रूठना स्वाभाविक व मान जाना सकारात्मक

रूठना स्वाभाविक व मान जाना सकारात्मक पति-पत्नी एक-दूसरे से रूठने पर जल्दी मान जाते हैं उनका जीवन बहुत अच्छी प्रकार से चलता है। जो पति-पत्नी एक-दूसरे से एक बार रूठने पर मानने का नाम ही नहीं लेते उनका जीवन तबाह होना निश्चित है। मनाने पर न मानने का अर्थ है दोनों तरफ कटुता में लगातार वृद्धि। जो पति-पत्नी एक-दूसरे से रूठने पर जल्दी मान जाते हैं उनका जीवन बहुत अच्छी प्रकार से चलता है। उनके बीच रूठना और मनना-मनाना जीवन का स्वाभाविक इसका अर्थ है कि हममें आत्मीयता अथवा प्रेम का व स्थायी वैमनस्य और कटुता नहीं आती। यदि कोई का ये समझे कि झटपट मान जाना उसकी कमजोरी क्रम है। ये दो विपरीतार्थक नहीं अपित परक शब्द अभाव है या फिर अहंकारवश ऐसा नहीं कर रहे रह दर्शाता है तो ये सोच बिल्कुल सही नहीं है। इससे हैं। इसके बिना जीवन की गादी चल ही नहीं हैं। रूठे हुए स्वजनों अथवा प्रियपात्र को फौरन मनाने का अर्थ है कि हम न केवल उससे अगाध न तो व्यक्ति के स्वभाव की सरलता, शालीनता व सकती लेकिन रूठने और मनने-मनाने की एक का एक प्रेम करते हैं अपितु हम पूर्णतः निरंहकार भी हैं। विनम्रता का ही पता चलता है। जो लोग एक बार सीमा होती है। सभी समझदार लोग रूठे हुओं को प्रायः अहंकार, उपेक्षा अथवा स्वार्थ के कारण ही नाम ही नहीं लेते वे वास्तव में अपने भाग्य से ही किसी से रूठने पर किसी भी तरह से मानने का फौरन और बार-बार मनाने की सलाह देते हैं। हमारे संबंध खराब होते हैं। जब कोई उपेक्षित रूठ जाते हैं। उनके व्यवहार में जड़ता आ जाती है। अनुभव करता है तभी वह दुखी होता है अथवा रहीम कहते हैं : रूठता है। जब हम रूठे हुए को फौरन मना लेते हैं जिद्दी अथवा मनाने पर किसी भी तरह से न रूठे सुजन मनाइए जौ रूठे सौ बार, तो सामने वाले की ये गलतफहमी भी फौरन ही दर मानने वाला व्यक्ति चाहे वो पुरुष हो या स्त्री सखी रहिमन फिरि-फिरि पौहिए ? मक्ताहार। हो जाती है कि उसकी उपेक्षा की गई थी। यदि व संतुष्ट जीवन व्यतीत नहीं कर पाता। वह जीवन ___ यदि कोई सजन अर्थात हमारा कोई स्वजन हमस काई गलती हो गई हो तो उसे स्वीकार कर में मनचाही सफलता से कोसों दर रह जाता है। कोई प्रिय अथवा कोई अच्छा व्यक्ति हमसे रूठ क्षमा मागी जा सकती है। ऐसा करेंगे तो सामने इसमें संदेह नहीं कि किसी से रूठने पर स्वयं भी जाए तो उसे हमेशा ही मना लेना चाहिए चाहे वो वाला न केवल अपने अमर्ष का त्याग कर देगा जल्दी मान जाना हमारे व्यक्तित्व के विकास के सौ बार अर्थात बार-बार ही क्यों न रूठता हो। आप रहीम कहते हैं कि यदि मक्ताहार अर्थात मोतियों इसमें संदेह नहीं। जब लंबे समय तक रूठना महत्त्वपूर्ण है। एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि का हार टूट कर बिखर जाए तो उसके मोतियों को चलता ह ता दाना तरफ से बहुत सी गलतफहमियां एसा हम स्वाभाविक रूप से करें अथवा फिर से धागे में पिरो लेना चाहिए। यदि हम टटे हए बढ़ती चली जाती हैं जिन्हें बाद में दूर करना स्वाभाविक रूप से न कर पाने पर इसके लिए बाह्य मुक्ताहार अर्थात बिखरे हए मोतियों को दोबारा मुश्किल हो जाता है। अच्छे लोगों को नहीं मनाएंगे प्रयास भी करें? दोनों ही स्थितियां उत्तम हैं। चाहे धागे में पिरो लेंगे तो वो पहले की तरह ही उपयोगी तो उनके मार्गदर्शन व उनकी संगति से होने वाले हम ऊपरी तौर पर ही क्यों न मान जाएं लेकिन और सुंदर हो जाएगा जिससे आसानी से उसे पहन लाभा से वाचत रह जाएंगे अतः रूठे हए अच्छे इसका जो प्रभाव होगा वो वही होगा जो सकेंगे अन्यथा मोती इधर-उधर बिखरकर व्यक्तियों को मनाना भी हमारे स्वयं के हित में ही स्वाभाविक रूप से मानने पर होगा। स्थितियों पर महत्वहीन हो जाएंगे अथवा खो जाएंगे। उनकी होगा। यदि कोई हमसे रूठ सकता है तो हम भी तो इसका सकारात्मक प्रभाव ही पडेगा। हमने आब भी जा सकती है। जिस तरह मोती जब तक किसी से रूठ सकते हैं। हमारा रूठना भी स्वाभाविक रूप से अथवा विशेष रूप से प्रयास * अस्वाभाविक नहीं। जिस प्रकार किसी रूठे हुए को कर एक सूत्र में गुंथे रहते हैं तभी तक उपयोगी रहते हैं अस्वा करके किसी भी तरह से यदि एक बार भी स्थिति " को सामान्य अवस्था में ला दिया तो इससे अच्छी उसी प्रकार से जब तक संबंध भी मधुर और मन " मनाना और शीघ्र मनाना अनिवार्य है उसी प्रकार का स्वयं रूठने पर हमारा भी शीघ्र मान जाना अच्छी बा आत्मीय रहते हैं तभी तक उनका महत्व है। हमारे . बात हो ही नहीं सकती। जीवन में तरलता उत्पन्न संबंध भी मुक्ताहार की तरह ही कीमती और - करने का उद्देश्य तो स्थितियों को सुधारना ही है। बात है। सामान्यतः किसी बात पर नाराज होकर स्थितियां सुधार जाएंगी तो जीवन-प्रवाह भी रूठने पर यदि कोई मनाए तो जल्दी मान जाना महत्वपूर्ण होते हैं इसलिए उन्हें हर हाल में टूटने से , बचाना चाहिए और संबंध टट जाने के बाद फौरन व्यक्ति को सरलता व शालीनता का प्रतीक है। सतुलित हा जाएगा। इससे उपयोगी कार्यों को करना सरल हो जाएगा जो हर हाल में अनिवार्य है। उन्हें सुधारने अथवा रूठे हुओं को मनाने का प्रयास २०१ किसी बात पर रूठने के बाद यदि हम मनाने पर करना चाहिए ताकि संबंधों की सार्थकता बनी रहे। क्राध, कुटिलता अथवा कटुता थी ही नहीं। इस फौरन मान जाते हैं तो कई बार स्थितियां जीवनभर टूटे अथवा बिखरे हुए संबंध अनपयोगी हो जाते हैं। प्रकार का आचरण भावनात्मक दृष्टि से संतुलित . के लिए हमारे अनुकूल हो जाती हैं जबकि न मानने अच्छे संबंध हमारा पोषण और विकास करते हैं व्यक्ति व्यक्तित्व का द्योतक है। ऐसा व्यक्ति प्रशंसा का पर स्थितियां हमेशा के लिए प्रतिकूल हो जाती हैं। जबकि खराब संबंध हमारे स्वास्थ्य के लिए घातक : पात्र होता है। जो व्यक्ति एक बार रूठने पर किसी यदि रूठे रहना ही है तो व्यक्तियों से नहीं अपितु और हमारी उन्नति में बाधक होते हैं। यदि हम भी तरह से नहीं मानते हैं अथवा अत्यधिक नखरे , अपने आसपास व्याप्त नकारात्मकता से रूठ जाइए अपन रूठ हए स्वजनों अथवा प्रियपात्र को नहीं दिखलात है इससे उनके जटिल व्यक्तित्व का पता और उसे दूर करके ही मानिए। यदि कोई हमसे ये मनाएंगे तो इसका दुष्प्रभाव ही हमारे जीवन पर चलत - चलता है। सामान्य लोग ऐसे लोगों से दूर रहना । घर रहना कह दे कि भई हमने तो सुना था कि आप बहुत पड़ेगा। यदि हमारा कोई प्रिय हमसे रूठ जाता है तो र चाहेंगे और किसी भी प्रकार के संबंध नहीं बनाना 1 जल्दी रूठ जाते हैं और बहुत जिद्दी हैं लेकिन हमें भी अच्छा नहीं लगता। हम भी बेचैन हो जाते चाहेंगे। वैसे तो रूठने की अवस्था में किसी के भी , आप तो बहुत विनम्र और सरल स्वभाव के हैं और हैं और जब तक सामने वाला मान नहीं जाता हम मनाने पर शीघ्र मान जाना हमारे संबंधों पर बहुत पर बहुत फौरन सबकी बात मान लेते हैं तो ये बातें हमें , मानसिक रूप से उद्विग्न रहते हैं। रूठा हुआ व्यक्ति अच्छा और सकारात्मक प्रभाव डालता है लेकिन सी लगी मानव अथवा हम स्वयं कई बार कुछ ऐसा कर गुजरते हैं पति-पत्नी के संबंधों के निर्वाह में तो ये और भी अथवा स्वभाव में ये गुण नहीं हैं तो भी हम उन्हें जो दोनों के लिए ही ठीक नहीं होता। इसलिए यह अधिक महत्वपूर्ण है। पति-पत्नी को प्रायः हर आ प्रायः हर अपनाने का प्रयास करेंगे। ये रूपांतरण जैसी स्थिति अनिवार्य है कि रूठे हुए को फौरन मानाया जाए। समय साथ रहना होता है। अतः उनके बीच गोली दोगा जवा ये हमारे ही हित में होगा। फिर भी यदि हम उसे मनमुटाव अथवा रूठन जसा क्रिया का बार-बार व दूसरों की बात मानने व अपनी जिद्द को त्यागने में नही मनात या मनाने का प्रयास नहीं करते हैं तो अपक्षाकृत आधक हाना स्वाभाविक है।