एक्यूप्रेशर विकलांग बच्चों की चिकित्सा

तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है भयबड़े भाग मानुष तन पावा। अवस्था सुर दुर्लभ सद्ग्रन्थन गावा॥ मानसिकता बड़े भाग्य से मनुष्य शरीर मिलता है, यह बात 6 अक्षरसः तब सत्य है जब मानव शरीर, तन, शक्र मन, बुद्धि व आत्मा से पूर्ण स्वस्थ हो किन्तु वक्र यदि मनुष्य शरीर जन्म से अपंग हो, विकृत किया हो, मन बुद्धि की क्षीणता, मन्दता हो तो ‘बड़े दुर्भाग्य मानुष तन पावा' ही सिद्ध । 7१४ डिप्रेशनहोता है। रही आध्यात्मिक कारण :- कहते हैं श परिवार, सांसारिक साधन पर्व कर्मानसार 8मिलते हैं। मानव शरीर कर्म प्रधान होता है। क्रियाओंजैसा कर्म करो वैसा वर्तमान व भविष्य बनता 9है परन्तु जो लोग जन्म से तन, मन, बुद्धि, अधिक विवेक से विकलांग हैं वो कैसे कर्म करें? वो । 10लोक परलोक कैसे सुधारें? उनकी तो यह स्रावों मानव कर्म योनि मात्र भोग्य योनि बनकर रह । गई है। यह बहुत बड़ा प्रश्न है। जन्म से ऐसे 11विकलांग बच्चे तो विचारे अपना जीवन यापन 12करने में असमर्थ होते हैं, उन्हें परिवार व गया समाज के आश्रित रहना पड़ता है। 13वैज्ञानिक कारण :- बच्चों के मानसिक हो विकलांगता के अध्यात्मिक कारण जो भी हों। परन्तु वैज्ञानिक कुछ कारण जरूर होते हैं। 14बिस्तर 1. माँ के गर्भावस्था काल में यदि बच्चे के । * होसिर पर कभी चोट लग गई हो तो मानसिक सक हो विकलांगता हो सकती है। प्राकृतिक 2. माँ स्वयं ही इस गर्भकाल में किन्हीं प्रकृति मानसिक रोगों से पीडित रही हो। है3. गर्भिणी स्त्री को पौष्टिक आहार न मिल प्रकृति पाया हो। जल पाँच 4. यदि गर्भकाल में माँ ने नशीले पदार्थों का अधिक सेवन किया हो तो भी बच्चे को । । उपस्थित मानसिक विकलांगता हो सकती है। उसकी बच्चों 5. माँ गर्भावस्था में मानसिक तनाव, चिन्ता, प्रकृति डॉ. भारत भय, शोक, उद्विग्नता, मोह या क्रोध की अवस्था में रहती रही हो तो भी बच्चे की मानसिकता पर प्रभाव पड़ता है। 6 माँ या पिता मानसिक रोगी हो या पिता को शक्र दोष की बीमारी रही है। पिता के शक्राण वक्र या क्षीण हो और स्त्री रमण उसी काल में किया हो। । 7. माँ दमा, टी.बी., मधुमेह, मिर्गी, रक्तचाप, डिप्रेशन, अनिद्रा आदि किसी बीमारी से ग्रस्त रही हो। 8, गर्भावस्था में अप्राकृतिक साधनों, क्रियाओं, आसनों से पति ने संसर्ग किया हो। 9. गर्भावस्था काल में अंग्रेजी दवाओं का अधिक सेवन किया हो। 10. गर्भावस्था में नलिका विहीन ग्रन्थियों के । स्रावों में विघटन विकृति रही हो। । 11. बुढ़ापे की कमजोर वीर्य की सन्तान हो। 12. गर्भकाल में माँ को भयंकर बुखार आ गया हो या लम्बी बीमारी से ग्रस्त रही हो। 13, गर्भकाल में माँ को अधिक जुकाम रहा हो या बहुत कब्ज रही हो। 14. बच्चे को लकवा हो गया हो, बच्चा बिस्तर से गिर गया हो, सिर पर चोट लग गई । हो, बच्चे को वायरल बुखार ज्यादा दिन रहा हो आदि बहुत से कारण हैं।। प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा उपचार :- प्रकृति सब जीव-जन्तुओं की पालक जननी है। हर जीव का आश्रय व आधार प्रकृति है। प्रकृति में पाँच तत्व- आकाश, वायु, अग्नि, जल व पृथ्वी होते हैं और हमारा शरीर भी पाँच तत्वों से बना है। यदि हमारे शरीर में । ॐ उपस्थित पाँच तत्वों में विघटन हो जाए तो उसकी पूर्ति प्रकृति से ही करनी चाहिए। बच्चों की मानसिक विकलांगता को भी प्रकृति चिकित्सा द्वारा उपचार करना चहिए तो आइए छोटे मानसिक विकलांग बच्चों के प्राकृतिक उपचार जानते हैं। 1. बच्चों को प्रात:काल उठाएं तथा मत्र विसर्जन के बाद 2-4 गिलास धीरे-धीरे पानी पिलाने की आदत बनाए। कछ देर टहलकर टटटी जाएं। 2. बच्चे को प्रातः किसी बाग, उपवन वाटिका, झील या नदी तट पर घुमाएं। 3 बच्चे को सप्ताह में एक बार नींबू पानी छानकर (R.0.) के पानी से अनिमा देकर पेट साफ कर लें। अनिमा विधि चिकित्सक से सीखकर करें। इसके अनन्त फायदे हैं। 4. शौच के बाद बच्चे को गणेश क्रिया कराएं। अरंडी तेल में थोड़ा देशी कपूर । घोलकर ठंडा करके चौड़े मुख वाली शीशी में तेल भर लें। शौच के बाद बाएं हाथ की तर्जनी उंगली को तेल में डुबोकर गुदा द्वार में अन्दर उंगली डालकर चारों ओर घुमा दें इसे गणेश क्रिया कहते हैं। इसके अनेक फायदे हैं। 5. बच्चे को रोज हल्के गुनगुने पानी में थोड़ा नमक मिलाकर टोटीदार लोटे से जल नेति कराएं। जलनेति विधि चिकित्सक से सीखकर करें। 6. बच्चे को सप्ताह में एक बार कुंजल क्रिया कराएं। विधि चिकित्सक से सीखें। इससे श्वासन संस्थान के रोग नहीं होंगे। 7 बच्चे को रोज परे शरीर की तेल मालिश करें। सिर पर भी तेल मलें। तेल नाक, नाभि, नाखूनों पर तथा पैर के तलुओं पर भी लगाएं। मालिश के मालिश के आधा घन्टे बाद सम्पूर्ण स्नान कराएं। फिर सूती खुरदरे तौलिए से रगड़-रगड़ कर शरीर पोछे।