नाभि द्वारा समस्त प्रकार की बीमारियों का उपचार सदियों से होता आया है। यह उपचार विधि अत्यन्त सरल है। विश्व के हर कोने में कहीं न कहीं किसी न किसी नाम या किसी न किसी चिकित्सा पद्धति' में इस उपचार का उल्लेख हमें देखने को मिल ही जाता है। परन्तु एक तो इसका एक 'जगह पर एक साथ संग्रह नहीं है, फिर यह अलग-अलग चिकित्साओं में इसका गया है। यहां पर नाभि उपचार से विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार की चर्चा । की जा रही है। नाभि उपचार, हमारे देश में देशी उपचारकर्ताओं द्वारा बड़े ही विश्वास से किया जाता रहा है। जैसे पेट से सम्बन्धित बीमारियों में या फिर नाभि के खिसक जाने से दस्त लगना या अन्य प्रकार के पेट से सम्बन्धित बीमारियां, जिसका उपचार मुख्यधारा की । चिकित्सा से कराते-कराते रोगी परेशान हो जाता था। परन्तु नाभि के जानकार व्यक्तियों द्वारा नाभि स्पंदन की जानकारी कर, नाभि धि स्पंदन को यथास्थान पर लाकर उसके इस रोग ने को जड़मूल से नष्ट कर देते हैं। । अनेक बीमारियों की पहचान एवं । उपचार नाभि से :- आपको यह जानकर र आश्चर्य होगा कि हमारे शरीर में व्यर्थ सी। दिखने वाली नाभि का बड़ा महत्व है। नाभि का उपयोग को जनसामान्य नहीं समझता, - न वह इसे महत्व देता है। परन्तु इसके जानकार इससे बड़ा लाभ उठाते आये हैं। अध्यात्म विद्या हो या ज्योतिष शास्त्र या फिर विभिन्न असाध्य से असाध्य बीमारियों के उपचार में इसका महत्व सदियों से होता आया है। ऐसी मान्यता का 'है कि नाभि 72000 नाडियों का संगम स्थ तथा यहां पर मणिपूरक चक्र होता है। स पूण शरीर का केन्द्र स्थल होने से नाभि नाड स्पंदन का मध्य क्षेत्र यही पर विद्यमान होता है। रूप परन्तु समय के साथ आधुनिक विचारधारा एवं न वैज्ञानिक परिणामों के अभाव आदि के कारण इसका महत्व धीरे-धीरे कम होने लगा। परन्तु शौच 'आज भी इसके जानकार व्यक्तियों द्वारा इसके जलनउपयोग से आशानुरूप लाभ उठाया जा रहा है। नाभि का महत्व निम्न क्षेत्रों में रहा है। 1. अध्यात्म विद्या |2. ज्योतिष शास्त्र 3. खिसकता चिकित्सा क्षेत्र 4. सौन्दर्य उपचार 5. उसी सम्मोहन शक्ति 6. एक्युपंचर चिकित्सा सम्बन्धित । 17. नेवेल एक्युपंचर चिकित्सा 8. ची.नी. शॉग 'इस चिकित्सा 9. नाभि स्पंदन से समस्त रोगों की ||जाता 'पहचान व निदान आदि। । सदियों से विभिन्न प्रकार की चिकित्सा ठीक नाभि पदतियों, जिनमें प्रमुख रूप से आयुर्वेद, ।परम्परागत चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा । " नाभि जापानी, एवं चाइनीज चिकित्सा, एक्युपंचर, । ! ! 'प्रचलन यूनानी आदि में नाभि से रोग की पहचान एवं । यह उपचार का उल्लेख मिलता है। । ||में नाभि स्पदन स राग का पहचान व निदान, उपचार 'प्राचीन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में नाभि प्रचलन 'स्पंदन से रोग की पहचान एवं रोग निदान का शिकायतों उल्लख है, जिसके द्वारा नाभि के स्पदन सा पेट पहले रोग को पहचाना जाता है। इसके बाद सके बाद ऊपर नाभि स्पंदन को यथास्थान लाकर उपचार कर नाभि रोग का निदान किया जाता है। उनका मानना है, 'कि समस्त प्रकार की बीमारियां पेट से ही शुरू होती है एवं पेट पर शरीर के प्रमुख आंतरिक अंग पाए जाते हैं। नाभि स्पंदन, नाभि के मध्य । होता है। यदि यह स्पंदन नाभि मध्य बिन्दु पर है। बीज या 'होता है। परन्तु जैसे ही यह स्पंदन नाभि मध्य नाभि तो मनुष्य दीर्घ जीवी होने के साथ स्वस्थ भी स्थान खिसकती है तो मनुष्य बीमार होने लगता है। हींग 'बिन्दु से एक सुई की नोक के बराबर भी जीव उसके आंतरिक रस-रसायनों में परिवर्तन देखा। जाता है। यह बीमारी पहले छोटी समस्या को गर्भवती | रूप में सामने आती है, जैसे-कब्ज होना, भूख न लगना, हमेशा थकान रहना, पेट में सा दर्द, या पेट भरा-भरा रहना, गैस बनना, शौच का अनियमित होना, खट्टी डकारें या जलन, जो बाद में हृदय रोग या अन्य रोग में परिवर्तित होने लगती है। इस उपचार विद्या में खिसकता है, सर्वप्रथम वह पेट के आंतरिक उसी अंग को टारगेट करता है एवं उससे सम्बन्धित अंग को रोगग्रस्त करने लगता है। 'इस उपचार विधि में खिसकी हुई नाभि स्पंदन को यथास्थान लाकर रोग का निदान कर दिया |जाता है। आयुर्वेद में पित्त ज्वर के रोगी की। ठीक हो जाता है। नाभि पर ठंडे पानी की धार छोड़ने से पित्त ज्वर ।। प्राचीन नाभि चिकित्सा :- सदियों पूर्व । नाभि चिकित्सा नाम से एक चिकित्सा अपने । 'प्रचलन में थी। परन्तु समय के साथ धीरे-धीरे यह लुप्त होती गई। आज भी दूर दराज इलाकों |में जहां चिकित्सा का अभाव है, वहां यह उपचार विधि किसी न किसी रूप में अप प्रचलन में है। जैसे पेट दर्द या दस्त आदि की शिकायतों में नाभि के जानकार (उपचारकर्ता) पेट पर किसी जलते हुए दीये को रख कर में वाली, ऊपर से खाली बर्तन को रख कर खिसकी हुई नाभि को यथास्थान लाकर इसका उपचारां आसानी से कर देते हैं। पेशाब न निकलने पर आसानी से उतर जाता है, इसी प्रकार बिच्छू या चूहे की लेंडी को नाभि पर लगाने से पेशाब । बीज को पत्थर पर घिसकर उसे काटने के 'जहरीले जीव जन्तु के काटने पर इमली के नाभि के अन्दर लगाने से बिच्छू व जहरीले स्थान पर एवं दूसरे बीज को पत्थर पर घिसकर । हींग को पानी में मिलाकर नाभि पर लेप करने आ जीव जन्तु का जहर उतर जाता है। पेट दर्द में ये 4 ला जाता ३ री पल गर्भवती महिला को प्रसव में दर्द होने पर अंधाझारे के पौधों के पत्तों को नाभि में पीसकर लगाने से प्रसव असानी से हो जाता है एवं दर्द कम होता है। आर्डिमिसिया बलगेरिश इसका प्रयोग एक्युपंचर चिकित्सा में मोक्सा उपचार के लिए किया जाता है। ये सूखे पत्तों का नाभि के ऊपर सेक करने से पेट की समस्त बीमारियां ठीक हो जाती हैं। हैजा जैसी संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए नाभि पर तांबे के सिक्के लगाने से यह बीमारी नहीं होती, इसी प्रकार के और भी कई नुस्खे थे, जो नाभि चिकित्सा के नाम से ग्रामीण चिकित्सक प्रयोग किया करते थे। परन्तु आधुनिक चिकित्सा पद्धति के आने से धीरे-धीरे इसकी जानकारियां लुप्त होती चली गई। । चिकित्सा :- चीनी, शॉग चीन व जापान की एक परम्परागत चिकित्सा पद्धति कन्या राटति है, जिसका प्रयोग सदियों से परम्परागत उपचार विधि में होता आया है। यह एक पूर्णतः प्राकृतिक एवं सरल, चिकित्सा है। इस उपचार विधि में बिना दबाओं के सरलता से बड़ी से बड़ी बीमारियों का उपचार किया जाता रहा है। के साथ यह परम्परागत चिकित्सा लुप्त होने लगी थी।
नाभि चिकित्सा