आहार और आरोग्य

आहार की सीधा अर्थ है भीतर लेना। हम अपनी भी पड़ता है। वायु, धूप, प्रकाश, विचार आदि न केवल शरीर स्वस्थ होता है, अपितु मन भी पांचों इन्द्रियों के द्वारा जो कुछ भी अपने शरीर में सभी हमारे लिए आहार ही हैं। हमें भरसक दुर्विचार से अलग होने लगता है। उपवास के प्रवेश कराते हैं, वही हमारे शरीर के लिए आहार प्रयत्न करना चाहिए कि हम ऐसे स्थान पर रहें द्वारा अनेक रोगों के उपशमन, निदान एवं होता है। मुंह से खाना-पीना, नाक से श्वास जहां हमें शुद्ध वायु आदि प्राकृतिक वस्तुएं चिकित्सा में सहयोग प्राप्त होता है। आयुर्वेद में लेना, कानों से सुनना, आंख से देखना तथा शरीर पर्याप्त मात्रा में प्राप्त हो सकें। पंचकर्म चिकित्सा के अन्र्तगत एक कर्म उपवास से वायु-धूप आदि का सेवन करना यह सब हमारा भोजन हितकर एवं स्वास्थ्य के लिए का भी होता है। शरीर को स्वस्थ रखने तथा रोगों हमारे शरीर के लिए आहार ही है। इन सभी लाभकारी होना चाहिए। देश, काल, ऋतु के का शमन करते हेतु उपवास का बहुत अधिक आहारों का सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक अनुकूल होना चाहिए। भोजन ताजा ही हो, यही महत्व होता है। उपवास पाचन तंत्र को बल प्रदान स्वास्थ्य से होता है। जीव के गर्भ में आते ही लाभकारी है। बासी भोजन तामसी हो जाता है। करता है। पाचन तंत्र की स्वस्थता ही आरोग्य की आहार ग्रहण की प्रक्रिया प्रारम्भ हो जाती है, जो भोजन की मात्रा उचित होनी चाहिए। न अधिक पहली शर्त है। उसके मृत्युपर्यन्त चलती रहती है। शारीरिक न कम। न अधिक गर्म हो न अधिक ठंडा हो। शरीर एक यंत्र की तरह अनवरत कार्य करता स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य भी जब पूरी भूख लगे तभी भोजन ग्रहण करना रहता है। हमारा शरीर आहार को पचा कर मल हमारे आहार पर ही निर्भर होता है। शारीरिक चाहिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि भोग के भाग को बाहर निकालना तथा सार-भाग से स्वास्थ्य का आहार होता है, 'संतुलित भोजन'। पीछे रोग व रोग के पीछे भोग। दरअसल प्रत्येक अंग का पोषण करना ही इसका प्रमुख शरीर की क्रिया संचालन के लिए जो तत्व आहार-विहार का सीधा सम्बन्ध हमारे स्वास्थ्य कार्य है। उपवास करने से पाचन क्रिया में भाग चाहिए होते हैं, उन सबका हमारे भोजन में होना के साथ होता है। लेने वाले अवयवों- अमाशय, आहार नली, आवश्यक है। यही संतुलित भोजन है। प्रोटीन, शाकाहार एवं मांसाहार :- आध्यात्मिक, पित्ताशय, यकृत तथा आंतों को विश्राम मिलता कार्बोहाइड्रेट्स, वसा, खनिज, विटामिन, क्षार, नैतिक, आर्थिक, अहिंसा, प्रकृति, योग एवं है। उपवास करने से पूरे शरीर को विश्राम मिलता लोह आदि उचित मात्रा में लेने से शरीर स्वस्थ पर्यावरण की दृष्टि से यह निर्विवाद है कि है। रोगों का शमन होने लगता है। सभी रोगों की और क्रिया करने में सक्षम रहता है। इसमें से शाकाहार ही उत्तम आहार है। स्वास्थ्य की सुरक्षा प्राथमिक चिकित्सा उपवास ही मानी गई है। किसी की भी मात्रा की कमी या अधिकता सीधा शाकाहार से ही अधिक होती है। उपवास के प्रमुखता से तीन उद्देश्य माने गए हमारे स्वास्थ्य पर प्रभाव डालती है। आहार का प्रोटीन आदि की दृष्टि से उत्तम आहार हैं- शारीरिक, मानसिक एवं आध्यात्मिक। हमारे मानसिक स्वास्थ्य पर भी सीधा असर शाकाहार ही है। साथ ही यह सत्य है कि कोई उपवास से दमा, मोटापा, कब्ज, बवासीर, होता है। कहावत भी है- 'जैसा खाये अन्न, भी मनुष्य लगातार एक माह तक शाकाहार पर एपेंडिसाइटिस, संग्रहणी, गठिया व यकृत के वैसा हो जाए मन।' तो स्वस्थ रह सकता है, परन्तु मांसाहार पर रोगों में बहुत लाभ होता हुआ देखा गया है। आहार का हमारे जीवन में इसीलिए सर्वाधिक लगातार एक माह तक रहना अर्थात् अपने महर्षि चरक के अनुसार उल्टी, अतिसार, महत्व है क्योंकि यह हमारी शारीरिक और स्वास्थ्य को चौपट करना ही है। यदि हमें अपना अरुचि, अफारा आदि रोगों में उपवास प्रमुख मानसिक शक्ति को सीधे-सीधे प्रभावित करता शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का ख्याल रखना औषधि है। उपवास से शरीर के अवयव तरोताजा है। शारीरिक स्वास्थ्य की विकृतियों के है तो हमें अपने आहार-विहार का ध्यान रखना हो जाते हैं। इससे नवीनता, स्फूर्ति एवं साथ-साथ मानसिक विकति को भी हमारा ही होगा। इसी क्रम में आयुर्वेद व अध्यात्म ने हमें आत्मोन्नति होती है। मांसाहारी को लंबा व भोजन उत्पन्न करता है। हमें वह भोजन ग्रहण एक और भेंट दी है 'उपवास'। शाकाहारी को छोटा उपवास करने की सलाह दी करना चाहिये जो जीवनधारण के लिए अनिवार्य उपवास :- उपवासादि से सभी प्रकार के जाती है। स्वस्थ व्यक्ति को जीवन शक्ति बढ़ाने है। स्वाद व मजे के लिए ग्रहण किया हुआ पाप-ताप का शमन होता है। उपवास के दिन एवं स्वास्थ्य रक्षा हेत सप्ताह में एक दिन आहार अंततः दुख ही प्रदान करता है। जैसे सात्विक एवं स्वल्प आहार का विधान किया उपवास करने की सलाह दी जाती है। आयर्वेद मादक द्रव्य जहां हमारे शारीरिक स्वास्थ्य का गया है। केवल खान-पान ही नहीं बल्कि हमें में जगह-जगह वर्णित है कि हमारे बिगाड करते हैं, वहीं हमारे मानसिक स्वास्थ्य अपने आचार-विचार भी शुद्ध रखने चाहिए। आहार-विहार का सीधा सम्बन्ध हमारे शारीरिक को भी प्रभावित करते हैं। आहार का प्रभाव इससे हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थय से होता है। हमारी आन्तरिक वृत्तियों पर और सूक्ष्म शरीर पर मानसिक स्वास्थ्य का भी विकास होता है।