पित्ताशय की पथरी

पित्ताशय में पथरी की उपस्थिति एक विस्फोटक की पित्त :- पित्त सुनहरे भूरे रंग का यकृत स्राव है। इसका फूड, ब्रैड आदि में आक्जैविक एसिड की अधिकता तरह होती है जो किसी भी समय संकट उत्पन्न कर स्वाद कड़वा होता है। यह पाचक रस होते हुए भी विष होती है। हरी साग सब्जी कम खाना, अधिक मात्रा में सकती है। अतः यह पता चलते ही कि पित्ताशय में तुल्य होता है। यह आंतों का उद्वीपक होता है तथा उन्हें भोजन, कब्ज होना, पानी कम पीना, मांसाहारी भोजन पथरी है, इसका समुचित उपचार करा लेना चाहिए। क्रियाशील रखता है। इसमें लगभग 80 प्रतिशत जलीय करने से यह रोग अधिक होता है। अति निद्रा, जब पित्ताशय में पथरी बन गई हो तो अभी तक कोई अंश होता है। इसमें लवण, रंजक, लेसेथिन व मद्यपान, प्रदर रोग, मानसिक तनाव आदि के कारण ऐसी औषधि नहीं है जो उसे गलाकर या तोड़कर बाहर कॉलेस्ट्रॉल होता है। भोजन करने पर इसका उत्पादन मनुष्य यकृत रोगी हो जाता है। रोगी यकृत में तैयार हुआ निकाल दे। कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि पथरी ज्यादा हो जाता है। पित्ताशय में एकत्रित पित्त का कुछ पित्त विकारयुक्त, गाढ़ा और चिपचिपा होता है जो पित्तवाहिनी से होकर छोटी आंत में स्वतः चली जाती अंश पाचन क्रिया में व्यय होता है। कुछ बाहर निकल पित्ताशय में जमा होकर प्रदाह और शोथ पैदा कर देता है। यह पथरी के छोटे आकार के कारण संयोगवश ही जाता है तथा कुछ शरीर में समा जाता है। आंतों में है। दषित पित्त सखकर कडा हो जाता है और फिर होता है। पित्ताशय में पथरी उत्पन्न होने पर उसका पहुंचकर यह भोजन का पाचन करने के साथ ही खाने पथरी का निर्माण हो जाता है। ऑपरेशन करके पथरी निकाल देना ही समुचित उपचार को सड़ने नहीं देता। लक्षण :- जब पथरी पित्ताशय से निकलकर पित्त है। पित्ताशय में पथरी बनने की एक आम जगह है। पथरी :- पित्ताशय की पथरी पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों वाहिनी में पहुंचकर अटक जाती है तो पित्त के रास्ते में इसमें एक बार रोग हो जाने के बाद यह शरीर के लिए में अधिक पाई जाती है। लगभग 40-50 वर्ष की स्थूल अवरोध के कारण असाध्य दर्द होता है। दर्द की लहरें संवेदनशील हो जाता है। पुनः इसमें पथरी बनने की शरीर वाली महिलाएं जो कार्बोहाइड्रेट तथा वसायुक्त कुछ अंतराल से उठती रहती हैं। ठंडा पसीना छूटने अधिक संभावना हो जाती है। भोजन अधिक मात्रा में लेती हैं, उनमें पथरी बनने की लगता है। यह दर्द समय बीतने के साथ-साथ अपने इस रोग को पुनः न होने देने के लिए नियमित अधिक संभावना रहती है। पथरी बालू के कण, सरसों आप कम भी हो जाता है। अरुचि और अपच हो जाता दिनचर्या और आहार-विहार इस प्रकार रखना चाहिए के दाने से लेकर अखरोट व अंडे के आकार तक की है। अमाशय में शोथ के कारण अमाशय और उसके कि यह रोग फिर से उत्पन्न न हो। प्रायः यह देखा गया हो सकती है। संख्या में 30-40 तक भी हो जाती है। आस-पास दर्द की अनुभूति होती है। ऐसी स्थिति में है कि पित्ताशय में पथरी बनने के साथ ही शरीर में कारण पथरी बनने के निम्न कारण हो सकते हैं :- पीलिया के लक्षण भी प्रकट हो सकते हैं। स्थूलता आ जाती है। इसके लिए नियमित व्यायाम, 1 मायाम, 1. पित्ताशय में पित्त अधिक समय तक रूका रहने के चिकित्सा : वेदना के समय :- दर्द निवारक इंजेक्शन ला प्राणायाम, योगासन आदि करते रहना चाहिए। अब हम कारण 5-10 गुना अधिक मादा होने के बाद और भी व वेदना शामक औषधि के प्रयोग से दर्द तो ठीक हो इस रोग के कारण, लक्षण, बचाव आदि के बारे में चर्चा गाढ़ा हो जाए और उसमें जीवाणु का संक्रमण हो जाए जाता है परन्तु दर्द के कारण पथरी तो अपनी जगह ही करेंगे। हमें स्वस्थ रहते हुए ही यह प्रयास करना चाहिए तो पथरी बन जाती है। व्यायाम न करने से, बैठे रहती है। गर्म पानी के टब में बैठने से पित्त-वाहिनी में कि हमें इस रोग का सामना न करना पड़े। अर्थात् हमें . उन कारणों से बचना चाहिए जिनसे पित्ताशय में पथरी रहने से, स्थूल शरीर वालों में तथा गर्भावस्था में पित्त फंसी पथरी निकल जाती है। जब तक दर्द दूर न हो अधिक देर तक संचित रहने से गाढ़ा हो जाता है जो जाए गर्म पानी के टब में बैठे रहें। ठंडा पानी निकालकर बनना सम्भव है। पित्ताशय :- हमारे उदर के दाईं और ऊपर की तरफ धीरे-धीरे पथरी का निर्माण कर देता है। 3. गर्म पानी डालते रहें। टब के स्थान पर गर्म तौलिये का यकृत के निचले भाग से लगा हआ लगभग 4 इंच यकृत की विकृति के कारण पित्त का निर्माण ठीक प्रयोग भी कर सकते हैं। गर्म पानी की बोतल भी प्रयोग लम्बा गाजर के समान आकृति का पित्ताशय होता है। प्रकार से न होने, पित्त में पित्त लवण का अनुपात कम कर सकते हैंइसका मुख्य कार्य यकृत में बने पित्त को इकटठा करना होने या कॉलेस्ट्रॉल की मात्रा अधिक होने पर स्वच्छ हवादार स्थान में पूर्ण विश्राम करें। ठीक होने है। इसमें लगभग 45CC पित्त जमा रहता है। जब कॉलेस्ट्रॉल पित्ताशय में नीचे अवक्षेप के रूप में जमने तक उपवास करें। वमन हो तो बर्फ का टुकड़ा चूसें, भोजन अमाशय में आगे बढ़ता है तो पित्ताशय से पित्त लगता है। उसके ऊपर पुनः कैल्शियम की तह जम पानी न पिएं। गर्म जल या जैतून के तेल में एक चम्मच निकलकर भोजन में मिल जाता है, जिससे भोजन के जाती है। इस प्रकार तह पर तह जमने से छोटी-छोटी नींबू का रस मिलाकर प्रत्येक घंटे में पीते रहें। कुलथी वसा और प्रोटीन का पाचन होता है। स्वस्थ पित्ताशय पित्ताश्मरी बन जाती है। 4. गर्भावस्था तथा मधमेह में की दाल का पानी पिएं। 24 घंटे में 2-3 बार खाली हो जाता है। जब भोजन नहीं भी कॉलेस्ट्रॉल की वृद्धि हो जाती है, जिस कारण पथरी वेदना के बाद :- आहार-विहार का संयम करें तथा किया जाता है तो पित्त पित्ताशय में इकट्ठा होता रहता निर्माण की संभावना बढ़ जाती है। 5. असन्तुलित कब्ज न हान द। है। इसका जलीय अंश शरीर में पच जाता है. जिससे अप्राकृतिक आहार-विहार भी पथरी बनने का मख्य पेडू पर प्रतिदिन ठंडे-गर्म पानी की सेंक करते रहें। गर्म पानी में भीगा तौलिया कमर के चारों ओर लपेटें। पित्त गाढ़ा होता चला जाता हैकारण होता है।