वर्षा ऋतु में आहार-विहार

आहार-विहार का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इसलिए ऋषि मुनियों ने वर्षा ऋतु में स्वास्थ्य लाभ हेतु निम्न आहार विहार का सेवन करना उपयुक्त बताया है :* शहद का प्रयोग वर्षा ऋतु में विशेष लाभकारी होता है। जहां तक हो सके सभी भोज्य पदार्थों के साथ शहद का सेवन करना चाहिए। * वर्षा ऋतु में गेहूं, जौ एवं यव तथा मूग एवं अरहर दाल तथा इससे निर्मित बने पदार्थों का प्रयोग मसालों के साथ करना ‘ऋतु' शब्द काल विभाग की ओर संकेत करता है। काल विभाग से तात्पर्य समय का विभाजन है। चाहिए। इसी आधार पर आयर्वेद के प्राचीन मनीषियों ने * सौंठ काली मिर्च पीपल (पिप्पली), दालचीनी, सम्पूर्ण वर्ष के बारह माह को विभाजित कर छह तेज पत्र, जीरा, धनियां, अजवॉइन, राई, हींग आदि ऋतएं बनायी हैं। प्रत्येक ऋत दो महीने की मानी मसालों में प्रयुक्त होने वाले आहार द्रव्यों का गई है। इसी के अनसार सावन तथा भादो के दो प्रयोग अपने भोजन के साथ करना चाहिए जिससे महीने वर्षा ऋतु के रहते हैं। ग्रीष्म ऋतु समाप्त वर्षा ऋतु में मंद हुई पाचन शक्ति बढ़ जाती है। होने पर वर्षा ऋतु का आगमन होता है। ग्रीष्म ऋतु वात दोष के शमन हेत तेल एवं घत से निर्मित में सूर्य का प्रकाश अत्यन्त उष्ण (तेज) होने के पदार्थों का सेवन उचित मात्रा में करना चाहिए। कारण सम्पूर्ण वायुमण्डल अत्यंत गर्म हो जाता है, * लौकी, कुमड़ा, करेला, तरोई, निम्बू, करौंदा जिससे मनुष्य के शरीर के आवश्यक पोषक तत्व आदि सब्जियों का सेवन तथा इन सब्जियों (रस आदि धातु) का शोषण हो जाने से पाचन का सौंठ, काली मिर्च आदि मसालों से युक्त शक्ति (भोजन पचाने की शक्ति) मंद हो जाती है, जिससे हम ग्रीष्म ऋतु में तथा इसके बाद भी सूप का सेवन करना हितकारी होता हैशारीरिक दुर्बलता महसूस करते हैं। * फलों में पपीता, जामुन, अमरूद, केले. ग्रीष्म ऋतु में सूर्य की प्रखर किरणों से तपी हुई नाशपाली आदि मधुर एवं अम्ल रस से युक्त आदि फलों का सेवन करना चाहिए। जिस दिन धरती पर वर्षा ऋतु का जल गिरने से भाप वर्षा हो रही हो और नमी युक्त ठण्डी हवाएं चल निकलती है एवं लगातार वर्षा होने के कारण जल रही हों तो उसे विशेष रूप घृत एवं तेल युक्त में तथा धरती में आयुर्वेद मतानुसार अम्लीय गुण हल्का एवं सुपाच्य भोजन करना चाहिए। की वृद्धि हो जाती है। वहीं दूसरी ओर पाचन शक्ति के मंद हो जाने के कारण आचार्यों के वर्षा ऋतु में ध्यान रखने योग्य बातें :- इस अनसार वर्षा ऋत में वात-पित्त-कफ तीनों ही ऋतु में पहली बारिश के बाद वषा जल दूषित हान दोष प्रकपित होने लगती हैं जिसके कारण हमारे के कारण चर्म रोग, मलेरिया, टाइफाइड, अतिसार शरीर में विभिन्न रोगों के होने की संभावना होती (डायरिया), पीलिया आदि संक्रामक रोग फैलने है। अत: वर्षा ऋतु में प्रकपित हुए वात आदि दोष की संभावना रहती है, अतः पानी उबालकर पियें, के कारण वर्षा ऋतु मैं होने वाले रोगों से बचने के भोजन सामग्री ढंककर रखें ताकि मक्खियां आदि लिए मंद हुई पाचन शक्ति को बढ़ाने के लिए एवं सूक्ष्मजीव न बैठे तथा खुले रखें, आहार एवं पेय मनुष्य को अपने स्वास्थ्य की रक्षा के लिए पदार्थों का सेवन न करें। * घर को स्वच्छ तथा सूखा रखें, यदि कमरों में सीलन हो तो हीटर, अंगीठी आदि जलाकर कमरे को गर्म रखें क्योंकि घर के आसपास यदि गढ्डे हो तो उसमें पानी को इकट्ठा न होने दें। * पानी एक जगह एकत्रित होने पर मच्छरों की संख्या बढ़ती है इसलिए समय-समय पर उन स्थानों पर कीटनाशक दवाइयों तथा कैरोसिन का प्रयोग करते हैं तथा रात्रि में घर के भीतर नीम के पत्तों, गुगल आदि औषध द्रव्यों का धुंआ भी करना चाहिए ताकि मच्छर न हों। * इस ऋतु में मक्खियां भी प्रचुर मात्रा में देखी जाती हैं। ये मक्खियां इस ऋतु में होने वाले संक्रामक रोगों को फैलाने के लिए मुख्य वाहक का कार्य करती हैं अतः हमें अपनी तथा घर के आंगन को कीटनाशक द्रव्यों से साफ कराना चाहिए। * हल्के गरम पानी से स्नान करें तथा स्नान के पश्चात् शरीर को अच्छे से साफ करें एवं तेल की मालिश तथा उबटन का प्रयोग अवश्य करें। यथासंभव बारिश में भीगने से बचें और यदि बारिश में यदि घर के बाहर जाना आवश्यक हो तो छाता, रेनकोट (बरसाती) का प्रयोग करेंयदि किसी कारणवश वर्षा में भीग जाएं तो शरीर को अच्छी तरह से पोछकर सिर को सुखा लें तत्पश्चात् शरीर पर चंदन, अगरू, उसीर आदि सुगंधित द्रव्यों का लेप कर सकते हैं परंतु आजकल सामान्यत: देखा जाता है कि स्नान के पश्चात् लोग पाउडर, क्रोम, डिओ आदि सुगधित द्रव्यों का प्रयोग करते हैं जिसके कारण भविष्य में एलर्जी की संभावना होती है, क्योंकि ये सभी रासायनिक द्रव्यों से बनाये जाते हैं। वर्षा ऋतु में वर्जित आहार-विहार * जल में घोला हुआ सत्तू। * ठण्डा, बासी भोजन। ॐ रात्रि में खुले आकाश के नीचे सोना* हरी साग-सब्जियों का सेवन जैसे पालक, मैथी, गोभी, पत्ता गोभी, भटा आदि का सेवन न आयुर्वेद मतानुसार वर्षा ऋतु में मुख्य रूप से वात दोष का प्रकोप होता है। वात दोष ही अपने माथ पित्त-कफ दोष को पळ कारण विशेष रूप से वातशामक आहार द्रव्यों का प्रयोग करना चाहिए। इन सभी तथ्यों का ध्यान यदि वर्षा में रखा जाए तो हम न केवल स्वस्थ रह सकते हैं अपितु शरीर में होने वाले संक्रामक रोगों से भी बचा जा सकता हैकरें।