मक्का

हमारे गुजरात में वर्षा ऋतु के सावन के महीने मेदस्विता बिल्कुल ही नहीं है। यह लोग भैसे मजबूत करती है, टुटी हुई अस्थियां जोड़ने में में या सर्दी के मौसम में हाइवे पर से गुजरते है, जैसे मोटे-मोटे भी नहीं है बल्कि सुडोल सहायक है और रसायन हैवाजीकर है, तब रास्ते किनारे पर पर बैठकर मक्काई भटूटा सप्रमाणित स्फूर्ति ले शरीर वाले है। स्तन्यवर्धक और स्तन्य शोधक भी है, सेंककर बेचने वालो की कतारे नजर आती है। 2. एक से ज्यादा पलियां रखते है। बच्चे भी आदिवासी किसान अपनी गाय-भैसों को दूध भट्टे को खुश्बू हो ऐसी होती है कि पैदा करते है। इसका मतलब शकाण स्वस्थ बढ़ाने के लिए मकाई के दाने उबालकर नमक आने-जाने वाले टू व्हीलर्स-फोर व्हीलर्स या होता है। मिलाकर खिलाते है। जिससे दूध ज्यादा आता ट्रक वाले सभी रूक जाते है और एक दो _ है और दूध के दोष भी दूर होते है। इतना ही मकाई भटूटे खाकर ही आगे बढ़ते है। भटूटे : 3. हृदय रोग, मधुप्रमेह, गंड माका, कैंसर, नहीं यह मूत्रल भी हैमकाई के बाल ८ कफ, थायराइड, मंदाग्नि गैस और मेदोरोग । बेचने वाले भी गरम-गरम भटूटे उबालकर काढ़ा बनाकर पीने से मूत्र साफ * कोसो दूर है। बी.पी. या वृक्करोग किडनी कि काला-नमक और मीर्च लगाकर जायकेदार ? बीमारियां भी नहीं हैआता है मूत्र कि जलन व पस सेल्स मिट जाते बनाकर बेचते है। है। मैं मेरे अश्मरीयों के ऋग्णों को यह देता हूं। अगर किसी को यह रोग है तो उसका कारण मकाई के पोपकोन, माकई, चीवड़ा मकाई, मक्का नहीं किन्तु बुरी आदते अती शराब पीना मैं मकाई को अश्मरीघ्न भी समझता हूं। भेल मक्काई के पकोड़े इत्यादि बहुत सारे मकाई का रस मधुर होते हुए भी रोजींदा $ और अति तंबाकू खाना और धुम्रपान करना व्यंजन गुजरात के छोटे-बड़े शहरों में रात को । बीड़ी पीना है। उसका खुराक में प्रयोग करने वाले आदिवासी एक-एक बजे तक मिलते हैमेरे बड़ोदरा मकाई के विषय में आयुर्वेद के ग्रंथों में कुछ मोटे नहीं होते। इसका मतलब यह हुआ कि शहर की कोर्पोरेशन ने खाने-पीने कि सभी काई जब कि तरह मधुर भी है अल्प मात्रा में भी नहीं है। कई विद्वान कहते है कि मक्काई सुविधाएं पूरी रात तक मिले इसीलिए रात्री भारत की पैदाइश ही नहीं है। मकाई साऊथ कसैली भी है। शीत है, शोष को दूर करती हैबाजार भी अभी पंद्रह दिन पहले शुरू किए है। और लेखन कर्म यानी के दोषों को उखाड़कर अमेरिका पैदाइश है किन्तु मैं यह मानने को मकाई कि पहचान देने की जरूरत ही नहीं निकालती है। तैयार नहीं हूं। हमारी आवो-हवा को देखते हुएहै। स्वर्गस्थ श्री राजकपूर कि फिल्म चारसो जो कुछ मैंने यहां लिखा है, यह सब कुछ " लगता है कि हमारे देश में सब कुछ हो सकता । बीस में एक गाना था। ‘‘इचक दाना, बिचक है। शायद प्राचीन कोई ग्रंथ या निघंटु में मकाई । मैंने देखा भी है, और अनुभव भी किया है। दाना, दाने ऊपर दाना, बोलो क्या? भूट्टायह के विषय में जानकारी हो, और वो ग्रंथ कहीग्रंथों में इसका नाम मात्र का उल्लेख मुझे गाना आज भी लोग सुनते है। लाल-पीली तथा मिला नहीं है। भूगर्भ में होसफेद रंग की मकाई मिलती है। भारत की सर्वश्रेष्ठ जामनगर आयुर्वेद पंजाब-हरियाणा में तो मक्के के आटे की 4. गाँवों में फसल ठीक नहीं होने की वजह जह युनिवर्सिटी तथा काशी विश्व विद्यालय या रोटी और सरसों का साग लोग बड़े चाव से से रोजी रोटी के कारण शहरों में मजदूरी करने भारत सरकार का ‘आयुष विभाग' इस मकाई खाते है। गुजरात कि पूर्व दिशा में आए हुए वास्त आए हुए हमार ३ -शा में आग हा वास्ते आए हुए हमारे आदिवासी मजदूरों को के बारे में संशोधन निरीक्षण करें इतना ही नहीं छोटा डीदेपूर, नसवाडी, लीलकेवाडा, देखेगे तो स्त्री-पुरुष दोनों ही कमर के नीचे से अमरूद, पपीता और टमाटर जैसे सभी फल राने नमकर झुककर बड़े-बड़े खड्डे तालाब खोदते और खाद्यय द्रव्यों के प्रति ध्यान देकर एक आदि प्रदेशों में आदिवासी प्रजा हा बड़ा-बड़ा बहुमजाला में आसमान का आर आयुर्वेदिक निंघट प्रगट करके आयर्वेद के प्रति सैकड़ों वर्षों से मकाई की खेती भी करती है देखकर प्लास्टर आदि करते है। माथे पे और उनका मुख्य भोजन भी मक्के के आटे की बड़े-बड़े रेत-सिमेट वाले लगारे और ईटें : बडे-बडे रेत-सिमेट वाले लगारे और ईटें औषधि प्रयोग - 1 मक्के के बालों को रोटी और लहसन की चटनी तथा प्याज हैउचकत हा उन्ह सवाइकल स्पाडिलायटिस या जलाकर उसकी भस्म या राख मघ-शहद के हम इन आदिवासीयों का ध्यान से अभ्यास लंबर स्पोंडिलायटिस क्यू नहीं होता। क्यूंकि ०गा लंबर स्पोंडिलायटिस क्यूं नहीं होता। क्यूंकि साथ चाटने से किसी भी तरह की उल्टी के करेंगे तो निम्नांकित तथ्य जानने को मिलेगे। उनके आहार में मकाई के आटे कि रोटियां Zer टोनी है1. आदिवासी स्त्री-पुरुषों में मोटापा मुख्य खुसक है। , 2. मूत्रकृच्छ मूत्र में पस सेल्स तथा मूत्रदाह मेरा मानना है कि मकाई अस्थियों को अश्मरी रोग में देने से आराम होता है।