बुजुर्गों का आहार-विहार कैसा हो?

जैसे सूर्य प्रातः बालक की तरह मुस्कुराता हुआ ठुमक-ठुमक कर अपनी लाल रंग की रश्मियों के साथ उगता हुआ सुन्दर दिखता है तथा दिन के मध्यान्ह में अत्यन्त प्रचण्ड, तेजवान, शक्तिशाली, सबको विचलित कर देने वाला बन जाता है। परन्तु वही सूर्य सायं काल अपनी प्रतिभा को समेटता हुआ कान्तिहीन, तेजहीन, पीला-सा अस्ताचल पर्वत की ओर विश्राम हेतु जाता है, ठीक इसी प्रकार मनुष्य का जीवन है। मानव का बचपन चिन्तारहित खाने-पीने, खेलने बोतल का सूर्य तप्त 2 गिलास पानी पीने की 10. शीतकाल में बादाम या काली सरसों के तेल का होता है। जवानी में शक्तिशाली सब कुछ आदत डालें तो पाखाना साफ आयेगा। से मालिश करें तथा ग्रीष्मकाल में नारियल तेल पचाने वाला मदमस्त होकर जीता है, परन्तु 2. इस उम्र में कब्ज अधिक परेशान करती है। से मालिश करनी चाहिए। वृद्धावस्था की ओर अग्रसर होते हुए जैसे ही अतः रात्रि में एक गिलास गर्म दूध अथवा गर्म 11. सुबह-सायं ध्यान साधना करनी चाहिए तथा उमर ढलान में आती है शरीर के सभी अंग पानी के साथ एक चम्मच त्रिफला चूर्ण लें। दिन में अच्छी पुस्तकों को पढ़ें। इस उम्र में निष्क्रिय व तेजहीन होने लगते हैं। इन्द्रियों में 3. या एक हरा आंवला पीसकर उबालकर पिएं समाज सेवा व देश सेवा के कार्यों में लगना शिथिलता एवं धीमापन आ जाता है। जठराग्नि - या साधारण पानी में मिलाकर पिएं। इससे पेट चाहिए। मन्द हो जाती है। इस अवस्था में विभिन्न प्रकार . साफ हो जायेगा। पानी में शहद डाल सकते हैं। के भोजन खाने का जी करता है, परन्तु पचता । बजर्ग नाश्ते में क्या खाएं :- जब उम्र 45-50 नहीं है। यदि खा लें तो पेट में अपच, खट्टी 4. पेट साफ टी 4. पेट साफ न हो तो रात्रि में 2 चम्मच ईसबगोल पार करने लगे तभी से खान-पान पर ध्यान देना डकारें आती हैंबस फिर वही जवानी के दिन की भूसी एक गिलास गर्म दूध के साथ लें। कब्ज चाहिए। हमारी जठराग्नि उम्र के साथ शनैः-शनैः याद आते हैं। यह ऐसी अवस्था होती है कि तन अधिक सताये तो 20 मि.ग्रा. अरण्डी का तेल मन्द होने लगती है। अतः भारी, ठोस, बुढ़ापे की राह में डगमगाने लगता है परन्तु मन गर्म दूध से लें। प्रातः पेट पूर्णरूपेण साफ हो तला-भुना, तेलीय खाना पचाने में मुश्किल होता जवानी की छलांगें लगाना चाहता है। मन अत्यन्त जायेगा। परन्तु यह प्रयोग आवश्यकता होने पर है। बुजुर्गों को सदैव हल्का सुपाच्य नाश्ता करना चंचल हो जाता है तथा इधर-उधर भटकता है। करें। चाहिए। इस उम्र में शरीर कमजोर होने के कारण विभिन्न 5. यदि रात्रि में दूध पीने की आदत है तो क्रीम 1. प्रात: नाश्ता शीघ्र पचने वाला, हल्का तथा प्रकार की बीमारियां कौरवों की तरह निर्बल रहित दध में 10-11 किसमस या 5-7 मनक्का शाकाहरी होना चाहिए। नाश्ता करने के बाद तथा एक पीसकर डालें और उबाल कर सहाता-सा गर्म 5-7 मिनट टहल लें। 2. अच्छा होगा मौसम करता हबस यहा समय हाता ह पीने की आदत डालें। इससे पेट साफ रहेगा। के अनुसार प्राप्त फलों का नाश्ता करें। फल शुद्ध कि हर मनुष्य को जो इस अवस्था में प्रवेश कर , 6. बुजुर्गों को रोज प्रातः उठकर धीरे-धीरे बाग, हात ह त होते हैं तथा शीघ्र पचते हैं। कभी पका सेव, पका रहा है, उसे अपने शरीर की बहुत देखभाल .. करनी चाहिए तथा खाने-पीने और रहन-सहन - उपवन, वाटिका में भ्रमण जरूर करना चाहिए केला, पका अमरूद, पके अंगूर, पकी नाशपाती, तथा लम्बी गहरी श्वांस लें। पका पपीता, पका आम, सन्तरा, शरीफा, चीकू में संयम बरतना चाहिए। यदि अपनी देखभाल आदि जो भी फल उपलब्ध हों उनको नाश्ते में नहीं की तो नास्ता दवाइयों के साथ शुरू होता है 7. प्रातः साफ-सुथरी जगह में कपालभाति, लेना चाहिए। तथा हर खाने के साथ दवाइयां भोजन का अंग भस्त्रिका तथा अनुमोल-विलोम प्राणायाम 3. एक दिन में एक बार में एक तरह का ही फल बन जाती हैं। फिर भी स्वास्थ्य काबू में नहीं धार-धार सहज गति से कर। खाना चाहिए। कभी भी मिक्स फ्रूट यानी कई रहता है तथा जीवन नरक तुल्य हो जाता है। यदि 8. किसी योग शिक्षक से योगासन सीखकर आप अपना सुखमय जीवन जीना चाहते हैं तो जरूर करें अथवा आसान शारीरिक व्यायाम करें। तरह के फल एक साथ न खाएं उससे पाचन क्रिया में दिक्कत होती है। आइए जीवन में कुछ नियम बनाएं तथा अपना योग से शरीर लचीला व सक्रिय होगा तथा रोग खानपान बदलें तथा अपने रहन-सहन में दूर रहेंगे। 4. यदि फल पसन्द न आए तो उसका रस पारवतन लाए। एसा करन स अपना जावन 9. प्रातः धूप में बैठकर पूरे शरीर की रोज 7 निकाल कर पिएं। सुखमय जी सकते हैं। कुछ नियम इस प्रकार मालिश करना चाहिएशीतकाल में दोपहर की 5. नाश्ते में गाजर चुकन्दर, पालक, बथुआ, सेव, प्रकार अपनाएं :धूप तथा ग्रीष्मकाल में 7-8 बजे की धप में मौसमी, सन्तरे का रस पी सकते हैं। कछ दैनिक नियम :- 1. नित्य प्रातः हरी बैठकर तेल मालिश कर सकते हैं। 6. प्रात: नाश्ते में गेहूं का दलिया बनाकर खाएं। चौलाई या चावल की खीर खाएं। एक साथ कई प्रकार के भोजन न लें, अन्यथा सायं का खाना हल्का व सुपाच्य होना चाहिए7. यदि नाश्ते में दध लेने की आदत है तो दध पचने में दिक्कत होगी तथा पेट खराब रहेगा। हरी सब्जियां तथा हल्के-फुल्के (चपाती) लें। क्रीम रहित लें तथा दूध में शहद डालकर पिएं। भोजन में मीठा अधिक न खाएं इससे पेट या फिर दलिया खा सकते हैं, खिचड़ी ले सकते सामर्थ्य है तो सूखे मेवे (पहले पानी में भिगो खराब होने लगता है। जब मीठा खाएं तो फिर ह त हैं। अथवा सब्जियां उबालकर भी खा सकते हैं। लेने चाहिए) दूध के साथ खा सकते हैं। खजूर तली तथा नमकीन वस्तुएं न खाएं क्योंकि मीठा चूक - चूंकि रात्रि में सोने से शरीर की मशीनरी भी या छुहारा खाकर दूध पिएं। शीघ्र पचता है। अन्य वस्तुएं देर में पचती हैं। आराम करती है अत: खाना हल्का खाएं। किसी दिन खिचड़ी, किसी दिन दलिया, तो थ खट्टे फल भा ले सकते हैं। याद शादा, जन्म दिन का पाटिया म जाना पड़ता कभी सब्जियां, रोज बदल-बदल कर खाएं। एक इससे दूध फटकर शीघ्र पच जाता और कब्ज खाने में कुछ संयम रखें। सभी प्रकार के खाना बार में कनाट का ही भोजन करें। नहीं करता है। जो चाय के शौकीन हैं उन्हें चखने के चक्कर में पेट खराब कर लोगे। दूसरी रात्रि को हाथ-पैर मंह धोकर पोंछकर सोने जाएंआयुर्वेदिक चाय पीनी चाहिए। बात पार्टियों के भोजन के बाद अगला भोजन का अच्छा होगा शवासन में सोएं। खुली जगह में नाश्ते में क्या न खाएं, पिएं :- 1. नाश्ते में त्याग कर देना चाहिए जिससे पेट को आराम रहने की आदत डालें तो अच्छा होगा। चाय कॉफी कभी न लें। खाली पेट चाय कॉफी मिले तथा ज्यादा खाया भोजन धीरे-धीरे पच यदि किसी को उच्च रक्त चाप, मधुमेह या अन्य गैस व एसीडिटी बनाती है। भूख को खत्म करती जाए। बीमारियां हों तो खानपान चिकित्सक की सलाह है तथा पाचन प्रणाली को खराब करती है। सब्जियां 2-3 तरह की एक साथ खा सकते हैं से ही करना चाहिए। परन्तु फिर दालें न खाएं। ठीक इसी प्रकार यदि भोजन सदैव मौसम के अनुसार 2. नाश्ते में पराठा पेट का सत्यानाश करता है। दालें खाएं तो फिर सब्जी या अन्य चीजें न खाएं। आवश्यकतानुसार ही करना चाहिए। पिछले पाचन क्रिया पर जोर पड़ता है तथा कब्ज को एक साथ कई प्रकार की दालें तथा कई प्रकार मौसम के फल, शाक सब्जियां वर्तमान मौसम में बढावा मिलता है। यह देर में पचता है। की सब्जियां न खाएं। एक साथ कच्चा-पक्का उपयोग न करें। 3. नाश्ते में समोसा, ब्रेड, मट्ठी, बन्द, बर्गर, भोजन नहीं करें। या तो कच्चा खाएं या पक्का। सदैव प्रसन्न रहें। अच्छा साहित्य पढें। सत्संग चाऊमीन, मैदे की बनी कोई वस्तु न खाएं। मैदा पक्का भोजन करें तो उसके साथ दही रायता या करें। कविचार, कचर्चा से बचें। पेट में फूलता है, इसमें रेशा नहीं होता है, यह छाछ. काला नमक, जीरा, अजवाइन डालकर लें कैसा हो बुजुर्गों का रहन-सहन? पाचन संस्थान के लिए नुकसानदायक है। मैदा तथा खाने के बाद आधा कप गर्म पानी पी लें तो बुजर्गों के लिए जितना जरूरी खानपान है उतना पेट में जल्दी सड़ता है, गैस, अपच, अरुचि पैदा खाना शीघ्र पचेगा। वैसे तो बुजर्गों को पका ही जरूरी रहन-सहन भी है। अतः मौसम के करता है। ढलती उम्र में ये चीजें बन्द कर दें। खाना नहीं खाना चाहिए परन्तु मन को मारना अनुसार अपने शरीर की देखभाल एवं सुरक्षा 4. बिस्कुट, रस, पापे हल्के होते हैं मन करे तो बड़ा मुश्किल होता है। जरूर करनी चाहिए क्योंकि मौसम का प्रकोप ले लेना चाहिए परन्तु इनमें ताकत नहीं होती है। सदैव भोजन समय से करें। समय से किया इस वृद्ध शरीर को जल्दी प्रभावित करते हैं। यह मत भोजन हैअत: धीरे-धीरे इन्हें त्याग दें। भोजन सही पचता है। आगे पीछे खाने से पाचन शरीर कमजोर होने के कारण मौसमों की 5. आजकल नमकीन बहुत खतरनाक, तीखी, ' की प्रणाली में फर्क पडता है। खाने के बाद कभी भी विसमता सहन नहीं हो पाती है। चटपटी, सस्ते वर्जित तेलों में तली हुई होती है ठंडा पानी न पिएं। खाने के बाद आवश्यकता शीतकाल का रहन सहन - बुजुर्गों के लिए अतः नहीं खानी चाहिए। यह पेट में गैस बनाती पड़े तो गर्म पानी पीना चाहिए। भोजन के 45 सबसे कष्टकारी मुश्किल से कटने वाली है, भोजन नली और पेट में जलन पैदा करती हैमिनट बाद पानी पिएं। शीतकाल होती है यह मौसम आराम से कट गया भोजन के तुरन्त बाद लेटे नहीं। यदि लेटना तो साल भी आराम से कट जाता है। यह चाय के साथ या दूध के साथ न लें। . जरूरी भी लगे तो सीधे लेटकर 8 बार श्वांस लें शरद ऋतु में बुजुर्गों को गर्म मोजे तथा घर के 6. कुछ लोग नाश्ते में पूड़ी, भटूरा, छोले, समोसा गिटाहिने लेकर 1 बार वा लें तथा बा समासा फिर दाहिने लेटकर 16 बार श्वांस लें तथा बाएं अन्दर पहनने वाले कपड़े के जूते सदैव पहनें। ह। नाश्त में यह भारी खाना नहीं खाना लेटकर 32 बार श्वांस लें। दोपहर के भोजन के शरीर में अन्य कपड़े भी उचित मात्रा में पहनें। चाहिए। ये चीजें देर पचती हैं। बाद कोई भारी मेहनत का काम भी नहीं करना रात्रि में ठंड के अनुसार विस्तर में नीचे-ऊपर दोपहर का भोजन कैसा हो? चाहिए। खाने के बाद कमरे में थोड़ा टहल लें गद्दा रजाई ओढ़ें। दिन में धूप जरूर सेकें। इस इस उम्र में भारी, देर में पचने वाला खाना न फिर बैठकर विश्राम कर लें। ऋतु में धूप निकलने पर थोड़ा सुबह-शाम खाएं। हरी शाक, सब्जियां चोकर सहित आटे साय शारे सायं 4-5 बजे यदि कुछ खाने की आवश्यकता टहलना चाहिए क्योंकि ठंड में हाथ-पैर जकड पड़े, भूख की सुगबुगाहट हो तो सब्जियों का जाते हैं। इस ऋतु में धूप में बैठकर तेल मालिश की रोटी खानी चाहिए। गर्म-गर्म सूप पिएं। कभी टमाटर, घिया, तोरी, अवश्य करनी चाहिए। इससे शरीर की शक्ति एक समय में एक तरह का भोजन करें। या तो ता जो मौसम की सब्जी हों उनका सप बना कर लें बढ़ती है। वो दाल-चावल खाएं तो फिर सब्जी-रोटी न खाएं। या आयर्वेदिक चाय लेंगर्म पानी में नहाएं तथा शीतल वायु से बचें। या फिर सब्जियों के साथ फुलके लें। यदि रात्रि का भोजन :- रात्रि का भोजन 7-8 बजे गर्म-गर्म आयर्वेदिक चाय पिएं। खाने की दृष्टि सलाद खाएं तो भोजन से पहिले सलाद खा लेना तक कर लेना चाहिए। अपने सोने के टाइम से से यह ऋत अच्छी होती है क्योंकि जठराग्नि चाहिए। तत्पश्चात् भोजन करें। 3-4 घंटे पहले भोजन करने की आदत डालें। अधिक उदीप्त रहती है। अतः अच्छा-अच्छा ऋतु अनुसार भोजन करें। इस ऋतु में आइसक्रीम, दही, मट्ठा आदि न खाएं-पिएं। गम-गर्म दूध या तुलसी, अदरक, काली मिर्च, गुड़, मुलैठी, डालकर गर्म-गर्म काढ़ा चाय की तरह पिएं। इससे गला व जुकाम सब ठीक रहेगा। ग्रीष्म ऋतु में रहन-सहन :- बुजुर्गों को अधिक धूप एवं लू से बचना चाहिए। कहीं भी जाएं तो प्रात: या सायं में जाएं तथा काले छाते का प्रयोग करें। पानी सदैव साथ रखना चहिए। घर में पंखा व कूलर की हवा सीधे कभी नहीं लेनी चाहिए। इस ऋतु में भोजन कम से कम करें तथा बहुत ही हल्का करें। यह ऋतु खाने की कम पीने की अधिक होती है। अतः तरल चीजें अधिक सेवन करें। ग्रीष्म ऋतु के फल-सब्जियां ही खाएं। खरबूजे, ककड़ी, तरबूज के बीजों की ठंडाई बनाकर पिएं। सभी देशी फलों का सेवन करें। इस ऋतु में हल्के हवादार सूती वस्त्र धारण करें। खुली जगह में सोएं। वर्षा ऋतु में रहन-सहन :- इस ऋतु में भी भोजन कम करना चाहिए। खाया हुआ भोजन शीघ्र नहीं पचता है तथा इस ऋतु में अपच के अवसर ज्यादा रहते हैं। बुजुर्गों को अधिक वर्षा में नहीं भीगना चाहिए इससे निमोनिया हो सकता है। सूखे वस्त्र धारण करें। विस्तर भी सूखा साफ-सुथरा होना चाहिए। इस ऋतु में पत्तेदार सब्जियां नहीं खाना चाहिए। ऋतु के फल एवं सब्जियां ही खाएं खाना हल्का लें। आजकल पानी गन्दा हो जाता है, अतः उबालकर छानकर पीना चाहिए। जब शरीर कमजोर होने लगे, इन्द्रियों की गति मन्द जाए तो बुजुर्गों को अपना जीवन ईश्वर चिन्तन में, अच्छा सोचने तथा अच्छी बातें सिखाने में लगाना चाहिए। इस उम्र में सादा जीवन उच्च विचार, सात्विक, सुपाच्य भोजन का ही सहारा लेना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि बुजुर्ग लोग कुछ अपने जीवन को इस तरह ढालेंगे कि उनका बुढ़ापा अच्छा एवं स्वस्थ रूप में गुजरे। अपने खानपान तथा रहन-सहन का पूरा ख्याल रखेंगे। घर के जवान सदस्यों को सदैव बुजुर्गों की सेवा करनी चाहिए तथा उनके लिए आवश्यक खानपान व उपयोगी वस्तुओं को समय पर उपलब्ध कराना चाहिए।