देश के प्रसिद्ध आहारशास्त्री और प्राकृतिक चिकित्सक डॉ. अनिल जैन ने आयुर्वेद में लंबे शोध के बाद कई निष्कर्ष निकाले हैं। उनका दावा है कि विभिन्न फल, जड़ी-बूटी प्रकृति प्रदत्त चीजों से हम सभी रोगों पर विजय प्राप्त कर सकते हैं। लंबे समय तक स्वस्थ और सुंदर बने रह सकते हैं। हर मौसम में उसके अनुसार क्या खाएं, के बारे में बता रहे हैं डॉ. अनिल जैन। आयुर्वेद चिकित्सा की दृष्टि से बेल एक सेवन से हृदय की दुर्बलता दूर होती है। मधुमेह है। रोगी को प्रतिदिन दो-तीन बार इस मिश्रण स्वादिष्ट फल एवं गुणकारी औषधि है जो रोग से पीड़ित भी बेल का इस्तेमाल कर सकते का सेवन करना चाहिए। प्रतिदिन बेल का कोष्ठबद्धता को नष्ट करती है। धार्मिक दृष्टि हैं क्योंकि बेल फल शर्करा को कम करता है। मुरब्बा 50 ग्राम मात्रा में खाने से अमाशय और से भी बेल का महत्वपूर्ण स्थान है। भगवान बेल का फल खाने से पेचिस और दस्तों में बड़ा आंत की उष्णता नष्ट होती है। दिन में दो बार शिव की पूजा भी बेल फल और पत्तों से की लाभ मिलता है। रक्त स्राव रूक जाता है। मरब्बा अवश्य खाना चाहिए। जाती है। शिवलिंग पर बेल के पत्ते अर्पित गर्भाशय शोधन, जठाग्नि को प्रदीप्त करने में 5. आग से जल जाने पर बेल के पत्तों का रस किए जाते हैं। विभिन्न रोगों को दर करने में तथा ज्वर को नष्ट करने में बेल गणकारी बार-बार जले भाग पर लगाने से तीव्र जलन व बेल का अहम् स्थान है। औषधि है। इसके सेवन से पेट के सभी विकार दाह शांत होती है। ग्रीष्म ऋतु में उष्णता के कारण जब वातावरण नष्ट होते हैं, क्योंकि इसके सेवन से पाचन बहुत गर्म हो जाता है तो घर से बाहर निकलने क्रिया शीघ्र होती है और जब पेट में कब्ज नहीं होता तो लगभग पेट के सभी रोग नष्ट होते हैं, -बर हो -बेल के पत्तों के रस में नींबू का रस और मिश्री पर गर्म हवाओं के झोकों एवं सूर्य की तेज क्योंकि कब्ज से कई रोगों की उत्पत्ति होती है। मिलाकर सवन करन स वमन आर आतसार म किरणों से शरीर पसीने से भीग जाता है। तब बेल के पके फल स्वादिष्ट एवं पौष्टिक होते हैं। बहुत लाभ मिलता ह। ग्राष्म ऋतु में हंजे से बहुत अधिक प्यास लगती है। बार-बार शीतल इसके सेवन से आमवात, कफ विकृति, सुरक्षा हाता व सुरक्षा होती है और उदरशूल नष्ट होता हैजल पीने से प्यास नहीं बुझती तो तन बहुत कफयुक्त खांसी, यकृत विकृति नष्ट होती है -बेल के 20 ग्राम गूदे में थोड़ा-सा गुड़ बेचैन हो जाता है, तब शीतल पेय पीने की इच्छा तथा हृदय को शक्ति मिलती है। बेल का मुरब्बा मिलाकर खाने से अतिसार में रक्तस्राव की होती है। भी बनाया जाता है। मुरब्बा खाने से आंव व विकृति नष्ट होती है। ____ ग्रीष्म ऋतु में बेल खाने या बेल का शर्बत अतिसार में लाभ पहंचता है तथा शीतलता प्रदान -बेल के गदे को पीसकर चावल के धोवन पीने से शरीर को शीतलता मिलती है एवं करता हलफलों में वन विमति व करता है। बेल के फूलों से वमन विकृति व (जल) के साथ सेवन करने से गर्भवती स्त्रियों उष्णता नष्ट होती है। बेल के पेड़ 35-40 फुट अतिसार में लाभ होता है। बेल के बीजों से की वमन विकृति में बड़ा लाभ पहुंचता है। लंबे, घने हरे पत्तों वाले व छायादार होते हैं। निकलते तेल से मालिश करने से जोड़ों के दर्द -बेल का शर्बत पीने से ग्रीष्म ऋत में प्यास लाला लोटों के इनकी शाखाओं पर भी कांटे होते हैं, बेल के में बडा लाभ मिलता है। शूल, संधिशोथ आदि शांत होती है और ल के प्रकोप से सुरक्षा होती पत्तों से गंध निकलती है। इनकी शाखाओं पर नष्ट होते हैं। सफेद और कुछ हरापन लिए सुंगधित फूल खिलते हैं। इनके फूलों से शहद की खुशबू । विभिन्न रोगों में गणकारी बेल :- 1. बेल के -बेल वक्ष की जड को जल के साथ किसी आती है. इसलिए बेल के फलों को मधगंधि भी पत्ता आर काला मिच का पासकर सेवन करने पत्थर या सिल पर घिसकर मस्तक पर लेप कहते हैं। बेल के फल खरबजे के आकार के से मधुमेह रोग में बड़ा लाभ होता है। करने से सिर शूल नष्ट होता है। ग्रीष्म ऋतु में होते हैं। बेल के कच्चे फल हरे रंग के होते हैं 2. बेल के पके फलों से बने शर्बत पीने से उष्णता से उत्पन्न शूल में बहुत लाभदायक है। तथा पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। फलों का अतिसार में रक्तस्राव व आंव विकति नष्ट होती -बेल फल को प्रतिदिन खाने से पाचन क्रिया छिलका बहुत मजबूत होता है, इसलिए इसे है। आंव में बेल के गदे को भूनकर खिलाते हैं। शीघ्रता से होती है। पाचन शक्ति भी विकसित 'बेल पत्थर' भी कहते हैं। बेल को संस्कृत में 3. अधिक वमन होने पर बेल फल के गदे को होती है। बिल्व, मालूर महाकपित्थ, श्रीफल, गंधग्राम, ' जल में उबालने के बाद क्वाथ बनाकर छानकर -अम्लपित्त रोग होने पर बेल के कोमल पत्तों शांडिल्य, शैलूप आदि कहा जाता है। जबकि ' रोगी को पिलाने से बहुत लाभ होता हैको जल के साथ पीसकर उसमें मिश्री मिलाकर जनसाधारण में बेल को बेल पत्र, बेल पत्थर, बेलआ. बील. बेलगिरि आदि नामों से पकारा 4. बेल के कोमल पत्तों का रस निकालकर दिन में दो तीन बार सेवन करने से लाभ होता है। जाता है। उसमें काली मिर्च का चूर्ण और सेंधा नमक -बेल के पत्तों को कूट-पीसकर मस्तक पर लेप मिलाकर सेवन करने से अजीर्ण रोग नष्ट होता करने से सन्निपात ज्वर में प्रलाप करने वाले रोगी को बहुत लाभ होता है, ज्वर की उष्णता कम होती हैबेल के पत्तों का रस हृदयशूल (एन्जाइना) में बहुम गुणकारी होता है। बेल के पत्तों के 7-8 ग्राम रस में गाय का घी मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से हृदयशूल से सुरक्षा होती है। बेल के पत्तों के साथ जीरा पीसकर, मिश्री मिलाकर सेवन करने से मूत्र की जलन नष्ट होती है। __ कामला अर्थात् पीलिया रोग में बेल के पत्तों के रस में काली मिर्च का चूर्ण मिलाकर सेवन करने से बड़ा लाभ होता है। इसके सेवन से कोष्ठबद्धता भी नष्ट होती है। अर्श रोग में भी बेल बहुत उपयोगी है। गन्ने का रस :- ग्रीष्म ऋतु में जब सूर्य की तेज किरणों से वातावरण बहुत ऊष्ण हो जाता है तो गर्मी के कारण मनुष्य के शरीर से अधिक जल (पसीना) निकल जाता है। ऐसे में बहुत प्यास लगती है। पुरुष, स्त्रियां, बच्चे और वृद्ध सभी कोल्ड ड्रिंक, बर्फ मिला जल व विभिन्न प्रकार के पेय पदार्थों का सेवन करते हैं। लेकिन बर्फ मिला जल पीने से प्यास बुझती नहीं लगती है। शरीर को शीतलता एवं पाचन क्रिया में भी बहुत लाभ होता है। आयुर्वेद चिकित्सा ग्रंथों के अनुसार गन्ने का रस शीतल पित्तनाशक, वीर्यवर्द्धक, पौष्टिक एवं शक्तिवर्द्धक होता है। गन्ने का रस विभिन्न रोगों के निवारण में बहुत गुणकारी होता है। नगरों एवं महानगरों में ग्रीष्म ऋतु में जगह-जगह गन्ने के रस की दुकानें खुल जाती हैं। ऐसे में गन्ने का रस पीने से पहले उसकी साफ-सफाई एवं शुद्धता को देखकर ही पीना चाहिए, नहीं तो लाभ की जगह हानि हो सकती है। दुकानों पर गन्ना ताजा एवं साफ किया हो और जब गन्ने का रस पियें तो तुरन्त गन्ने का रस निकला हुआ ही पीना चाहिए क्योंकि पहले से निकालकर रखा हुआ गन्ने का रस पीने से वात-विकार उत्पन्न होते हैं। गन्ने के रस की दुकानों पर मक्खियों की भी अधिकता रहती है। मक्खियों द्वारा दुषित गन्ने का रस भयंकर रोगों का शिकार बना सकता है। ग्रीष्म ऋतु में गन्ने का रस पीने से ऊष्णता और थकावट दूर होती है। गन्ने का रस शरीर में शक्ति एवं स्फूर्ति उत्पन्न करता है। पीलिया रोग में प्रतिदिन 2 गन्ने चूसकर खाने से अधिक लाभ होता हैरक्ताल्पता (एनीमिया) रोग में गन्ने का रस पीने से शरीर में शक्ति विकसित होती है। गन्ने के रस में उपस्थित लौह तत्व रक्त की वृद्धि करके रक्ताल्पता को नष्ट करता है। गन्ने के रस के सेवन से स्नायुओं की दुर्बलता नष्ट होती है। पाचन क्रिया तीव्र होती है। ग्रीष्म ऋतु में उष्णता के कारण मूत्र में जलन एवं अवरोध उत्पन्न हो जाते हैं। गन्ने के ताजा रस पीने से लाभ होता है। हिचकी की विकृति को तुरन्त नष्ट करता है। गन्ने का रस अधिक मीठा होता है, इसलिए मधुमेह के रोगी को गन्ने का रस सेवन नहीं करना चाहिए तथा गन्ने का रस बर्फ डालकर एवं ताजा रस ही पीना चाहिए। गन्ने के रस को गर्म करके एवं रखकर नहीं पीना चाहिए। ग्रीष्म ऋतु में घर से बाहर निकलने से ही भय लगता है तो गन्ने का रस पीने से शरीर में शीतलता आ जाती है। इसलिए घर के बाहर का ऊष्ण वातावरण शरीर पर हानिकारक प्रभाव डालता है। गन्ने के रस का सेवन करने से राहत मिलती है एवं प्यास बुझ जाती है। गन्ने के रस के औषधीय उपयोग :- 1. गन्ने का रस भोजन से पहले सेवन करने से पित्त विकार नष्ट होते हैं। चिकित्सकों के अनुसार भोजन के बाद गन्ने का रस सेवन करने से वायु दोष और पाचन क्रिया क्षीण होती है। 2. ग्रीष्म ऋतु में गन्ने का रस नींबू व अदरक का रस मिलाकर पीने से उष्णता नष्ट होती है। कब्ज के रोगी को गन्ने के रस से बहत लाभ होता है।
गर्मियों का सबसे उत्तम पेय बेल शर्बत