एकदिव्याध लंवगम् कटुकम्

एकदिव्याध लंवगम् कटुकम् तिक्तम् लघु नेत्रहितम् हिमम्टा बनता है, ज्यादा से ज्यादा अगर दाढ़ दूखति है या से करना चाहिए। उल्टी जैसा होता है तब हम लंवग का उपयोग 1. खांसी-कफ. बहनी नाक के रोगी लंवग चर्ण करते हैं। इससे ज्यादा शायद ही कोई जानता हो। एक से दो ग्राम जितना चटकी भर हल्दी व पांच लंवग गरम है, यह धारना ही गलत है। काली मिर्च मिलाकर शहद से तीन बार चाटे। आयुर्वेद में भावमिश्र ऋषि ने अपने ग्रंथ भाव , रेली ग्रथ भाव 2. नेत्र की दृष्टि धंधली है, साफ दिखाई नहीं प्रकाश में लिखा है कि देना, नजदीक या दूर का चश्मा है। वीर्य के रोग IIT 'लंवगम् देवकुसुमम् श्रीसंज्ञम् श्री प्रसूनकम्। है तो एक से दो ग्राम लंवग चूर्ण एक चम्मच लंवगम कटकम तिक्तम लघ नेत्रहितम हिमम। मिश्री मिलाकर सुबह और रात को सोते समय गाय के दूध के साथ पीए। दूध में 1 चम्मच गाय आज की जहरीली प्रदूषण युक्त हवा का दीपनम् पाचनम् रूच्यम् कफपित्तास्रवाशकृत्। का घी भी मिला लेगे तो ज्यादा फायदा होगा। माहौल मोबाइल या इंटरनेट तथा कम्प्यूटर एवं तृष्णाम् छर्दि तथाध्मानम् शूलमाशु विनाशयेत्।टी.वी. का अतियोग सेटेलाइट से निकलने कासं श्वास च हिक्काम् च क्षयम् क्षपति 3. मुख की दुर्गध दूर करने के लिए दिन में वाली जहरीली विकिरणें आज के खान-पान घवम।।' दस-प्रदह लंवग चूसे। जैसे कि चायनिश बर्गर, पीजा, चाट मसाला, 4. गर्भवती स्त्री की कै-उल्टी बंध करने के अर्थात् लंवग के देव कुसुम, श्री संज्ञम् तथा बांसी भोजन, चने के बेसन के पकौडे या अन्य , 1 श्री प्रसूनकम यह नाम है। देवो को प्रिय है और लिए मिश्री के शर्बत के साथ प्रयोग करें। व्यंजन ब्रेड आदि। मेदा के आटे के खाद्य देवो का ही फल है यह लंवग। इसलिए देव मुसाफरी में हमेशा साथ में रखें क्यूंकि पदार्थ, विरुद्ध आहार, मटन मछली, अंडा जैसे कुसुम। जितने लक्ष्मी जी के नमा है उतने लंवग किसी-किसी को मोटर बस का प्रवास या मांसाहार, रात्री जागरण, अनियमित दिनचर्या, के नाम है इसलिए श्री सज्ञम्। यह लक्ष्मी जी का पर्वतिय इलाको के प्रवास में जी मचलना पेट में शराब, तंबाखू, गुटका आदि अखाद्य पदार्थ का सेवन करने से कई रोग होते हैं। भा पुष्प है, इसका पूजा म रखन स पस पाकिट गुब्बारे होना उल्टी आदि तकलिफ होती है, तब में रखने से लक्ष्मी जी कि कृपा बनी रहती है, जैसे कि बदहजमी, अफारा, पेट में गड़बड़ इसलिए श्री प्रसनकम। लंवग स्वाद में तीखा - यह जादू की तरह काम लगेगी। विबंध, एसिडिटी (अम्लपित्त) गले में खराश, कडवा है। पचने में हल्का है। आँखों के लिए 5. इसके वृक्ष की त्वचा छिलका पीसकर गरम श्वास, खांसी, शोध, अरूचि, उल्टी जैसा लगाना हितकारी है, ठंडा है। अग्नि को प्रदिप्त करता है। जल में लेप बनाकर वायु का जहाँ भी दरद है आदि रोग गलत खाने-पीने की आदत से होते है। पाचन करता हैरुचिकारक, कफ पित्त और रक्त वहाँ लगा सकते है। जैसे कमर दर्द, घुटगो, जोड़ों जबकि आँखों से कम दिखना, धुंधलापन, के रोग, शोध रोग (गला सुखना), उल्टी, कादरट वारे। कमजोर नजर, सिर दर्द, गर्दन में दर्द अफारा, पेट का शूल, खांसी, श्वास, हिचकी 6. हृदय दाह तथा हृदय शूल पर लंवग को चूर्ण (Cervical Spondylysis) कमर में दर्द और क्षय को अवश्य मिटाता है। को जल के साथ दिन में तीन बार लेना चाहिए (Lumber Spondlysis) आदि रोग सतत भगवान धन्वतरि ने कहाँ है किकम्प्यूटर के या इंटरनेट के सामने बैठकर काम दिए पर सेंककर लंवग खाने से कष्टदायक 'लंवग देव कुसुमम् हृद्यम् शीतलम् पित्तनाशनम्। खांसी तथा गले की सजन मिटती है। ऐसा नव्य करने से होते है। मोबाइल के अति उपयोग से कान कि तथा दिमाग की बीमारी हो सकती है। चक्षुष्यम् विषहन् वृष्यम् मांगल्यम् मूर्द्धरोगहृत।।' मत ब्रीगेड सर्जन मोर्गन-कोचीन का है। कुछ दिन पहले ही मैंने तक अखबार में पढ़ा है अर्थात लंवग हृदय को हितकारी ठंडा. पित्त 7. दंत पीडा, शिरोव्यथा तथा संधिवात में इसके की मोबाईल के अतीउपयोग से ब्रेईन ट्यूमर भी के रोग को दूर करने वाला, संभोग शक्ति बढ़ाने तेल का प्रयोग होता है। हो सकता है। आज के युग में यह सब साधन वाला, हमेशा मांगतय करने वाला और नाक, 8. रतौंधि पर बकरी के मन में लंवग घीसकर अनिवार्य बन गए है। इसलिए इसका उपयोग कान, गले के सभी रोग नष्ट करने वाला है। दिन में दो बार उसको आँख में अंजन की तरह संभवतः अनिवार्य परिस्थिति में ही करना महर्षि आत्रेय ने गर्भिणी की उल्टी और लगाना है। यह योग भारत के श्रेष्ठ वैद्य स्वर्गस्थ चाहिए। अन्यथा आगे बताए हुए व्याधि निर्विवाद . 7 दंतवेष्ट यानी की पायोरीया में तथा वायु के सभी श्री शंकर जी दाजी पदेजी का है। एक सो साल होगे और जीना बेकार हो जाएगा। रोगों में उपयोगी बताया है। महर्षि सुश्रुत ने मुख पहले अखिल भारतीय आयर्वेद महा सम्मेलन यह सभी रोगों से मुक्ति पाने के लिए हमारी कि दुर्गन्ध दूर करने वाला हल्का, तृष्णा को कफ की स्थापना नासिक महाराष्ट्र में कि थी। आज आदतें सधारनी होगी। सही जीवन शैली-शुद्ध के रोग को मिटाने वाला कहा है। यह दिल्ली में है। उसके अध्यक्ष पद्म श्री ताजा एवम् सात्विक आहार का उपयोग करना शोडल ने तष्णा और अतिसार मे इसका जल त्रीगणाजी है। होगा। यह सभी रोगों में हमारे रसोई घर में बनाकर पीने को कहा है। वैद्य मनोरमा में लंवग उपलब्ध लंवग बहुत ही फायदा करने वाली है। इसके बने बनाए शास्त्रिय योग लंवगादि चूर्ण की त्वचा छिलको को पीसकर गरम पाणी में लंवग के बारे में सामान्य तथा हमारा ज्ञान इतना - लंवगादि वटि अविपत्तीकर चूर्ण आदि बाजार में ही है कि लंवग गरम है। दाल-सब्जी, मांसाहार मिलकर वात रोग में इसका लेप लगाने को कहा . वैद्यनाथ, सांडु, डाबर, घूतपापेश्वर जैसी जानी पकाते वक्त उपयोग में आने वाले मसाले का है है। यह सब मैनें आयुर्वेद ग्रंथों में से बताया है।