जडी-बूटी ज्ञानमाला 'अकरकरा'

 विभिन्न भाषाओं में नाम :- संस्कृत- फेफड़ों की गति भी बढ़ जाती है तेजपात 12 ग्राम, काली मिर्च 6 ग्राम आकारकर, आकल्लक, हिन्दी :-अकरकरा, उपयोग :- इसका उपयोग चिकित्सकों द्वारा कूट-पीस-छानकर बारीक चूर्ण कर लें। रोज मराठी:-अक्कलकरा, गुजराती:-अकोरकरो, दांतों एवं मसूड़ों से सम्बन्धित समस्याओं को सुबह एक चुटकी चूर्ण शहद में मिलाकर या बंगाली:-आकरकरा, फारसी:- वेश्वतखून दूर करने हेतु सदियों से किया जाता रहा है। वैसे ही जीभ पर मलकर छोड़ दें। 4 से 6 हफ्ते कोही, पंजाबी:-अकरकरा, अंग्रेजी:-पेलिटरी इस पौधे के सबसे अधिक महत्वपूर्ण भाग इस्तेमाल करें। जीभ के मोटापे के कारण रंग :- अकरकरा ऊपर से काला और अंदर से इसके फूल एवं जड़ है। जब इसके फूल व उत्पन्न तुतलापन दूर होता है। सफेद होता है। पत्तियों को चबाया जाता है तो यह एक प्रकार बाजीकरण :- अकरकरा, सफेद मसूली, स्वाद :- इसका स्वाद तेज, चटपटा, ठंडा, से दांतों व मसूड़ों में सुन्नता पैदा कर देता असगन्ध समान मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें। चुनचुनाहट पैदा करने वाला होता है। हैपत्तियों का प्रयोग त्वचा रोग में भी किया 1-1 चम्मच (लगभग 3-3 ग्राम) मात्रा परिचय :- अकरकरा का पौधा अल्जीरिया में जाता है। सुबह-शाम दूध से लें। सबसे अधिक पाया जाता है। भारत में यह लकवा :- इसकी सूखी डण्डी या जड़ के मुंह से बदबू :- अकरकरा, माजूफल, सम, बगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में, चूर्ण को महुए के तेल में मिलाकर पकाकर नागरमोथा, भुनी फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि मालिश करने से लकवे में आराम मिलता है। नमक बराबर मिलाकर मंजन बना लें। कुछ में कहीं-कहीं पैदा होता है। वर्षा के शुरू में साथ ही इसकी जड का चूर्ण लगभग आधा दिन सुबह व रात में मंजन करें, मुंह की बदबू इसका झाड़ीदार पौधा उगना शुरू हो जाता है। ग्राम मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटना दूर होती है। इसका तना रोएंदार और ग्रंथियुक्त होता है। भी चाहिये। अस्थमा :- अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग सफेद दाग :- इस रोग में दवा के साथ-साथ सूंघने से सांस का अवरोध दूर होता है। 3 ग्राम की होती है। इसके फूल पीले रंग के गंध युक्त अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर दागों पर अकरकरा को 200 मिली. जल में उबालकर होते हैंजड 8 से 10 से.मी. लंबी और लगभग लगाने से जल्दी आराम होता है। काढ़ा बनायें, जब यह 50 मि.ली. रह जाये तो 15 सेमी. चौड़ी मजबूत व मटमैली होती है। सिर दर्द :- यदि सिर में दर्द हमेशा बना रहे इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को गण :- अकरकरा कडवा, रूक्ष, तीखा, तो बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम इसका सेवन कराने से आराम मिलता है। प्रकृति में गर्म तथा कफ और वात नाशक है। चूर्ण सुबह-शाम प्रयोग करना चाहिये। ज्वर :- अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून इसके अलावा यह कामोत्तेजक, सेक्स उत्तेजना दंत रोग :- अकरकरा, माजफल. नागरमोथा. के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना को बढ़ाने वाला, धातवर्धक. वीर्यवर्धक. फली हई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक आकर ज्वर उतर जाता है। अकरकरा 10 ग्राम रक्तशोधक, सूजन को कम करने वाला, मुंह बराबर मात्रा में लेकर बारीक पीस लें। इससे चिरायता 10 ग्राम लेकर चूर्ण बना लें। इसमें 3 की बदब को कम करने वाला. हृदय की नियमित मंजन करते रहने से दांत और मसढों के ग्राम चूर्ण पानी से लन पर बुखार में आराम दुर्बलता को दूर करने वाला, दिल की समस्त विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है। हाता ह कमजोरी, बच्चों के दांत निकलने के समय नपंसकता :- अकरकरा का बारीक चर्ण हृदय राग :- अजुन का छाल आर अकरकरा तुतलाहट-हकलाहट दर करने वाला, शरीर में शहद में मिलाकर लिंग पर लेप करें तथा पान का चूर्ण दानों को बराबर मात्रा में मिलाकर खून के बहाव को बढ़ाने वाला होता है। का पत्ता बांधकर रात में सो जायें। ऐसा कछ चूण बना ल। सुबह-शाम आधा-आधा चम्मच हानिकारक प्रभाव :- इसका बाहरी प्रयोग दिन लगातार करने से लिंग का ढीलापन दर मात्रा पाना स ल। घबराहट, हृदय का धड़कन, अधिक मात्रा में करने से त्वचा लाल हो जाती होकर लिंग कडा व ठोस हो जाता है। पाड़ा, कम्पन आर कमजारा म लाभ होता ह। है। जलन पैदा हो जाती है। अन्दर से अधिक अकरकरा 2 ग्राम व जंगली प्याज 10 ग्राम सायटिका :- अकरकरा की जड़ को अखरोट प्रयोग करने पर नाड़ी की गति तेज होना, दस्त दोनों को साथ पीसकर लेप करने से लिंग के तेल में मिलाकर मालिश करने से गघ्रसी-सायटिका में आराम मिलता है। लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी कड़ा हो जाता हैहोना, रक्तपित्त आदि प्रभाव पैदा हो जाते हैं।