सोरायसि रोग का होम्योपैथिक इलाज

सोरायसिस बहुत कष्टकारक जीर्ण चर्म रोग है। से गंजापन नहीं होता और चकत्तों पर न खाज, जब बहुत दुखदायी-कष्टकारक खुजली हो सृष्टि के प्रारम्भ से ही इस रोग की भी उत्पत्ति न जलन और न ही पीप या रिसाव होता हैजिन रोगियों को Thyroid रोग हो, चमड़ी बताई जाती है। पहले यह समझा जाता था कि परन्तु यह देखने में बड़े भद्दे लगते हैं। यह, सुखी हो तथा मोटापा हो तो यह औषधि दी यह रोग सीलन भरे क्षेत्रों में रहने वाले लोगों में शुक्र है कि इस रोग से चेहरा प्रभावित नहीं जाती है। अधिक पाया जाता है। हालांकि अब यह रोग होता। त्वचा से संक्रमण नाखूनों में और बढ़ने Tuberculinum 200 :- सोरायसिस का जीर्ण सर्वत्र पाया जाता है। बैंकाक, अरब पर आधे से एक इंच व्यास के गोल चकत्ते रोग विशेषकर उन रोगियों को जिनके परिवार इंडोनेशियाई एवं जापनियों में कम पाया जाता उभर आते हैं। चकत्तों के ऊपर से मछली को में Tuberculosis की History हो। है। स्त्री-पुरुष सबको समान रूप से होता है, छिलकों की तरह चमकदार छिलके उतरना इस lgnatia Amara 200 :- यदि कलह या क्रोध फिर भी पुरुषों को स्त्रियों की अपेक्षा अधिक रोग का निर्णायक लक्षण है। आमवात और, कारणा रोग णि हा आमवात आर कारण रोग बढे तो यह औषधि निर्धारित है। होता है। चाहे किसी भी अवस्था में हो सकता जोड़ों के दर्द के साथ सोरायसिस का विशेष : का विशेष Cicuta Virosa :- जलन शील दर्द वाले केन्द्र है परन्त कम आयु के बच्चों को बहुत कम 'लगाव देखा गया है। यदि किसी रोगी को दोनों जो अधिक दर्द हो यदि जरा-सा दुख जाए। होता है। पुरातन ग्रन्थों में सोरायसिस को हो तो देखना यह होता है कि कौन-सा कानों पर कई दुखदायी Exuptions इसके मण्डल कुष्ठ नाम से वर्णन है परन्तु सोरायसिस एक-दूसरे का कारण हैं। स्त्रियों में गर्भधारणा अतिरिक्त सोराइनम, सल्फर, रेडियम, हर्गिज भी छूत रोग नहीं जैसा कि त्वचा के हो जाने पर पूरे नौ महीने तक यह रोग अपने ब्रोमाइड, थूजा, नैट्रम आर्स, काली आर्स जैसे अन्य रोगों में होता है। वंश परम्परा से इसका आप शान्त हो जाता है और प्रसव के बाद विभिन्न औषधियां हैं जो इस रोग में रोगी की कोई सम्बन्ध नहीं चाहे एक ही परिवार के कई 'अपने आप आ विराजता है। इस रोग के होने के रोगावस्था, स्वभाव एवं आवश्यकतानुसार दी रोगियों में सोरायसिस होते देखा गया है। इस निश्चित कारण तो अभी स्पष्ट नहीं फिर भी जाती है। रोग का अधिक प्रकोप वर्षा ऋतु के अंत में ऐसा माना जाता है कि क्रिोनिक रोगों का कारण । यदि कलह या क्रोध कारण रोग बढ़े तो यहाँ और शीत ऋतु के प्रारम्भ में अधिक होता है। उपजी कमजोरी, शोक, सन्ताप, चिन्ता, भय, औषधि निर्धारित है। Cicuta Virosa :- जलन खुश्क और गर्म मौसम में यह रोग अक्सर कम क्रोध एवं मानसिक आघात हैं। सुबह-सवेरे की शील दर्द वाले केन्द्र जो अधिक दर्द हो यदि हो जाया करता है। रोग का आरम्भ छोटे से सूर्य किरणों में Vetravireat Rays होने कारण जरा-सा दुख जाए। कानों पर कई दुखदायी स्पष्ट सीमाओं वाले उभार (छोटे से दाने) से 'बहुत लाभदायक है। इस रोग का इलाज देर 'Exuptions इसके अतिरिक्त सोराइनम, होता है जिसके ऊपर बहुत पतला-सा सफेद तक करना होता है इसलिए धैर्य रखना चाहिएसल्फर, रेडियम ब्रोमाइड, थूजा, नैट्रम आर्स, छिलका चिपका होता है। सोरायसिस की मुख्य होम्योपैथी में औषधि चुनाव रोगी की अवस्था काली आर्स जैसे विभिन्न औषधियां हैं जो इस 'पहचान है कि मसूर के दाने समान उस छोटे से एवं प्रकृति अनुसार होता है। कुछ विशिष्ट रोग में रोगी की रोगावस्था, स्वभाव एवं उभार पर सफेद चमकदार महीन छिलका होम्योपैथिक औषधियां निम्न प्रकार हैं :- आवश्यकतानुसार दी जाती है। 'चिपके रहता है। यह उभार धीरे-धीरे फैलना Arsenic Acid:- इसके सेवन से उभार अधिकसोरायसिस में खटाई, मिर्च, मसाले, मांस, आरम्भ कर देता है। यह रोग कभी-कभी 2' 'लाल और उभर जाते हैं। यह इस औषधि का मछली का प्रयोग वर्जित है। (मांस, मछली) वर्षों तक एक दो उभारों तक ही सीमित रहता 'अच्छा लक्षण है। जलन होती है जिसे गर्भाइश का प्रयोग जितना कम हो बेहतर है। शरीर को है और फिर फैलकर यह उभार आपस में से आराम मिलता है ।" देर तक पानी में भिगोये न रखें। Non Veg मिलकर सर्पाकार हो जाते हैं और शरीर के बड़े भाग में फैल जाते हैं। उभार चाहे छोटे हो या KaliBrom:- जब छाती और कन्धों पर रोग हो Food की जगह शाकाहारी भोजन करना तो यह प्रभावकारी है।बड़े हो परन्तु चांदी की तरह सफेद छिलका |चाहिए और इलाज के दौरान शराब सेवन ढीला-सा चिपका रहता है और खींचने से उतर IMezereum 200 :- हथेलियों पर खारिश बिल्कुल न किया जाए। ऐसा भी कहते हैं कि भी जाता है। सोरायसिस रोग मख्यतया कमर) गर्भाइश से बढ़ती है। । । ।यह रोग इसी रोग से पीड़ित मछली खा लेने से पीठ, घुटना, धड़, कोहनी, पिंडलियां, नितम्ब |Petroleum 200 :- यदि सर्दियों में ठंड से बढ़े होता है। प्रसन्नसित एवं उत्साह, उभंगपूर्ण रहने और पेट पर होता है। सिर और हाथ पैर की तो सप्ताह में एक बार देनी होती हैसे लाभ-शीघ्र और स्थाई रहता है। तिलियों पर कम ही होता है।