दी में अस्थमा तेज हो जाए तो मरीज को तुरंत इन्हेलर लेना चाहिए। उन्हें यह जानना जरूरी है। कि वैसे क्या तत्व है जिसके कारण उन्हें सांस लेने में परेशानी होती हैकुछ दमा मरीज ऐसे होते हैं जिन्हें श्वास, गंध, इत्र, खुशबूदार तेल, पाउडर, डियोडरेंट से एलर्जी होती है, इससे परहेज जरूरी है। मरीज के कमरों में गिली चीजें नि बिछाएं। इनके कपड़े, बिछावन आदि धूप में नियमित रूप से सूखाना चाहिए। रेशायुक्त आहार अधिक से अधिक प्रयोग करना चाहिए। मानसिक क्लेश, दुख, क्रोध दमा मरीजों पर बुरा 'प्रभाव डालते हैं, ऐसे में परिवार के अन्य सदस्यों को सौहार्दपूर्ण व्यवहार रखना चाहिए। फेफड़ों को हवा देने वाली नलियां छोटी-छोटी मांसपेशियों से ढकी रहती हैं। इन मांसपेशियों के आक्षेप होने के कारण सांस लेने में कष्ट होता है और गला सांय-सांय करता है। केवल दवाइयों से ही दमा को ठीक कर देने की आशा गलत है। आहार, आचार व प्राकृतिक नियमों का पालन दमा से स्थाई रोग मुक्ति के लिए आवश्यक है। दमा रोगी की छाती का सेक करने से आराम मिलता है। रक्त में इसनोफीलिया की वृद्धि से 'प्रायः सूखा दमा होता है। पेट साफ रखें, कब्ज न होने दें, देर से पचने वाली गरिष्ठ चीजें न खायें। शाम का भोजन सूर्यास्त से पहले कर लें। गरम पानी अवश्य पीयें। शुद्ध हवा में घुमने जायें। दमा में खांसी हो तो खांसी में वर्णित चीजों का प्रयोग 'कर सकते हैं। विटामिन 'ई' का प्रयोग करना चाहिए। यह रक्त कणों के निर्माण में लाभ करता है। इसकी दैनिक खुराक 15-20 मि.ली. ग्राम है। यह अंकुरित गेहूं, पिस्ता, सोयाबिन, सफोला तेल, नरियल, घी, ताजा मक्खन, टमाटर, अंगूर, सूखे मेवों में मिलता है।