चिकित्सा कभी वैकल्पिक होती

पौरुष ग्रंथि का बढ़ना ढलती उम्र का रोग है। पेट |-अग्निसार क्रिया का अभ्यास करने से अनेक रोग इसके कुछ लक्षण :- 1. काफी समय तक पेशाब के नीचे मत्राशय की गर्दन पर पौरुष ग्रंथि होती है। ठीक होता है। इसके लिए वज्रासन में बैठकर या का धीरे-धीरे टपकना, 2. रात में बार-बार पेशाब यह पुरुष प्रजनन प्रणाली का एक अंग है। इसका खड़े होकर श्वास बाहर निकालकर पेट को होना, 3. पेशाब और वीर्य में खून का आना, 41 आगे-पीछे चलाएं। एक बार जब तक बाह्य पेशाब करते समय दर्द होना, 5. कमर की हड्डियों काम अंडाशय में बने शुक्राणुओं से परिपूरित करना । कुंभक कर सकें तब तक नाभि सहित पूरे पेडू में दर्द होना और 6. भूख न लगना, वजन कम है, जिससे उन्हें भोजन मिलता है। पौरुष ग्रंथि बढ़ने । 'प्रदेश का आंकुचन-प्रसारण करीब 20 से 40 बार 'होना।से जैसे-जैसे मूत्राशय पर दबाव बढ़ता है मूत्र तक करें। कंधों को न हिलाएं। इस क्रिया को 4-5 बचाव के उपाय :- 1. फैटी डाइट न लें, रेड संबंधी परेशानियां बढ़ती जाती हैं। हर पल ऐसा ।बार या शक्ति के अनुसार अधिक बार करें। मीटर डेयरी प्रोडक्ट का उपयोग कम करें, 24 लगता है जैसे बहुत पेशाब होगा, लेकिन बहुत कम मोटापा, मधुमेह और मूत्र रोग ठीक होते हैं। पौरुष नियमित व्यायाम करें, 3. हरी सब्जियों और फलों पेशाब आता है और लगता है कि अभी पेशाब ग्रंथि से पीड़ित व्यक्ति यह क्रिया नियमित करें। का सेवन करें, 4. ग्रीन टी का सेवन करें, यह कैंसर करना है। ऐसे में मूत्राशय संक्रमित हो जा '-कपालभाति का अभ्यास सभी के लिए लाभप्रद को कम करती है, 5. सोयस और सोया प्रोडक्ट को होता है। इससे पेट के समस्त रोग नष्ट होते हैं। सेवन करें और 6. शराब और धूम्रपान से दूर रहें। । |जिससे पेट के नीचे दर्द रहने लगता है। 50 के बाद मोटापा, मधुमेह, गैस, कब्ज, किडनी और पौरुष से पौरुष ग्रंथि कैंसर की चार अवस्थाएं होती हैं की उम्र में अगर बार-बार पेशाब आने के संबंधित सभी रोग निश्चित रूप से नष्ट हो जाते हैं। :साथ साथ यदि रूक-रूककर पेशाब आता है, तो अनुलोम-विलोम, भस्त्रिका आदि प्राणायाम का भी , इसे हल्के ढंग से न लें, यह कैंसर का लक्षण हो 'अभ्यास करेंइससे शरीर की भीतरी शक्ति में 'पौरुष ग्रंथि के अंदर होता है। दूसरी अवस्था में सकता है। |वृद्धि होती है जिससे रोग ठीक होने में मदद कैंसर ग्रंथि के अंदर होता है, लेकिन पौरुष के दोनों रोग से बचने के लिए समय पर जांच मिलती है। |लोवों में फैल चुका होता है। तीसरी अवस्था में करवाएं हरी सब्जियों का सेवन करें टमाटर हरी पौरुष ग्रंथि कैंसर में जागरूकता जरूरी ||कैसर पौरुष ग्रंथि के बाहर निकलकर आस-पास 'पत्तेदार सब्जी, तरबूज व अनार जैसे फलों को पौरुष ग्रंथि पुरुष में पाई जाने वाली ग्रंथि है के हिस्से जैसे लिम्फनोड में फैल जाता है। चौथी खाएं, नियमित व्यायाम करें। पर्याप्त मात्रा में जो कई छोटी ग्रंथियों के साथ मिलकर बनी है। इन और अंतिम अवस्था में कैंसर फेफडे. हडिडयों खनिज लवण, मैग्नीशियम, जिंक तथा विटामिन 'ग्रंथियों का आकार बढ़ने लगता है जिसे वी.पी.एच. 'और लीवर आदि में फैल जाता हैयह सबसे लें। घरेल उपाय में दो इलायची को पीसकर दध के कहते हैं। इससे कैंसर भी हो जाता है। पहले यह खतरनाक स्टेज होता है। साथ पीने से पेशाब खुलकर आता है और मुत्रदाह |कैसर पौरुष ग्रंथि तक सीमित रहता है, लेकिन बाद । पौरुष ग्रंथि कैंसर की पहचान करने के भी बंद हो जाता है। रात में तांबे के बर्तन में रखा में शरीर के दूसरे हिस्से जैसे हड्डियों, लीवर और लिए सीरम पी.एस.ए. और डॉक्टर मलद्वार के रास्ते हुआ पानी भी लाभकारी है। योग से लगभग सभी फेफड़ों में फैल जाता है। इस प्रक्रिया को अंगुली से पौरुष ग्रंथि की गांठ महसूस करते हैं|रोगों का निदान संभव है। 'मेटा-स्टेसिस कहते हैं। 45 साल से अधिक उम्र के 'अगर पी.एस.ए. चार से अधिक या पौरुष ग्रंथि की -सर्वांगासन का अभ्यास करें, इसके नियमित लोगों में इसका अधिक खतरा रहता है। भारत में गांठ महसूस होती है तो ऐसे में बायोप्सी और बोन अभ्यास से शुक्र ग्रंथि एवं डिम्ब ग्रंथियों के विकार |लगभग एक लाख लोग सालाना इस बीमारी की स्कैन कराया जाता है जिसमें पौरुष ग्रंथि कैंसर की 'दूर होते हैं और पौरुष ग्रंथि सबल बनती है। । चपेट में आते हैं। लोगों में जागरूकता का अभाव है पुष्टि होती है। इसके साथ ही सीटी स्कैन और एम _-गोमुखासन का अभ्यास करने से पुरुषों की कई इसलिए 85 प्रतिशत केस जानकारी की अंतिम् आर.आई. भी किया जाता है। इससे पता चलता है तरह की समस्याओं का निदान होता है, जैसे 'अवस्था में होते हैं। 'कि कैंसर पौरुष ग्रंथि के अंदर है या बाहर भी फैल |अण्डकोष वृद्धि एवं बहुमूत्र की शिकायत दूर होती 'बीमारी के कारण :-1.45 साल से अधिक उम्र 'गया है। है। पौरुष ग्रंथि की समस्या भी दूर होती है। 12. आनुवंशिक, 3. मोटापा चर्बीयुक्त भोजन का । पौरुष ग्रंथि कैंसर का इलाज मुख्य 'बाहय कभक क्रिया करने से अधिक लाभ होता सेवन, 4. धूम्रपान, 5. सेक्सुअल रूप से तीन विधियों से किया जाता है। यह डॉक्टर है। 20-25 बार से लगातार 50-100 बार तक ट्रांसमिटेडडिजीज, 6. अव्यवस्थित दिनचर्या और पर निर्भर करता है कि वह मरीज की स्थिति देखने करें गैस कब्ज बवासीर एवं मत्र रोगों को दर औद्योगिक क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को यह बीमारी के बाद ही निर्धारित करता है कि मरीज को करता है। पौरुष ग्रंथि सबल होती है। ज्यादा होती है। । 'कौन-सी विधि ज्यादा कारगर होगी। इसमें सर्जरी समव है। रेडियो थैरेपी या क्रायो सर्जरी शामिल है जबकि प्रभावित नहीं होता। यही नहीं इस प्रक्रिया के इस बीमारी के ठोस कारण अभी तक पता एडवांस स्टेज में हार्मोनल एवं रेडियो थैरेपी ही अंतर्गत रक्त चढ़ाने (ब्लड ट्रांसफ्यूजन) की भी नहीं चल सका है, लेकिन बढ़ती उम्र, आनुवांशिक कारगर होती है। पौरुष ग्रंथि कैंसर से बचने के जरूरत नहीं पड़ती, क्योंकि इसमें रक्तस्राव नगण्य और हार्मोन से संबंधित कारणों को प्रोस्ट्रेट अथवा लिए अधिक उम्र के लोगों को हमेशा स्क्रीनिंग होता है। शरीर पर दाग भी नहीं पड़ते और रोगी प्रोस्टेट इलार्जमेंट की जांच की जाती हैप्रोस्ट्रेट की करानी चाहिए। 45 से अधिक उम्र के लोगों को तेजी से स्वास्थ्यलाभ करता है। पी.ए.ई. की बढ़ जाना रोग में पौरुष ग्रंथि बिना सूजन के बढ़ साल में एक स्क्रीनिंग करानी चाहिए। शुरुआती सफलता पद लगभग 98 फीसदी है। जाती है। चूंकि यह रोग बिना कीटाणुओं के अवस्था में पता चलने पर बीमारी का इलाज पौरुष ग्रंथि का बढ़ जाना, पौरुष ग्रंथि आक्रमण के होता है इसलिए इसमें दर्द एवं ज्वर सफलतापूर्वक हो जाता है। अक्सर लोग इस भ्रम में शोथ, पौरुष ग्रंथि कैंसर आदि बड़े घातक रोग हैं। नहीं होता है। पौरुष ग्रंथि कैंसर की आशंका होने पर बायोप्सी यह पौरुष ग्रंथि स्त्रियों के शरीर में नहीं होता, ग्रंथि के बढ़ने के कारण मैथुन की नहीं कराते हैं कि कैंसर फैल जाएगा जबकि ऐसा इसलिए इसे पौरुष ग्रंथि ‘यूरेथ्रा' के नाम से जाना अधिकता, अधिक शराब पीना, कफ की प्रकृति नहीं होता है। बायोप्सी के लिए सैंपल इस तरीके से जाता है। स्त्रियों में मूत्र पथ, जनन पथ से अलग एवं अधिकतर नम मौसम में रहने वालों को होता लिया जाता है जिससे कैंसर नहीं फैलता है। इसके होता है परन्तु पुरुषों में जनन पथ और मूत्र पथ एक हैइसका लक्षण शुरू में मूत्र कठिनाई और लिए लोगों को चाहिए कि डॉक्टर की सलाह पर ही होता है। पुरुष मूत्र मार्ग की लंबाई 17 से 23 सें. रूकावट से आता है। बाद में मूत्र बिना कठिनाई के बायोप्सी कराएं। मी. होती है। इस ग्रंथि में स्थित यूरेथ्रा का भाग सामान्य रूप से आने लगता है। अधिक रोग बढ़ने बढ़ी हुई पौरुष ग्रंथि का इलाज :पुरस्थ यूरेथ्रा कहलाता है। इसका अगला भाग पर रोगी का मूत्राशय मूत्र से खाली नहीं होता और उम्र बढ़ने के साथ पौरुष ग्रंथि के उत्तकों ‘कला यूरेथ्रा' और अंतिम भाग ‘शिशन यूरेथ्रा' उसमें कुछ-न-कुछ मूत्र रह जाता है। मूत्र करते (टिश्यूज) में गैर नुकसानदेह ग्रंथिकाएं विकसित कहलाता है। यह भाग 90 डिग्री का कोण बनाकर समय ऐसा महसूस होता है कि कोई चीज मूत्र से हो जाती हैं। इस कारण धीरे-धीरे ग्रंथि के आकार मूलाधार में से होता हुआ शिशन में आता है। बाहर निकलने से रोक रही है। पौरुष ग्रंथि का शोथ में वृद्धि होने लगती है। समस्या तब उत्पन्न होती है जवानी के पहले प्रोस्ट्रेट पेशी की तरह कार्य करता में पौरुष ग्रंथि में सूजन आ जाती है। जब पौरुष ग्रंथि का आकार इतना अधिक बढ़ है जो 17 वर्ष की आयु जवानी के शुरू में पौरुष पौरुष ग्रंथि का शोथ में आंतों के कीटाणु, जाता जिससे मूत्र मार्ग पर दबाव पड़ने लगता है। ग्रंथि के रूप में क्रियाशील होता है। पौरुष ग्रंथि कैथडर का अनुचित प्रयोग, पथरी, पाइल्स एवं इस समस्या के कारण पेशाब का बहाव पतला और वीर्य के अत्यन्त महत्वपूर्ण अंश का स्राव करती है, फेस्टुला कारण होता है। इस रोग के लक्षण पहले की अपेक्षा कमजोर पड़ जाता है। अक्सर जो बीजाकरण में योगदान देता है। पौरुष का सबसे रोगग्रस्त स्थान पर सख्त दर्द एवं जलन होता है। पेशाब करने के बाद ऐसा महसूस होता कि पूरा अनोखा गुण यह है कि मूत्र पथ और वीर्य पथ एक बार-बार मूत्र आना, मल-मूत्र करते समय भी पेशाब बाहर नहीं आ रहा है और पीड़ित व्यक्ति ही होते हुए भी पौरुष मूत्र और वीर्य को मिक्स सख्त दर्द होना, शोथ की अधिकता के कारण मूत्र को बार-बार पेशाब करने की इच्छा होती है। बढी नहीं होने देता है। शुक्र प्रसेचन के समय मूत्र पथ बंद हो जाना। मामूली-सा दर्द अण्डकोशों और हुई पौरुष ग्रंथि के उपचार के लिए एक नवीनतम को अवरूद्ध कर केवल वीर्य का स्खलन होता है। जांघों में भी होता है, मूत्र कष्ट्र से होता है और मूत्र सर्जरी विकसित की गई है जिसके ऑपेन सर्जरी पौरुष ग्रंथि एक बड़े अखरोट के आकार की होती में धागों के समान छोटे-छोटे तन्तु भी गिरते हैंकी तुलना में बेहतर परिणाम हासिल हो रहे हैंइस हैपौरुष ग्रंथि की बाहरी सतह मलाशय को स्पर्श उचित समय पर उपचार न होने से प्रोस्ट्रेट में फोड़ा तकनीक को पी.ए.ई. प्रोस्ट्रेरिक आर्टरी करती है। पौरुष ग्रंथि का सामान्य साइज 20 ग्राम होकर घाव बन जाता है और कैंसर में परिणत हो इंबोलाइजेशन कहते हैं। इंबोलाइजेशन का आशय तक होना चाहिए। सकता है। प्रोस्ट्रेट रोगों के लक्षण पर ध्यान दें फिर है कि जहां पर पौरुष ग्रंथि की धमनी (आर्टरी) पौरुष ग्रंथि कैंसर का इलाज :यदि योगाचरण का अनुपालन करें, तो प्रोस्ट्रेट हो विकासग्रस्त होती है उसे खास दवा के द्वारा बंद इस रोग से ग्रसित व्यक्ति अब पारंपरिक सर्जरी ही नहीं सकता। फिर भी प्रोस्ट्रेट की अवस्थता कर दिया जाता है। इंबोलाइजेशन की इस प्रक्रिया और रेडियो थैरेपी के झंझट से छुटकारा पा लेंगे। दिखाई दे रहे, तो तत्काल दिनचर्या नियमित करें। को लोकन एनेस्थीसिया के अंतर्गत अमल में लाया यह सब हाई इंटेंसिटी फोकस्ड अल्ट्रासाउंड जाता है। यह प्रक्रिया एंजियोग्राफी की तरह होती (एचआईएफयू) के जरिए संभव है। इस तकनीक है। इसमें फीमोरल धमनी (आर्टरी) के द्वारा एक से कैंसर से ग्रस्त रोगियों का इलाज करना अधिक पतला कैथेटर (एक तरह का ट्यूब) प्रोस्ट्रेटिक कारगर है क्योंकि इसके साइड इफेक्ट भी नहीं है। धमनी (आर्टरी) तक ले जाया जाता है। इस इस विधि से इलाज करवाने के लिए सबसे पहले प्रक्रिया की समाप्ति के 6 से 8 घंटे बाद रोगी अपने एमआरआई परीक्षण कराया जाता है। फिर कमरे में चहलकदमी शुरू कर सकता है। इस अल्ट्रासाउंड तरंगों से बढ़ी हुई कैसरग्रस्त पौरुष तकनीक का कोई साइड इफेक्ट नहीं होता। ग्रंथि को गर्म कर खत्म कर दिया जाता हैइस पूरी अधिकतर रोगी इस प्रक्रिया के बाद बहुत कम या प्रक्रिया में सामान्यतः सिर्फ एक दिन का वक्त फिर बिल्कुल भी दर्द महसूस नहीं करते। पी.ए.ई. लगता है, लेकिन अगर ग्रंथि अनुमान से अधिक की वजह से सेक्स जीवन किसी भी तरह से बढ़ी है, तो दो दिन भी लग सकता है।