आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र में निरंतर संशोधन की पौरुष ग्रंथि वृद्धि में पथ्य :- इस व्याधि में चना के बाद भी से बीमारी बार-बार होते ही रहती है। - गुंजाइश है। जैसे हर शास्त्र की उन्नति के लिए गवार जैसे अन्न कम मात्रा में लेना चाहिए। रात में परिणामतः रूग्णों को बार-बार Self dilatationसंशोधन जरूरी हैं। आयुर्वेद भी इससे अछूता नहीं चावल न खाएं, अधिक मात्रा में अखरोट, बादाम, करना पड़ता है। कुल मिला के रूग्ण इस व्याधि से है। पारंपरिक आयुर्वेद चिकित्सा में संशोधन के नए एवं खजूर हानिकारक होता है। दूध की मात्रा कम काफी त्रस्त होता है। आयाम से ये शास्त्र उन्नति की ओर बढ़ रहा है। करने से भी इसमें लाभ होता है। मांसाहार वयं । आयुर्वेद शास्त्र में इन रूग्णों के लिए आशा की प्रस्तुत लेख में हम आयुर्वेद और मूत्रविकार में हो करना उत्तम है। । । किरण है। आयुर्वेद की उत्तर बस्ती उपचार पद्धति रहे नये संशोधित चिकित्सा का बारे में जानेंगे। व्यायाम :- रोज सुबह चलना, 45 मिनट चलना। जिसमें संशोधित जड़ी-बूटी औषधि से सिद्ध तेल पौरुष ग्रंथि का बढ़ना प्रायः 40 वर्ष के बाद प्राणायाम, सूर्यनमस्कार, कपालभाती, अश्विनी मूत्रनलिका में निर्जलुक वातावरण में प्रवेश किए पुरुषों में पाया जाता है। यह पुरुष प्रजनन संस्था का 'मुद्रा इस व्याधि में हितकारक होते है। जाते हैं जिसमें ये व्याधि बार-बार होने की एक अंग है। युरीनरी ब्लैडर के नीचे अक्रोड को प्रोस्टेट कैंसर :- इसमें रूग्णों का PSA testl संभावना कम होती है और रूग्ण ठीक हो जाते है। आकार की एक ग्रंथि है जिसका प्रायः वजन 15 से level काफी बढ़ता है। Biopsy test से इसका पिछले 20 सालों में आयुर्वेद शास्त्र में इसमें काफी 20 ग्राम तक होता है। बढ़ती उम्र के साथ पौरुष निदान सुनिश्चित करते, हैं। प्रोस्टेट कैंसर तथा संशोधन हुआ पाया गया है। ग्रंथि भी बढ़ती है जिससे पेशाब की नली पर दबाव 'प्रोस्टेट बढ़ना (Benign) दोनों व्याधि में समान । जिन रूग्णों को urethral strictule जैसे जटील बढ़ता है। जिसकी वजह से निम्न लक्षण पाये जाते लक्षण होते है। संशोधित आयुर्वेदीय औषधियां जैसे ऑपरेशन की सलाह मिली है वो भी इस चिकित्सा हैं :- 1. बार-बार पेशाब होना2. पेशाब पूरी हल्दी, गिलोय, वरुण तथा आहार परिचर्या में से लाभान्वित हुए पाये गए हैं। तरह साफ न होना। 3. पेशाब की क्रिया पूर्ण होने बदलाव से प्रोस्टेट कैंसर के रूग्णों में अच्छा लाभ स्त्रियों में मूत्रविकार :- 1. बार-बार पेशाब होना। में देरी लगना। 4. रात में ज्यादा बार पेशाब होना। पाया जाता है। 2. बार-बार इंफेक्शन होना। 3. पेशाब को कंट्रोल 5. पेशाब का प्रेशर कम होना। 6. पेशाब शुरू यरेथ्रल स्ट्रीक्चर (पेशाब की नली सिकुड़ना) न रहना। (Incontinany) 4. खांसी-छिंकने से करने में देरी होना या जोर लगाना। 7. पेशाब पर :- यह व्याधि बच्चों से लेकर बुढ़ापे तक के सभी पेशाब होना। 5. पेशाब की नली सिकुड़ना ज्यादा कंट्रोल न कर पाना। में तथा स्त्री एवं पुरुष दोनों में पायी जाती है। [Urethral strictly) स्त्रियों में Urethra ये सभी लक्षण कम या अधिक मात्रा में पाये इस व्याधि का कारण मूत्रमार्ग में होने वाला, (मूत्रनलिका) छोटी होने से उनमें मूत्रमार्ग का जाते हैं। देखा गया है कि अधिकतर रूग्ण इन व्याधि संक्रमण, मूत्रमार्ग में आघात (Trauma) इंफेक्शन अधिक मात्रा में पाया जाता है। अंग्रेजी लक्षणों की तरफ ज्यादा ध्यान नहीं देते परंतु जब तथा मूत्र वेग को रोकना होते हैं। देखा गया है कि दवाएं क्षणिक लाभ करती हैं किंतु यह पुनः होने से यरीनरी ब्लैडर में ज्यादा पेशाब बाकी रहने से उसमें जब कोई छोटी पथरी मूत्रमार्ग से बाहर निकलती हैरूग्ण त्रस्त रहता है। इंफेक्शन होता है तब जलन होती है उसके बाद तो वो निकलते समय मूत्रमार्ग की नली (Urethra)। संशोधित आयर्वेदीय औषधि जैसे शिलाजीत रूग्ण डॉक्टर को दिखाते हैं। अगर शुरुआती को क्षति पहुंचाता है जिससे यह व्याधि होती है। । गोक्षुर, पुर्ननवा, उशिर, गिलोय इनके योग्य मात्रा लक्षणों के समय ही उपचार शुरू करें तो अच्छी बहत बार दूरबीन के ऑपरेशन के साइड इफेक्ट । और Combination से रूग्ण की प्रतिकारक क्षमता तरह रूग्ण ठीक हो जाते हैं। की वजह से भी ये हो सकती है। कुछ रूग्णों में ये । । 'बढ़ती है और बार-बार होने वाला इंफेक्शन पूरी अनेक रूग्णों में जब ये व्याधि पुराना हो जाता है Catheter गलत तरीके से निकालने की वजह से तरह कम हो जाता है। पेशाब पर कंट्रोल न रहने से तो पेशाब अचानक रूक जाता है तो कॅथेटर मत्रनलिका में क्षति होने के कारण भी ये व्याधि स्त्रियों में खांसी, छिंक जोर से हंसना इनमें पेशाब लगवाना पड़ता है उसके बाद ऑपरेशन की सलाह होती है। आजकल प्रोस्टेट ग्रंथि के ऑपरेशन के leak होता है जिसे Urinatry incontinamuy दी जाती है। इन सभी अवस्थाओं में संशोधित साइड इफेक्ट की वजह से भी इसका प्रमाण बढ़ आयुर्वेदीय उपचार से बिना ऑपरेशन रूग्ण ठीक गया है। कहते हैं। यह लक्षण प्रायः 30 वर्ष के बाद की हो जाते हैं। पौरुष ग्रंथि वृद्धि के रूग्णों को साल में IIrethrronias 'स्त्रियों में अधिकतर पाया जाता है। आयुर्वेद ११ ग्रायाछ करूणा का साल म Urethrroplasty लक्षण :- 1. पेशाब की धार, 1 बार Ultrasound और PSA test जो कैन्सर की छोटी होना। 2. पेशाब करते समय जोर लगाना औषधियां जैसे चंद्रप्रभा, गोक्षुर तथा संशोधी तेल टेस्ट है करना अनिवार्य है। आयुर्वेद में बहुत सारी पडना। 3. पेशाब पर तरह साफ न होना। 4। " और घृत की उत्तर बस्ती उपचार से तुरन्त लाभ औषधियों का संशोधन इस व्याधि में किया गया है। पेशाब में बार-बार इंफेक्शन होना। मिलता है और रुग्णों को ऑपरेशन की जरूरत जैसे वरुण, गोखरू, पुर्ननवा तथा पंचकर्म इस व्याधि का निदान करने के लिए : 1.7 नहीं लगती। आयुर्वेद शास्त्र के इन संशोधनों का चिकित्सा में संशोधित तेल तथा घृत के बस्ती एवं 'Retrogradeurethrogram, 1.Uroflowmetery. आप । 'आप लाभ लेकर सुखी निरोगी आयुष्य की कामना उल्लरबस्ती चिकित्सा से बढ़ी हुई पौरुष ग्रंथि का test ये दो टेस्ट किए जाते हैं। कर सकते हैं। ॥सर्वे सन्तु निरामयः॥ आकार कम होता है और इसके लक्षणों से रूग्ण उपचार इसका आधुनिक चिकित्सा शास्त्र में मुक्त होता है।
मूत्रविकार संशोधित आयुर्वेदीय उपचार