जीवनशैली में बदलाव से अस्थमा पर नियंत्रण संभव

 कहावत है दमा दम के साथ जाता है। शरीर कफ, खांसी और बार-बार श्वासों में संक्रमण के साथ तालमेल बैठना आवश्यक है चिंता आदि आक्रान्त हो जाने पर शरीर में दम का ह्रास होने आदि इसके लक्षण हैं। इसके प्रमुख कारण हैं6. अस्थमा का लगता है तथा शरीर का दम निकलता नहीं और अस्थमा के सामान्य लक्षण :- श्वास लेने में एलोपैथी में कोई स्थाई उपचार नहीं है। एलोपैथी जीवन-मृत्यु की कस्मकसी जारी रहती है। दम तकलीफ (श्वास-प्रश्वास की लम्बाई में कमी)। की दवाइयां अस्थमा के कारणों को कुछ समय करने के कारण श्वास क वर्ग में दम अटका 1. श्वास छोडते समय घरघराहट की आवाज के लिए कम तो कर सकती है, परन्तु बार-बार ये रहता है इसलिए दम निकले न दम रहे के कारण कारण आना। 2. खांसी होना। 3. सीने में दबाव दवाएं खाने से उनकी आदत पड़ने का खतरा ना , ती दो की में टला इस रोग को दमा कहते हैं। महसूस होना4. गर्दन तथा पसलियों के बीच रहता है। दमा का अस्थमा भी कहते हैंब्रोकाइटिस की मांसपेशियों में खिंचाव तथा संकुचन। योग :- दमा या अस्थमा के रोगियों को भी दमा का ही एक स्वरूप है। हम नाक के द्वारा 5. सीने में जकडन हो जाना आदि इसके सर्वप्रथम या 5. सीने में जकड़न हो जाना आदि इसके सर्वप्रथम योग अपनाना चाहिए। अस्थमा के सांस लेते हैं वह गलकोश वायुनली श्वास नली लक्षण हैं। यौगिक उपचार में सूक्ष्म व्यायाम कंधों के हो छोटी श्वास नलियों को पार करते हुए फेफड़े । यद्यपि इस अस्थमा का निदान तत्काल संचालन सहित जलनेति, सूत्रनेति, सुखासन, शापिट तक पहुचती है फिर इन सभी अंगों उपांगों से आवश्यक है। विशेषकर उन बच्चों के लिए अर्ध्यात्सयेन्दासन, मकरासन, पवनमक्रासन, गुजरते हुए वापस नाक के द्वारा ही बाहर आ जिनको कोई और हल्की बीमारी हो इसकी भु भुजंगासान, मत्स्यासन, कमरचक्रासन, जाती है। जब कभी छोटी श्वास नलिकाओं में * अनुलोम-विलोम प्राणायाम, कपालभाति, संकुचन के कारण अवरोध उत्पन्न हो जाता है तो । पहचान और इलाज में पिछले दशकों से हुए* भस्त्रिका, प्राणायाम, योग्य प्रशिक्षक की देखरेख वायु का मार्ग भी अवरूद्ध होता है तब यह वाय सुधारों से मृत्यु दर में कमी आयी है। सही तरीके सम्पूर्ण रूप से हमारे फेफड़ों तक नहीं पहुंच से इसका प्रबन्धन करने पर अधिकांश मनाया जो में कुजल क्रिया भी बहुत उपयोगी है। पथ्य आधार पर विशेष ध्यान देना चाहिए :पाती है, ऐसी स्थिति में छोटी नलियों के छिद्रों में इससे ग्रसित है। उपचार के बाद अब साधारण हरी पत्तेदार हरी पत्तेदार सब्जियां, ताजे फल, जड़ी-बूटियां बलगम जमा होने लगता है। फलतः वायु का जीवन जी सकते हैंजैसे (एलोवीरा, आंवला) जिसमें एन्टी गमागमन संकीर्ण होता जाता है और यही दमा का अस्थमा श्वास नलिकाओं में सूजन के कारण ऑक्सीडेन्ट पचर मात्रा में होने के कारण बटन स्थिति कहलाती है। इसमें दमे का कोई भी होता है। जब अस्थमा का दौरा पड़ता है तब प्रभावी है। स्वरूप हो इसमें श्वास नलीदोष युक्त तथा श्वास नलिकाएं सूज जाती हैं तथा इनके । कमजोर रहती है। आस-पास की मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, शामिल होता है जो सबसे प्रभावी उपाय के रूप अस्थमा दो प्रकार का होता है :- मौसमी या इस कारण से श्वास नलिकाओं में आने वाली में माना जाता है2 खट्टे फलों में विटामिन एलर्जिक अस्थमा और दूसरा सार्वकालिक हवा की मात्रा में कमी आ जाती है। विशेषकर ‘सी’ की प्रचुरता के कारण यह इस रोग से लड़ने अस्थमा। उन लोगों में जिनमें श्वास नलिकाएं संवेदनशील में कारगर है3. अदरक और काली मिर्च शहद 1 मौसमी या एलर्जिक अस्थमा, होती है। अस्थमा का दौरा संक्रमण फैलाने वाले के साथ लेना सबसे अच्छा माना गया हैसामान्यत: यह अस्थमा कम उम्र में ही हो जाता तत्वों को श्वास के साथ लेने की वजह से भी हो 4. जौ का पानी, गेहूं (दलिया), अंगर, है तथा यह महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में सकता है। किशमिश, सेब और हल्के खाद्य पदार्थ लेना अधिक होता है। इस अस्थमा से ग्रसित व्यक्ति दमा या अस्थमा के प्रमुख कारण :- वायु उचित है। अपथ्याहार :- कफ निकासी करने की वजह से छाती की जकड़न तथा श्वास छोड़ने में परेशानी मार्ग में सूजन।चीनी, चावल, अचार आइसक्रिम, कोल्ड ड्रिंक्स का अनुभव करता है। सीजनल अस्थमा से ग्रसित 1. तम्बाकू, अवशिष्ट उत्तेजक पदार्थ और वायु यु और दही से बचना चाहिए। मनुष्य श्वास छोड़ते समय आवाज करता है पर प्रदूषण। 2. घर में प्रयुक्त की जाने वाली सुगंध, अधिकाश खांसी का अनुभव करते हैं। इत्र, स्प्रे आदि। 3. एलर्जी। 4. अनुवांशिकता। '' 1. मसालेदार और तीखे खाद्य पदार्थों से भी बचना चाहिए। 2. सार्वकालिक अस्थमा :- यह रोग उम्र की 5, भावनात्मक गड़बड़ी। विशेष रूप से अस्थमा ११ किसी भी अवस्था में हो सकता है तथा मौसम के का सबसे प्रमुख कारण एलर्जी है जो कि अपनी 2. फूट बीयर, शराब, पनीर जैसे पदार्थों से साथ इसके लक्षणों में परिवर्तन नहीं आते हैं। यह रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी की वजह तथा अस्थ्मा का दौरा उत्तजित हो सकता है। अनुवांशिक भी हो सकता है। इससे श्वास छोड़ते प्रकृति के साथ तालमेल न बैठने के कारण होता 3. एलर्जी पैदा करने वाले पदार्थ जैसे मांस, समय लगातार घरघराट की आवाज होती है। है अतः पूर्ण रूप से इसके इलाज के लिए प्रकति अंडा, मछली, दूध और चॉकलेट जैसे भोजन एलर्जी के लिए जिम्मेदार है। 5. घूमना विशेष रूप से प्रतिदिन तेज चलने को 1. इसमें उपचार के आरम्भ में एनिमा से पेट 4. नींबू का जूस अच्छा प्राकृतिक उपाय है। यह प्राथमिकता देनी चाहिए। साफ होगा। गुनगुने पानी में नींबू का रस निचोड़ हल्का गर्म होना चाहिए तथा शहद के साथ 6. मसाले, अचार, चाय, काफी से परहेज करना कर एनिमा लेना ठीक रहता है। उसके बाद मिला करके लेना चाहिए। चाहिए। कुंजल प्रक्रिया करनी आवश्यक है। 5. गाजर, पालक का रस राहत प्रदान करते हैं। 7. अत्यधिक खाना खाने से परहेज करना 2. जलनेति का अभ्यास रोजाना करें। 6. सीने पर सरसों का तेल और कपूर की चाहिए। 3. छाती तथा पीठ पर तेल की मालिश कर उन्हें मालिश करने से राहत मिलती है। 8. तम्बाकू, गुटखा, शराब, पान मसाला तथा थपथपाएं। 7. अदरक का रस, मैथी, शहद बहुत धूम्रपान से बचें। 4. सफेदा के पत्तों का भाप लें। प्रभावशाली घरेलू उपाय है। 9. इत्र अन्य सुगन्धित द्रव्यों के प्रयोग से बचें। 5. सर्दियों में कम से कम आधा घंटा धूप स्नान, 8. अधिक राहत पाने के लिए अजवाइन की 10, ठंडा पानी न पियें। तेल मालिश फिर गुनगुने पानी से स्नान करें। भाप ले सकते हैं। ( 11. संयमित व्यायाम करें। इस प्रकार नियमित योग अभ्यास, जीवनशैली अस्थमा या दमा की रोकथाम और सावधानियां :- अस्थमा के रोगियों को हमेशा 12. शयन कक्ष को एलर्जी बढ़ाने वाली चीजों में परिवर्तन तथा आहार में परिवर्तन कर हम दमा विशेष रूप से रात में अपनी क्षमता से कम से मुक्त रखें।की तीव्रता को नियंत्रित कर सकते हैं। अस्थमा भोजन करना चाहिए। 13. नियमित रूप से अपने बिस्तर को धोकर का दौरा बार-बार ताकि गंभीर न हो इसके लिए भी उक्त उपाय आरामदायी है। मगर इन्हेलर 1. ठंडे और नम स्थानों से दूरी बनाकर रखें।साफ रखें। 2. भोजन को धीरे-धीरे और चबाकर खाना दमा का प्राकृतिक उपचार :- छाती तथा पीठ (सांस खिंचने वाले यंत्र) से आराम नहीं मिल पर ठंडा गर्म सेक अवश्य करें जैसे 3 मिनट गरम रहा हो तो इसे खतरनाक स्थिति समझ कर चाहिए। एक मिनट ठंडा (सर्दियों) में तथा गर्मियों में अतिशीघ्र चिकित्सकीय मदद लें। 3. धूल वाले स्थानों से बचें।