अस्थमा आयुर्वेदिक उपचार

दमा यानी श्वास रोग की पहचान देने की आवश्यकता नहीं है। रोगी को देखते ही पता है कि यह दमा स पााड़त रोगी है। यहा कुछ सरल प्रयाग बता रहा हू। इसम स दा-तान मिलाकर प्रयोग अजमाकर आराम पा सकते है। 1. धतूरे के पुष्पों का अंगारे पर डालकर धूप 10 लकर तेल छाया में सुखाकर मिट्टी के बर्तन में संग्रह करना बहुत चाहिए। 2. बिना दूध की चाय में अलसी और अजवायन तथा पुराना गुड़ डालकर पीने से आराम होता है। 3. धतर क फल 24 घटे तक लवंग छेद करके रख दें। बाद में संभालकर रखे, दीर्घायु आवश्यकतानुसार 2-3 लवंग चूसे। 4. थुवर के दूध में साबूत देशी चने 24 घंटे भिगोकर रखिए बाद में सुखाकर 2-2 चने गरम जल के साथ निगलने से आराम होता है। 5. यह प्रयोग हजारों मरीजों पर अजमाया हआ करने है। साजीखार 40 ग्राम साबत सांस हल्दी एरण्डीतेल में भूनी हुई 20 ग्राम और काली सकरी मिर्च 20 ग्राम सभी को एकजूट करके पीस लगती लीजिए, और एक-एक ग्राम जितना यह चूर्ण सांयचार-गुने शहद के साथ 2-3 बार चाटे सेवन लगता करें। अवश्य फायदा होगा। 6. धतूरे के पत्ते को धोकर गाय का मक्खन अंधेरा चपड़कर थोड़ा-सा सिंधव नमक छिडकिये और खांसी बाद में एक के ऊपर एक पत्ता रखकर मिट्टी के भाग लगाकर भस्म बना लीजिए। सुबह-रात को आधे से एक ग्राम शहद मिलाकर सेवन करें। 7. धतरे की मोटी शाखा को खतरकर 40 से 60 संधि चन रह इतनी जगह कर उसमें चने रखकर वक्त बरोबर छीलका रखकर बांध दीजिए। 40 दिन के ऋतु बाद चने निकालकर छाव में सखा लीजिए। हर में रोज आवश्यकतानुसार सिर्फ एक चना जल के से साथ सेवन करें। दस-प्रदह दिन यह प्रयोग करना आवश्यक है। 8. अजवायन और स्वरस एक-एक ग्राम दिन में तीन बार गरम जल के साथ लीजिए। 9. सरसों का तेल गरम करके सिंधव नमक मिलाकर छाती-सीने पर और पीठ पर मसाज कीजिए। 10. बडे के फल को गाय के घी या एरण्डी के तेल में भूनकर बहेड़े का छीलका चूसिये। जैसे बहुत सारे नुस्खे है। यहां सिर्फ अजमाये हुए आसान और हानि रहित नुस्खे ही बताएं है। दमा याप्य व्याधी है। याप्य का अर्थ यह है कि दवाई खाते रहकर जिन्दगी बसर करो। अपनी जिव्हा के गलाम मत बनो दमा वाले रोगी लंबी दीर्घायु वाले शरीर से होते हैं, किन्तु जब दमा का श्वास का दौरा पडता है तब हर पले यमराज - दर्शन करते रहते हैं। कम से कम तकलीफ हो इसलिए परहेज करना अत्यंत आवश्यक है। दमा दोनों फेफड़ों को प्रभावित करने वाली अत्यंत दु:खदायक रोग हैइसमें सांस की नलिकायें अवरूद्ध होने से नलिकाएं सकरी हो जाती है, इसके कारण सांस फूलने ' लगती है। छाती में व्हिसलींग-सिटी बजाने जैसीसांय-सांय की आवाज होती है। बैठने से अच्छा लगता है लेटने में परेशानी होती है। सीने में भारीपन-जकड़न आंखों के आगे धुंधलापन ' अंधेरा छा जाता है। इसमें सूखी या बलगम युक्त युक्त खांसी भी होती है। मौसम का बदलाव और सांस का चोली-दामन ला-दामन का साथ है। चार मौसम खत्म होने के पिछले आठ दिन और नया मौसम शुरू होने के पहले आठ दिन इसको मौसम या ऋतु परिवर्तन का संधि काल कहते हैं। इसमें दिन या रात किसी भी वक्त दमे का दौरा हो सकता है। बादल छायी ऋतु में भी यह होता ही है। इसके अलावा कोहरे में घूमने से, दही-चावल का अधिक सेवन करने' से बासी भोजन करने से, ठंडे पेय से, मैदे और बेसन के खाद्य पदार्थ, अचार, फास्ट फूड, मांसाहार आदि का सेवन करने से, रात का भोजन देर से करने से, सेंटेड इत्र, सेन्ट, अगरबत्ती, सुगंधी वाले डीओडरेन्ट स्प्रे का उपयोग करने से, चांदी के परत वाली मिठाइयां खाने से, वेनिला ओसेंस जैसे मिलावटी ऐसंस, वाले बिस्कट बेकरी प्रोडक्ट सेवन करने से, घर में रसोई पकाते समय सब्जी दाल को दिये गयी छोंके (बघार) जैसे का ग के दौरे तुरन्त हो हुए सकत ह। आधुनिक विज्ञान इसे एलर्जिक अस्थमा है या अपनी कहता है। हमारे आयुर्वेद में इसे लंबी श्वास राग नाम दिया ह आर श्वास राग क पाच का प्रकार है। इसकी चर्चा करना लेख को विस्तृत यमराज - करना होगा। इसलिए हमारी नजर के सामने हो हमेशा दिखने वाले श्वास व्याधि की बात रखी है। इसे आयुर्वेद में 'तमक श्वास' नाम दिया है प्रभावित इस श्वास रोग की सामान्य चिकित्सा जो हम घर बैठे कर सकते हैं, वो मैंने शुरू में ही बतायी है। विशिष्ठ चिकित्सा अनुभवी एवम् सरकार मान्य नलिकाएं चिकित्सक से ही करवानी चाहिए। आयुर्वेद में फूलने' श्वास कास चिंतामणी रस-श्वास कुठार जैसी रस-अभ्रक, अस्म-मल्कसिंदूर-रस, सिंदूरअच्छा, कनकासव-वासारिष्ट-कन्टकार्यावलेह इत्यादि बहुत सारे असरकारक किन्तु महंगे योग है। धुंधलापन' इसको किस मरीज को देना है यह चिकित्सक ही युक्त युक्त तय करेगा। मैं आधुनिक एलोपैथ का विरोधी नहीं हैं। दामन आपात्कालीन परिस्थिति में एलोपैथिक दवाये पिछले जैसे के नेबलाइझर पंप द्वारा गले में छिडकाव पहले करने वाली औषधियां इंजेक्शन स्पेश्यालिस्ट डॉक्टर से सलाह मशवरा करके अवश्य लेनी चाहिए। आखिर मैं 'जान है तो जहान' है ऐसा छायी समझकर रोग को मिटाने के वास्ते सभी पयकोहरे करने चाहिए। आयुर्वेद एलोपैथ, होम्योपैथ बायोकम, नेचुरोपैथ आदि सभी चिकित्सा में ' पद्धतियों का जन्म मानव कल्याण के लिए तो और पक्ष हुआ है।