सेहत का खजाना रसोई

आधुनिक जीवन में लाइफस्टाइल पूरी तरह से बीज, सोयाबीन डालें। यह ब्लडप्रेशर में लाभकारी बदल गया हैव्यस्तता भरी जिन्दगी में सही सिद्ध होता है। संतुलित भोजन सही समय पर नहीं लेते हैं। जंक 4 मोटापा में जौ का आटा, बाजरा का आटा, फूड का सेवन ज्यादा रहता है और अधिक समय मक्का का आटा मिलाकर खायें व गेहूं का अनुपात अनपान बैठ कर गुजरता है। व्यायाम व शारीरिक श्रम कम कम करें। होने के कारण कई बीमारियां उत्पन्न होने का डर 5. मधुमेह में चने का आटा अति उत्तम रहता है। 3 रहता है। अगर हम नियमित रूप से व्यायाम व आहार का सेवन करें तो बीमारियों से बचा जा , मधुमेह के रोगियों को खाने में मैथी दाना अवश्य सकता है। कुछ भोजन में बदलाव करके आर उपयोग से ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है। डालें। गेंहू का उपयोग कम करना चाहिए। इनके जीवनशैली में बदलाव करके हम स्वस्थ जविनयापन कर सकते हैं। कछ सामान हमारे पास हमारे रसोई घर में उपस्थित वस्तुओं में रसोई में ही होता है जिसका उपयोग कर स्वस्थ रह औषधियों के गुण भी पाए जाते हैं। उन गुणों के सकते हैं। भोजन में हम सभी रोटी, दाल, चावल, बारे में थोड़ी जानकारी हो, तभी हम सभी सलाद का सेवन करते हैं। इन्हीं सब का अपने रोगानुसार उपयोग कर बीमारियों से बच सकते स्वादानुसार बदल कर संतलित खाना चाहिए। है। जैसे - सर्वप्रथम हम आटा के बारे में बताते हैं। लम्बे 6, जीरा अफरा, पेट दर्द हिचकी, वमन, अर्श समय तक एक ही प्रकार का आटा खाने से भी मन पाचन, भख न लगना इत्यादि रोगों में जीरा पाउडर उब जाता है इसलिए उसमें (आटा) कछ फेरबदल या भना हुआ जीरा का उपयोग करते है। गले की जरूरी होता है जिससे हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता आवाज बैठने पर इसके गरारे भी करते हैं। बढ़ती है। _ 7. हींग श्रेष्ठ गुण होते हैंयह पाचन, गैस गर्भावस्था : गर्भावस्था में गेहूं के साथ सोयाबीन (अफरा) कृमि (कीड़े) नाशक, सूजन कम का प्रयोग करना चाहिए। आटे में हरी पत्तेदार करती (शोधहर), दमा, श्वास नलिका शोध में, * सब्जी का प्रयोग मौसम अनसार अवश्य करें जैसे- भख लगने (दीपन) आदि गण यक्त होती है। पालक,मैथी, बथुआ आदि का प्रयोग करने से विशेषतः पेट फलने पर इसका उपयोग अति उत्तम गर्भस्थ शिशु का पोषण ठीक रहता हैं और माता सिद्ध होता है। छोटे बच्चों में हींग का लेप नाभि के का स्वास्थ्य ठीक रहेगा और स्फूर्तिदायक रहता है। चारों तरफ करने से पेट की गैस में आराम आता है 1. बच्चों के लिए गेहूं में चना, सोयाबीन, मकई, और पेट दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। बाजरा अवश्य डालें। एक स्वाद् की रोटी लगातार 8. अजवायन यह पेट (उदर) रोग में अत्यंत खाने से बच्चे जल्दी उब जाते हैं इसलिए बच्चे के लाभकारी होता है। इसके उपयोग उदर स्थित वायु स्वाद अनुसार आर्ट में बथुआ, गाजर, मूली भी (गैस) शांत, अपचन शांत करती है। कब्ज को मिला सकते हैं। आटे में हींग, जीरा, अजवायन दूर करती है। अजवायन की फंकी मारने से पेट अवश्य स्वादानुसार डालें जिससे बच्चों का पाचन दर्द तुरंत ठीक हो जाता है। अजवायन को पानी में ठीक प्रकार से होगा और गैस और अपचन की उबालकर गरारे करने से गला दर्द, दंत रोग शांत शिकायत नहीं होगी। बढ़ते हुए बच्चों में शरीर व होते हैं। अजवायन के पत्तों का उपयोग सब्जी के मस्तिष्क का विकास ठीक प्रकार से होगा और रोग रूप में भी किया जा सकता है। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेगी। 9, मैथी के सेवन से पाचन शक्ति बढ़ती है। यह किसी 2. रजोनिवृत्ति अवस्था में हार्मोन्स में बदलाव बलकारी, शोधहर, आमवात नाशक, अपचन और अधिक होता है जिससे कई बीमारियों को जन्म भूख को बढ़ाती है। मैथी सगंधित होने के कारण हिचका मिल सकता है। इनसे बचने के लिए हम सभी को रुचिकर होती है। यह भोजन के स्वाद को भी कुछ अपने भोजन व जीवनशैली में बदलाव लाना बढ़ाती है। मैथी दाना का लेप बनाकर लगाने से चाहिए। इस अवस्था में शुगर, हाई ब्लडप्रेशर, हाई सूजन कम होती व दर्द शांत होता है। कोलेस्ट्रॉल जैसी बीमारियों की शिकायत होने 10. लौंग के उपयोग से पेट संबंधित रोग शांत लगती है। इसलिए ऐसी अवस्था में आटा में होता है। इसके उपयोग से लाल स्राव व आमाशय सोयाबीन, अलसी, मैथी दाना, जौ, जई का मिश्रण (पेट) का स्राव बढ़ता है जिससे भोजन का ठीक करवा सकते हैं। इससे कोलेस्ट्रॉल कण्ट्रोल रह प्रकार से न पचना व अधिक गैस का बनना इत्यादि सकता है। रोग शांत होते हैंलौंग के तेल से दांत का दर्द तुरंत 3. उच्चरक्तचाप में गेहूं के साथ अलसी के शांत हो जाता है। - श्री बथआ आदि का प्रयोग करने से विशेषतः पेट फूलने पर इसका चमके 11. नमक का उपयोग सही अनुपात में किया जाए तो हम कई बीमारियों से बच सकते हैंमसूड़ों में सूजन आने पर गर्म पानी में नमक डालकर कुल्ला करने से सूजन कम होती है। हल्दी, नमक, सरसों के तेल में पेस्ट बना कर ऊंगली से मालिश करने से भी लाभ होता है। चोट या हड्डी टूटने पर जो सूजन आती है उसकी नमक डालकर सिकाई करने से सूजन कम हो जाती है12, मिर्च यह कटु, उष्ण होने के कारण कफ-वात शामक तथा पित्तवर्धक होता है। इसका अरुचि, अग्निमांघ एवं अरू अनाह में उपयोग होता है। यह रक्त में लाल कणों क को बनाने में सहायक होती हैसफेद मिर्च (दक्षिणी मिर्च) को घी के साथ प्रयोग से नेत्र १ दृष्टि में लाभकारी होता है। हृदयोबल्य में हितकारी 13. धनिया : यह पाचक, दाहनाशक, नेत्ररोग, ज्वर, अतिसार, तृष्णा (प्यास) को दूर करता है। धानया रुचिकर व अग्नि प्रदीपक का कार्य भी करता है 14. हल्दी : यह कई रोगों में उपयोग किया जाता है। हल्दी में बहुत ज्यादा गुण होता है। यह रक्त दोषों को दूर करता है तथा त्वचा से संबंधित रोगों में उपयोग सिद्ध होता है। हमारी पाचन शक्ति का मा बढ़ाता है। हल्दा हमार शरीर के सभी अगा पर काय करता है। कई बामारिया को दूर करता है जैसे- नेत्रों को जलन, लालिमा, पानी आना आदि रोगों में हल्दी के पानी में कपड़ा भिगोकर रखने से जलन शांत होती है। नेत्र पर हल्दी लेप करने से जलन शांत होती है। 15. दन्त रोग : दात में दर्द होने या मसडा में सूजन आने पर सरसों के तेल में पीसी हुई हल्दी व चुटकी भर नमक मिलकर मजन कर तुरंत आराम होता है। 16. सौंफ : इसके उपयोग से पेट का अफरा, उल्टी, गले की खराश, खाने में रुचि पैदा करना सौंफ के गुण है। सौफ का चूर्ण सेवन करने से खूनी पेचिश व मुगत रोग शांत होते हैं। इसके आंक सेवन से जलन (पेट की) तुरंत शांत होती हैसौंफ मुगत दुर्गंध को दूर करती है। नाक से खून आने पर सौंफ के साथ सूखा धनिया, कुछ दाने दक्षिणी मिर्च के साथ सेवन करें। क्वाथ के रूप में बड़ा आराम मिलता है। क्वाथ बनाने की प्रक्रिया में किसी कुशल चिकित्सक से जानकारी अवश्य लें। साफ चूण का मिश्रा के साथ सेवन करने से हिचका शात हाता है। रसोई घर में उपस्थित सभी मसाले गुणकारी होते हैं। उनके गुणों का सही ज्ञान उचित समय पर करने से उचित लाभ होता है। सभी मसालों में औषधीय गुण पाए जाते हैं जिनके प्रयोग से हम सभी रोग मुक्त रह सकते हैं इन्हीं गुणों की जानकारी देने की तुच्छ कोशिश की गयी है। और अधिक जानकारी के लिए कशल चिकित्सक कर ज्ञान ले सकते है।