लंवगम् करते आयुर्वेद प्रकाश

] आज की जहरीली प्रदूषण युक्त हवा का माहौल मोबाइल या इंटरनेट तथा कम्प्यूटर एवं टी.वी. का अतियोग सेटेलाइट से निकलने वाली जहरीली विकिरणें आज के खान-पान जैसे कि चायनिश बर्गर, पीजा, चाट मसाला, बांसी भोजन, चने के बेसन के पकौड़े या अन्य व्यंजन ब्रेड आदि। मेदा के आटे के खाद्य , पदार्थ, विरुद्ध आहार, मटन मछली, अंडा जैसे मांसाहार, रात्री जागरण, अनियमित दिनचर्या, शराब, तंबाखू, गुटका आदि अखाद्य पदार्थ का " सेवन करने से कई रोग होते हैं। जैसे कि बदहजमी, अफारा, पेट में गड़बड़ विबंध, एसिडिटी (अम्लपित्त) गले में खराश, श्वास, खांसी, शोध, अरूचि, उल्टी जैसा लगाना आदि रोग गलत खाने-पीने की आदत से होते है। जबकि आँखों से कम दिखना, धुंधलापन, कमजोर नजर, सिर दर्द, गर्दन में दर्द (Cervical Spondylysis) कमर में दर्द (Lumber Spondlysis) आदि रोग सतत कम्प्यूटर के या इंटरनेट के सामने बैठकर काम करने से होते है। मोबाइल के अति उपयोग से " कान कि तथा दिमाग की बीमारी हो सकती है। कुछ दिन पहले ही मैंने तक अखबार में पढ़ा है की मोबाईल के अतीउपयोग से ब्रेईन ट्यूमर भी हो सकता है। आज के युग में यह सब साधन अनिवार्य बन गए है। इसलिए इसका उपयोग संभवतः अनिवार्य परिस्थिति में ही करना चाहिए। अन्यथा आगे बताए हुए व्याधि निर्विवाद होगे और जीना बेकार हो जाएगा। यह सभी रोगों से मुक्ति पाने के लिए हमारी आदतें सुधारनी होगी। सही जीवन शैली-शुद्ध ताजा एवम् सात्विक आहार का उपयोग करना होगा। यह सभी रोगों में हमारे रसोई घर में । उपलब्ध लंवग बहुत ही फायदा करने वाली है। लंवग के बारे में सामान्य तथा हमारा ज्ञान इतना ही है कि लंवग गरम है। दाल-सब्जी, मांसाहार पकाते वक्त उपयोग में आने वाले मसाले का द्रव्य है। जिससे भोजन स्वादिष्ट और रुचिकर लंवगढुंबगावमिश्र ऋषि ने अर लंवगम् कटकम् तिक्तम् लघु नेत्रहितम् हिमम्।। बनता है, ज्यादा से ज्यादा अगर दाढ़ दूखति है या उल्टी जैसा होता है तब हम लंवग का उपयोग करते हैं। इससे ज्यादा शायद ही कोई जानता हो। लंवग गरम है, यह धारना ही गलत है। आयुर्वेद में भावमिश्र ऋषि ने अपने ग्रंथ भाव ग्रंथ भाव प्रकाश में लिखा है कि 'लंवगम् देवकुसुमम् श्रीसंज्ञम् श्री प्रसूनकम्। लंवगम् कटकम् तिक्तम् लघु नेत्रहितम हिमम।। मिश्री दीपनम् पाचनम् रूच्यम् कफपित्तास्रवाशकृत्।। तृष्णाम् छर्दि तथाध्मानम् शूलमाशु विनाशयेत्।कासं श्वास च हिक्काम् च क्षयम् क्षपयति घवम्।। , अर्थात् लंवग के देव कुसुम, श्री संज्ञम् तथा ) श्री प्रसूनकम यह नाम हैदेवो को प्रिय है और खाद्य , देवो का ही फुल है यह लंवग। इसलिए देव कुसुम। जितने लक्ष्मी जी के नमा है उतने लंवग किसी, के नाम है इसलिए श्री सज्ञम्। यह लक्ष्मी जी का भी पुष्प है, इसको पूजा में रखने से पर्स पॉकिट में रखने से लक्ष्मी जी कि कृपा बनी रहती है, इसलिए श्री प्रसुनकम्। लंवग स्वाद में तीखा, कडवा है। पचने में हल्का है। आँखों के लिए हितकारी है, ठंडा है। अग्नि को प्रदिप्त करता है। पाचन करता है। रुचिकारक, कफ पित्त और रक्त के रोग, शोध रोग (गला सुखना), उल्टी, अफारा, पेट का शुल, खांसी, श्वास, हिचकी और क्षय को अवश्य मिटाता हैसतत भगवान धन्वतरि ने कहाँ है कि, 'ल 'लंवग देव कुसुमम् हृद्यम् शीतलम् पित्तनाशनम्। चक्षुष्यम् विषहृन् वृष्यम् मांगल्यम् मूर्द्धरोगहृत।।' अर्थात लंवग हृदय को हितकारी ठंडा, पित्त के रोग को दर करने वाला, संभोग शक्ति बढ़ाने साधन वाला, हमेशा मांगतय करने वाला और नाक, उपयोग कान, गले के सभी रोग नष्ट करने वाला है। महर्षि आत्रेय ने गर्भिणी की उल्टी और दंतवेष्ट यानी की पायोरीया में तथा वायु के सभी रोगों में उपयोगी बताया है। महर्षि सुश्रुत ने मुख कि दर्गन्ध दर करने वाला हल्का, तृष्णा को कफ शुद्ध के रोग को मिटाने वाला कहा है। शोढल ने तृष्णा और अतिसार मे इसका जल बनाकर पीने को कहा है। वैद्य मनोरमा में लंवग बना की त्वचा छिलको को पीसकर गरम पाणी में * मिलकर वात रोग में इसका लेप लगाने को कहा है। यह सब मैनें आयुर्वेद ग्रंथों में से बताया है, मेरे विचार से लंवग का प्रयोग निम्नांकित तः कि अर्श-अश्मरी-अस्थमा विशेषांक से करना चाहिए। 1. खांसी-कफ, बहनी नाक के रोगी लंवग चूर्ण क ये दो गाम जितना चटकी भर हल्दी व पांच काली मिर्च मिलाकर शहद से तीन बार चाटे।, ३ 2. नेत्र की दृष्टि धुंधली है, साफ दिखाई नहीं . देना, नजदीक या दूर का चश्मा हैवीर्य के रोग है तो एक से दो ग्राम लंवग चूर्ण एक चम्मच मिश्री मिलाकर सुबह और रात को सोते समय गाय के दूध के साथ पीए। दूध में 1 चम्मच गाय का घी भी मिला लेगे तो ज्यादा फायदा होगा। 3. मुख की दुर्गंध दूर करने के लिए दिन में दस-प्रदह लंवग चूसे। 4. गर्भवती स्त्री की कै-उल्टी बंध करने के लिए मिश्री के शर्बत के साथ प्रयोग करें। मुसाफरी में हमेशा साथ में रखें क्यूंकि किसी-किसी को मोटर बस का प्रवास या पर्वतिय इलाको के प्रवास में जी मचलना पेट में गब्बारे होना उल्टी आदि तकलिफ होती है, तब यह जादू की तरह काम लगेगी। 5. इसके वृक्ष की त्वचा छिलका पीसकर गरम जल में लेप बनाकर वायु का जहाँ भी दरद हैवहाँ लगा सकते है। जैसे कमर दर्द, घुटगो, जोड़ों का टाट व? 6. हृदय दाह तथा हृदय शूल पर लंवग को चूर्ण को जल के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए दिए पर सेंककर लंवग खाने से कष्टदायक खांसी तथा गले की सूजन मिटती है। ऐसा नव्य मत ब्रीगेड सर्जन मोर्गन-कोचीन का है। 7, दंत पीड़ा, शिरोव्यथा तथा संधिवात में इसके तेल का प्रयोग होता है। रतौंधि पर बकरी के मन में लंवग घीसकर दिन में दो बार उसको आँख में अंजन की तरह लगाना है। यह योग भारत के श्रेष्ठ वैद्य स्वर्गस्थ श्री शंकर जी दाजी पदेजी का है। एक सौ साल पहले अखिल भारतीय आयुर्वेद महा सम्मेलन की स्थापना नासिक महाराष्ट्र में कि थी। आज यह दिल्ली में है। उसके अध्यक्ष पद्म श्री त्रीगणाजी है। इसके बने बनाए शास्त्रिय योग लंवगादि चूर्ण लंवगादि वटि अविपत्तीकर चूर्ण आदि बाजार में वैद्यनाथ, सांडु, डाबर, घूतपापेश्वर जैसी जानी मानी आयुर्वेद फार्मसियां बनाती है। इसके उपयोग कर सकते हैं।