10 है। भिन्न भाषाओं में नाम :- संस्कृत- फेफड़ों की गति भी बढ़ जाती है। कूट-पीस-छानकर बारीक चूर्ण कर लेंरोज आकारकर, आकल्लक, हिन्दी :-अकरकरा, उपयोगः-इसका प्रयोग चिकित्सकों द्वारा दांतों सुबह एक चुटकी चूर्ण शहद में मिलाकर या मराठी:-अक्कलकरा, गुजरातीः-अकोरकरो, एवं मसूड़ों से सम्बन्धित समस्याओं को दूर वैसे ही जीभ पर मलकर छोड़ दें। 4 से 6 हफ्ते बंगाली:-आकरकरा, फारसीः- वेश्वतखून करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है। इस इस्तेमाल करें। जीभ के मोटापे के कारण कोही, पंजाबीः-अकरकरा, अंग्रेजी:-पेलिटरी पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इसके उत्पन्न तुतलापन दूर होता है। रंग :- अकरकरा ऊपर से काला और अंदर से फूल एवं जड़ है। जब इसके फूल व पत्तियों बाजीकरण :- अकरकरा, सफेद मसूली, सफेद होता हैको चबाया जाता है तो यह एक प्रकार से दांतों असगन्ध समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। स्वाद :- इसका स्वाद तेज, चटपटा, ठंडा, व मसूड़ों में सुन्नता पैदा कर देता है। पत्तियों 1-1 चम्मच (लगभग 3-3 ग्राम) मात्रा चुनचुनाहट पैदा करने वाला होता है। का प्रयोग त्वचा रोग में भी किया जाता है। सुबह-शाम दूध से लें। परिचय :- अकरकरा का पौधा अल्जीरिया में लकवा :- इसकी सूखी डण्डी या जड़ के मुंह से बदबू :- अकरकरा, माजूफल, सबसे अधिक पाया जाता है। भारत में यह चूर्ण को महुए के तेल में मिलाकर पकाकर नागरमोथा, भुनी फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा कश्मीर, असम, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में मालिश करने से लकवे में आराम मिलता है। नमक बराबर मिलाकर मंजन बना लें। कुछ गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि साथ ही इसकी जड़ का चूर्ण लगभग आधा दिन सुबह व रात में मंजन करें, मुंह की बदबू में कहीं-कहीं पैदा होता है। वर्षा के शुरू में ग्राम मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटना दूर होती है। इसका झाड़ीदार पौधा उगना शुरू हो जाता है। भी चाहिये। अस्थमा :- अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को इसका तना रोएंदार और ग्रंथियुक्त होता है। सफेद दाग :- इस रोग में दवा के साथ-साथ सूंघने से सांस का अवरोध दूर होता है। 3 ग्राम अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर दागों पर अकरकरा को 200 मिली. जल में उबालकर की होती है। इसके फल पीले रंग के गंध युक्त लगाने से जल्दी आराम होता है। काढ़ा बनायें, जब यह 50 मिली. रह जाये तो होते हैं। जड़ 8 से 10 से.मी. लंबी और लगभग सिर दर्द :- यदि सिर में दर्द हमेशा बना रहे इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को 15 सेमी. चौड़ी मजबूत व मटमैली होती है। तो बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम इसका सेवन कराने से आराम मिलता है। गुण :- अकरकरा कड़वा, रूक्ष, तीखा, चूर्ण सुबह-शाम प्रयोग करना चाहिये। ज्वर :- अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून प्रकृति में गर्म तथा कफ और वात नाशक है। दंत रोग :- अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना इसके अलावा यह कामोत्तेजक, सेक्स उत्तेजना फूली हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक आकर ज्वर उतर जाता है। अकरकरा 10 ग्राम को बढ़ाने वाला, धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इससे चिरायता 10 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें। इस में 3 रक्तशोधक, सूजन को कम करने वाला, मंह नियमित मंजन करते रहने से दाँत और मसढों के ग्राम चूर्ण पानी से लेने पर बुखार में आराम की बदबू को कम करने वाला, हृदय की समस्त विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है। होता है। दुर्बलता को दर करने वाला, दिल की नपंसकता :- अकरकरा का बारीक चूर्ण हृदय रोग :- अर्जुन की छाल और अकरकरा का चूर्ण दोनों को बराबर मात्रा में मिलाकर कमजोरी, बच्चों के दाँत निकलने के समय, शहद में मिलाकर लिंग पर लेप करें तथा पान १ चूर्ण बना लें। सुबह-शाम, आधा-आधा तुतलाहट-हकलाहट दूर करने वाला, शरीर में का पत्ता बाँधकर रात में सो जायें। ऐसा क चम्मच मात्रा पानी से लें। घबराहट, हृदय की खून के बहाव को बढ़ाने वाला होता है। दिन लगातार करने से लिंग का ढीलापन दूर * धड्कन पीडा, कम्पन और कमजोरी में लाभ हानिकारक प्रभाव :- इसका बाहरी प्रयोग होकर लिंग कड़ा व ठोस हो जाता है। होता है। अधिक मात्रा में करने से त्वचा लाल हो जाती अकरकरा 2 ग्राम व जंगली प्याज 10 ग्राम सायटिका :- अकरकरा की जड़ को अखरोट है। जलन पैदा हो जाती है। अन्दर से अधिक दोनों को साथ पीसकर लेप करने से लिंग ग के तेल में मिलाकर मालिश करने से प्रयोग करने पर नाड़ी की गति तेज होना, दस्त कड़ा हो जाता है। गृघ्रसी-सायटिका में आराम मिलता है। लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी तुतलाहट-हकलाहट :- अकरकरा 12 ग्राम, 129, सिविल लाइन (उत्तरी), होना, रक्तपित्त आदि
जड़ी-बूटी ज्ञानमाला अकुरकुरा