आहार और वृद्धावस्था


उम्र के साथ-साथ शरीर में कई प्रकार के बदलाव आतं हैं। इन बदलावों के साथ हमारा जीवन-शैली भी बदलने लगती है। हमारी जरूरतें भी बदल जाती है परन्तु हम कई बार इन जरूरतों को नजर अदाज कर देते हैं। जिनके कारण हमें सामना करना पड़ता है कई प्रकार की अनचाही हा अस्वस्थ्यता का। अगर में अस्वस्थता लम्बे समय तक चले तो बीमारी का रूप ले लेती है। सबसे ज्यादा ध्यान देने वाली अवस्था होती है। वृद्धावस्था यह तो आमतौर पर सभी कहते हैं कि बच्चे और जवान को सब पच जाता है परन्तु वृद्धावस्था में हर प्रकार का आहार नहीं पच पाता है। इसका कारण है शरीर में आहार बदलाव। इन बदलावों में सही प्रकार के आहार की जानकारी होना आवश्यक है। आइये पहले जानते हैं कि क्या बदलाव आते हैं वृद्धावस्था में। आज की चिंता और तनावग्रस्त जीवनशैली के कारण ज्यादा लोग इस अवस्था में पहुंचते-पहुंचते बहुत से रोगों के शिकार बन जाते हैं जिनमें मधुमेह, उच्चरक्तचाप, घुटनों का दर्द आदि बेहद ही आम है। इनके अलावा जो बदलाव आते हैं वो हैं सामाजिक जैसे कि सेवा निवृत्ति के बाद अपना ज्यादातार समय खाली-खाली सा पाते हैं। उनका रोजाना का नियमित क्रम टूट जाता है और इस तरह उनका खाया शारीरिक क्रियाएं नियम के अनुसार उम्र का असर दांतों पर भी पड़ता है। कई व्यक्तियों को दांतों की वजह से - ठोस आहार लेना मुश्किल होने लगता है। घुटनों की वजह से चलने-फिरने में दिक्कत बढ़ने लगती र है। बढ़ता वजन भी शरीर पर गलत प्रभाव डालता निर्भरता भी कई लोगों को इस अवस्था में अपने स्वास्थ्य का पूर्णतया या ध्यान देने में असमर्थ बना देती है। क्योंकि जीवन की आग नहीं या टी आर्थिक तौर मजबती खासकर महिलाओं के लिए एक चुनौती बन जाती है। भारतीय महिलाएं इस उम्र में या तो अपने बच्चों या फिर अपने पति पर निर्भर रहती है। आइये जानते हैं सामाजिक, शारीरिक में आर्थिक व्यवस्थता को ध्यान में रखते हुए वृद्ध अवस्था में किस प्रकार के आहार का सेवन करें। 1 पोसीन :- वनावस्था में मांसपेशियां कमजोर होने लगती हैं दर्य कारण पोदीन यक्त आहार का सेवन करना चाहिए जिसमें दालें उत्तम हैं। दाल सपाच्य होती है। दाल को बढ़त ज्यादा गादा नहीं लेना चाहिए। मंग मसर लोबिया आदि दालें लेना चाहिए। मंग, मसर, लोबिया आदि दालें प्रोटीन का अच्छा स्रोत हैं। कहीं राजमा चना आहार भी प्रोटीन यक्त है परन्त यह पचने में समय लेती है। अत: इनका प्रयोग कम व हो सके तो दिन में प्रयोग करें। अंडा, मीट और मछली भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। यदि शाकाहारी भोजन के साथ इनका उपयोग भी किया जाए तो मांसपेशियों की उनका उपयोग भी किया जाए तो मांसपेशियों की उपयक्त व पर्याप्त प्रोटीन मिल जाता है। 2. कार्बोहाइड्रेट :- कार्बोहाइड्रेट शरीर की सभी प्रकार की क्रियाओं के लिए आवश्यक होते है। कार्बोहाइड्रेट्स जो कि अनाज जैसे गेहूं आदि से : पर्याप्त मिल जाते हैं। भोजन में इनका सम्मलित होना आवश्यक होता है। दिन में एक समय रोटी और एक समय चावल का प्रयोग करना चाहिए। इसके अलावा बेसन, ज्वार, सागी का उपयोग भी सप्ताह में एक-दो बार उपयोग करना चाहिए। इस प्रकार आहार में विटामिन के साथ-साथ रुचि उत्पन्न होती है।        3. फट्स :- फेट्स क नाम स सब डर जात ह आर इसका एक डर का समान मानत ह परन्तु फट्स का भा जरूरत शरीर का हाता है। यह हमार फैट्स साथ-साथ टहलना की भी जरूरत शरीर को होती है। यह हमारे शरार का ठण्ड म ऊजा प्रदान करता है। साथ ही शरार शरीर के विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं को बनाये रखन म मदद करता ह, दूध, मीट, पनीर आदि आ जाते हैं। नियमित मात्रा में इसका सेवन शरीर के लिए उपयोगी रहता है। इसका सेवन शरीर के लिए उपयोगी रहता है। सोयाबीन, सूरजमुखी का तेल साथ ही सरसों का तेल खाना बनाने में उपयोगी कह सकते हैं। सरसों का तेल ओमेगा-3 फैट्टी एसीड्स का स्रोत माना जाता है जो कि हृदय के लिए अच्छा होता है। 4. फाइबर :- इस अवस्था में ज्यादातर को कब्ज की तकलीफ होने लगती है। इसके लिए आहार से फाइबर का प्रयोग आवश्यक है। आटे को ज्यादा ना छानें उसमें मिला चोकर फाइबर का एक अच्छा स्रोत है। फल जैसे कि बेर, नाशपाती, सेब, संतरा आदि फाइबर क अच्छ स्रात हा साब्जया ब्रेक्ली, मूली, गाजर, बीन, खीरा, कद्रू आदि भी अच्छे स्रोत हैं। दलिया, मुसली, आट आदि का प्रयोग करना चाहिए। ये भी फाइबर के स्रोत हैं। मौसम के अनुसार हरी सब्जियों का प्रयोग करना चाहिए जिनमें लौकी, तोरी, टिण्डे का प्रयोग अच्छा है। दूध का एक गिलास इस अवस्था में बहुत जरूरा हा आयु ह जा काल हाड्ड हड्डियां कमजोर होने लगती है इसलिए इसका प्रयोग जरूरी है। बादाम, अखरोट, किशमिश आदि ड्राई फूड्स भी कई प्रकार के माइक्रो न्यूट्रिइन्टस और कई , प्रकार के माइक्रो एलिमेट्स का स्रोत है। इनको भी नियमित मात्रा में प्रयोग करें। फलों में सभी प्रकार के मौसमी फल खाएं। मौसम के अनुसार मिलने वाले फल, साग सब्जी सबसे उत्तम रहते हैं। एक तो यह मौसम के अनुसार शरीर की जरूरतों को पूरा करते हैं साथ ही किफायती भी रहते हैं। दांतों की परेशानी ज्यादातर लोगों को इस अवस्था में तंग करती है इसलिए ठीक प्रकार से पका व तरल आहार को ज्यादा लें। मैदा चीनी का प्रयोग कम से कम करें। तली और मसालेदार व्यंजन महीने में एक या दो बार से ज्यादा ना करें। खाने में दही का प्रयोग सर्दियों में दिन में करें क्योंकि आयर्वेद के अन के समय लेता है। साथ ही सर्दियों में पाचन क्रिया तेज रहती है और यह सर्दियों में अन सर्दियों में छाछ या मटठा का प्रयोग करें। एक बार में पेट भर भोजन ना करें अपितु थोडी-थोड़ी देर में थोड़ी-थोटी मात्रा में क आयर्वेद के अनसार कक्षि (पेट) को 3 भाग में विभाजित कर भोजन करें। एक भाग ठोस पदार्थ, एक भाग तरल व एक भाग खाली रहने दें जिसमें पाचन क्रिया होने के लिए उपर्युक्त स्थान रहें। आहार के साथ-साथ रोजाना कुछ देर का व्यायाम, योग या टहलना जीवनशैली में जरूर रखें। इससे तन व मन दोनों प्रसन्न रहते हैं।