वसन्त शस्त आहार-विहार

अधिक ठंडे पेय पदार्थ कोल्ड डिंक्स वसन्त शस्त आहार-विहार बजे पूरे शरीर में पंक स्नान करें फिर मिट्टी सूखने पर जल स्नान करें। इस ऋतु में पेट साफ रखें। नाश्ते में पराठे, ब्रेड मैदे से बनी सभी चीजें आलू, उड़द की दाल, छोले, राजमा, अधिक घी, तेल, गुड़, अचार, सिंघाड़े से बचें। अधिक ठंडे पेय पदार्थ कोल्ड ड्रिंक्स आइसक्रीम, दही, गन्ना रस, भैंस का दूध कम से कम सेवन करें या बचें। चाय, काफी, कहवा, काली चाय से बचें तथा उसके स्थान में आयुर्वेदिक चाय पियें।  प्रात: लेट न उठें तथा दिन में नींद न लें। भारत एक महान देश है जहां विभिन्न समुदाय, है। प्रकृति जानती है कि इस ऋतु में मानव अनक जातया, अनेक सभ्यता, अनेक कल्याणार्थ किन सब्जियों, फलों अनाजों की अधिक भोजन, पेट भर कर न करें। भाषाओं, अनेक खान-पान, अनेक वेशभूषा के आवश्यकता है, उन्हीं को प्रदान करती है। प्रातः एवं सायं की ठंडी वायु एवं शीत से लोग रहते हैं। शायद पूरे विश्व में भारत एक ही। इस ऋत में कफ प्रधान वाले व्यक्तियों को बचें। एकाएक कम कपड़ों में न रहें। जाने ऐसा पहला देश है जहां छह ऋतएं अपने सावधानी बरतनी चाहिये। इस ऋत के आगमन वाला हल्का ठड नुकसान दायक होता हैनिश्चित समय में आकर मनुष्य के जीवन में से जुकाम, खांसी, गला खराब, श्वांस रोग। इस परिवर्तनशीलता का पाठ दिखाती है। इन दमा, उल्टी, अरुचि, अपच, ज्वर, पाचन के. धूम्रपान एवं अन्य नशीले पदार्थों से बचें। ऋतुओं का मानव जीवन में बहुत महत्व है। रोग आदि उभरने लगते हैं। अतः इनसे बचने के कफ वर्धक खाद्य, खट्टे, मीठे गरिष्ठ 1 लिये तथा स्वास्थ्य की रक्षा हेतु कुछ' । यह ऋतु सूर्य एवं चन्द्रमा की गतियों के अ पर परिवर्तित होती रहती है। लद को खान-पान में इस प्रकार परिवर्तन करना भाजन, तली-भुनी चीजें न खायें। मनुष्य को प्रकृति परिवर्तन के अनुसार ही बसन्त ऋतु को सर्वोत्तम एवं सुन्दरतम माना । जाता। इसे ऋतओं का राजा भी कहते हैंरात्रि में एक चम्मच त्रिफला चूर्ण कांच के अपनी जीवनशैली में भी बदलाव लाकर गिलास में जल भरकर डाल दें एवं ढंक कर प्रकृति के साथ चलना चाहिये तभी हम बसन्त ऋतु में सभी पेड़-पौधों अनेक प्रकार के रख दें। प्रात:काल उठकर वही जल पी लें। स्वास्थ्य की रक्षा कर सकते हैं। प्रकृति के नवीन पुष्पों से सुशोभित प्रसन्न मुद्रा में नृत्य प्रातः 2 से 4 गिलास जल उषाकाल में पीना नियमों के खिलाफ चलने से हम विभिन्न करते हए दिखते हैं। सारी वसुधा सजी-संवरी चाहिये। बीमारियों की चपेट में आ सकते हैं। अत: दुल्हन की तरह अत्यन्त मनभावनी एवं पातःकाल की धा वेला में मारा। प्रकृति अनुरूप चल कर तन एवं मन को सुंदर 'लभावनी लगती है। इस बात की पुष्टि भगवान उपवन, वाटिका, नदी तट, झील तट में भ्रमण योगेश्वर महाराज श्री कृष्ण ने गीता में अर्जुन करना चाहिये। । को बताया था कि हे अर्जुन . प्रात:काल कपालभॉति, भस्त्रिका, 'मासाना मार्गशीर्षाहमृतूनां कशुमाकर': अनुलोम-विलोम तथा भ्रामरी प्राणायाम करना  (10/35) अर्थात् 'हे अर्जुन महीनों में मैं चाहिये। मार्गशीर्ष तथा ऋतुओं में बसन्त ऋतु हूं। चारों इसके पश्चात् सुबह योगासन अथवा ।ओर पृथ्वी फूलों से लहलहाती भ्रमरों से व्यायाम करें। गुंजायमान वातावरण में खुशबू को बिखेरती हुई दृष्टिगोचर होती है। इस ऋतु में न ज्यादा प्रातः लालिमायुक्त सूर्य की किरणों का ठंड होती है न ही अधिक गर्मी। पर ऋत स्नान नंगे बदन करें, हो सके तो उस धप में । अत्यन्त मनोहारी एवं लुभावनी होती है। 'बैठकर तेल मालिश करें। फिर आधा घंटे बाद ऋतु परिवर्तन होता है वैसे ही हमारे खान-पान 1 सम्पूर्ण स्नान करें। नाभि में गोघृत लगायें। रहन-सहन में भी परिवर्तन आवश्यक हो जाता सप्ताह में एक दिन प्रातः धूप में 9 से 11 वर्तित होती रहती है छह ऋतुओं म चाहिये।