सभी पंचम किया करना यानि कि धाले की नोंक देकर पर चलना, ऐसी बात है किन्तु यह नग्न सत्य है। क्योंकि हमारे समय में सिर्फ चरक सुश्रुत वागभट नहीं या नहीं में से पंचकर्म के विषय में वाचन ही होता था। जरूरी प्रात्यक्षिक (Practical) नहीं सिखाया जाता था। विषय ना था विषय बाकी सब विषय उत्तमोत्तम सिखाये जाते थे। मेरा कॉलेज उस जमाने के बोम्बे स्टेट का श्रेष्ठ कॉलेज था और गुजराज का श्रेष्ठ कॉलेज है। गुजरात परे मार्ग भारत में श्रेष्ठ है। अब पंचकर्म पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है फिर भी मुझे तस्सली नहीं है। जिस तरह से शास्त्रोक्त पंचकर्म होना चाहिए वह नहीं होता और हमारे बेरहम वैद्य चिकित्सक रोगियों को अष्टम् षष्टम् समझाकर धन लूट लेते हैं। ‘पूरे भारत में जामनगर आयुर्वेद विश्वविद्यालय, समीकरोति काशी विश्वविद्यालय बनारस में पंचकर्म सही शोधन सिखाया जाता होगा ऐसा मानता हूं। स्वतंत्र तरीके मलों से पंचकर्म तथा अन्य सभी कर्म आयुष ग्राम ट्रस्ट गूदा चित्रकूट द्वारा वैद्य श्री मदन गोपाल बाजपेयी जी उदाहरणार्थं की देखभाल में हो रहा है। (वैद्य श्री मदन गोपाल देखो बाजपेयी जी पिछले 19 वर्ष से चिकित्सा पल्लव' आयुर्वेदिक मासिक पत्रिका प्रकाशित कर रहे हैंदेह जिसमें संशोधनात्मक साहित्य परोसा जाता है।) पंचकर्म के लिए छिन्दवाड़ा छत्तीसगढ़ की कोई संस्था बहुत ही श्रेष्ठ काम कर रही है। भूतकाल में स्वर्गस्थ श्री एच.एस.कस्तूरे जी से जिनको कई बार वैद्यनाथ आयुर्वेद भवन ने स्वर्ण सकता पदक देकर सम्मानित किया और इस विषय के पुस्तक भी प्रकाशित किए। कस्तूरे जी मेरी पत्नी मेरी पी दुबारा वैद्य हेमलता के गरु और मेरे बढ़िया मित्र थे। कस्तरे जी अहमदाबाद सिविल अस्पताल के प्रकार आयुर्वेद विभाग के सुप्रिटेन्डेन्ट तथा गुजरात सरकार में आयुर्वेद नियामक थे। इस विषय में एक जमाने में केन्द्र सरकार के वरिष्ठ वैद्य श्री पी.एन. अणुवी. कप जी का भी नाम बड़ा था। विशाल हमारा नाकामयाब भारत महान किन्त पंचकर्म चिकित्सा में बेहाल कंगाल। पंचकर्म करना यानि कि भाले की नोंक पर चलना यह मैं लिख चुका हूं। आयुर्वेद में शमन और शोधन चिकित्सा के दो पहलू हैं। सामान्यतया निरोगीसभी रोगों की चिकित्सा वैद्य समाज औषधियां देकर ही करते हैं और मरीज-ऋग्ण निरामय रोग निकलती राहत हो जाता हैजब शमन चिकित्सा स परिणाम नहीं मिलत तब २ नहीं मिलते तब शोधन चिकित्सा का सहारा लेना जरू जरूरी होता है। पहले हम शमन चिकित्सा के विषय विषय में देखते हैं। शमन चिकित्सा :- जो औषध वात-पित्तादि दोषों को ऊपर के (मुंह द्वारा) या नीचे के (गुदा द्वारा) किया मार्ग से नहीं निकालता और यह वात-पित्त-कफ दिया सही है तो उनका दोष नहीं करता किन्तु कुपित हुए या विषम हुए दोषों को सम करता है इसलिए इसे शमन कहते हैं। उदाहरणार्थ 'गिलोय' यह व्याख्या शारंगधर जी की है। श्लोक इस प्रकार है :- ‘न शोधयति न द्वेष्टि समान्दोषांस्तथोद्वनान्। समीकरोति विषमाञ्शमनं तद्यथा अमृता॥' शोधन चिकित्सा :- जो औषध देह में संचित लिए मलों को अपने स्थान से हटाकर मुंह मार्ग से या गूदा मार्ग से निकालते हैं उसे ‘शोधन' कहते हैं। उदाहरणार्थं देवदाली (बेदाल) का फल। श्लोक देखो :निकला टोटो का राज देह संशोधनम् तत्स्याद् देवदाली फलम् यथा॥' लंघन और पाचन औषधियों से मिटे हुए रोग कदाचित फिर से होना संभावित है, किन्तु शोधन से दूर किए हुए रोग पुनः नहीं हो सकते। जिस तरह से जड़ से उखाड़ा हुआ वृक्ष फिर से नहीं उग सकता ठीक इसी तरह शोधन से उखाड़े हुए रोग , दुबारा नहीं होते। शोधन चिकित्सा के आभ्यन्तर और बाह्य यह दो प्रकार हैं। विस्तार भय के कारण इसकी चर्चा नहीं पक्वाशय करतापंचकर्म का सामान्य परिचय करना ही मेरा आशय है। जब रोग शरीर में रोम-रोम में अणु-अणु में घर करता है तो शमन चिकित्सा नाकामयाब रहती है। इस वक्त शोधन चिकित्सा चिकित्सा का सहारा लेना पड़ता है। पंचकर्म शोधन चिकित्सा चकित्सा का अभिन्न पहलू हैं। पंचकर्म करवाना ही ना पड़े जैसी व्यवस्था भगवान ने हमारे शरीर को निरोगी-निरामय रखने के लिए की है। शरीर की अशुद्धियां मल-मूत्र और स्वेद (पसीना) द्वारा निकलती रहती है जिसके कारण शरीर स्वस्थ रहता हैजब यह ठीक से नहीं । शरीर में रोगों ने अपना घर बनाना शुरू कर दिया हैयह हमें समझना चाहिए। यह सब होने का कारण हमारे खान-पान गलत आदते हैं यह सब हमारी समझ के बाहर की बात नहीं है। जान-बूझकर किया गया कुकर्म को आयुर्वेद ने 'प्रज्ञा पराध' नाम दिया है। परिवार से प्यार है तो इसे छोड़ोवरना। वरना, भगवान की लकड़ी में आवाज नहीं है। वह व्याधि बनाकर आपको सब तरह से बरबाद कर देगी। 1. जिस रोगी को कफ प्रधान रोग जैसे कि श्वास, कफ, मधुप्रमेह, अपची (गांठ), गले की हड्डी के ऊपर के रोग, त्वचा रोग जैसे रोग हुए है उनके लिए वमन' नाम का कर्म करना चाहिए। वमन का अर्थ यहां उल्टी नहीं समझना है। वमन कर्म में गाय का औषधि युक्त दूध या औषधि युक्त गन्ने का रस आकंठ पिलाकर उल्टी कराकर प्रकुपित दोषों को निकला जाता है। उल्टी किसी व्याधि के उपद्रव रूप में तथा स्वतंत्र व्याधि रूप हो सकती है। इन रोगों के अलावा आत्महत्या हेतु जहर पीने वाले व्यक्ति या विषाक्त भोजन (Food Poison) से पीड़ित व्यक्ति आमाशय-पक्वाशय में गए हुए जहर को निकालने के लिए वमन कार्य करना चाहिए। इसको स्टमक वॉश (Stomach Wash) कहते हैं। , 2. अफारा, यकृत Liver प्लिहा Spleen तिल्ली, कब्ज, आनाह, उदर रोगी, जीर्णज्वर, अम्लपित्त , Aciditv हेडकी li पक्वाशय गत रोग जैसे पित्तज रोगों में विज्ञान कर्म किया जाता है। विरेचन का मत से होने वाली जलाव क्रिया। 3. बस्ति कर्म :- वायु प्रधान रोगों में बस्ति कर्म = द्वारा चिकित्सा की जाती है।
पंचकर्म कर्ण को समझो, पहचानो •