रक्तचाप और वैकल्पिक चिकित्सा

विश्व स्वास्थ्य संगठन (W.H.0)द्वारा विश्व की 120 चिकित्सा पद्धतियां मान्यता प्राप्त हैं, जो पद्धतियां दवा विहीन (Drug Less) बिना दवा के चिकित्सा करती हैं, Altanatin Medicine अल्टरनेटिव मेडिसिन्। वैकल्पिक चिकित्सा पद्धति कहा गया है। अर्थात् दवा नहीं पर दवा के विकल्प के रूप में प्रयोग की जाने वाली चिकित्सा पद्धति जैसे योग प्राकृतिक चिकित्सा एक्युपंचर, एक्युप्रेशर, सुजोक, चुम्बक चिकित्सा, रिफ्लोक्सोलॉजी, आरोमा, सम्मोहन, मेडिटेशन, नृत्य-संगीत थैरेपी, आदि-आदि विविध चिकित्सा विधियों का समावेश किया गया है। एलोपैथ चिकित्सा तो अपने को छोड़कर सबको वैकल्पिक ही मानते हैं। पर आयुर्वेद अपने आप में सर्वागीण निर्दोषतम चिकित्सा पद्धति मानी जाती है। चिकित्सा विज्ञान में जब से औषधियों के दुष्प्रभावों पर ध्यान दिया तो इतने खतरनाक नतीजे सामने आए कि आज रोगों के खतरों से अधिक तबाही मनुष्य एण्टी बायोटिक्स औषधियों के साइड इफेक्ट्स झेल रहा है तथा शरीर रोग प्रतिरोधक क्षमता रहित होकर कैंसर, एडस, हिपेटाइटिस जैसे प्राणघातक मारक रोगों से ग्रस्त हो रहा है। आज रक्तचाप, मधुमेह, हृदय रोग, किडनी फेल्यिोर आदि ऐसी बीमारियां हैं, जिनके लिए रोगी जीवन भर दबाएं खाता है और फिर दवाओं के साइड इफेक्ट्स से विविध विकारों से परेशान रहता है। अतः आज तथाकथित विकसित देशों के प्रबुद्ध लोग भी एलोपैथ के दुष्टप्रभावों से बचने के लिए वैकल्पिक चिकित्सा विधियों को अपना रहे हैं तथा योग एक्युपंचर, एक्युप्रेशर, डॉ. गिरधारी विश्व मेडिटेशन, हास्य आदि थैरेपी व विविध प्राप्त स्वास्थ्य रक्षक उपायों को अपना रहा है तथा Drug जो लोग रोग के आक्रमण के होते ही रक्तचाप, , मधुमेह जैसे जीवनभर चलने वाले रोगों का Medicine आक्रमण होते ही अपनी जीवनशैली में सुधार वैकल्पिक कर पथ्य-अपथ्य पर ध्यान देते हुए वैकल्पिक दवा उपायों का अपना लेते हैं, वे सुखमय प्रयोग आरोग्यमय जीवनयापन करते हैं। योग उच्च रक्तचाप में उपयोगी अन्य चिकित्सा , पद्धतियां , 1.एक्युपंक्चर-एक्यूप्रेशर :- शरीर में सभी , , अंगों के निश्चित मर्म स्थान हैं तथा शरीर के किसी भी अंग में विकृति होने से तत्संबंधी मर्म विधियों बिन्दु प्रभावित होते हैं। एक्युपंक्चर चीनी निर्माण एलोपैथ चिकित्सा का विकसित रूप है पर इसके सबको मूलसिद्धान्त आयुर्वेद में समाविष्ट है तथा अपने पंचमहाभूत का सिद्धान्त ही इस चिकित्सा चिकित्सा विज्ञान की आधारशिला है। भारत में 3000 हजार वर्ष पूर्व यह पद्धति प्रचलित थी। के कर्णभेदन संस्कार, नासाभेदन संस्कार इसी के खतरनाक अपभ्रंश हैं। गलामी में भारतीय संस्कति से सभ्यता के साथ यह विज्ञान भी आक्रान्त हआ। बायोटिक्स भारत में यह विज्ञान श्रीलंका तथा श्रीलंका से तथा चीन, जापान बौद्ध कैंसर, गुरुओं द्वारा पहुंचाया रोगों गया तथा आज चीन, जापान, अमेरिका, किडनी कोरिया, श्रीलंका एवं लिए पश्चिमी देशा में फिर सफलतापूर्वक इसका विकारों प्रयोग हो रहा है। 2. रक्तचाप में के एक्युपंचर :- चिकित्सा तो योग्य चिकित्सक बचने ही निश्चित बिन्दु पर सुई द्वारा पंक्चर कर को सकता है। एक्युप्रेशर में रोगी स्वयं भी निश्चित एक्युप्रेशर, बिन्दुओं पर अपने हाथ की अंगुली से दबाव डालकर कर सकता है। उच्च रक्तचाप में रोगी अपने दाहिने हाथ की हथेली मणिबन्ध पर बाएं हाथ की तीन अंगुली रखकर ठीक बीच में (पेरिकार्डियम-6) बाएं हाथ की तर्जनी अंगली से 2-3 मिनट तक प्रतिदिन सुबह-शाम दबाब डालने से उच्च रक्तचाप नियन्त्रित होता है। इसी प्रकार बाएं हाथ के पाइंट पर दबाब डालने से निम्न रक्तचाप नियन्त्रित होता है। हमने रक्तचाप के रोगियों पर एक्युपंचर की चिकित्सा की है। 3. चुम्बक चिकित्सा :- शरीर पर चुम्बक का स्पर्श होने पर शरीर में चुम्बकीय तरंगों का निर्माण होता है, जो त्वचा रंध्रों से शरीर में प्रवेश कर सशक्त रक्त कोषाणुओं की संख्या में वृद्धि करती है, जिससे रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। हृदय सक्षम होकर अच्छा कार्य करता है। रक्त शुद्ध होकर शरीर की कमजोरी दूर करता है। रक्त में स्थित हीमोग्लोबिन के लौह युक्त कण शिराओं में भ्रमण करते हैं, जिससे कोलेस्ट्रॉल जमे हुए द्रव्य रक्त निकलते हैं, यौवन बना रहता है। चिकित्सा में चुम्बक के ध्रुवों का सही उपयोग करना चाहिए। उच्च रक्तचाप में :-दो हाईपॉवर के चुम्बक (बाजार में चिकित्सकीय उपयोग हेतु मिलते हैं) लेकर उत्तरी ध्रुव चुम्बक पर दाएं हाथ की हथेली तथा दक्षिणी ध्रुव पर बाएं हाथ की हथेली रखकर 10 मिनट बैठना चाहिए। यह प्रयोग सुबह खाली पेट करना चाहिए। इसी प्रकार निम्न रक्तचाप के लिए विपरीत क्रिया करनी चाहिए। चुम्बक की वेल्ट भी आती हैं। 4 रक्तचाप घटा :- यह वेल्ट उच्च रक्तचाप हो तो दाहिने हाथ की कलाई में तथा निम्न रक्तचाप हो तो बाएं हाथ की कलाई में घड़ी की तरह बांधनी चाहिए। 3-4 घंटे बाद खोल देनी चाहिए। 5. योगाभ्यास :- योग में पवन मक्तासन, प्राणायाम, वज्रासन (प्रतिदिन भोजन के बाद 10 मिनट का दैनिक अभ्यास), सर्वांगासन, सूर्यनमस्कार, ध्यान व योगनिद्रा का अभ्यास रक्तचाप में लाभप्रद है। 6. रुद्राक्ष :- उच्च रक्तचाप, हृदय रोग में रुद्राक्ष की माला को धारण करना लाभदायक है। आधुनिक चिकित्सा वैज्ञानिकों ने अनुसंधान कर यह स्वीकार किया है कि रुद्राक्ष में एक प्रकार की चम्बकीय शक्ति व विद्युतशक्ति निहित है। इसके दाने में गोलक एसिड, एलोलेमक अम्ल एवं ग्लकोज, पेक्टिन और विटामिन 'सी' होता है, जो अनिद्रा, रक्तचाप, हृदय रोग में लाभप्रद है। पंचमखी रुद्राक्ष के पांच दाने 1 ताम्बे के गिलास में जलभर शीतल स्थान पर रख दें। सुबह उठते ही इस जल को पीलें तथा पुनः जल भर दें। इस प्रकार रुद्राक्ष 24 घंटे पानी में डूबे रहने दें। रोज पानी पीलें और पनः पानी भर दें। इससे रक्तचाप तथा हृदय रोगियों को बड़ा लाभ होता ४ टोना रुद्राक्षमाला धारण :- दीपावली, नवरात्रि, में दशहरा व गुरुपुण्य योग व शुभ मुहूर्त में भगवान शिव को गंगाजल से स्नान कराकर माला धोकर शंछकर ॐ नमः शिवाय की 108 - बार जपते हुए अभिषेक कर प्रार्थना कर माला को गले में धारण करना आरोग्य सुख-समृद्धि * दायक है। उच्च रक्तचाप में उपयोगी योग निद्रा विधि । :- रक्तचाप के विविध कारणों में प्रमुख कारण * मानसिक तनाव, अशान्ति, अनिद्रा है, जिसके । लिए लोग योग-प्राकृतिक चिकित्सकों के पास भी जाते हैं। दोनों ही विधाओं का प्रयोग करते हैं पर ये सभी के लिए आसन अनुकूल नहीं 5. पड़ते। हमने केदारमल आयुर्वेदिक अस्पताल में अनेक बार योग शिविरों का आयोजन विशेषज्ञों विपो मेरी तुलसी है।