आहार महान देश है

भारत एक महान देश है जहां विभिन्न समुदाय है। प्रकृति जानती है कि इस ऋतु में मानव अनेक जातियों, अनेक सभ्यता, अनेक कल्याणार्थ किन सब्जियों, फलों अनाजों की • भाषाओं, अनेक खान-पान, अनेक वेशभूषा के आवश्यकता है, उन्हीं को प्रदान करती है। • लोग रहते हैं। शायद पूरे विश्व में भारत एक ही । इस ऋतु में कफ प्रधान वाले व्यक्तियों को बिचेंऐसा पहला देश है जहां छह ऋतुएं अपने सावधानी बरतनी चाहिये। इस ऋतु के आगमन वाली निश्चित समय में आकर मनुष्य के जीवन में से जुकाम, खांसी, गला खराब, श्वांस रोग, इस परिवर्तनशीलता का पाठ दिखाती है। इन दमा, उल्टी, अरुचि, अपच, ज्वर, पाचन के • ऋतुओं का मानव जीवन में बहुत महत्व है। रोग आदि उभरने लगते हैं। अत: इनसे बचने के ||• यह ऋतु सूर्य एवं चन्द्रमा की गतियों के अ 1 'लिये तथा स्वास्थ्य की रक्षा हेतु कुछ ' 1 खान-पान में इस प्रकार परिवर्तन करना भोजनपिर परिवर्तित होती रहती है। छह ऋतुओं में दिये ।। बिसन्त ऋतु को सर्वोत्तम एवं सुन्दरतम माना " • रात्रि में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण कांच के अपनी जाता। इसे ऋतुओं का राजा भी कहते हैं। गिलास में जल भरकर डाल दें एवं ढंक कर प्रकृति बसन्त ऋतु में सभी पेड़-पौधों अनेक प्रकार के प्रत ३ पात-काल कर वही जल पी लें'स्वास्थ्य नवीन पुष्पों से सुशोभित प्रसन्न मुद्रा में नृत्य प्रातः 2 से 4 गिलास जल उषाकाल में पीना नियमों करते हुए दिखते हैं। सारी वसुधा सजी-संवरी चाहिये। बीमारियों दुल्हन की तरह अत्यन्त मनभावनी एवं ।. प्रात:काल की सुमधुर वेला में बाग, व वाला में प्रकृति 'लुभावनी लगती है। इस बात की पुष्टि भगवान उपवन, वाटिका, नदी तट, झील तट में भ्रमण बनाया योगेश्वर महाराज श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन करना चाहिये। । को बताया था कि हे अर्जुन • प्रात:काल कपलिभॉति, भस्त्रिका, ।। ‘मासानां मार्गशीर्षोहमृतूनां कशुमाकर' : अनुलोम-विलोम तथा भ्रामरी प्राणायाम करना ( 10/35) अर्थात् ‘हे अर्जुन महीनों में मैं चाहिये। ।।मार्गशीर्ष तथा ऋतुओं में बसन्त ऋतु हूं। चारों .. • इसके पश्चात् सुबह योगासन अथवा ।ओर पृथ्वी फूलों से लहलहाती भ्रमरों से व्यायाम करेंगुंजायमान वातावरण में खुशबू को बिखेरती । हुई दृष्टिगोचर होती है। इस ऋतु में न ज्यादा • प्रातः लालिमायुक्त सूर्य की किरणों का 'ठंड होती है न ही अधिक गर्मी। पर ऋत स्नान नंगे बदन करें, हो सके तो उस धूप में अत्यन्त मनोहारी एवं लुभावनी होती है। बैठकर तेल मालिश करें। फिर आधा घंटे बाद सम्पूर्ण स्नान करें। नाभि में गोघृत लगायें। ।ऋतु परिवर्तन होता है वैसे ही हमारे खान-पान, रहन-सहन में भी परिवर्तन आवश्यक हो जाता '• सप्ताह में एक दिन प्रात: धूप में 9 से 11 | - बजे पूरे शरीर में पंक स्नान करें फिर मिट्टी सूखने पर जल स्नान करें। • इस ऋतु में पेट साफ रखें। • नाश्ते में पराठे, ब्रेड मैदे से बनी सभी चीजें आलू, उड़द की दाल, छोले, राजमा, अधिक घी, तेल, गुड़, अचार, सिंघाड़े से बचें। अधिक ठंडे पेय पदार्थ कोल्ड ड्रिंक्स, आइसक्रीम, दही, गन्ना रस, भैंस का दूध कम से कम सेवन करें या बचें। • चाय, काफी, कहवा, काली चाय से बचेंतथा उसके स्थान में आयुर्वेदिक चाय पियें।। • प्रातः लेट न उठे तथा दिन में नींद न लें। • अधिक भोजन, पेट भर कर न करे। • प्रातः एवं सायं की ठंडी वायु एवं शीत से बिचें। एकाएक कम कपड़ों में न रहें। जाने वाली हल्की ठंड नुकसान दायक होती हैइस • धूम्रपान एवं अन्य नशीले पदार्थों से बचें|• कफ वर्धक खाद्य, खट्टे, मीठे गरिष्ठ ' भोजन, तली-भुनी चीजें न खायें। । मनुष्य को प्रकृति परिवर्तन के अनुसार ही अपनी जीवनशैली में भी बदलाव लाकर प्रकृति के साथ चलना चाहिये तभी हम स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। प्रकृति के नियमों के खिलाफ चलने से हम विभिन्न बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं।