डेंगू का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है। आयुर्वेद में पर :- वृहद् वात चिन्तामणि रस, हिंगुलेश्वर रस, आवश्यकता है- 1. क्यूलेक्स, 2. एनो फिलीस, इसकी चिकित्सा और नियंत्रण पूर्णतः सम्भव आमवात प्रभाथिनी वटी, विषमुष्टी वटी, 3. एडिस। ये 5 महारोगों के कारण हैंहै। इसकी सफल चिकित्सा निम्न प्रकार की महारास्नादि चिकित्सा रोग लक्षणानुसार उपद्रवों के 1, मलेरिया, 2, फाइलेरिया, 3. एनकेफ्लाइरिस, जा सकती हैं- 1. सुदर्शनघन वटी-1 गोली, शमन तक करें। 4. चिकनगुनिया, 5. डेंगू। 2. त्रिभुवन कीर्ति रस-1 गोली, 3. गिलोयघन डेंगू फीवर :- आयुर्वेद में ‘दण्डक' ज्वर कहा विशेषतौर पर एडीज इजिप्टी नामक मच्छर की वटी-1 गोली, 4. विषमज्वरान्तक लौह-1 गोली। गया है, 'अस्थि भंजन' ज्वर भी इसी का नाम है। प्रगति डेंगू ज्वर फैलाने के लिए उत्तरदायी है। (यह ये 4 गोली एक साथ दिन में 3 बार पानी से दें। अस्थि सन्धि रुजास्तीवा दण्डाछतिकता इव चिरं चिकनगुनिया फैलाने के लिए भी उत्तरदाया है) बच्चों, वृद्धी, गर्भवती महिलाओं को आधी मात्रा सन्धिरुजा सन्ति संज्ञेयो दण्डक ज्वर सिद्धान्त यह ऐसे मच्छर के काटने पर होता है जिसमें दें। आवश्यकतानुसार 3-3 घण्टे पर भी दी जा निदानम।रिजवायर के रूप में डेंगू के फ्लेवी वायरस होते हैं। सकती है। पहले ही दिन बुखार और उपद्रव वात प्रधान होने के कारण वातज सन्निपातज र रोगी स्वयं भी डेंगू के विषाणुओं का संग्रहक नियंत्रण में हो जाते हैं। 3 से 5-7 दिन में डेंगू ज्वर व पेशियों में जोड़ों हाथ-पैर, कमर की (रिजवीयर) होता है। वाइरस चार प्रकार के होते हैंपूर्णतः ठीक हो जाता है। हड्डियों में तेज दर्द होने के कारण इसे हड्डी तोड़ डी.ए.एन.-1,2,3,4 डेंगू की पहचान हेतु सहायक उपचार :- अमृतारिष्ट+लौहासन 4-4 बुखार भी कहते हैं। रक्तष्टीवी सन्निपात पैथोलाजिक टेस्ट - 1. Rnart-Pcr-Test, 2. चम्मच पानी मिलाकर दें, दवा के साथ। रक्तप्टीविनि सन्निपात जनिते लिंग ज्वर जात NSC Antigen Test, 3. IGM Dendul Anti रोगी की गंभीर स्थिति में :- स्वर्णवसन्तमालती प्रकाश रक्त स्रावी खूनी (हेमरे जिक) डेंगू Body, 4. IGG Dengu Anti Body रस-1 गोली, ताप्यादि लौह 2 गोली सुबह-शाम रक्तस्रावी ज्वर, डेंगू का गम्भीर व घातक तीव्र स्वयं बार-बार प्लटलट्स को जांच न कराए दूध से दें। इससे प्लेटलेट्स की कमी, कमजोरी प्रकार हैं जिसमें त्वचा के चकत्तों, नाक, मंह आदि डॉक्टर के कहने पर ही करावं, प्लेटलेट्स चढ़ाने और गम्भीर हालत में तत्काल सुधार होता है। से खून निकलने लगता है व अन्दर ही समस्राव का अनावश्यक दबाव डाक्टर पर न डाला पथ्य उपचार :- गिलोय, पपीता पत्ता, अनार का आमाशय, अन्य मार्ग व गर्भाशय से भी रक्तस्राव 20,000 तक प्लेटलेट्स होने तक न घबराएं, जूस दिन में 2-3 घण्टे पर दें। सभी दवा बाजार में हो सकता है। खून के निकलने से प्लेटलेटस की प्लेटलेट्स अगर कम है। पर रोगी का Cp मिल जाती है। मेरा परीक्षित प्रयोग है, नि:संकोच कमी होने लगती है जिसमें मृत्यु हो जाती है। कागलशन प्रोफाइल सही है तो घबराने की कोई प्रयोग करें। पहले ही दिन रोग पर नियंत्रण होगा। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार बात नहीं, अफवाहों-भ्रान्तियों पर ध्यान न दें।सरकार शिविर लगाकर दवा का वितरण करे। विश्व में प्रतिवर्ष 5 करोड़ व्यक्ति डेंगू संक्रमित में डेंगू के लक्षण :- अचानक तेज बुखार, तेज डेंगू में उपद्रवों की चिकित्सा :- रोग में उसके होते हैं जिनमें 5 लाख रोगी खूनी (हेमरेजिक) डेंगू सिरदर्द, आंखों के पीछे, आंखों के गोलकों में दर्द, उपद्रव बड़े मारक होते हैं, अतः उपद्रवों की के होते हैं तथा प्रतिवर्ष 12000 से अधिक रोगियों आंखों के इधर-उधर चलाने में दर्द, प्रकाश असहनीयता, मांस-पेशियों, जोड़ों, पीठ, कमर, साथ-साथ चिकित्सा न की जाए तो रोगी की मृत्यु की मृत्यु हो जाती है। हो जाती है। अतः रोग की गम्भीर स्थिति में निम्न गर्दन की हड्डियों में दर्द, उल्टी, जी मिचलाना, दक्षिण पूर्व एशिया में भारत, बंगलदेश, श्रीलंका, भख का अभाव, भोजन में अरुचि, जीभ पर मैल लक्षणों पर निम्नलिखित चिकित्सा दें :- म्यांमार, थाईलैण्ड, इण्डोनेसिया, प्रमुख रूप से जमना, जीभ के किनारे लाल होना, छाती, पीठ, रक्तस्रावी डेंग :- डेंगू के चकत्तों, नाक, मुंह और पूर्वोत्तर भारत (नार्थ इस्ट) असम, बंगाल, बिहार हाथ, पैर पर लाल चकत्ते, दरदरे दाने, कमजोरी मसूड़ों से रक्त आने पर व रक्त का अन्तस्राव होने का पूर्वी क्षेत्र डेंगू से प्रभावित है। अफ्रीका, लगना, बेचैनी लगना। पर प्लेटलेट्स के कम होने पर स्वर्णवसन्तमालती अमेरिका भी प्रभावित है। सर्वप्रथम सन् 1824 में नयी . त्वचा पर लाल चकत्तों से रस, कहरवापिष्टी, अमृतासत्व प्रवालपिष्टी, रंगुन की सेना में इसकी उत्पत्ति पाई गई। इसके नाक मंद्र मसडों से खन निकलना त्वचा पर चोट स्फटिका भस्म, ताक्यादिलौह का प्रयोग गिलोय बाद सन् 1871 में असम, बंगाल में देशव्यापी रूप जैसे निशान बनना, त्वचा पीली, ठंडी, चिपचिपी स्वरस+मधु से करें। से फैला। अब तो दिल्ली, मुम्बई, मद्रास व सी हो जाती है। नाडी मंद पडना, सांस लेने में तीव ज्चर होने पर :- जयमंगल रस, शीतोशु रस, कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्रों, अनियमित कठिनाई, अत्यधिक प्यास (मुंह सूखना), बेहोशी, हिंगुलेश्वर रस, गोदन्ती भस्म मधु से दें। आबादी, टाउन प्लानिंग की गलियां गन्दगी और नींद न आना, बेचैनी रहना, बच्चों का लगातार उल्टी जी मिचलाना होने पर :- जहरमोरा पानी निकास सीवर व्यवस्था का अभाव नालों, रोना, उदासीन, डिप्रेस्ड हो जाना होता है। पिष्टी, छर्दिरिपुरस, कर्पूर काचरी चूर्ण दें, बर्फ गड्ढों, घरों में कूलर आदि में मच्छरों की बढ़ोतरी, द्रष्टव्य :- सन् 1977 से 2007 तक का 30 वर्ष चूसावें।स्वास्थ्य सेवाओं की कमी से सर्वत्र फैल रहा है। का मेरा सेवाकाल प्रधान चिकित्सक केदारधाम हिक्का (हिचकी) अधिक होने पर :- इस रोग का प्रमुख एडीज इजिटी मच्छर है। विश्व आयुर्वेदिक हॉस्पिटल तेजपुर (असम) के रूप में मयूरचन्द्रिका भस्म, पिप्पली चूर्ण मधु से दें। में मच्छरों की 2500 से भी अधिक जातियां हैं। रहा। असम में प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों अनिद्रा ब्रह्मीवटी (बृहद), निद्रायोग तगरादिक्वाथ भारत में मच्छरों की 300 जातियां ही पाई जाती हैं में लाखों लोग मलेरिया, एन्सेफेलाइटिस तथा डेंगू से दें, महानारायण तेल सिर में मलें।जिनमें 45 जातियां एनोकजील वंश की हैं। आदि से रोगाक्रान्त होते हैं।
डेंगू का प्रकोप बढ़ता ही जा रहा है