मालिश थैरेपी

शरीर के विभिन्न अंगों, जोड़ों तथा स्नायु स्नायु मंडलों का मर्दन कर, उनकी थकान दूर कर उन्हें सुन्दर, सुडौल बनाने की क्रिया को का मालिश कहते हैं। मालिश से मानव रक्त प्रवाह हि में रगड़ एवं गर्मी पैदा होकर तीव्रता उत्पन्न होती है। मालिश से निष्क्रिय स्नाय सक्रिय हो जाते हैं। मांसपेशियां लचीली बनती हैं। रक्त - संचालन समान होने से शरीर के अन्दर जमा हुए विकार, श्वास, मल, पसीना, मूत्र आदि मार्गों से बाहर निकल जाते हैं तथा स्नायुओं में पोषक तत्वों की वृद्धि होती है। शरीर में शक्ति का संचार होता है। आयु में वृद्धि होती है। मलिश करने का ढंग :- मालिश इस ढंग से कों कि उक्त का प्रवाह हृदय की ओर होता रहे। पहले टांगों से शरीर की मालिश में हाथ की क्रिया नीचे से ऊपर जांघ की ओर होनी चाहिए, फिर ऊपर हृदय तक। तथा सिर और गर्दन की ऊपर से नीचे हृदय की ओर करें। यूं * तो ये क्रियाएं समय एवं सुविधानुसार की जाती हैं किन्तु समय 15 मिनट से 45 मिनट तक शक्ति के अनुसार बढ़ाने से सम्पूर्ण शरीर को भली प्रकार मालिश हो जाती है। रात को सोते समय तलवे पर तेल मालिश करने से और प्रात: सिर में तेल मलने से दुष्टि ठीक रहती है। * भविष्य पुराण' के पन्द्रहवें अध्याय के अनुसार जिन अंगों में मांस कम है, नाभि के नीचे के । मर्मस्थलों, कमर, हृदय, चेहरा और कपल आदि की मालिश हाथ के अन्दर के भाग से । धीधी उनी ज्ञाटि ३ मालिश धीरे की बजाय जरा जोर से परन्तु = आराम से प्रेम पूर्वक करनी चाहिए। सिर और पैरों की खूब जोर लगाकर मालिश करनी चाहिए। जिन भागों पर बाल हो तो उनकी मालिश बालों की विपरीत दिशा में करें। आवश्यकतानुसार शरीर पर हाथ से रगड़कर सूखी मालिश या तेल, घृत, दवा, या अन्य क 1 से सम्पूर्ण मालिश बैरेपी उपयोगी चिकनाई रगड़कर ऋतु के अनुसार रीढ़ मालिश करनी चाहिए। मालिश सिर से नीचे है। की ओर आरम्भ करनी चाहिए। मालिश H.स्नायु ३ स्नायु लेटकर करनी चाहिए। खड़े-खड़े व्यक्ति का जुड़जाना= तिचे तो यति छ कर शरीर तना रहता है लेटने से ढीला होता है तथा मोचको का रक्त संचालन सामान्य होता है। रीढ़ की योग प्रवाह मालिश नीचे से ऊपर की ओर करें। द्वारा उत्पन्न । हो निषेध :- कफ प्रधान रोग होने पर वमन, ज्वर, हल्की रक्त - अजीर्ण, आंव से पीडित, या दोषों की के जमा समाव समावस्था में मालिश न करें। तेल आदि मालिश के प्रकार :- 1. तेल मालिश, 2. शक्तिमें सूखी मालिश, 3. पांव से मालिश, 4. ठंडी रोग शक्ति मालिश, 5. गर्म-ठंडी मालिश, 6. पाउडर से आयुमालिश, 7. बिजली से मालिश।। द्रव्य से अलग-अलग रोगों में और व्यक्ति की आंतोहोता स्थिति के अनुसार मालिश के प्रकार को लिवरहाथ निश्चित किया जाता है। सभी की एक सी होनी मालिश नहीं की जा सकती। मोचऔर मालिश करने के तरीके :दर्दयूं । * आयुर्वेद के अनुसार निम्न प्रकार से की जाती जवान जाती है- 1. गुदगुदाना (Stroking) अर्थात देर तक को संचार धीरे-धीरे बढ़ता है। सोते और 2. । मसलना, स्नायुओं को धीरे-धीरे दबाना: यह क्रिया पीठ कमर और नितम्ब पर की जाती है। अनुसार इससे मांसपेशियों में खिंचाव पड़ता है। इसमें के । दोनों हाथ रीढ़ के दोनों ओर नीचे से ऊपर की कपल ने जाने । से । 3. थपथपाना (Tapping) धीरे-धीरे शरीर परन्तु १ = पर चपत लगाना हल्के-हल्के ठोकना, आघात और करना। करनी 4. मलना (Rubbing) मर्दनः हथेली से उनकी मलना या रगड़ना, मसलना। या शरीर की । स्थिति के अनुसार करें। रगड़कर लाभ :- रीढ़ की हड्डी से दीर्घ काल तक अन्य जीवनी शक्ति प्रवाहित होती है। मालिश द्वारा गुदगुदाना । हल् मालिश बैरेपी रीढ़ ठीक करने से सारा शरीर प्रभावित होता है। रक्त भ्रमण सामान्य होने से नाड़ी दौर्बल्य, H.B.P, अधरंग, साइटिका, जोड़ों का जुड़जाना, पीलिया, मोटापा, पतलापन, चर्मरोग, मोच, अनिद्रा आदि रोग ठीक होते हैं। जो लोग योग या व्यायाम नहीं कर सकते अन्हें मालिश द्वारा व्यायाम का लाभ दिया जा सकता है। हल्की मालिश :- बच्चों की क्षीणता दर करने के लिए लाभकारी होती है। तेल मालिश :- अनिद्रा, पहलवानों की शक्ति, वृद्धों को नया यौवन देती है। रोग निवारण, स्वास्थ्य यौवन, सौन्दर्य दीर्घ आयु, रक्तसंचार ठीक, थकावट दूर, विजातीय द्रव्य बाहर, निद्रा गहरी आएगी, फेफड़े, बड़ी आंतो, गुर्दो, त्वचा को बल प्राप्त होगा। लिवर, छोटी आंत, अन्य ग्रन्थियां सचारु रूप . मोच, स्नायु-रोग, T.B., सिर दर्द, जोड़ों का दर्द, त्वचा के लिए उत्तम, रोम कूप विकसित। जवान कसरत के साथ मालिश करें तो बढापा देर से आता है।