वर्षा ऋतु में जहां पानी की फुहारे आनन्दित करती नहीं। डेंगू में सबसे चिन्ता का विषय रक्त में भूख नहीं लगती है और शरीर पर छोटे-छोटे दाने हैं वहीं इस ऋतु में विभिन्न रोग भी खूब उपजते प्लेटलेट्स का कम हो जाना है। जब किसी रोगी हो जाते हैं। उबला पानी पीना इसका मुख्य इलाज एवं फलते-फूलते हैं। जो भी कोई स्वच्छता एवं का प्लेटलेट्स काउंट 10 हजार से कम हो जाए या है। स्ट्रीट फूड से बचना चाहिएखान-पान अनुशासन का पालन नहीं करता, वह शरीर के किसी भाग से रक्तस्राव होने लगे तो इस उपरोक्त वर्णित सब रोगों के बारे अलग से बहुत तो वर्षा ऋतु के किसी भी या बहुतेरे रोगों को स्थिति में रक्त चढ़ाना पड़ता है। इसके अलावा कुछ लिखा जा सकता है। जैसे कि चर्म रोगों में आमन्त्रित करता है। इस ऋतु में चर्म रोग, जिगर रक्तचाप का कम होना और फेफड़ों व पेट में पानी हमने छाले यानि Herpes रोग का जिक्र किया जो और पेट के रोग तथा विभिन्न प्रकार के ज्वर खूब का जमा होना चिन्ताजनक पहलू हैभारत में कि बहुत कष्ट एवं पीड़ा कारक है। मामूली ज्वर रंग दिखाते हैं। चर्म रोग जैसे कि खुजली, मलेरिया दो प्रकार के सूक्ष्म जीवी कीटाणुओं से होता है। पीड़ित स्थान पर जलन एवं गर्मी प्रतीत फोड़े-फुसियां, कील-मुंहासे, दाद, बिवाइयां, होता है। प्लाजमोडियम वाइवैक्स व प्लाजमेडियम होती है। छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं। इनमें पीप खुश्क एक्जीमा, बहने वाला एक्जीमा, पित्ती फाल्सीपैरम। ये मच्छर जब काटते है तो पैदा हो जाती है जो बाद में सूखकर भूरे छिलके रह (छपाकी) छूत वाली खुजली, गर्मी के दाने खाल प्लाजमेडियम जीवाणु मच्छर के पेट में से मनुष्य जाते हैंउघड्ना, छाले और चम्बल यानि जैसे अन्य कई 'के पेट में दाखिल होते हैं व उसके जिगर (लिवर) Herpes Zoster के दाने शरीर के एक और रोग हैं जो इंसान को सताते हैं। चर्म शरीर का शीशा में अपना अड्डा बनते हैं जहां खूब विकास होने आधे दायरे के रूप में माला की भान्ति छाती, पैर, है जो शरीर में उपजे रोगों को दर्शाता है। इनके तीन पर वे खून में टहलने निकल पड़ते हैं, तब उस बाजू और पीठ पर निकलते हैं। मुख्य प्रकार हैं :व्यक्ति को 7-8 दिन, बाद बुखार आता है। एक अन्य चर्म रोग भी बहुत रूपों में देखा जाता है, जैसे :- 1. त्वचा तथा संवेदन ग्रन्थियों को फाल्सीपैरम कीटाणु वर्षा ऋतु में अधिक उत्पन्न यानि एलर्जी - यानि अल्ला की मर्जीप्रभावित करने वाले चर्म रोग, 2. प्रदाहक रोग होते हैं किन्तु जब अधिक मात्रा में शरीर में घुस एलर्जी खाने की, सुगन्ध की, अनाज की और 3. स्नायु दोष एवं ऐसे रोग जिनकी उत्पत्ति परजीवी (जाते हैं तो इससे फाल्सीपैरम मलेरिया के लक्षण उिससे छीके, जुकाम, खरश, चर्म रोग और विभिन्न संक्रमण द्वारा होती है। होम्योपैथिक चिकित्सक के उभरते हैं जिसे आमतौर पर जहरीला मलेरिया अवस्थाएं हैं एलर्जी की, जिनसे विभिन्न रोग लिए इन रोगावस्थाओं का विश्लेषण कर औषधि कहते हैं परन्तु यदि रक्त में इस कीटाणु का पता उपजते हैंएलर्जी को यह माना जा सकता है कि निर्धारण का निर्देश है ताकि वास्तविक जानकारी चल भी जाए तो यह जरूरी नहीं कि जहरीला रोगावस्था न होकर शारीरिक सरक्षात्मक प्रकिया हैप्राप्त कर सही औषधि का चुनाव कर सके। । मलेरिया ही होगा। ।परन्तु किसी भी अवस्था का सामान्य से ऊपर जाना पेट के रोग जैसे कि आमाश्य की शोथ।उपरोक्त ज्वर यानि डेंगू या मलेरिया या घातक सिद्ध होता है। यही कारण है कि एलर्जी का आमाशय की पीड़ा, अजीर्ण या बदहजमी, छोटी चिकनगुनिया आदि के लिए होम्योपैथिक में बहुत बार-बार अपनी आवृति से होना दरगामी परिणाम आन्त की सूजन, बड़ी आंत की सूजन, 'प्रभावशाली एवं समस्या रहित औषधिया है।' घातक हो सकते हैंप्रायः बारबार एलर्जी के एपेन्डीसाइटिस, अतिसार, पेट के कीडे, जिगर हालांकि रोग की प्रारम्भिक अवस्था में ही इलाज !ला के रोग, पीलिया तथा यहां तक कि जिगर का सिकड़ा शुरू करना, परहेज रखना और डॉक्टर द्वारा रोगी सिस्टम) कमजोर पड़ जाता है व उस अवस्था में जाना यानि जैसी अवस्था भी आ जाती है यदि और रोग की अवस्था अनुसार सही औषधि का षधि का शरीर अनेकों रोगों के सापेक्षता से लड़ने की क्षमता , समय रहते सावधानी न की जाए। पेट के बहुत रोग चुनाव बेहद आवश्यक है। उपरोक्त वर्णित ज्वर र खो देता है व संक्रामक रोगों में फंस जाता हैहैं जो मुख्यत खान-पान की लापरवाही और हाथ यानि डेंगू और मलेरिया मच्छर के काटने से होते " श्वास एलर्जी अस्थमा हो जाती है। एलर्जी का ज्ञान धोए बिना या गन्दे पानी के पीने या बिना धोए हैं। इसलिए अपने आस-पास नालियों, टंकियों या । " हो जाए तो हम स्वयं सावधानीपूर्वक अपने शरीर फल-सब्जी खाने से हो जाते हैं। चर्म रोग एवं पेट रसोई घर में पानी इकट्ठा मत होने दें और सफाई * की निर्देशित परहेजों द्वारा सुरक्षा कर सकते हैं।। रोगों के अलावा इस ऋतु में नजला, जुकाम, पर पूर्ण ध्यान दें। डेंगू होने पर सिर-दर्द, तेज इस प्रकार चाहें तो पेट रोग या चर्म रोग या एलर्जी, खांसी एवं विभिन्न ज्वर भी बहुत तंग बुखार, थकान, जोड़ों में दर्द, पढ़े दर्द, सूजन और विभिन्न ज्वर, जिनकी बहुत अधिक किस्में हैं। करते हैं। ज्वर एक ऐसी अवस्था है जिसकी शिरीर पर दाने आ जाते हैं। मसूड़ों से खून बहता है । । प्रत्येक का इलाज होम्योपैथिक विधि और पहचान शरीर के सामान्य ताप में वृद्धि पाई जाने के आंखें लाल हो जाती है। हथेलियों और पैरों के औषधियों से निश्यच ही प्रंशसनीय है, हालांकि फलस्वरूप होती है। ज्वरावस्था प्रायः शीत अथवा तलवों में असहनीय जलन होती है। आज कल आपका पद्धति में विश्वास, चिकित्सक का कम्पन के साथ प्रकट होती है अथवा ज्वर प्रकट 'वाइरल फीवर भी आम सुना जाता है। इसमें भी , अनुभव एवं रोग की जानकारी एवं उचित औषधि होने से पूर्व सिर दर्द या थकान महसूस होता है। ज्वर बहुत तेज होता है। इसमें शरीर का तापमान चुनाव बेहद आवश्यक है। आज-कल डेंगू ज्वर की बहुत दहशत है। हालांकि करीब 103-104 डिग्री तक हो जाता है।
चर्म रोग